HKS 2. Karunaa Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथाम्रुतसर

२. करुणा सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

श्रवण- मनका — नंद-वीवुदु ।

भवज-नित दुः — खगळ- कळॆवुदु ।

विविध- भोगग — ळिहप-रंगळ — लित्तु- सलहुवु-दु ॥ भुवन- पावन — वॆनिप- लक्ष्मी- ।

धवन- मंगळ — कथॆय- परमो ।

त्सवदि- किविगॊ — ट्टालि-पुदु भू — सुररु- दिनदिन-दि ॥ २-१ ॥

मळॆय- नीरो — णियलि- परियलु ।

बळस-रूरॊळ — गिद्द- जनरा ।

जलवु- हॆद्दॊरॆ — गूडॆ- मज्जन — पान- गैदप-रु ॥ कलुष- वचनग — ळाद-रॆयु बां ।

बॊळॆय- पॆत्तन — पाद-महिमा ।

जलधि- पॊक्कद — रिंद- माण्दप — रे म-हीसुर-रु ॥ २-२ ॥

श्रुति-ततिग-ळभि — मानि- लक्ष्मी ।

स्तुतिग-ळिगॆ गो — चरिस-दप्रति ।

हत म-हैश्व — र्याद्य-खिल स — द्गुण ग-णांभो-धि ॥ प्रतिदि-वस त — न्नंघ्रि- सेवा- ।

रत म-हात्मरु — माडु-तिह सं- ।

स्तुतिगॆ- वशना — गुवनि-वन का — रुण्य-केनॆं-बॆ ॥ २-३ ॥

मन व-चनकति — दूर- नॆनॆवर- ।

ननुस-रिसि तिरु — गुवनु- जाह्नवि ।

जनक- जनरॊळ — गिद्दु- जनिसुव — जगदु-दर ता-नु ॥

घन म-हिम गां — गेय-नुत गा- ।

यनव- केळुत — गगन-चर वा- ।

हन दि-वौकस — रॊडनॆ- चरिसुव — मनॆ-मनॆ-गळ-ल्लि ॥ २-४ ॥

मलगि- परमा — दरदि- पाडलु ।

कुळितु- केळुव — कुळितु- पाडलु ।

निलुव- निंतरॆ — नलिव- नलिदरॆ — ऒलिवॆ- निमगॆं-ब ॥ सुलभ-नो हरि — तन्न-वर नर- ।

घळिगॆ- बिट्टग — लनु र-माधव- ।

नॊलिस-लरियदॆ — पाम-ररु बळ — लुवरु- भवदॊळ-गॆ ॥ २-५ ॥

मनदॊ-ळगॆ ता — निद्दु- मनवॆं- ।

दॆनिसि-कॊंबनु — मनद- वृत्तिग- ।

ळनुस-रिसि भो — गंग-ळीवनु — त्रिविध- चेतन-कॆ ॥ मनव-नित्तरॆ — तन्न-नीवनु ।

तनुव- दंडिसि — दिनदि-नदि सा- ।

धनव- माळ्परि — गित्त-पनु स्व — र्गादि- भोगग-ळ ॥ २-६ ॥

परम- सत्पुरु — षार्थ- रूपनु ।

हरियु- लोककॆ — ऎंदु- परमा- ।

दरदि- सदुपा — सनॆय- गैवरि — गित्त-पनु त-न्न ॥ मरॆदु- धर्मा — र्थगळ- कामिसु- ।

वरिगॆ- नगुतति — शीघ्र-दिंदलि ।

सुरप- तनय सु — योध-नरिगि — त्तंतॆ- कॊडुति-प्प ॥ २-७ ॥

जगव-नॆल्लव — निर्मि-सुव ना- ।

ल्मॊगनॊ-ळगॆ ता — निद्दु- सलहुव ।

गगन-केशनॊ — ळिद्दु-संहरि — सुवनु- लोकग-ळ ॥

स्वगत- भेद वि — वर्जि-तनु स- ।

र्वग स-दानं — दैक- देहनु ।

बगॆ-बगॆय-ना — मदलि- करॆसुव — भकुत-रनु पॊरॆ-व ॥ २-८ ॥

ऒब्ब-नलि निं — ताडु-वनु म- ।

त्तॊब्ब-नलि नो — डुवनु- बेडुव- ।

नॊब्ब-नलि नी — डुवनु- माता — डुवनु- बॆरगा-गि ॥ अब्ब-रद हॆ — द्दैव-निव म- ।

त्तॊब्ब-रनु लॆ — क्किसनु- लोकदॊ- ।

ळॊब्ब-ने ता — बाध्य- बाधक — नाह- निर्भी-त ॥ २-९ ॥

शरण- जन मं — दार- शाश्वत ।

करुणि- कमला — कांत- कामद ।

परम- पावन — तर सु-मंगळ — चरित- पार्थ स-ख ॥ निरुप-मानं — दात्म- निर्गत ।

दुरित- देवव — रेण्य-नॆंदा- ।

दरदि- करॆयलु — बंदॊ-दगुवनु — तन्न-वर बळि-गॆ ॥ २-१० ॥

जननि-यनु का — णदिह- बालक ।

नॆनॆ-नॆनॆदु-हलु — बुतिरॆ- कत्तलॆ ।

मनॆयॊ-ळडगि — द्दवन- नोडुत — नगुत- हरुषद-लि ॥ तनय-नं बिगि — दप्पि- रंबिसि ।

कनलि-कॆय कळॆ — वंतॆ- मधुसू- ।

दननु- तन्नव — रिद्दॆ-डॆगॆ बं — दॊदगि- सलहुव-नु ॥ २-११ ॥

इट्टि-कल्लनु — भकुति-यिंदलि ।

कॊट्ट- भकुतगॆ — मॆच्चि- तन्ननॆ ।

कॊट्ट- बड ब्रा — ह्मणन- ऒप्पिडि — यवलि-गखिला-र्थ ॥

कॆट्ट- मातुग — ळॆनदॆ- चैद्यन ।

पॊट्टॆ-यॊळगिं — बिट्ट- बाणद ।

लिट्ट- भीष्मन — अवगु-णगळॆणि — सिदनॆ- करुणा-ळु ॥ २-१२ ॥

धनव- संर — क्षिसुव- फणि ता- ।

नुणदॆ- मत्तॊ — ब्बरिगॆ- कॊडदनु- ।

दिनदि- नोडुत — सुखिसु-वंददि — लकुमि-वल्लभ-नु ॥ प्रणत-रनु का — य्दिहनु- निष्का- ।

मनदि- नित्या — नंद-मय दु ।

र्जनर- सेवॆय — नॊल्ल-नप्रति — मल्ल- जगकॆ-ल्ल ॥ २-१३ ॥

बाल-कन कल — भाषॆ- जननियु ।

केळि- सुख पडु — वंतॆ- लक्ष्मी- ।

लोल- भक्तरु — माडु-तिह सं — स्तुतिगॆ- हिग्गुव-नु ॥

ताळ- तन्नव — रल्लि- माडुव ।

हेळ-नव हॆ — द्दैव- विदुरन ।

आल-यदि पा — लुंडु- कुरुपन — मान-वनॆ कॊं-ड ॥ २-१४ ॥

स्मरिसु-ववरप — राध-गळ ता- ।

स्मरिस- सकले — ष्ट प्र-दायक ।

मरळि- तनग — र्पिसलु- कॊट्टुद — नंत- मडि मा-डि ॥ परिप-रियलुं — डुणिसि- सुखसा- ।

गरदि- लोला — डिसुव- मंगळ- ।

चरित- चिन्मय — गात्र- लोक प — वित्र- सुचरि-त्र ॥ २-१५ ॥

एनु- करुणा — निधियॊ- हरि म- ।

त्तेनु- भक्ता — धीन-नो इ- ।

न्नेनु- ईतन — लीलॆ- इच्छा — मात्र-दलि जग-व ॥

तानॆ- सृजिसुव — पालि-सुव नि- ।

र्वाण- मॊदला — दखिल- लोक- ।

स्थान-दलि म — त्तवर-निट्टा — नंद- बडिसुव-नु ॥ २-१६ ॥

जनप- मॆच्चिद — रीव- धन वा- ।

हन वि-भूषण — वसन- भूमिय ।

तनु म-नगळि — त्ताद-रिपरुं — टेनॊ- लोकदॊ-ळु ॥

अनव-रत नॆनॆ — ववर-नंता- ।

सनवॆ- मॊदला — दाल-यदॊळि- ।

ट्टणुग-नंदद — लवर- वशना — गुव म-हा महि-म ॥ २-१७ ॥

भुवन- पावन — चरित- पुण्य- ।

श्रवण- कीर्तन — पाप- नाशन ।

कविभि-रीडित — कैर-वदळ — श्याम- निस्सी-म ॥ युवति- वेषदि — हिंदॆ- गौरी- ।

धवन- मोहिसि — कॆडिसि- उळिसिद ।

इवन- मायव — गॆलुव-नावनु — ई ज-गत्रय-दि ॥ २-१८ ॥

पाप-कर्मव — सहिसु-वरॆ ल- ।

क्ष्मीप-तिगॆ सम — राद- दिविजर- ।

नी प-योज भ — वांड-दॊळगा — वल्लि- ना का-णॆ ॥

गोप- गुरुविन — मडदि- भृगु नग- ।

चाप- मॊदला — दवरु- माड्द म- ।

हाप-राधग — ळॆणिसि-दनॆ करु — णा स-मुद्र ह-रि ॥ २-१९ ॥

अंगु-टाग्रदि — जनिसि-दमरत- ।

रंगि-णियु लो — कत्र-यगळघ ।

हिंगि-सुवळ — व्याकृ-ताका — शांत- व्यापिसि-द ॥ इंग-डल मग — ळॊडॆय-नंगो- ।

पांग-गळलि — प्प मल-नंत सु- ।

मंग-ळ प्रद — नाम- पावन — माळ्पु-देनरि-दु ॥ २-२० ॥

काम-धेनु सु — कल्प-तरु चिं- ।

ताम-णिगळम — रेंद्र- लोकदि ।

कामि-तार्थग — ळीव-वल्लदॆ — सेवॆ- माळ्परि-गॆ ॥ श्रीमु-कुंदन — परम- मंगळ- ।

नाम- नरक — स्थरनु- सलहितु ।

पाम-रर पं — डितरॆ-निसि पुरु — षार्थ- कॊडुतिहु-दु ॥ २-२१ ॥

मनदॊ-ळगॆ सुं — दर प-दार्थव ।

नॆनॆदु- कॊडॆ कै — कॊंडु- बलु नू- ।

तन सु-शोभित — गंध- सुरसो — पेत- फलरा-शि ॥

द्युनदि- निवहग — ळंतॆ- कॊट्टव- ।

रनु स-दा सं — तैसु-वनु स- ।

द्गुणव- कद्दव — रघव- कदिवनु — अनघ-नॆंदॆनि-सि ॥ २-२२ ॥

चेत-ना चे — तन वि-लक्षण ।

नूत-न पदा — र्थगळॊ-ळगॆ बलु- ।

नूत-नति सुं — दरकॆ- सुंदर — रसकॆ- रसरू-प ॥ जात-रूपो — दर भ-वाद्यरॊ- ।

ळात-त प्रति — म प्र-भाव ध- ।

रात-ळदॊळॆ — म्मॊडनॆ-याडुत — लिप्प- नम्म-प्प ॥ २-२३ ॥

तंदॆ- ताय्गळु — तम्म- शिशुविगॆ ।

बंद- भयगळ — परिह-रिसि निज- ।

मंदि-रदि बे — डिदुद-नित्ता — दरिसु-वंदद-लि ॥

हिंदॆ- मुंदॆड — बलदि- ऒळहॊर- ।

गिंदि-रेशनु — तन्न-वरनॆं- ।

दॆंदु- सलहुव — नाग-सदवो — लॆत्त- नोडिद-रु ॥ २-२४ ॥

ऒडल- नॆळलं — ददलि- हरि न- ।

म्मॊडनॆ- तिरुगुव — नॊंद-रॆक्षण ।

बिडदॆ- बॆंबल — वागि- भक्ता — धीन-नॆंदॆनि-सि ॥

तडॆव- दुरितौ — घगळ- कामद ।

कॊडुव- सकले — ष्टगळ- संतत ।

नडॆव- नम्मं — ददलि- नव सुवि — शेष- सन्महि-म ॥ २-२५ ॥

बिट्ट-वर भव — पाश-दिंदलि ।

कट्टु-वनु बहु — कठिण-निव शि- ।

ष्टेष्ट-नॆंदरि — दनव-रत स — द्भक्ति- पाशद-लि ॥ कट्टु-वर भव — कट्टु- बिडिसुव ।

सिट्टि-नवनिव — नल्ल- कामद ।

कॊट्टु- कावनु — सकल- सौख्यव — निह प-रंगळ-लि ॥ २-२६ ॥

कण्णि-गॆवॆयं — ददलि- कै मै- ।

तिण्णि-गॊदगुव — तॆरदि- पल्गळु ।

पण्णु- फलगळ — नगिदु- जिह्वॆगॆ — रसव- नीवं-तॆ ॥

पुण्य- फलवी — वंद-दलि नुडि- ।

वॆण्णि-नाण्मां — डदॊळु- लक्ष्मण- ।

नण्ण-नॊदगुव — भक्त-रवसर — कमर-गण सहि-त ॥ २-२७ ॥

कॊट्टु-दनु कै — कॊंब-रक्षण ।

बिट्ट-गल त — न्नवर- दुरितग- ।

ळट्टु-वनु दू — रदलि- दुरिता — रण्य- पावक-नु ॥

बॆट्ट- बॆन्निलि — हॊरिसि-दवरॊळु ।

सिट्टु- माडिद — नेनॊ- हरि कं- ।

गॆट्ट- सुररिगॆ — सुधॆय-नुणिसिद — मुरिद-नहितर-नु ॥ २-२८ ॥

खेद- मोद ज — याप-जय मॊद- ।

लाद- दोषग — ळिल्ल- चिन्मय ।

साद-रदि त — न्नंघ्रि- कमलव — नंबि- स्तुतिसुव-र ॥ कादु-कॊंडिह — परम-करुण म- ।

होद-धियु त — न्नवरु- माड्दप- ।

राध-गळ नो — डदलॆ- सलहुव — सर्व-कामद-नु ॥ २-२९ ॥

मीन- कूर्म व — राह- नर पं- ।

चान-नातुळ — शौर्य- वामन ।

रेणु-कात्मज — राव-णादि नि — शाच-र ध्वं-सि ॥ धेनु-कासुर — मथन- त्रिपुरव ।

हानि-गैसिद — निपुण- कलिमुख- ।

दान-वर सं — हरिसि- धर्मदि — काय्द- सुजनर-नु ॥ २-३० ॥

श्री म-नोहर — शमल-वर्जित ।

कामि-तप्रद — कैर-वदळ ।

श्याम- शबल श — रण्य- शाश्वत — शर्क-राक्षस-ख । साम- सन्नुत — सकल- गुणगण ।

धाम- श्री जग — न्नाथ- विठ्ठल ।

नी म-हियॊळव — तरिसि- सलहिद — सकल- सुजनर-नु ॥ २-३१ ॥

॥ इति श्री करुणा सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्रीः ॥

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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥