HKS 3. Vyaapti Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

*NOTE: Choose desired output script using Aksharamukha (screen top-right).

श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथाम्रुतसर

. व्याप्ति सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

पुरुष- रूप — त्रय पु-रातन- ।

पुरुष- पुरुषो — त्तम क्ष-राक्षर- ।

पुरुष- पूजित — पाद- पूर्णा — नंद- ज्ञानम-य । पुरुष-सूक्त सु — मेय- तत्त- ।

त्पुरुष- हृत्पु — ष्करनि-लय मह- ।

पुरुष-जांडां — तरदि- बहिरदि — व्याप्त- निर्लि-प्त ॥ ३-१ ॥

स्त्रिन-पुंसक — पुरुष-भू सलि- ।

लान-लानिल — गगन- मन शशि- ।

भानु- काल गु — ण प्र-कृतियॊळ — गॊंदु- तान-ल्ल ॥ एनु- इवन म — हा म-हिमॆ कडॆ – ।

गाण-रज भव — शक्र- मुखरु नि- ।

दानि-सलु मा — नवरि-गळवडु — वुदॆ वि-चारिस-लु ॥ ३-२ ॥

गंध- रस रू — प स्प-रुश श- ।

ब्दॊंदु- तान — ल्लदर-दर पॆस- ।

रिंद- करॆसुत — जीव-रिगॆ त — र्पकनु- ताना-गि ॥ पॊंदि-कॊंडिह — परम- करुणा- ।

सिंधु- शाश्वत — मनवॆ- मॊदला- ।

दिंद्रि-यगळॊळ — गिद्दु- भोगिसु — तिहनु- विषयग-ळ ॥ ३-३ ॥

श्रवण- नयन — घ्राण- त्वग्रस- ।

निवुग-ळलि वाक् — पाणि- पादा- ।

द्यव-यवग-ळलि — तद्गु-णगळलि — तत्प-तिगळॊळ-गॆ ॥ प्रवित-तनु ता — नागि- कृतिपति ।

विविध- कर्मव — माडि- माडिसि ।

भवकॆ- कारण — नागि- तिरुगिसु — तिहनु- तिळिसद-लॆ ॥ ३-४ ॥

गुणि- गुणग-ळॊळ — गिद्दु- गुणि गुण- ।

नॆनिसु-वनु गुण — बद्ध-नागदॆ ।

गुणज- पुण्या — पुण्य- फल ब्र — ह्मादि- चेतन-कॆ ॥ उणिसु-तवरॊळ — गिद्दु- वृजना- ।

र्दन चि-दानं — दैक- देहनु ।

कॊनॆगॆ- सचरा — चर ज-गद्भुकु — वॆनिप-नव्यय-नु ॥ ३-५ ॥

विद्यॆ- तानॆं — दॆनिसि-कॊंबनि- ।

रुद्ध- देवनु — सर्व- जीवर ।

बुद्धि-यॊळु ता — निद्दु- कृतिपति — बुद्धि-यॆनिसुव-नु ॥ सिद्धि-यॆनिसुव — संक-रुषण प्र- ।

सिद्ध- नामक — वासु-देवन- ।

वद्य- रूप च — तुष्ट-यगळरि — तवनॆ- पंडित-नु ॥ ३-६ ॥

तनु च-तुष्टय — गळॊळु- नारा-।

यणनु- हृत्कम — लाख्य- सिंहा- ।

सनदॊ-ळनिरु — द्धादि- रूपग — ळिंद- शोभिसु-त ॥ तनगॆ- ताने — सेव्य- सेवक- ।

नॆनॆसि- सेवा — सक्त- सुररॊळ- ।

गनव-रत नॆलॆ — सिद्दु- सेवॆय — कॊंब-नवरं-तॆ ॥ ३-७ ॥

जाग-र स्व — प्नंग-ळॊळु वर- ।

भोगि- शयन ब — हु प्र-कार वि- ।

भाग- गैसि नि — रंश- जीवर — चिच्छ-रीरव-नु ॥ भोग-वित्तु सु — षुप्ति- कालदि ।

साग-रव नदि — कूडु-वंतॆ वि- ।

योग-रहितनु — अंश-गळने — कत्र-वैदिसु-व ॥ ३-८ ॥

भार्य-रिंदॊड — गूडि- कारण- ।

कार्य- वस्तुग — ळल्लि- प्रेरक- ।

प्रेर्य- रूपग — ळिंद- पटतं — तुगळ-वोलि-द्दु । सूर्य- किरणग — ळंतॆ- तन्नय ।

वीर्य-दिंदलि — कॊडुत- कॊळुतिह- ।

नार्य-रिगॆ ई — तन वि-हारवु — गोच-रिपुदे-नो ॥ ३-९ ॥

जनक- तन्ना — त्मजगॆ- वर भू- ।

षण दु-कूलव — तॊडिसि- ता वं- ।

दनॆय- कैकॊळु — तवन- हरसुत — हरुष- बडुवं-तॆ । वनरु-हेक्षण — पूज्य- पूजक- ।

नॆनॆसि- पूजा — साध-न पदा- ।

र्थनु त-नगॆ ता — नागि- फलगळ — नीव- भजकरि-गॆ ॥ ३-१० ॥

तंदॆ- बहु सं — भ्रमदि- तन्नय ।

बंधु- बळगव — नॆरहि- मदुवॆय ।

नंद-नगॆ ता — माडि- मनॆयॊळ — गिडुव- तॆरनं-तॆ ॥ इंदि-राधव — तन्न- इच्छॆय- ।

लिंद- गुणगळ — चेत-नकॆ सं- ।

बंध- गैसि सु — खा सु-खात्मक — संसृ-तियॊळिडु-व ॥ ३-११ ॥

तृण कृ-तालय — दॊळगॆ- पॊगॆ सं- ।

दणिसि- प्रति छि — द्रदलि- पॊरम- ।

ट्टनल-निरवनु — तोरि- तोरद — लिप्प- तॆरदं-तॆ । वनज-जांडदॊ — ळखिल- जीवर ।

तनुवि-नॊळहॊर — गिद्दु- काणिस- ।

दनिमि-षेशनु — सकल- कर्मव — माळ्प-नवरं-तॆ ॥ ३-१२ ॥

पाद-पगळडि — गॆरॆयॆ- सलिलवु ।

तोदु- कॊंबॆग — ळुब्बि- पुष्प- ।

स्वादु- फलवी — वंद-दलि स — र्वेश्व-रनु जन-रा- ॥ राध-नॆय कै — गॊंडु- ब्रह्म भ- ।

वादि-गळ ना — मदलि- फलवि- ।

त्ताद-रिसुवनु — तन्न- महिमॆय — तोर-गॊड जग-कॆ ॥ ३-१३ ॥

श्रुति त-तिगळिगॆ — गोच-रिसद- ।

प्रतिम-जानं — दात्म-नच्युत ।

वितत- विश्वा — धार- विद्या — धीश- विधिजन-क ॥ प्रतिदि-वस चे — तनरॊ-ळगॆ प्रा- ।

कृत पु-रुषनं — ददलि- संचरि- ।

सुत नि-यम्य नि — याम-कनु ता — नागि- संतै-प ॥ ३-१४ ॥

मन वि-षयदॊळ — गिरिसि- विषयव ।

मनदॊ-ळगॆ नॆलॆ — गॊळिसि- बलु नू- ।

तनवु- सुसमी — चीन-विदुपा — देय-वॆंदरु-पि ॥ कनसि-लादरु — तन्न-पादद ।

नॆनॆव-नीयदॆ — सर्व-रॊळगि- ।

द्दनुभ-विसुवनु — स्थूल-विषयव — विश्व-नॆंदॆनि-सि ॥ ३-१५ ॥

तोद-कनु ता — नागि- मन मॊद- ।

लाद- करणदॊ — ळिद्दु- विषयव- ।

नैदु-वनु निज — पूर्ण- सुखमय — ग्राह्य- ग्राहक-नु । वेद- वेद्यनु — तिळिय-दवनो- ।

पादि- भुंजिसु — तॆल्ल-रॊळगा- ।

ह्लाद- बडुवनु — भक्त-वत्सल — भाग्य-संप-न्न ॥ ३-१६ ॥

नित्य- निगमा — तीत- निर्गुण ।

भृत्य- वत्सल — भय वि-नाशन ।

सत्य- काम श — रण्य- श्यामल — कोम-लांग सु-खि ॥ मत्त-नंददि — मर्त्य-रॊळहॊर- ।

गॆत्त- नोडलु — सुत्तु-तिप्पनु ।

अत्य-धिक सं — तृप्त- त्रिजग — द्व्याप्त- परमा-प्त ॥ ३-१७ ॥

पवि ह-रिन्मणि — विद्रु-मद स- ।

च्छविग-ळंददि — राजि-सुत मा- ।

धव नि-रंतर — देव- मानव — दान-वरॊळि-द्दु । त्रिविध- गुण क — र्म स्व-भावव ।

पवन- मुख दे — वांत-रात्मक ।

दिवस- दिवसदि — व्यक्त- माडुत — लवरॊ-ळिद्दुणि-प ॥ ३-१८ ॥

अणु म-हत्तिनॊ — ळिप्प- घन पर- ।

मणुवि-नोळड — गिसुव- सूक्ष्मव ।

मुणुगि-सुव ते — लिसुव- स्थूलग — ळवन- मायवि-दु ॥ दनुज- रक्कस — रॆल्ल-रिवनॊळु ।

मुनिदु- माडुव — देनु-लूखल ।

ऒनकॆ-गळु धा — न्यगळ-हणिवं — ददलि-संहरि-प ॥ ३-१९ ॥

देव- मानव — दान-वरु ऎं- ।

दी वि-धदला — वाग-लिप्परु ।

मूव-रॊळगिव — गिल्ल- स्नेहो — दासि-नद्वे-ष । जीव-रधिका — रानु-सारद- ।

लीव- सुख सं — सार- दुःखव ।

ता उ-णदलव — रवरि-गुणिसुव — निर्ग-ताशन-नु ॥ ३-२० ॥

ऎल्लि- केळिद — रॆल्लि- नोडिद- ।

रॆल्लि- बेडिद — रॆल्लि- नीडिद- ।

रॆल्लि- ओडिद — रॆल्लि- आडिद — रल्लॆ- इरुतिह-नु ।

बल्लि-दरिगति — बल्लि -दनु सरि- ।

यिल्ल- इवगा — वल्लि -नोडलु ।

खुल्ल- मानव — रॊल्ल-नप्रति — मल्ल- जगकॆ-ल्ल ॥ ३-२१ ॥

तप्त-लोहवु — नोळ्प-जनरिगॆ ।

सप्त-जिह्वन — तॆरदि-तोर्पुदु ।

लुप्त-पावक — लोह-कांबुदु — पूर्व-दोपा-दि । सप्त-वाहन — निखिळ-जनरॊळु ।

व्याप्त-नादद — रिंद-सर्वरु ।

आप्त-रागिह — रॆल्ल-कालदि — हितव-कैकॊं-डु ॥ ३-२२ ॥

वारि-दनु मळॆ — गरॆयॆ-बॆळॆदिह ।

भूरु-हंगळ — चित्र-फलरस ।

बेरॆ-बेरि — प्पंतॆ-बहुविध — जीव-रॊळगि-द्दु ॥ मार-मणनव — रवर-योग्यतॆ ।

मीर-दलॆ गुण — कर्म-गळ अनु- ।

सार-नडॆसुव — देव-निगॆ वै — षम्य-वॆल्लिहु-दो ॥ ३-२३ ॥

वारि-जाप्तन — किरण-मणिगळ ।

सेरि-तत्त — द्वर्ण-गळनु वि- ।

कार-गैसदॆ — नोळ्प-रिगॆ कं — गॊळिसु-वंदद-लि । मार-मण लो — कत्र-यदॊळिह ।

मूरु-विध जी — वरॊळ-गिद्दु वि- ।

हार-माडुव — नवर-योग्यतॆ — कर्म-वनुसरि-सि ॥ ३-२४ ॥

जलव-नपहरि — सुव घ-ळिगॆ ब- ।

ट्टलनु-ळिदु जय — घंटॆ कैपिडि- ।

दॆळॆदु-हॊडॆवं — ददलि-संतत — कर्तृ- ताना-गि ॥ हलध-रानुज — पुण्य-पापद ।

फलग-ळनु दे — वासु-रर गण ।

दॊळु वि-भागव — माडि उ-णिसुत — साक्षि-यागि-प्प ॥ ३-२५ ॥

पॊंदि-कॊंडिह — सर्व-रॊळु सं ।

बंध-वागदॆ — सकल-कर्मव ।

रंद-दलि ता — माडि-माडिसि — तत्फ-लगळुण-दॆ ॥ कुंद-दणुवु म — हत्तॆ-निप घट- ।

मंदि-रदि स — र्वत्र- तुंबिह ।

बांद-ळद तॆर — दंतॆ- इरुति — प्पनु र-मारम-ण ॥ ३-२६ ॥

काद-कब्बिण — हिडिदु- बडियलु ।

वेद-नॆयु लो — हगळि-गल्लदॆ ।

आदु-देनै — अनल-गा व्यथॆ — एनु- माडिद-रु ॥

आदि-देवनु — सर्व-जीवर ।

कादु-कॊंडिह — नॊळहॊ-रगॆ दुः- ।

खादि-गळु सं — बंध-वागुवु — वेनॊ- चिन्मय-गॆ ॥ ३-२७ ॥

मळल- मनॆगळ — माडि- मक्कळु ।

कॆलवु- कालद — लाडि- मोददि ।

तुळिदु- कॆडिसुव — तॆरदि- लक्ष्मी — रमण- लोकग-ळ ॥ हलवु- बगॆयलि — निर्मि-सुव नि- ।

श्चलनु- ताना — गिद्दु- सलहुव ।

ऎलरु-णिय वोल् — नुंगु-वगॆ ऎ — ल्लिहुदॊ- सुख दुः-ख ॥ ३-२८ ॥

वेष- भाषॆग — ळिंद- जनर प्र- ।

मोष- गैसुव — नट पु-रुषनोल् ।

दोष- दूरनु — लोक-दॊळु बहु — रूप- मातिन-लि ॥ तोषि-सुवनव — रवर- मन दभि- ।

लाषॆ-गळ पू — रैसु-तनुदिन ।

पोषि-सुव पू — तात्म- पूर्णा — नंद- ज्ञानम-य ॥ ३-२९ ॥

अधम- मानव — नोर्व मंत्रौ- ।

षधग-ळनु ता — नरितु-पावक ।

उदक-गळ सं — बंध-विल्लदॆ — इप्प-नदरॊळ-गॆ ॥

पदुम- जांडो — दरनु-सर्वर ।

हृदय-दॊळगिरॆ — काल-गुण क- ।

र्मद क-लुष सं — बंध-वागुवु — दे नि-रंजन-गॆ ॥ ३-३० ॥

ऒंदु- गुणदॊळ — नंत- गुणगळु ।

ऒंदु- रूपदॊ — ळिहवु लोकग- ।

ळॊंदु- रूपदि — धरिसि- तद्ग प — दार्थ-दॊळ हॊर-गॆ ॥ बांद-ळद वो — लिद्दु- बहु पॆस- ।

रिंद- करॆसुत — पूर्ण- ज्ञाना- ।

नंद-मय परि — परि वि-हारव — माडि- माडिसु-व ॥ ३-३१ ॥

ऎल्ल-रॊळु ता — निप्प-तन्नॊळ- ।

गॆल्ल-रनु धरि — सिहनु- अप्रति- ।

मल्ल- मन्मथ — जनक-जगदा — द्यंत-मध्यग-ळ । बल्ल- बहु गुण — भरित- दानव- ।

दल्ल-ण जग — न्नाथ-विठ्ठल ।

सॊल्ल- लालिसि — स्तंभ-दिंदलि — बंद- भकुतनि-गॆ ॥ ३-३२ ॥

॥ इति व्याप्ति सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्रीः ॥

Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥