HKS 4. Bhojana (Rasa Vibhaaga) Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार

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. भोजन (रस विभाग) सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

वनज- जांडदॊ — ळुळ्ळ-खिल चे- ।

तनरु- भुंजिप — चतुर-विध भो- ।

जन प-दार्थदि — चतुर- विध रस — रूप- ताना-गि ॥

मनकॆ- बंदद — नुंडु-णिसि सं- ।

हनन- कुपचय — करण- कानं- ।

द निमि-षरि गा — त्म प्र-दर्शन — सुखव-नीव ह-रि ॥ ४-१ ॥

नीड- दंदद — लिप्प- लिंगकॆ ।

षोड-शात्मक — रस वि-भागव ।

माडि- षोडश — कलॆग-ळिगॆ उप — चयग-ळनॆ कॊडु-त ॥ क्रोड- ऎप्प — त्तॆरडु- साविर ।

नाडि-गत दे — वतॆग-ळॊळगि- ।

द्दाडु-तानं — दात्म- चरिसुव — लोक-दॊळु ता-नु ॥ ४-२ ॥

वारि-वाच्यनु — वारि-यॊळगि- ।

द्दारु- रसवॆं — दॆनिसि- मूव- ।

त्तारु- साविर — स्त्रीपु-रुषना — डियॊळु- तद्रू-प ॥ धार-कनु ता — नागि-सर्वश- ।

रीर-गळलि अ — हश्च- रात्रि वि- ।

हार- माळ्पनु — बृहति-यॆंब सु — नाम-दिं करॆ-सि ॥ ४-३ ॥

आरु- रस स — त्वादि- भेददि ।

आरु- मूरा — गिहवु- सारा- ।

सार- नीता — प्रचुर- खंडा — खंड- चित्प्रचु-र ॥ ईर-धिक ऎ — प्पत्तु- साविर ।

मार-मणन र — साख्य- रूप श- ।

रीर-दॊळु भो — ज्य सुप-दार्थदि — तिळिदु- भुंजिपु-दु ॥ ४-४ ॥

क्षीर-गत रस — रूप-गळु मु- ।

न्नूर- मेलै — वत्तु- नालकु ।

चारु- घृत गत — रूप-गळु इ — प्पत्त-रॊंभ-त्तु ॥

सार- गुडदॊळ — गैदु- साविर ।

नूर-वंदु सु — रूप- द्विसह- ।

स्रारॆ-रडु शत — पंच-विंशति — रूप- फलगळ-लि ॥ ४-५ ॥

विशद- स्थिर ती — क्षणवु- निरहर ।

रसग-ळॊळु मू — रैदु- साविर ।

त्रिशत-नव रू — पगळ चिंतिसि — भुंजि-पुदु विष-य ॥ श्वसन- तत्वे — शरॊळ-गिद्दी ।

पॆसरि-निंदलि — करॆसु-वनु धे- ।

निसिद-रीपरि — मनकॆ- पॊळॆवनु — बल्ल- विबुधरि-गॆ ॥ ४-६ ॥

कपिल- नरहरि — भार्गव त्रय ।

वपुष- नेत्रदि — नासि-कास्यदि ।

शफर- नामक — जिह्वॆ-यलि दं — तदलि-हंसा-ख्य ॥ त्रिपदि- पाद्य ह — यास्य- वाच्य दॊ -।

ळपरि-मित सुख — पूर्ण- संतत ।

कृपण-रॊळगि — द्दवर-वर रस — स्वीक-रिसि कॊडु-व ॥ ४-७ ॥

निरुप-मानं — दात्म-हरि सं- ।

करुष-ण प्र — द्युम्न- रूपदि ।

इरुति-हनु भो — क्तृगळॊ-ळगॆ त — च्छक्ति-दनु ऎनि-सि ॥ करॆसु-वनु ना — राय-णनिरु- ।

द्धॆरडु- नामदि — भोज्य- वस्तुग ।

निरुत- तर्पक — नागि- तृप्तिय — नीव- चेतन-कॆ ॥ ४-८ ॥

वासु-देवनु — ऒळ हॊ-रगॆ अव- ।

काश- कॊडुव न — भस्थ-नागि र- ।

मा स-मेत वि — हार- माळ्पनु — पंच- रूपद-लि ॥

आ स-रोरुह — संभ-वाभव- ।

वास-वाद्यम — रादि- चेतन- ।

राशि-यॊळगिह — नॆंदु- अरितव — नवनॆ- कोविद-नु ॥ ४-९ ॥

वासु-देवनु — अन्न-दॊळु ना- ।

ना सु-भक्षदि — संक-रुषण कृ- ।

तीश- परमा — न्नदॊळु- घृतदॊळ — गिप्प-ननिरु-द्ध ॥ आ सु-पर्णां — सगनु- सूपदि ।

वास- वानुज — शाक-दॊळु मू- ।

लेश- नारा — यणनु- सर्व — त्रदलि- नॆलॆसिह-नु ॥ ४-१० ॥

अगणि-तात्म सु — भोज-न पदा- ।

र्थगळ- ऒळगॆ अ — खंड-वादॊं- ।

दगळि-नॊळनं — तांश-दिंदलि — खंड-नॆंदॆनि-सि ॥ जगदि- जीवर — तृप्ति- बडिसुव ।

स्वगत- भेद वि — वर्जि-तन ई- ।

र्बगॆय- रूपव — नरितु- भुंजिसि — अर्पि-सवनडि-गॆ ॥ ४-११ ॥

ईप-रियलरि — तुंब- नर नि- ।

त्योप-वासि नि — राम-यनु नि- ।

ष्पापि- नित्य म — हा सु-यज्ञग — ळाच-रिसिदव-नु ॥ पोपु-दिप्पुदु — बप्पु-दॆल्ल र- ।

माप-तिगधि — ष्ठान-वॆनलु कृ- ।

पाप-योनिधि — मात-नालिसु — वनु ज-ननियं-तॆ ॥ ४-१२ ॥

आरॆ-रडु सा — विरद- मेलि- ।

न्नूरु- ऐव — त्तॊंदु- रूपदि ।

सार-भोक्तनि — रुद्ध-देवनु — अन्न-मयनॆनि-प ॥ मूरॆ-रडुवरॆ — सावि-रद मे- ।

ल्मूर-धिक ना — ल्वत्तु- रूपदि ।

तोरु-तिह प्र — द्युम्न- जगदॊळु — प्राण-मयना-गि ॥ ४-१३ ॥

ऎरडु- कोशग — ळॊळ हॊ-रगॆ सं- ।

करुष-णैदु सु — लक्ष-दरव- ।

त्तॆरडु- साविर — देळ-धिक शत — रूप-गळ धरि-सि ॥ करॆसि-कॊंब म — नोम-यनु ऎं- ।

दरवि-दूरनु — ईरॆ-रडु सा- ।

विरद- मुन्नू — राद- मेल्ना — ल्कधिक- ऎप्प-त्तु ॥ ४-१४ ॥

रूप-दिं वि — ज्ञान-मयनॆं- ।

बी पॆ-सरिनिं — वासु-देवनु ।

व्यापि-सिह मह — दादि-तत्वव — तत्प-तिगळॊळ-गॆ ॥

ई पु-रुष ना — मकन- शुभस्वे- ।

दाप-ळॆनिसि र — मांब- ता ब्र- ।

ह्माप-रोक्षिग — ळाद-वर लिं — गांग- कॆडिसुव-ळु ॥ ४-१५ ॥

ऐदु-साविर — नूर इप्प- ।

त्तैदु- नारा — यणन- रूपव ।

ता ध-रिसिकॊं — डनुदि-नदि आ — नंद-मयनॆनि-प ॥ ऐदु-लक्षद — मेलॆ ऎंभ- ।

त्तैदु- साविर — नाल्कु- शतगळ- ।

लैदु- कोशा — त्मक वि-रिंचां — डदॊळु- तुंबिह-नु ॥ ४-१६ ॥

नूर-वंदु सु — रूप-दिं शां- ।

तीर-मण ता — नन्न-नॆनिपै- ।

नूर- मेल्मू — रधिक- दश प्रा — णाख्य- प्रद्यु-म्न ॥ तोरु-तिहनै — वत्तु- ऐदु वि- ।

कार- मनदॊळु — संक-रुषणै- ।

नूरु- चतुरा — शीति- विज्ञा — नात्म- विश्वा-ख्य ॥ ४-१७ ॥

मूरु- साविर — दर्ध- शत मे- ।

लीर-धिक रू — पगळ- धरिसि श- ।

रीर-दॊळगा — नंद-मय ना — राय-णाह्वय-नु ॥ ईरॆ-रडु सा — विरद- मेल्मु- ।

न्नूर- ऐदु सु — रूप-दिंदलि ।

भार-तीशनॊ — ळिप्प- नवनी — तस्थ- घृतदं-तॆ ॥ ४-१८ ॥

मूर-धिक ऐ — वत्तु- प्राण श- ।

रीर-दॊळगनि — रुद्ध-निप्पै- ।

नूर- हन्नॊं — दधिक- पाननॊ — ळिप्प- प्रद्यु-म्न ॥ मूर-ने व्या — ननॊळ- गैदरॆ ।

नूरु- रूपदि — संक-रुषणै- ।

नूर- मूव — त्तैदु- दाननॊ — ळिप्प- माये-श ॥ ४-१९ ॥

मूल- नारा — यणनु- ऐव- ।

त्तेळ-धिक ऐ — नूरु- रूपव ।

ताळि- सर्व — त्रदि स-माननॊ — ळिप्प- सर्वे-श ॥ लीलॆ-गैवनु — सावि-रद मे- ।

लेळु- नूर्ह — न्नोंदु- रूपव ।

ताळि- पंच — प्राण-रॊळु लो — कगळ- सलहुव-नु ॥ ४-२० ॥

त्रिनव-ति सुरू — पात्म-कनिरु- ।

द्धनु स-दा यज — मान-नागि- ।

द्दनल- यम सो — मादि- पितृ दे — वतॆग-ळिगॆ अ-न्न ॥ ऎनिप-ना प्र — द्युम्न- संकरु- ।

षण वि-भागव — माडि- कॊट्टुं- ।

डुणिप- नित्या — नंद- भोजन — दायि- तुर्या-ह्व ॥ ४-२१ ॥

षण्ण-वति ना — मकनु- वसु मु- ।

क्कण्ण- भास्कर — रॊळगॆ- निंतु प्र- ।

पन्न-रनुदिन — निष्क-पट स — द्भक्ति-यलि मा-ळ्प ॥ पुण्य- कर्मव — स्वीक-रिसि का- ।

रुण्य- सागर — ना पि-तृगळिग- ।

गण्य- सुखवि — त्तवर- पॊरॆवनु — ऎल्ल- कालद-लि ॥ ४-२२ ॥

सुतप- एको — त्तर सु-पंचा- ।

शतव-रण कर — णदि च-तुर्विं- ।

शति सु-तत्त्वदि — धातु-गळॊळि — द्दविर-तनिरु-द्ध ॥ जतन- माळ्पनु — जगदि- जीवर- ।

प्रतति-गळ ष — ण्णवति- नामक ।

चतुर- मूर्तिग — ळर्चि-सुवरद — रिंद- बल्लव-रु ॥ ४-२३ ॥

अबुज- जांडो — दरनु- विपिनदि ।

शबरि- ऎंजल — नुंडु- गोकुल- ।

दबलॆ-यर नॊलि — सिदनु- ऋषि प — त्नियरु- कॊट्ट-न्न ॥ सुभुज- ता भुं — जिसिद- स्वरमण ।

कुबुजॆ- गंधकॆ — ऒलिद- मुनिगण – ।

विबुध- सेवित — बिडुव-ने ना — वित्त- कर्मफ-ल ॥ ४-२४ ॥

गणनॆ-यिल्लद — परम- सुख स- ।

द्गुण ग-णंगळ — लेश- लेशकॆ ।

ऎणॆयॆ-निसदु र — माब्ज- भव श — क्रादि-गळ सुख-वु ॥ उणुतु-णुत मै — मरॆदु- कृष्णा- ।

र्पणवॆ-नलु कै — कॊंब- नर्भक ।

जननि- भोजन — समय-दलि कै — यॊड्डु-वंदद-लि ॥ ४-२५ ॥

जीव- कृत क — र्मगळ- बिडदॆ र- ।

माव-रनु स्वी — करिसि- फलगळ- ।

नीव-नधिका — रानु- सारद — लवरि-गनवर-त ॥ पाव-कनु स — र्वस्व- भुंजिसि ।

ता वि-कारव — नैद-नॊम्मॆगु ।

पाव-नकॆ पा — वननॆ-निप हरि — उंबु-देनरि-दु ॥ ४-२६ ॥

कलुष- जिह्वॆगॆ — सुष्ठु- भोजन ।

जल मॊ-दलु विष — तोरु-वुदु नि- ।

ष्कलुष- जिह्वॆगॆ — सुरस- तोरुवु — दॆल्ल- कालद-लि ॥ सुललि-तांगगॆ — सकल- रस मं- ।

गळ वॆ-निसुतिहु — दन्न-मय कै- ।

कॊळदॆ- बिडुवनॆ — पूत-निय विष — मॊलॆय-नुंडव-नु ॥ ४-२७ ॥

पेळ-लेनु स — मीर- देवनु ।

काल-कूटव — नुंडु- लोकव ।

पालि-सिद त — द्दास-नोर्वनु — अमृत-नॆनिसिद-नु ॥ श्रील-कुमिव — ल्लभ शु-भा शुभ- ।

जाल- कर्मग — ळुंब-नुपचय- ।

देळि-गॆगळव — गिल्ल-वॆंदिगु — स्वरस-गळ बि-ट्टु ॥ ४-२८ ॥

ई प-रियल — च्युतन- तत्त- ।

द्रूप- तन्ना — मगळ- सलॆ ना- ।

ना प-दार्थदि — नॆनॆ-नॆनॆदु- भुं –जिसुत-लिरु विष-य- ॥ प्राप-क स्था — पक नि-यामक ।

व्याप-कनु ऎं — दरिदु- नी नि- ।

र्लेप-नागिरु — पुण्य- पापग — ळर्पि-सवनडि-गॆ ॥ ४-२९ ॥

ऐदु- लक्षॆं — भत्त-रॊंभ- ।

त्ताद- साविर — देळु-नूरर ।

ऐदु- रूपव — धरिसि- भोक्तृग — भोज्य-नॆंदॆनि-सि । श्रीध-रा दु — र्गार-मण पा- ।

दादि- शिरप — र्यंत- व्यापिसि ।

कादु- कॊंडिह — संत-त जग — न्नाथ-विठ्ठल-नु ॥ ४-३० ॥

॥ इति श्री भोजन (रस विभाग) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्रीः ॥

Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥