हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
५. विभूति सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥
श्रीत-रुणिव — ल्लभन- परम वि- ।
भूति- रूपव — कंड- कंड- ।
ल्ली तॆ-रदि चिं — तिसुत- मनदलि — नोडु- संभ्रम-दि ॥
नीत- साधा — रण वि-शेष स- ।
जाति- नैजा — हितवु- सहज वि- ।
जाति- खंडा — खंड- बगॆगळ — नरितु- बुधरिं-द ॥ ५-१ ॥
जलध-रागस — दॊळगॆ- चरिसुव ।
हलवु- जीवर — निर्मि-सिहनद- ।
रॊळु स-जाति वि — जाति- साधा — रण वि-शेषग-ळ ॥ तिळिदु- तत्तत् — स्थान-दॊळु वॆ- ।
ग्गळिसि- हब्बिद — मनदि- पूजिसु- ।
तलव- व्याप्तन — रूप-गळ नो — डुतलॆ- हिग्गुति-रु ॥ ५-२ ॥
प्रतिमॆ- साल — ग्राम- गोऽभ्या- ।
गत अ-तिथि श्री — तुळसि- पिप्पल ।
यति व-नस्थ गृ — हस्थ- वटु यज — मान- स्वपरज-न ॥ पृथिवि- जल शिखि — पवन- तारा- ।
पथ न-वग्रह — योग- करण भ ।
तिथि सि-तासित — पक्ष- संक्रम — अवन-धिष्ठा-न ॥ ५-३ ॥
काद- कांचन — दॊळगॆ- शोभिप ।
आदि-तेया — स्यन तॆ-रदि ल-
क्ष्मीध-वनु प्रति — दिनदि- शाल — ग्राम-दॊळगि-प्प ॥ ऐदु- साविर — मेलॆ- मूव- ।
त्तैद-धिक ऐ — नूरु- रूपदि ।
भूध-रगळभि — मानि- दिविजरॊ — ळिप्प-ननवर-त ॥ ५-४ ॥
श्रीर-मण प्रति — मॆगळॊ-ळगॆ हदि- । मूर-धिकवा — गिप्प- मेलै- ।
नूरु- रूपव — धरिसि- इप्पनु — आहि-ताचल-दि ॥ दारु- मथनव — गैयॆ- पावक ।
तोरु-वंतॆ प्र — तीक- सुररॊळु ।
तोरु-तिप्पनु — तत्त-दाका — रदलि- नोळ्परि-गॆ ॥ ५-५ ॥
करण- नीया — मकनु- तानुप ।
करण-दॊळगै — वत्तॆ-रडु सा- ।
विरद- हदिना — ल्कधिक- शत रू — पंग-ळनॆ धरि-सि ॥ इरुति-हनु तद् — रूप- नामग- ।
ळरितु- पूजिसु — तिहर- पूजॆय ।
निरुत- कैगॊं — बनु तृ-षार्तनु — जलव- कॊंबं-तॆ ॥ ५-६ ॥
बिंब- रूपनु — ई तॆ-रदि जड ।
पॊंब-सुर मॊद — लाद- सुररॊळ- ।
गिंबु-गॊंडिह — नॆंद-रिदु ध — र्मार्थ- कामग-ळ ॥ हंब-लिसदनु — दिनदि- विश्वकु- ।
टुंबि- कॊट्ट क — णान्न- कुत्सित- ।
कंब-ळियॆ सौ — भाग्य-वॆंदव — नंघ्रि-गळ भजि-सु ॥ ५-७ ॥
वारि-यॊळगि — प्पत्तु- नालकु ।
मूरॆ-रडु सा — विरद- मेल्मु- ।
न्नूरु- हदिने — ळॆनिप- रूपवु — श्रीतु-ळसि दळ-दि । नूर- अरव — त्तॊंदु- पुष्पदि ।
मूर-धिक दश — दीप-दॊळु ना- ।
नूरु-मूरु सु — मूर्ति-गळु गं — धदॊळ-गिरुतिह-वु ॥ ५-८ ॥
अष्ट-दळ सद् — हृदय- कमला- ।
धिष्ठि-तनु ता — नागि- सर्वो- ।
त्कृष्ट- महिमनु — दळग-ळलि सं — चरिसु-तॊळगि-द्दु ॥ दुष्ट-रिगॆ दु — र्बुद्धि- कर्म वि- ।
शिष्ट-रिगॆ सु — ज्ञान- धर्म सु- ।
पुष्टि- गैसुत — संत-यिप नि — र्दुष्ट- सुख पू-र्ण ॥ ५-९ ॥
वित्त- देहा — गार- दारा- ।
पत्य- मित्रा — दिगळॊ-ळगॆ गुण – ।
चित्त- बुद्ध्या — दिंद्रि-यगळॊळु — ज्ञान- कर्मदॊ-ळु ॥ तत्त-दाह्वय — नागि- करॆसुत ।
सत्य- संक — ल्पानु-सारदि ।
नित्य-दलि ता — माडि- माडिप — नॆंदु- स्मरिसुति-रु ॥ ५-१० ॥
भाव- द्रव्य — क्रियॆग-ळॆनिसुव ।
ई वि-धाद्वै — तत्र-यंगळ ।
भावि-सुत सद् — भक्ति-यलि स — र्वत्र- मरॆयद-लॆ ॥ ताव-कनु ता — नॆंदु- प्रतिदिन ।
सेवि-सुव भ — क्तरिगॆ- तन्ननु ।
ईव- काव कृ — पाळु- करिवर — गॊलिद- तॆरदं-तॆ ॥ ५-११ ॥
बांद-ळवॆ मॊद — लादु-दरॊळॊं- ।
दॊंद-रलि पू — जा सु-साधन- ।
वॆंदॆ-निसुव प — दार्थ-गळु बगॆ — बगॆय- नूतन-दि ॥ संद-णिसि कॊं — डिहवु- ध्यानकॆ ।
तंदि-नितु चिं — तिसि स-दा गो – ।
विंद-गर्पिसि — नोडु- नलिनलि — दाडु- कॊंडा-डु ॥ ५-१२ ॥
जलज- नाभन — मूर्ति- मनदलि ।
नॆलॆगॊ-ळिसि नि — श्चल भ-कुतियलि ।
चळि बि-सिलु मळॆ — गाळि-गळ निं — दिसदॆ- नित्यद-लि ॥ नॆलद-लिह गं — धवॆ सु-गंधवु ।
जलवॆ- रस रू — पवॆ सु-दीपवु ।
यलरु- चामर — शब्द- वाद्यग — ळर्पि-सलु ऒलि-व ॥ ५-१३ ॥
गोळ-कगळॆ र — मार-मणन नि- ।
जाल-यगळनु — दिनदि- संप्र- ।
क्षाळ-नॆयॆ स — म्मार्ज-नवु कर — णगळॆ- दीपग-ळ ॥ सालु- तत्त — द्विषय-गळ स- ।
म्मेळ-नवॆ परि — यंक- तत्सुख- ।
देळि-गॆयॆ सु — प्पत्ति-गात्म नि — वेद-नवॆ वस-न ॥ ५-१४ ॥
पाप- कर्मवु — पादु-कॆगळनु- ।
लेप-नवु स — त्पुण्य- शास्त्रा- ।
लाप-नवॆ श्री — तुळसि- सुमनो — वृत्ति-गळॆ सुम-न ॥ कोप- धूपवु — भक्ति- भूषण ।
व्यापि-सिद स — द्बुद्धि- छत्रवु ।
दीप-वे सु — ज्ञान- आरा — र्तिगळॆ- गुणकथ-न ॥ ५-१५ ॥
मन व-चन का — यक प्र-दक्षिणॆ ।
अनुदि-नदि स — र्वत्र- व्यापक ।
वनरु-हेक्षण — गर्पि-सुत मो — दिसुत-लिरु सत-त । अनुभ-वकॆ तं — दुकॊ स-कल सा- । धनग-ळॊळगिदु — मुख्य- पामर- ।
मनुज-रिगॆ पे — ळिदरॆ- तिळियदु — बुधरि-गल्लद-लॆ ॥ ५-१६ ॥
चतुर-विध पुरु — षार्थ- पडॆवरॆ ।
चतुर-दश लो — कगळ- मध्यदॊ- ।
ळितरु-पायग — ळिल्ल- नोडलु — सकल- शास्त्रद-लि ॥ सतत- विषयें — द्रियग-ळलि प्रवि- ।
ततनॆ-निसि रा — जिसुव- लक्ष्मी- ।
पतिगॆ- सर्व स — मर्प-णॆयॆ मह — पूजॆ- सदुपा-य ॥ ५-१७ ॥
गोळ-कवॆ कुं — डाग्नि- करणवु ।
मेलॊ-दगिबह — विषय- समिधॆयु ।
गाळि- यत्नवु — काम- धूमवु — सन्नि-धाना-र्चि ॥ मेळ-नवॆ प्र — ज्वालॆ- किडिगळु ।
तूळि-दानं — दगळु- तत्त -।
त्काल- मातुग — ळॆल्ल- मंत्रा — ध्यात्म- यज्ञवि-दु ॥ ५-१८ ॥
मधुवि-रोधिय — पट्ट-णकॆ पू -।
र्वद क-वाटग — ळक्षि- नासिक- ।
वदन- श्रोत्रग — ळॆरडु- दक्षिण — उत्त-र द्वा-र ॥
गुद उ-पस्थग — ळॆरडु- पश्चिम- ।
कदग-ळॆनिपवु — षट् स-रोजवॆ ।
सदन- हृदयवॆ — मंट-पंगळु — त्रिगुण-गळॆ कल-श ॥ ५-१९ ॥
धातु-गळॆ स — प्ताव-रण उप- ।
वीथि-गळु ना — डिगळु- मदगळु ।
यूथ-पगळु सु — षुम्न- नाडियॆ — राज- पंथा-न ॥
ई त-नूरु — हगळॆ- वनंगळु ।
मात-रिश्वनु — पंच- रूपदि ।
पात-कगळॆं — बरिग-ळनु सं — हरिप- तळवा-र ॥ ५-२० ॥
इनश-शांका — दिगळु- लक्ष्मी- ।
वनितॆ-यरसन — द्वार-पालक –
रॆनिसु-तिप्परु — मनद- वृत्तिग — ळे प-दातिग-ळु ॥ अनुभ-विप विष — यंग-ळे प- ।
ट्टणकॆ- बप्प प — सार-गळु जी- ।
वनॆ सु-वर्तक — कप्प-गळ कै — कॊंब- हरि ता-नु ॥ ५-२१ ॥
उरुप-राक्रम — नरम-नॆगॆ दश – ।
करण-गळॆ क — न्नडिय- सालुग- ।
ळरवि-दूरन — सद्वि-हारकॆ — चित्त- मंटप-वु ॥ मरळि- बीसुव — श्वास-गळु चा- ।
मर वि-लासिनि — बुद्धि- दामो- ।
दरगॆ- साष्टां — ग प्र-णामग — ळे सु-शयनग-ळु ॥ ५-२२ ॥
मार-मणनर — मनॆगॆ- सुमहा- ।
द्वार-वॆनिसुव — वदन-कॊप्पुव ।
तोर-ण श्म — श्रुगळु- केशग — ळे प-ताकॆग-ळु ॥ ऊरि-नडॆवं — घ्रिगळु- जंघॆग- ।
ळूरु- मध्यो — दर शि-रगळा- ।
गार-दुप्परि — गॆगळु- कोशग — ळैदु- कोणॆग-ळु ॥ ५-२३ ॥
ई श-रीरवॆ — रथ प-ताक सु- ।
वास-गळु पुं — ड्रगळु- ध्वज सिं- ।
हास-नवॆ चि — त्तवु सु-बुद्धियॆ — कलश- सन्मन-वु ॥ पाश-गुण दं — डत्र-यगळु शु- ।
भाशु-भद्वय — कर्म- चक्र म- ।
हा स-मर्था — श्वगळु- दशकर — णंग-ळॆनिसुव-वु ॥ ५-२४ ॥
मात-रिश्वनु — देह-रथदॊळु ।
सूत-नागिह — सर्व-कालदि ।
श्रीत-रुणि व — ल्लभ र-थिकनॆं — दरिदु- नित्यद-लि ॥ प्रीति-यिंदलि — पोषि-सुत वा- ।
तात-पादिग — ळिंद-लविरत ।
ई त-नुविनॊळु — ममतॆ- बिट्टव — नवनॆ- महयो-गि ॥ ५-२५ ॥
भववॆ-निप वन — धियॊळु- कर्म- ।
प्रवह-दॊळु सं — चरिसु-तिह दे- ।
हव सु-नावॆय — माडि- तन्नव — रिंद-लॊडगू-डि ॥ दिवस-दिवसग — ळल्लि- लक्ष्मी- ।
धवनु- क्रीडिप — नॆंदु- चिंतिसॆ ।
पवन-नय्य भ — वाब्धि- दाटिसि — परम- सुखवी-व ॥ ५-२६ ॥
आप-णालय — गत प-दार्थवु ।
स्त्रीपु-रुषरुग — ळिंद्रि-यगळलि ।
दीप- पावक — रॊळगि-डुव तै — लादि- द्रव्यग-ळ ॥
आ प-रमगव — दान-वॆंदु प- ।
दे प-दे मरॆ — यदलॆ- स्मरिसुत ।
भूप-नंददि — संच-रिसु नि — र्भयदि- सर्व-त्र ॥ ५-२७ ॥
वारि-ज भवां — डवॆ सु-मंटप ।
मेरु-गिरि सिं — हास-नवु भा- ।
गीर-थियॆ म — ज्जनवु- दिग्व — स्त्रगळु- नुडि मं-त्र ॥ भूरु-हज फल — पुष्प- गंध स- ।
मीर- शशिरवि — दीप- भूषण ।
तार-कॆगळॆं — दर्पि-सलु कै — कॊंडु- मन्निसु-व ॥ ५-२८ ॥
भूसु-ररॊळि — प्पब्ज- भवनॊळु ।
वासु-देवनु — वायु- खगप स- ।
दाशि-वहिपें — द्रनु वि-वस्वा — न्नाम-का सू-र्य ॥ भेश- कामम — रास्य- वरुणा- ।
दी सु-ररु क्ष — त्रियरॊ-ळिप्परु ।
वास-वागिह — संक-रुषणन — नोडि- मोदिप-रु ॥ ५-२९ ॥
मीन- केतन — तनय- प्राणा – ।
पान- व्यानो — दान- मुख्यै- ।
कोन- पंचा — शन्म-रुद्गण — रुद्र- वसुगण-रु ॥ मेन-कात्मज — कुवर- विष्व- ।
क्सेन- धनपा — द्यनिमि-षरनु स- ।
दानु-रागदि — धेनि-पुदु वै — श्यरॊळु- प्रद्यु-म्न ॥ ५-३० ॥
इरुति-हरु ना — सत्य-दस्ररु ।
निरऋ-तियु यम — धर्म- यमकिं- ।
कररु- मेदिनि — काल- मृत्यु श — नैश्च-रादिग-ळु ॥ करॆसि-कॊंबरु — शूद्र-रॆंदन- ।
वरत- शूद्ररॊ — ळिप्प-रिवरॊळ- ।
गरवि-दूरनि — रुद्ध-निहनॆं — दरिदु- मन्निपु-दु ॥ ५-३१ ॥
वीत-भय ना — राय-ण चतु- ।
ष्पातु- तानॆं — दॆनिसि- तत्त- ।
ज्जाति- धर्म सु — कर्म-गळ ता — माडि- माडिसु-त ॥ चेत-नर ऒळ — हॊरगॆ- ओत- ।
प्रोत-नागि — द्दॆल्ल-रिगॆ सं- ।
प्रीति-यलि ध — र्मार्थ- कामा — दिगळ- कॊडुतिह-नु ॥ ५-३२ ॥
निधन- धनद वि — धात- विगता- ।
भ्यधिक- सम सम — वर्ति- सामग ।
त्रिदश-गणसं — पूज्य- त्रिककु — द्धाम- शुभना-म ॥ मधुम-थन भृगु — राम- घोटक- ।
वदन- सर्व प — दार्थ-दॊळु तुदि- ।
मॊदलु- तुंबिह — नॆंदु- चिंतिसु — बिंब-रूपद-लि ॥ ५-३३ ॥
कन्न-डिय कै — विडिदु- नोडलु – ।
तन्नि-रवु स — व्याप- सव्यदि ।
कण्णि-गॊप्पुव — तॆरदि- अनिरु — द्धनिगॆ- ई जग-वु ॥ भिन्न- भिन्नवॆ — तोरु-तिप्पुदु ।
जन्य-वादुद — रिंद- प्रतिबिं- ।
बन्न-मयगा — नॆंद-रिदु पू — जिसलु- कैकॊं-ब ॥ ५-३४ ॥
बिंब-रॆनिपरु — स्वोत्त-मरु प्रति- ।
बिंब-रॆनिपरु — स्वाव-ररु प्रति- ।
बिंब- बिंबग — ळॊळगॆ- केवल — बिंब- हरियॆं-दु ॥ संभ्र-मदि पा — डुतलि- नोडुत ।
उंबु-डुवुदिडु — वुदु कॊ-डुवुदॆ- ।
ल्लंबु-जांबक — नंघ्रि- पूजॆग — ळॆंदु- नलिदा-डु ॥ ५-३५ ॥
नदिय- जल नदि — गॆरॆव- तॆरदं- ।
ददलि- भगव — द्दत्त- धर्मग- ।
ळुदधि-शयननि — गर्पि-सुत व्या — वृत्त- नीना-गि ॥ विधिनि-षेधा — दिगळि-गॊळगा- ।
गदलॆ- माडुत — दर्वि-यंददि ।
पदुम-नाभन — सकल- कर्मग — ळल्लि- नॆनॆवुति-रु ॥ ५-३६ ॥
अरिय-दिद्दरु — ऎम्मॊ-ळिद्दन- ।
वरत- विषयग — ळुंब- ज्ञानो- ।
त्तरदि- तनग — र्पिसलु- चित्सुख — वित्तु- संतै-प ॥
सरितु- काल — प्रवह-गळु कं- ।
डरॆयु- सरि का — णदिरॆ- परिववु ।
मरळि- मज्जन — पान- कर्मग — ळिंद- सुखविह-वु ॥ ५-३७ ॥
एनु- माडुव — कर्म-गळु ल- ।
क्ष्मीनि-वासनि — गर्पि-सनु सं -।
धान- पूर्व क — दिंद- संदे — हिसदॆ- दिनदिन-दि ॥ मान-निधि कै — कॊंडु- सुखवि- ।
त्तान-तर सं — तैप- तृणजल ।
धेनु- तानुं — डनव-रत पा — ल्गरॆव- तॆरदं-तॆ ॥ ५-३८ ॥
पूर्व- दक्षिण — पश्चि-मोत्तर ।
पार्व-तीपति — अग्नि- वायु सु- ।
शार्व-रीचर — दिग्व-लयदॊळु — हंस- नामक-नु ॥ सर्व-कालदि — सर्व-रॊळु सुर- ।
सार्व-भौमनु — स्वेच्छॆ-यलि म- ।
त्तोर्व-रिगॆ गो — चरिस-दव्य — क्तात्म-नॆंदॆनि-प ॥ ५-३९ ॥
परि इ- डाव — त्सरनु- संव – ।
त्सरदॊ-ळनिरु — द्धादि- रूपव ।
धरिसि- बार्ह — स्पत्य- सौरभ — चांद्र-मनु ऎनि-सि ॥ इरुति-ह जग — न्नाथ-विठ्ठल ।
स्मरिसु-ववरनु — संत-यिपनॆं- ।
दुरुप-राक्रम — उचित- साधन — योग्य-तॆयनरि-तु ॥ ५-४० ॥
॥ इति श्री विभूति सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥