Lakshmi Sthavaraja by Shri. Guru Jagannatha Dasaru (16)

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श्री लक्ष्मी स्तवराज:

हरियरसि सिरिनीनॆ सर्वद

हरिय वक्षस्थल निवासिनि

हरिय दक्षिण तॊडॆयॊळॊप्पुतकालदेशदलि

हरिय सहितदि हर्यनुज्ञदि

हरिय सेवानिरुतगैयुत

हरिय पदकॆ नीडि सुखिसुव शिरियॆ वंदिपॆनु ॥१॥

हरिय करुणदि सरसिजांडव

हरिय सहितदि हरिय तॆरदलि

हरिय मनकति प्रीतिगोसुग सृष्टिस्थितिलयव

हरिय चित्तनुकूलमाडुत

हरिय संकल्पानुसारदि

हरियनुग्रह पडॆद निन्ननु स्तुतिपॆननवरत ॥२॥

हरिय रमणियॆ हरिय ज्ञानव

हरिय पदयुग भक्ति पालिसि

हरिय सहितदि निन्न रूपव ऎन्न मनदल्लि

हरिय वल्लभॆ तोरॆ संतत

हरिय मन संकल्पदंते

हरिय मूरुति नॆनहनित्तू पॊरियॆ मज्जननी ॥३॥

हरिय हृदयदलिद्द तॆरदलि

शिरियॆ ऎन्नय सदन मध्यदि

हरिय सहितदि नीनॆ नॆलसी सर्वकालदलि

हरिय निन्नय सेवॆ गोसुग

परम निन्न विभूति सहितदि

हरि विभूतिज सकल भाग्यवनित्तु पॊरॆयॆन्न ॥४॥

हरिय मानिनि सकल संपद

हरिय प्रेमदियित्तु नीने

हरिय सेवॆय गैसि ऎन्ननु पॊरॆयॆ मज्जननी

हरिय सहितदि नीनॆ संतत

बॆरॆतु मनॆयलि स्वर्णवृष्टिय

करॆदु भाग्यवनित्तु ऎन्ननु पॊरॆयॆ शिरिदेवि ॥५॥

हरिय सह वैकुंठलोकदि

इरुवॊ तॆरदलि ऎन्न सदनदि

हरिय सहितदलिद्दु मंगळ कार्यदिनदिनदि

हरिय तत्त्वविचार निन्नय

हरिय महिमॆयनरुहि संतत

हरिय भक्तरसंगदलि हरिदासनॆनिसॆन्न ॥६।

हरियु जनकनु जननि नीने

शिरियनित्तू पालिसॆंदॆनु

हरिय मंदिरवॆनिप ऎन्नय हृदय मध्यदलि

हरिय गूड्यनुदिनदि निन्नय

हरिय रूपव तोरि भाग्यव

करदि नीडिपरियलॆन्ननु पॊरॆयॆ शिरिदेवि ॥७॥

हरिय पदसंजातवादा

धरणिमंडल शिरियॆ निनगे

अरसनागिह हरियगूडि निधियनीडम्म

हरिय करुणदि भाग्यनीडुव

परम शकुतियु निनगॆ इरुवुदु

करुणदिंदलि नोडि भाग्यवनित्तु पॊरॆयम्म ॥८॥

हरिगॆ अरसी ऎनिप निन्ननु

सरसिजासन रुद्रशक्ररु

परव भकुति ज्ञान पूर्वक भजिसिनिजगतिय

त्वरदि सेरिद श्रुतियवार्तॆय

करणदिंदरितीग निन्नय

चरणकमलव मनदिसंतत भजिपॆकल्याणि ॥९॥

माधवन मनप्रेम मानिनि

सादरदि सौभाग्य धनगळ

यादवेश सुधामद्विजवरगित्त तॆरदंतॆ

मोद मनदलि सांद्रसुखमय

बोधभकुति विरकुति पालिसि

वेदगम्यन भजनॆ माडिसु वेदकभिमानि ॥१०॥

उदितभास्कर कोटिभासळॆ

बिदुरमंडल जैप वदनॆयॆ

मदनमूरुति कोटिनिभ लावण्यपूरितळे

पदुमनयनळॆ नासचंपक

भिदुरफलक सुफाल कुंतळ

मदनकार्मुक पुब्बुयुगळवु करुणयुग शोभॆ ॥११॥

कदपु कन्नडि कुमुद कुट्मल

रदनपंक्तियु रक्त ओष्टवु

चरुरॆयानन मंदहासवु चंद्रचंद्रिकॆयु

उदय ताम्रललाट शॊभितॆ

ऒदगि राजिप भृंगकुंतळॆ

उदक बिंदुगळॆंबॊ बैतलॆ मुत्तुराजितळॆ ॥१२॥

मुद्दु चुबकवु कंबु कंधर

पॊद्दुकॊंडिह बाहुद्वंद्ववु

ऎद्दु तोरुत करिय करतॆर तावॆ शोभिपवॊ

मुद्ररत्नांगुळिय संघदि

पॊदिद्हस्तद्वयवु शोभिप

पद्मकट्मगळॆनिसि सेवकगभय नीडुववु ॥१३॥

भक्तजनतति प्रेमवारिधॆ

भक्तजन हृत्पद्मवासिनि

भक्तजनदारिद्र्यहारियॆ नमिपॆ ननवरत

लकुमि क्रमुक सुकंठदलि श्री

रेख शोभितॆ नित्यनित्यदि

मुकुत हारावळि सुशोभितॆ परममंगळळॆ ॥१४॥

निन्नदासन माडॆ लकुमियॆ

घन्नतर सौभाग्य संपद

चॆन्नवागी नीडि ऎन्नय सदनदॊळगिद्दू

निन्न पतियॊडगॊडि दिनदिन

ऎन्न कैयलि पूजॆ गॊळुता

निन्न रूपव तोरि पालिसु पालसागरजॆ ॥१५॥

मातॆ निन्नय जठरकमल सु

जातनागिह सुतन तॆरदलि

प्रीतिपूर्वक भाग्यनिधिगळनित्तुनित्यदलि

नीत भकुति ज्ञान पूर्वक

दात गुरु जगन्नाथ विठलन

प्रीतिगॊळिसुव भाग्य पालिसि पॊरॆयॆ नीयॆन्न ॥१६॥

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥