Rathavanerida Raghavendra

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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रथवनेरिद राघवेंद्र

रथवनेरिद राघवेंद्र सद्गुणगण सांद्र

सतत मार्गदि संतत सेविपरिगॆ

अति हितदलि मनोरथव कॊडुवॆनॆंदु ॥

चतुर दिक्कू-विदिक्कुगळल्लि

चरिप जनरल्लि

मितियिल्लदॆ बंदोलैसुतलि

वरव बेडुतलि

नुतिसुत परिपरि नतरागिहरिगॆ

गति पेळदॆ सर्वथान बिडॆनॆंदु ॥१॥

प्रथम प्रह्लाद व्यासमुनीयॆ

यति राघवेंद्र (२) गुरु राघवेंद्र (२)

पतितोधारियॆ पावन कारिये

करमुगिवॆनु दॊरॆये

क्षितियॊळु गोपालविठलन स्मरिसुत, विठला …

प्रति मंत्रालयदॊळु अति मॆरॆव ॥३॥

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥