हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
१०. सर्वप्रतीक सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
आव- परबॊ — म्मनति- विमलां- ।
गाव- बद्धरु — ऎंदॆ-निप रा- ।
जीव- भव मॊद — लाद-मररनु — दिनदि- हरिपद-व ॥ सेवि-परिगनु — कूल-रल्लदॆ ।
तावु- इवरन — कॆडिस-बल्लरॆ ।
श्रीवि-लासा — स्पदन- दासरि — गुंटॆ- अपजय-वु ॥ १०-१ ॥
श्रीद-नंघ्रि स — रोज-युगळे- ।
काद-श स्था — नात्म-दॊळगि-।
ट्टाद-रदि सं — तुतिसि-हिग्गुव — गी न-वग्रह-वु ॥ आदि-तेयरु — संत-ताधि- ।
व्याधि-गळ परि — हरिसु-तवरनु ।
कादु-कॊंडिह — रॆल्ल-रॊंदा — गीश-नाज्ञॆय-लि ॥ १०-२ ॥
मेदि-निय मे — लुळ्ळ- गोष्पा- ।
दोद-कगळॆ — ल्लमल- तीर्थवु ।
पाद-पाद्रि ध — रात-ळवॆ सु — क्षेत्र- जीवग-ण ॥ श्रीद-न प्रति — मॆगळु- अवरुं-।
बोद-नवॆ नै — वेद्य- नित्यदि ।
हादि- नडॆवुदॆ — नर्त-नगळॆं — दरित-वनॆ यो-गि ॥ १०-३ ॥
सर्व-देशवु — पुण्य-देशवु ।
सर्व-कालवु — पर्व-कालवु ।
सर्व-जीवरु — दान-पात्ररु — मूरु-लोकदॊ-ळु ॥ सर्व-मातुग — ळॆल्ल- मंत्रवु ।
सर्व-कॆलसग — ळॆल्ल- पूजॆयु ।
शर्व-वंद्यन — विमल-मूर्ति — ध्यान-वुळ्ळव-गॆ ॥ १०-४ ॥
देव-खात त — टाक- वापि स- ।
रोव-रगळभि — मानि- सुररु क- ।
ळेव-रदॊळिह — रोम- कूपग — ळॊळगॆ- तुंबिह-रु ॥
आ वि-यद्गं — गादि- नदिगळु ।
भावि-सुवदॆ — प्पत्तॆ-रडॆनिप ।
सावि-र सुना — डिगळॊ-ळगॆ प्रव — हिसुत-लिहवॆं-दु ॥ १०-५ ॥
मूरु- कोटिय — मेलॆ- शोभिप ।
ईर-धिक ऎ — प्पत्तु-साविर ।
मारु-तांत — र्यामि- माधव — प्रतिदि-वसद-ल्लि ॥
ता र-मिसुतिह — नॆंदु- तिळिदिह ।
सूरि-गळु दे — वतॆग-ळवर श- ।
रीर-गळु सु — क्षेत्र- अवर — र्चनॆयॆ- हरिपू-जॆ ॥ १०-६ ॥
श्रीव-रनिगभि — षेक-वॆंदरि- ।
दी व-सुंधरॆ — यॊळगॆ- बल्लव- ।
राव- जलदलि — मिंद-रॆयु गं — गादि- तीर्थग-ळु ॥ तावॊ-लिदु बं — दल्लॆ- नॆलॆगॊं- ।
डीव-वखिला — र्थगळ-नरियद ।
जीव-रमरत — रंगि-णिय नै — दिदरॆ- फलवे-नु ॥ १०-७ ॥
नद न-दिगळिळॆ — यॊळगॆ- परिवुवु ।
उदधि- परियं — तरदि- तरुवा- ।
यदलि- रमिसुव — वल्लि- तन्मय — वागि- तोरद-लॆ ॥
विधि नि-षेधग — ळाच-रिसुवरु ।
बुधरु- भगव — द्रूप- सर्व- ।
त्रदलि- चिंतनॆ — बरलु- त्यजिसुव — रखिल- कर्मग-ळ ॥ १०-८ ॥
कलियॆ- मॊदला — दखिल- दानव ।
रॊळगॆ- ब्रह्म भ — वादि-देव- ।
र्कळु नि-यामक — रागि- हरिया — ज्ञॆयलि- अवरव-र ॥
कलुष- कर्मव — माडि- माडिसि ।
जलरु-हेक्षण — गर्पि-सुत नि- ।
श्चल सु-भक्ति — ज्ञान- पूर्णरु — सुखिप-रवरॊळ-गॆ ॥ १०-९ ॥
आव- जीवरॊ — ळिद्द-रेनि- ।
न्नाव- कर्मव — माड-लेनि- ।
न्नाव- गुण रू — पगळु-पासनॆ — माड-लेनव-रु ॥ काव-नय्यन — परम- सत्करु- ।
णाव-लोकन — बलदि- चरिसुव ।
देव-तॆगळनु — मुट्ट-लापवॆ — पाप-कर्मग-ळु ॥ १०-१० ॥
पतियॊ-डनॆ मन — बंद- तॆरदलि ।
प्रति दि-वसदलि — रमिसि- मोदिसि ।
सुतर- पडॆदिळॆ — यॊळु जि-तेंद्रिय — ळॆंदु- करॆसुव-ळु ॥ कृतिप-ति कथा — मृत सु-भोजन- ।
रत म-हात्मरि — गितर- दोष- ।
प्रतति-गळु सं — भविसु-ववॆ अ — च्युतन- दासरि-गॆ ॥ १०-११ ॥
सूसि-बह नदि — यॊळगॆ- तन्न स- ।
हास- तोरुवॆ — नॆंदु- जलकिदि- ।
रीसि-दरॆ कै — सोतु- मुळुगुव — हरिय- बिट्टव-नु ॥ क्लेश-वैदुव — नादि-यलि स- ।
र्वेश- क्लृप्तिय — माडि-दुद बि- ।
ट्टाशॆ-यिंदलि — अन्य-रारा — धिसुव- मानव-नु ॥ १०-१२ ॥
नानु- नन्नदु — ऎंब- जडमति ।
मान-वनु दिन — दिनदि- माडुव ।
स्नान- जप दे — वार्च-नॆयॆ मॊद — लाद- कर्मग-ळ ॥ दान-वरु सॆळॆ — दॊय्व-रल्लदॆ ।
श्रीनि-वासनु — स्वीक-रिस म- ।
द्दानॆ- पक्व क — पित्थ-फल भ — क्षिसिद-वोलहु-दु ॥ १०-१३ ॥
धात्रि-यॊळगु — ळ्ळखिल- तीर्थ- ।
क्षेत्र- चरिसिद — रेनु- पात्रा- ।
पात्र-वरित — न्नादि- दानव — माडि- फलवे-नु ॥
गात्र- निर्मल — नागि- मंत्र- ।
स्तोत्र- पठिसिद — रेनु- हरि स- ।
र्वत्र- गतनॆं — दरिय-दलॆ ता — कर्तृ-यॆंबुव-नु ॥ १०-१४ ॥
कंड- नीरॊळु — मुळुगि- देहव ।
दंडि-सलु फल — वेनु- दंडक- ।
मंड-लंगळ — धरिसि- यतियॆं — दॆनिसि- फलवे-नु । अंड-जाधिप — नंस-गन पद- ।
पुंड-रीकदि — मनव-हर्निसि ।
बंडु-णियवो — लिरिसि- सुखबड — दिप्प- मानव-नु ॥ १०-१५ ॥
वेद- शास्त्र पु — राण- कथॆगळ ।
ओदि- पेळिद — रेनु- सकल नि – ।
षेध- कर्मव — तॊरॆदु- सत्क — र्मगळ- माडे-नु । ओद-नगळनु — जरिदु- श्वासनि- ।
रोध-गैसिद — रेनु- काम- ।
क्रोध-वळियदॆ — नानु- नन्नदु — ऎंब- मानव-नु ॥ १०-१६ ॥
एनु- केळिद — रेनु- नोडिद- ।
रेनु- ओदिद — रेनु- पेळिद- ।
रेनु- पाडिद — रेनु- माडिद — रेनु- दिनदिन-दि । श्रीनि-वासन — जन्म- कर्म स- ।
दानु-रागदि — नॆनॆदु- तत्त- ।
त्स्थान-दलि त — द्रूप- तन्ना — मकन- स्मरिसद-व ॥ १०-१७ ॥
बुद्धि- विद्या — बलदि- पेळिद ।
शुद्ध- काव्यवि — दल्ल- तत्त्वसु- ।
पद्ध-तिगळनु — तिळिद- मानव — नल्ल- बुधरिं-द ॥ मध्व-वल्लभ — तानॆ- हृदयदॊ- ।
ळिद्दु- नुडिदं — ददलि- नुडिदॆन- ।
पद्ध-गळ नो — डदलॆ- किविगॊ — ट्टालि-पुदु बुध-रु ॥ १०-१८ ॥
कब्बि-नॊळगिह — रस वि-दंतनि- ।
गब्ब- बल्लदॆ — भाग्य- यौवन ।
मब्बि-नलि मै — मरॆद-वगॆ ई — हरि क-थामृत-वु ॥ लभ्य-वागदु — हरिप-दाब्जदि ।
हब्बि-दति स — द्भक्ति- रसवुं- ।
डुब्बि- कॊब्बि सु — खाब्धि-यॊळगा — डुवव-गल्लद-लॆ ॥ १०-१९ ॥
खगव-रध्वज — नंघ्रि- भकुतिय । बगॆय-नरियद — मान-वरिगिदु । ऒगटि-नंददि — तोरु-तिप्पुदु — ऎल्ल- कालद-लि ॥ त्रिगुण- वर्जित — नमल-गुणगळ ।
पॊगळि- हिग्गुव — भाग-वतरिगॆ ।
मिगॆ भ-कुति सु — ज्ञान- सुखवि — त्तवर- रक्षिपु-दु ॥ १०-२० ॥
परम-तत्त्व र — हस्य-विदु भू- ।
सुररु- केळ्वदु — साद-रदि नि- ।
ष्ठुरिग-ळिगॆ मू — ढरिगॆ- पंडित — मानि- पिशुनरिगॆ ॥ अरसि-करिगिदु — पेळ्व-दल्लन- ।
वरत- भगव — त्पाद-युगळां- ।
बुरुह- मधुकर — रॆनिसु-वरिगरु — पुवुदु- मोदद-लि ॥ १०-२१ ॥
लोक-वार्तॆयि — दल्ल- परलो- ।
कैक-नाथन — वार्तॆ- केळ्वरॆ ।
काकु- मनुजरि — गिदु स-मर्पक — वागि- सॊगसुवु-दॆ ॥ कोक-नद परि — मळवु- षट्पद ।
स्वीक-रिसुवं — ददलि- जलचर ।
भेक- बल्लदॆ — इदर- रस हरि — भक्त-गल्लद-लॆ ॥ १०-२२ ॥
स्वप्र-योजन — रहित- सकले- ।
ष्टप्र-दायक — सर्व- गुण पू- ।
र्ण प्र-मेय ज — राम-रण व — र्जित वि-गत शो-क ॥ विप्र-तम वि — श्वात्म- घृणि सू- ।
र्य प्र-काशा — नंत- महिम घृ- ।
त प्र-तीका — राधि-तांघ्रि — सरोज- सुररा-ज ॥ १०-२३ ॥
वनच-राद्रि ध — राध-रनॆ जय ।
मनुज- मृगवर — वेष- जय वा- ।
मन त्रि-विक्रम — देव- जय भृगु — राम- भूम ज-य ॥ जनक-जा व — ल्लभनॆ- जय रु- ।
ग्मिणि म-नोरथ — सिद्धि-दायक ।
जिन वि-मोहक — कलि वि-दारण — जय ज-या रम-ण ॥ १०-२४ ॥
सच्चि-दानं — दात्म- ब्रह्म क- ।
रार्चि-तांघ्रि स — रोज- सुमनस- ।
प्रोच्च- सन्मं — गळद- मध्वां — तःक-रण रू-ढ ॥ अच्यु-त जग — न्नाथ-विठ्ठल ।
निच्च- मॆच्चिद — जनर- बिड का- ।
ड्गिच्च-नुंडा — रण्य-दॊळु गो — गॊप-रनु काय्-दा ॥ १०-२५ ॥
॥ इति श्री सर्वप्रतीक सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥