हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथाम्रुतसर
९. वर्णप्रक्रिया (उदात्तानुदात्त) सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
हरियॆ- पंचा — शद्व-रण सु- ।
स्वर उ-दात्तनु — दात्त- प्रचय ।
स्वरित- सन्धि वि — सर्ग- बिंदुग — ळॊळगॆ- तद्वा-च्य ॥ इरुव- तत्त — न्नाम- रूपग- ।
ळरितु-पासनॆ — गैव-रिळॆयॊळु ।
सुररॆ- सरि नर — रल्ल- अवरा — डुवदॆ वेदा-र्थ ॥ ९-१ ॥
ईश-नलि वि — ज्ञान- भगव- ।
द्दास-रलि स — द्भक्ति- विषय नि- ।
रासॆ- मिथ्या — वाद-दलि प्र — द्वेष- नित्यद-लि ॥
ई स-मस्त — प्राणि-गळॊळु र- ।
मेश-निहनॆं — दरिदु- अवरभि- ।
लाषॆ-गळ पू — रैसु-वदॆ मह — यज्ञ- हरिपू-जॆ ॥ ९-२ ॥
त्रिदश- एका — त्मकनॆ-निसि भू- ।
उदक- शिखियॊळु — हत्तु- करणदि ।
अधिप-रॆनिसुव — प्राण- मुख्या — दित्य-रॊळु नॆलॆ-सि ॥
विदित-नागि — द्दनव-रत निर- ।
वधिक- महिमनु — सकल- विषयव ।
निधन- नामक — संक-रुषणा — ह्वयनु- स्वीकरि-प ॥ ९-३ ॥
दहिक- दैशिक — कालि-क त्रय ।
गहन- कर्मग — ळुंटु- इदरॊळु ।
विहित- कर्मग — ळरितु- निष्का — मकनु- नीना-गि ॥ बृहति- नामक — भार-तीशन ।
महित- रूपव — नॆनॆदु- मनदलि ।
अहर-हर् भग — वंत-गर्पिसु — परम- भकुतिय-लि ॥ ९-४ ॥
मूरु- विध क — र्मगळॊ-ळगॆ कं- ।
सारि- भार्गव — हयव-दन सं- ।
प्रेर-कनु ता — नागि- नवरू — पंग-ळनॆ धरि-सि ॥ सूरि- मानव — दान-वरॊळु वि- ।
कार- शून्यनु — माडि- माडिसि ।
सार-भोक्तनु — स्वीक-रिसि कॊडु — तिप्प- जीवरि-गॆ ॥ ९-५ ॥
अनल- पक्वव — गैसि-दन्नव ।
अनल-नॊळु हो — मिसुव- तॆरदं- ।
तनिमि-षेशनु — माडि- माडिसि — दखिल- कर्मग-ळ ॥ मन व-चन का — यदलि- तिळिदनु- ।
दिनदि- कॊडु शं — किसदॆ- वृजिना- ।
र्दन स-दा कै — कॊंडु- संतै — सुवनु- तन्नव-र ॥ ९-६ ॥
कुदुरॆ- बालद — कॊनॆय- कूदलु ।
तुदि वि-भागव — माडॆ- शतविध- ।
वदरॊ-ळॊंदनु — नूरु- भागव — माड-लॆंतिहु-दो ॥ विधि भ-वादि स — मस्त- दिविजर ।
मॊदलु- माडि तृ — णांत- जीवरॊ- ।
ळधिक- न्यूनतॆ — इल्ल-वॆंदिगु — जीव- परमा-णु ॥ ९-७ ॥
जीव-नंगु — ष्ठाग्र- मूरुति ।
जीव-नंगुट — मात्र- मूरुति ।
जीव-न प्रा — देश- जीवा — कार- मूर्तिग-ळु ॥ एव-मादि अ — नंत- रूपदि ।
याव-दवयव — गळॊळु- व्यापिसि ।
काव- करुणा — ळुगळ- देवनु — ई ज-गत्रय-व ॥ ९-८ ॥
बिंब- जीवां — गुष्ठ- मात्रदि ।
इंबु-गॊंडिह — सर्व-रॊळु सू- ।
क्ष्मांब-रदि हृ — त्कमल- मध्य नि — वासि-यॆंदॆनि-सि ॥ ऎंब-रीतगॆ — कोवि-दरु वि- ।
श्वंभ-रात्मक — प्राज्ञ- भक्तकु- ।
टुंबि- संतै — सुवनु- ई परि — बल्ल- भजकर-नु ॥ ९-९ ॥
पुरुष- नामक — सर्व- जीवरॊ- ।
ळिरुव- देहा — कार- रूपदि ।
करण- नीया — मक हृ- षीकप — निंद्रि-यंगळ-लि ॥ तुरिय- नामक — विश्व- ता ह- ।
न्नॆरडु- बॆरळुळि — दुत्त-मांग-दि ।
ऎरड-धिक ऎ — प्पत्तु-साविर — नाडि-यॊळगि-द्दु ॥ ९-१० ॥
व्याप-कनु ता — नागि- जीव स्व- ।
रूप- देहद — ऒळ हॊ-रगॆ नि- ।
र्लेप-नागिह — जीव- कृत क — र्मगळ-नाचरि-सि ॥ श्री प-योज भ — वेर-रिंद प्र- ।
दीप- वर्ण स्व — मूर्ति- मध्यग ।
ता पॊ-ळॆव वि — श्वादि- रूपदि — सेवॆ- कैकॊळु-त ॥ ९-११ ॥
गरुड- शेष भ — वादि- नामव ।
धरिसि- पवन स्व — रूप- देहदि ।
करण- नीया — मकनु- ताना — गिप्प- हरियं-तॆ ॥ सरसि-जासन — वाणि- भारति ।
भरत-निंदॊड — गूडि- लिंगद- ।
लिरुति-हरु मि — क्कादि-तेयरि — गिल्ल-वास्था-न ॥ ९-१२ ॥
जीव-नकॆ तुष — दंतॆ- लिंगवु ।
साव-काशदि — पॊंदि- सुत्तलु ।
प्राव-रण रू — पदलि- इप्पुदु — भगव-दिच्छॆय-लि ॥ केव-ल जड — प्रकृति-यिदकधि ।
देव-तॆयु मह — लकुमि-यॆनिपळु ।
आ वि-रजॆय — स्नान-परियं — तरदि- हत्तिहु-दु ॥ ९-१३ ॥
आर-धिक दश — कळॆग-ळुळ्ळ श- ।
रीर- अनिरु — द्धगळ- मध्यदि ।
सेरि- इप्पवु — जीव- परमा — च्छादि-कद्वय-वु ॥ बार-दंददि — दान-वरनति- ।
दूर-गैसुत — श्रीज-नार्दन ।
मूरु- गुणदॊळ — गिप्प-नॆंदिगु — त्रिवृतु- ऎंदॆनि-सि ॥ ९-१४ ॥
रुद्र- मॊदला — दमर-रिगॆ अनि- ।
रुद्ध- देहवॆ — मनॆयॆ-निसुवुदु ।
इद्दु- कॆलसव — माड-रल्लिं — दित्त- स्थूलद-लि ॥
कृद्ध- खळ दिवि — जरु प-रस्पर ।
स्पर्धॆ-यिंदलि — द्वंद्व-कर्म स- ।
मृद्धि-गळना — चरिसु-वरु प्रा — णेश-नाज्ञॆय-लि ॥ ९-१५ ॥
महियॊ-ळगॆ सु — क्षेत्र- तीर्थदि ।
तुहिन- वर्ष व — संत- कालदि ।
दहिक- दैशिक — कालि-कत्रय — धर्म- कर्मग-ळ ॥ द्रुहिण- मॊदला — दमर-रॆल्लरु ।
वहिसि- गुणगळ — ननुस-रिसि स- ।
न्निहित-रागि — द्दॆल्ल-रॊळु मा — डुवरु- निर्भय-दि ॥ ९-१६ ॥
केश- सासिर — विध वि-भागव ।
गैस-लॆनितनि — तिह सु-षुम्नवु ।
आशि-रांतदि — व्यापि-सिहदी — देह- मध्यद-लि ॥
आ सु-षुम्नकॆ — वज्रि-कार्य प्र- ।
काशि-नी वै — द्युतग-ळिहवु प्र- ।
देश-दलि प — श्चिमकॆ- उत्तर — पूर्व- दक्षिण-कॆ ॥ ९-१७ ॥
आ न-ळिन भव — नाडि-यॊळगॆ त्रि- ।
कोण- चक्रवु — इप्प-दल्लि कृ- ।
शानु- मंडल — मध्य-गनु सं — कर्ष-णाह्वय-नु ॥ हीन- पापा — त्मक पु-रुषन द- ।
हान-गैसुत — दिनदि-नदि वि- ।
ज्ञान-मय श्री — वासु-देवन — ऐदि-सुव करु-णि ॥ ९-१८ ॥
मध्य- नाडिय — मध्य-दलि हृ- ।
त्पद्म- मूलदि — मूल-पति पद- ।
पद्म- मूलद — लिप्प- पवनन — पाद- मूलद-लि ॥ पॊंदि-कॊंडिह — जीव- लिंगनि- ।
रुद्ध- देह वि — शिष्ट-नागि क- ।
पर्दि- मॊदला — दमर-रॆल्लरु — कादु-कॊंडिह-रु ॥ ९-१९ ॥
नाळ-मध्यद — लिप्प- हृत्की- ।
लाल-जदॊळि — प्पष्ट-दळदि कु- ।
लाल- चक्रद — तॆरदि- चरिसुत — हंस- नामक-नु ॥
काल- कालग — ळल्लि- ऎण्दॆसॆ- ।
पाल-कर कै — सेवॆ-गॊळुत कृ- ।
पाळु- अवरभि — लाषॆ-गळ पू — रैसि- कॊडुति-प्प ॥ ९-२० ॥
वास-वानुज — रेणु-कात्मज ।
दाश-रथि वृजि — नार्द-नमल ज- ।
लाश-यालय — हयव-दन श्री — कपिल- नरसिं-ह ॥ ईसु- रूपद — लवर-वर सं- ।
तोष-बडिसुत — नित्य- सुखमय ।
वास-वागिह — हृत्क-मलदॊळु — बिंब-नॆंदॆनि-सि ॥ ९-२१ ॥
सुरप-नालय — कैदि-दरॆ मन- ।
वॆरगु-वुदु स — त्पुण्य- मार्गदि ।
बरलु- वह्निय — मनॆगॆ- निद्रा — लस्य- हसि तृषॆ-यु ॥ तरणि- तनय नि — केत-नदि सं- ।
भरित- कोपा — टोप- तोरुवु- ।
दर वि-दूरनु — निऋति-यलि बरॆ — पाप-गळ मा-ळ्प ॥ ९-२२ ॥
वरुण-नल्लि वि — नोद- हास्यवु ।
मरुत-नॊळु गम — नाग-मन हिम- ।
कर ध-नाधिप — रल्लि- धर्मद — बुद्धि- जनिसुवु-दु ॥ हरन- मंदिर — दल्लि- गो धन- ।
धरणि- कन्या — दान-गळु ऒं- ।
दरघ-ळिगॆ तडॆ — यदलॆ- कॊडुतिह — चित्त- पुट्टुवु-दु ॥ ९-२३ ॥
हृदय-दॊळगॆ वि — रक्ति- केसर- ।
कॊदगॆ- स्वप्न सु — षुप्ति- लिंगदि -।
मधुह- कर्णिकॆ — यल्लि- बरॆ जा — गृतियु- पुट्टुवु-दु ॥ सुदरु-शन मॊद — लाद- अष्टा- ।
युधव- पिडिदु दि — शाधि-पतिगळ ।
सदन-दलि सं — चरिसु-तीपरि — बुद्धि-गळ कॊडु-व ॥ ९-२४ ॥
सूत्र-नामक — प्राण-पति गा- ।
यत्रि- संप्रति — पाद्य-नागी- ।
गात्र-दॊळु नॆलॆ — सिरलु- तिळियदॆ — कंड-कंड-ल्लि ॥ धात्रि-यॊळु सं — चरिसि- पुत्रक- ।
ळत्र- सहितनु — दिनदि- तीर्थ- ।
क्षेत्र- यात्रॆय — माडि-दॆवु ऎं — दॆनुत- हिग्गुव-रु ॥ ९-२५ ॥
नार-सिंह स्व — रूप-दॊळगॆ श- ।
रीर- नामदि — करॆसु-वनु हदि- ।
नारु- कळॆगळु — उळ्ळ- लिंगदि — पुरुष- नामक-नु ॥ तोरु-वनु अनि — रुद्ध-दॊळु शां- ।
तीर-मण अनि — रुद्ध- रूपदि ।
प्रेरि-सुव प्र — द्युम्न- स्थूल क — ळेव-रदॊळि-द्दु ॥ ९-२६ ॥
मॊदलु- त्वक्च — र्मगळु- मांसवु ।
रुधिर- मेदो — मज्ज-वस्थिग- ।
ळिदरॊ-ळगॆ ए — कोन-पंचा — शन्म-रुद्गण-वु ॥ निधन- हिंका — रादि- सामग ।
अदर- नामदि — करॆसु-तॊंभ- ।
त्तधिक- नाल्व — त्तॆनिप- रूपदि — धातु-गळॊळि-प्प ॥ ९-२७ ॥
सप्त- धातुग — ळॊळ हॊ-रगॆ सं- ।
तप्त- लोहग — ताग्नि-यंददि ।
सप्त- सामग — निप्प- अन्नम — यादि- कोशदॊ-ळु ॥ लिप्त-नागदॆ — तत्त-दाह्वय ।
क्लृप्त- भोगव — कॊडुत- स्वप्न सु- ।
षुप्ति- जागृति — यीव- तैजस — प्राज्ञ- विश्वा-ख्य ॥ ९-२८ ॥
तीवि-कॊंडिह — वल्लि- मज्जक- ।
ळेव-रदि अं — गुलिय- पर्वद ।
ठावि-नलि मु — न्नूरु- अरव — त्तॆनिप- त्रिस्थळ-दि ॥ सावि-रद ऎं — भत्तु- रूपव ।
कोवि-दरु पे — ळुवरु- देहदि ।
देव-तॆगळॊड — गूडि- क्रीडिसु — वनु र-मारम-ण ॥ ९-२९ ॥
कीट- पेश — स्कारि- नॆनविलि ।
कीट-भावव — तॊरॆदु- तद्वत् ।
खेट- रूपव — नैदि- आडुव — तॆरदि- भकुतिय-लि ॥ कैट- भारिय — ध्यान-दिंद भ- ।
वाट-वियनति — शीघ्र-दिंदलि ।
दाटि- सारू — प्यवनु- ऐदुव — रल्प- जीविग-ळु ॥ ९-३० ॥
ई प-रिय दे — हदॊळु- भगव- ।
द्रूप-गळ मरॆ — यदलॆ- मनदि प- ।
दे प-दे भकु — तियलि- स्मरिसुत — लिप्प- भकुतर-नु ॥ गोप-ति जग — न्नाथ-विठल स- ।
मीप-गनु ता — नागि- संतत ।
साप-रोक्षिय — माडि- पॊरॆवनु — ऎल्ल- कालद-लि ॥ ९-३१ ॥
॥ इति श्री वर्णप्रक्रिया (उदात्तानुदात्त) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥