हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
८. मातृका सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
पाद-मानि ज — यंत-नॊळगॆ सु- ।
मेध- नामक — निप्प- दक्षिण- ।
पाद-दंगुट — दल्लि- पवननु — भार-भृद्रू-प ॥ कादु-कॊंडिह — टंकि-तर मॊद- ।
लाद- नामदि — सन्धि-गळली- ।
रैदु- रूपद — लिद्दु- संतत — नडॆदु- नडॆसुत-लि ॥ ८-१ ॥
कपिल- चार्वां — गादि- रूपदि ।
वपुग-ळॊळु ह — स्तगळ- सन्धियॊ- ।
ळपरि-मित क — र्मगळ- माडुत –लिप्प- दिनदिन-दि ॥ कृपण- वत्सल — पार्श्व-दॊळु पर ।
सुफलि- ऎनिसुव — गुद उ-पस्थदि ।
विपुल- बलि भग — मनुवॆ-निसि तुं — दियॊळ-गिरुतिह-नु ॥ ८-२ ॥
ऐदु- मेलॊं — दधिक- दळवु- ।
ळ्ळैदु- पद्मवु — नाभि- मूलदि ।
ऐदु- मूर्तिग — ळिहवु- अनिरु — द्धादि- नामद-लि ॥ ऐदि-सुत ग — र्भवनु- जीवर- ।
नादि-कर्म — प्रकृति- गुणगळ ।
हादि- तप्पलि — गॊडदॆ- व्यापा — रगळ- माडुति-ह ॥ ८-३ ॥
नाभि-यलि ष — ट्कोण- मंडल- ।
दी भ-विष्य — द्ब्रह्म-नॊळु मु- ।
क्ताभ- श्रीप्र — द्युम्न-निप्पनु — विबुध- गणसे-व्य ॥ शोभि-सुत कौ — स्तुभवॆ- मॊदला- ।
दाभ-रण आ — युधग-ळिंद म- ।
हा भ-यंकर — पाप- पुरुषन — शोषि-सुत नि-त्य ॥ ८-४ ॥
द्वाद-शार्कर — मंड-लवु म- ।
ध्योद-रदॊळु सु — षुम्न-दॊळगिह- ।
दैदु- रूपा — त्मकनु- अरव — त्तधिक- मुन्नू-रु ॥
ई दि-वा रा — त्रिगळ- मानिग- ।
ळाद- दिविजर — संत-यिसुत नि- ।
षाद- रूपक — दैत्य-रनु सं — हरिप- नित्यद-लि ॥ ८-५ ॥
हृदय-दॊळगिह — दष्ट-दळ कम- ।
लदरॊ-ळगॆ प्रा — देश- नामक ।
उदित- भास्कर — नंतॆ- तोर्पनु — बिंब-नॆंदॆनि-सि । पदुम- चक्र सु — शंख- सुगदां- ।
गद क-टक मकु — टांगु-लीयक- ।
पदक- कौस्तुभ — हार- ग्रैवे — यादि- भूषित-नु ॥ ८-६ ॥
द्विदळ- पद्मवु — शोभि-पुदु कं- ।
ठदलि- मुख्य — प्राण- तन्नय ।
सुदति-यिंदॊड — गूडि- हंसो — पास-नॆय मा-ळ्प ॥
उदक- अन्ना — दिगळि-गवका- ।
शदनु- ताना — गिद्दु- दाना- ।
भिदनु- शब्दव — नुडिदु- नुडिसुव — सर्व- जीवरॊ-ळु ॥ ८-७ ॥
नासि-कदि ना — सत्य-दस्ररु ।
श्वास-मानि — प्राण- भारति ।
हंस- धन्वं — त्रिगळु- अल्ल — ल्लिप्प-रवरॊळ-गॆ ॥
भेश- भास्कर — रक्षि-युगळक- ।
धीश-रॆनिपरु — अवरॊ-ळगॆ ल- ।
क्ष्मीश- दधिवा — मनरु- नीया — मिसुत- लिरुतिह-रु ॥ ८-८ ॥
स्तंभ- रूपद — लिप्प- दक्षिण ।
अंब-कदि प्र — द्युम्न- गुणरू- ।
पांभ्र-णियु ता — नागि- इप्पळु — वत्स-रूपद-लि ॥ पॊंब- सिरपद — योग्य- पवन त्रि- ।
यंब-कादि स — मस्त- दिविज क – ।
दंब- सेवित — नागि- सर्व प — दार्थ-गळ तो-र्प ॥ ८-९ ॥
नेत्र-गळलि व — सिष्ठ- विश्वा- ।
मित्र- भार — द्वाज- गौतम ।
अत्रि- आ जम — दग्नि- नामग — ळिंद- करॆसुत-लि ॥
पत्र- तापक — शक्र- सूर्य ध- ।
रित्रि- पर्ज — न्यादि- सुररु ज- ।
गत्त्र-येशन — भजिप-रनुदिन — परम- भकुतिय-लि ॥ ८-१० ॥
ज्योति-यॊळगि — प्पनु क-पिल पुरु- ।
हूत- मुख दि — क्पतिग-ळिंद स- ।
मेत-नागी — दक्षि-णाक्षिय — मुखदॊ-ळिह वि-श्व ॥ श्वेत-वर्ण च — तुर्भु-जनु सं- ।
प्रीति-यिंदलि — स्थूल- विषयव ।
चेत-नरिगुं — डुणिप- जाग्रतॆ — यित्तु- नृग जा-स्य ॥ ८-११ ॥
नॆलॆसि-हरु दि — ग्देव-तॆगळि- ।
क्कॆलद- कर्णं — गळलि- तीर्थं- ।
गळिगॆ- मानिग — ळाद- सुरनदि — मुख्य- निर्जर-रु ॥
बलद- किवियलि — इरुति-हरु बां- ।
बॊळॆय- जनक त्रि — विक्र-मनु नि- ।
र्मलिन-रन मा — डुवनु- यी परि — चिंति-सुव जन-र ॥ ८-१२ ॥
चित्त-जेंद्ररु — मनदॊ-ळिप्परु ।
कृत्ति-वासन — हंकृ-तियॊळगॆ ।
चित्त- चेतन — मानि-गळु विह — गेंद्र- फणिपरॊ-ळु ॥ नित्य-दलि नॆलॆ — गॊंडु- हत्तॊं- ।
भत्तु-मॊग तै — जसनु- स्वप्ना- ।
वस्थॆ-यैदिसि — जीव-रनु प्रवि — विक्त-भुकुवॆनि-प ॥ ८-१३ ॥
ज्ञान-मय तै — जसनु- हृदय- ।
स्थान- वैदिसि — प्राज्ञ-नॆंबभि- ।
धान-दिं करॆ — सुत्त- चित्सुख — व्यक्ति-यनॆ कॊडु-त ॥ आन-तेष्ट — प्रदनु- अनुसं- ।
धान-वीयदॆ — सुप्ति-यैदिसि ।
तानॆ- पुनरपि — स्वप्न- जाग्रतॆ — ईव- चेतन-कॆ ॥ ८-१४ ॥
नालि-गॆयॊळिह — वरुण- मत्स्यणु- ।
नालि-गॆयॊळु उ — पेंद्र- इंद्ररु ।
तालु- पर्ज — न्याख्य- सूर्यनु — अर्ध- गर्भनि-ह ॥ आलि-यॊळु वा — मन सु-भामन ।
फाल-दॊळु शिव — केश-वनु सुक- ।
पोल-दॊळगॆ र — तीश- कामनु — अल्लि- प्रद्यु-म्न ॥ ८-१५ ॥
रोम-गळलि व — संत- त्रिककु- ।
द्धाम- मुखदॊळ — गग्नि- भार्गव ।
ताम-रस भव — वासु-देवरु — मस्त-कदॊळिह-रु ॥ ईम-नदॊळिह — विष्णु- शिखदॊळु- ।
माम-हेश्वर — नार-सिंह ।
स्वामि- तन्ननु — दिनदि- नॆनॆवर — मृत्यु- परिहरि-प ॥ ८-१६ ॥
मौळि-यल्लिह — वासु-देवनु ।
एळ-धिक नव — जादि- रूपव ।
ताळि- मुखदॊळु — श्रवण- नयना — द्यवय-वगळॊळ-गॆ ॥ आळ-रसु ता — नागि- सतत सु- ।
लीलॆ-गैयुत — लिप्प- सुखमय ।
केळि- केळिसि — नोडि- नोडिसि — नुडिदु- नुडिसुव-नु ॥ ८-१७ ॥
ऎरड-धिक ऎ — प्पत्तॆ-निप सा- ।
विरद- नाडिगॆ — मुख्य- एको- ।
त्तरश-तगळ — ल्लिहवु- नूरा — वॊंदु- मूर्तिग-ळु ॥
अरितु- देहदि — कलश- नामक – ।
हरिगॆ- कळॆगळि — वॆंदु- नैरं- ।
तरदि- पूजिसु — तिहरु- परमा — दरदि- भूसुर-रु ॥ ८-१८ ॥
इदकॆ- कारण — वॆनिसु-ववु ऎर- ।
डधिक- दश ना — डिगळॊ-ळगॆ सुर- ।
नदियॆ- मॊदला — दमल- तीर्थग — ळिहवु- कर्णद-लि ॥ पदुम-नाभनु — केश-वादि ।
द्विदश- रूपद — लिप्प-नल्लति- ।
मृदुळ-वाद सु — षुम्न-दॊळगे — कात्म-नॆनिसुव-नु ॥ ८-१९ ॥
आम्न-य प्रति — पाद्य- श्रीप्र- ।
द्युम्न- देवनु — देह-दॊळगॆ सु- ।
षुम्न-दीडा — पिंग-ळदि वि — श्वादि- रूपद-लि ॥ निर्म-लात्मनु — वाणि- वायु च- ।
तुर्मु-खरॊळि — द्दखिल- जीवर ।
कर्म- गुणवनु — सरिसि- नडॆवनु — विश्व- व्यापक-नु ॥ ८-२० ॥
अब्द-यन ऋतु — मास- पक्ष सु- ।
शब्द-दिंदलि — करॆसु-तलि नी- ।
लाब्द- वर्णनि — रुद्ध- मॊदला — दैदु- रूपद-लि ॥ हब्बि-हनु स — र्वत्र-दलि करु- ।
णाब्धि- नाल्व — त्तैदु- रूपदि ।
लभ्य-नागुव — नीप-रिय धे — निसुव- भकुतरि-गॆ ॥ ८-२१ ॥
ऐदु- रूपा — त्मकनु- इप्प- ।
त्तैदु- रूपद — लिप्प- मत् हदि- ।
नैदु- तिथि यि — प्पत्तु-नालक — रिंद- पॆच्चिस-लु ॥ ऐदु-वुदु अर — वत्त-धिक आ- ।
रैदु- दिवसा — ह्वयनॊ-ळगॆ मन ।
तॊय्द-वगॆ ता — पत्र-य महा — दोष-वॆल्लिह-दॊ ॥ ८-२२ ॥
दिवस- याम मु — हूर्त- घटिका- ।
द्यवय-वगळॊळ — गिद्दु- गंगा- ।
प्रवह-दंददि — काल- नामक — प्रवहि-सुतलि-प्प ॥ इवन- गुण रू — प क्रि-यंगळ ।
निवह-दॊळु मुळ — गाडु-तलि भा- ।
र्गवि स-दानं — दात्म-ळागिह — ळॆल्ल- कालद-लि ॥ ८-२३ ॥
वेद-ततिगळ — मानि- लक्ष्मि ध- ।
राध-रन गुण — रूप- क्रियॆगळ ।
आदि- मध्यां — तवनु- काणदॆ — मनदि- योचिसु-त ॥ आद-पॆनॆ ई — तनिगॆ- पत्नि कृ- ।
पोद-धियु स्वी — करिसि-दनु लो- ।
काधि-पनु भि — क्षुकन- मनॆयौ — तणव- कॊंबं-तॆ ॥ ८-२४ ॥
कोवि-दरु चि — त्तैसु-वुदु श्री- ।
देवि-यॊळगिह — निखिळ- गुण तृण- ।
जीव-नलि क — ल्पिसि यु-कुतियलि — मत्तु- क्रमदिं-द ॥
देव- देवकि — यिप्प-ळॆंदरि- ।
दा वि-रिंचन — जननि- यीतन ।
आव- कालद — लरिय-ळंतव — नरर- पाडे-नु ॥ ८-२५ ॥
क्षीर- दधि नव — नीत- घृतदॊळु ।
सौर-भ रसा — ह्वयनॆ-निसि शां- ।
तीर-मण ज्ञा — न क्रि-येच्छा — शक्ति- यॆंदॆं-ब ॥ ईरॆ-रडु ना — मदलि- करॆसुव ।
भार-ती वा — ग्देवि- वायु स- ।
रोरु-हासन — रल्लि- नॆलॆसिह — रॆल्ल- कालद-लि ॥ ८-२६ ॥
वसुग-ळॆंटु न — व प्र-जेशरु ।
श्वसन- गण ऐ — वत्तु- एका- ।
दश दि-वाकर — रनितु- रुद्ररु — अश्वि-निगळॆर-डु ॥
दश वि-हीन श — ताख्य- ई सुम- ।
नसरॊ-ळगॆ चतु — रात्म- नीया- ।
मिसुव- ब्रह्मस — मीर- खगपफ — णींद्र-रॊळगि-द्दु ॥ ८-२७ ॥
तोरु-तिप्पनु — चक्र-दलि हिं- ।
कार- नामक — शंख-दलि प्रति- ।
हार- गदॆयलि — निधन- पद्मद — लिप्प- प्रस्ता-व ॥ कारु-णिकनु — द्गीथ- नामदि ।
मार-मणनै — रूप-गळ शं ।
खारि- मॊदला — दायु-धगळॊळु — स्मरिसि- धरिसुति-रु ॥ ८-२८ ॥
तनुवॆ- रथ वा — गाभि-मानियॆ ।
गुणवॆ-निसुवळु — श्रोत्र-दॊळु रो- ।
हिणि श-शांकरु — पाश- पाणिग — ळश्व-वॆंदॆनि-सि ॥ इननु- संज्ञा — देवि-यरु इह- ।
रनल- लोचन — सूत-नॆनिसुव ।
प्रणव- पाद्य — प्राण- नामक — रथिक-नॆनिसुव-नु ॥ ८-२९ ॥
अमित- महिमन — पार- गुणगळ ।
समित- वर्णा — त्मक शृ-ति स्मृति ।
गमिस-लापवॆ — तदभि-मानिग — ळॆंदॆ-निसिकॊं-ब ॥
कमल- संभव — भव सु-रेंद्रा- ।
द्यमर-रनुदिन — तिळिय-लरियरु ।
स्वमहि-मॆगळा — द्यंत- मध्यग — ळरिव- सर्व-ज्ञ ॥ ८-३० ॥
वित्त- देहा — गार- दारा- ।
पत्य- मित्रा — दिगळॊ-ळगॆ हरि ।
प्रत्य-गात्मनु — ऎंदॆ-निसि नॆलॆ — सिप्प-नॆंदरि-दु ॥ नित्य-दलि सं — तृप्ति- बडिसुत ।
उत्त-माधम — मध्य-मर कृत- ।
कृत्य-नागु — न्मत्त-नागदॆ — भृत्य- नानॆं-दु ॥ ८-३१ ॥
देव- देवे — शन सु-मूर्ति क- ।
ळेव-रगळॊळ — गनव-रत सं- ।
भावि-सुत पू — जिसुत- नोडुत — सुखिसु-तिरु बिड-दॆ ॥ श्रीव-र जग — न्नाथ-विठ्ठल ।
ता वॊ-लिदु का — रुण्य-दलि भव ।
नोव- परिहरि — सुवनु- प्रवितत — पतित- पावन-नु ॥ ८-३२ ॥
॥ इति श्री मातृका सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥