HKS 7. Panchatanmaatra Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार

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. पंचतन्मात्रा सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥

भू स-लिल शिखि — पवन- भूता- ।

काश-दॊळगै — दैदु- तन्मा- ।

त्रा स-हित ऒं — दधिक- पंचा — शद्व-रण वे-द्य ॥

ई श-रीरदि — व्यापि-सिद्दु सु- ।

रासु-ररिगॆ नि — रंत-रदलि सु- ।

खासु-खप्रद — नागि- आडुव — द्वेषि-पर बडि-व ॥ ७-१ ॥

प्रणव- प्रतिपा — द्य त्रि-नामदि ।

तनुवि-नॊळु त्रि — स्थान-गनिरु- ।

द्धनु त्रि-पंचक — एक-विंशति — चतुर-विंशति-ग ॥ ऎनिसि- ऎप्प — त्तॆरडु-साविर ।

इनितु- नाडिग — ळॊळु नि-यामिसु- ।

तिनग- भस्तिग — लोक-दॊळु स — र्वत्र- बॆळगुव-नु ॥ ७-२ ॥

जीव- लिंगनि — रुद्ध- स्थूल क- ।

ळेव-रगळलि — विश्व- तुरग- ।

ग्रीव- मूले — शाच्यु-त त्रय — हंस- मूर्तिग-ळ ॥ ई वि-ध चतुः — स्थान-दलि शां- ।

तीव-रन ई — रॆरडु- रूपदि ।

भावि-सुवुदे — कोन- विंशति — मूर्ति- सर्व-त्र ॥ ७-३ ॥

कलुष-विल्लद — दर्प-णदि प्रति- ।

फलिसि- सर्व प — दार्थ-गळु कं- ।

गॊळिसु-वंददि — बिंब- जड चे — तनग-ळॊळगि-द्दु ॥ पॊळॆव- बहु रू — पदलि- सज्जन- ।

रॊळगॆ- मनद — र्पणदि- ता नि- ।

श्चल नि-रामय — निर्वि-कार नि — राश्र-यानं-त ॥ ७-४ ॥

ई श-रीर च — तुष्ट-यगळॊळु ।

कोश- धातुग — भार-ती प्रा- ।

णेश-निप्प — त्तॊंदु- साविर — दारु-नूरॆनि-प ॥

श्वास- रूपक — हंस- भास्कर- ।

भेश-रॊळगि — द्दवर- कैविडि- ।

दी स-रोज भ — वांड-दॊळु स — र्वत्र- तुंबिह-नु ॥ ७-५ ॥

शिरग-ळैदै — दॆरडु- बाहुग- ।

ळॆरडु- पादग — ळॊंदु- मध्यो- ।

दरदि- शोभिप — वाङ्म-नोमय — नॆनिप- नित्यद-लि ॥ करण- धातुग — ळल्लि- ऎप्प- ।

त्तॆरडु- साविर — नाडि-गळॊळि- ।

प्परवि-दूरनु — भार-त प्रति — पाद्य-नॆंदॆनि-सि ॥ ७-६ ॥

ईरॆ-रडु दे — होर्मि- भूतग- ।

ळार-धिक दश — ऋग्वि-नुत ल- ।

क्ष्मीर-मण वि — ष्ण्वाख्य- रूपदि — चतुर-षष्टिक-ला- । धार-कनु ता — नागि- ब्रह्म पु- ।

रारि- मुख्यरॊ — ळिद्दु- सतत वि- ।

हार- माळ्पनु — चतु-ष्पादा — ह्वयदि- लोकदॊ-ळु ॥ ७-७ ॥

तृण मॊ-दलु ब्र — ह्मांत- जीवर ।

तनु च-तुष्टय — गळलि- नारा- ।

यणन- साविर — दैदु- नूरि — प्पत्तु- मेला-रु ॥

गणनॆ- माळ्पुदु — बुधरु- रूपव ।

घृणियु- सूर्या — दित्य- नामग- ।

ळनुदि-नदि जपि — सुवरि-गीवा — रोग्य- संपद-व ॥ ७-८ ॥

ऐदु- नूरॆ — प्पत्तु- नालकु ।

आदि- भौतिक — दल्लि- तिळिवुदु ।

ऐदॆ-रडु शत — एक-विंशति — रूप-वध्या-त्म ॥

भेद-गळलि — न्नूर- मुऒवॊव- । ऊ

त्ताद- मेलॊं — दधिक- मूर्तिग- ।

ळाद-रदि अधि — दैव-दॊळु चिं — तिपुदु- भूसुर-रु ॥ ७-९ ॥

सुरुचि- शार्वरि — कररॆ-निसि सं- ।

करुष-ण प्र — द्युम्न- शशि भा- ।

स्कररॊ-ळगॆ अर — वत्त-धिक मु — न्नूरु- रूपद-लि । करॆसि-कॊंबनु — अह-स्संव- ।

त्सरनॆ-निप सुवि — शिष्ट- नामद- ।

लरित-वरिगा — रोग्य-भाग्यव — नीव- नंदम-य ॥ ७-१० ॥

एक- पंचा — शद्व-रण गत ।

माक-ळत्रनु — सर्व-रॊळग- ।

व्याकृ-ताका — शांत- व्यापिसि — निगम- ततिगळ-नु ॥ व्याक-रण भा — रत मु-खाद्या- ।

नेक- शास्त्र पु — राण- भाष्या- ।

नीक-गळ क — ल्पिसि म-नोवा — ङ्मयनॆ-निसिकॊं-ब ॥ ७-११ ॥

भार- भृन्ना — मकन- साविर- ।

दारु- नूरि — प्पत्तु- नालकु ।

मूरु-तिगळु च — राच-रदि स — र्वत्र- तुंबिह-वु ॥

आरु- नालकु — जडग-ळलि हदि- ।

नारु- चेतन — गळलि- चिंतिसॆ ।

तोरि-कॊंबनु — तन्न- रूपव — सर्व- ठाविन-लि ॥ ७-१२ ॥

मिसुणि- मेलिह — मणिय- वोल् रा- ।

जिसुव- ब्रह्मा — दिगळ- मनदलि ।

बिसज- जांडा — धार-कनु आ — धेय-नॆंदॆनि-सि ॥

द्विशत- नाल्व — त्तॆरडु- रूपदि ।

शशियॊ-ळिप्पनु — शश-दॊळगॆ शो- ।

भिसुव- नाल्व — त्तॆरड-धिक शत — रूप-दलि बिड-दॆ ॥ ७-१३ ॥

ऎरडु- साविर — दॆंटु- रूपव ।

नरितु- सर्व प — दार्थ-दॊळु श्री- ।

वरन- पूजॆय — माडु- वरगळ — बेडु- कॊंडा-डु ॥ बरिदॆ- जलदलि — मुळुगि- बिसिलॊळु ।

बॆरळ-नॆणिसिद — रेनु- सद्गुरु- ।

हिरिय-रनुसरि — सिदर- मर्मव — नरिय-दिह नर-नु ॥ ७-१४ ॥

मत्तॆ- चिद्दे — हद ऒ-ळगॆ ऎं- ।

भत्तु- साविर– देळु- नूरि- ।

प्पत्तु- ऐदु नृ — सिंह- रूपद — लिद्दु- जीवरि-गॆ ॥

नित्य-दलि हग — लिरुळु- बप्पप- ।

मृत्यु-विगॆ ता — मृत्यु-वॆनिसुव ।

भृत्य-वत्सल — भय वि-नाशन — भाग्य-संप-न्न ॥ ७-१५ ॥

ज्वरनॊ-ळिप्प — त्तेळु- हरनॊळ- ।

गिरुव-निप्प — त्तॆंटु- रूपदि ।

ऎरडु- साविर — दॆंटु- नूरि — प्पत्त-रेळधि-क ॥

ज्वर ह-राह्वय — नार-सिंहन ।

स्मरणॆ- मात्रदि — दुरित- राशिग- ।

ळिरदॆ- पोपवु — तरणि- बिंबव — कंड- हिमदं-तॆ ॥ ७-१६ ॥

मास- परियं — तरवु- बिडदॆ नृ- ।

केस-रिय शुभ — नाम- मंत्र जि- ।

तास-नदले — काग्र- चित्तदि — निष्क-पटदिं-द ॥

बेस-रदॆ जपि — सलु वृ-जनगळ- ।

नाश-गैसि म — नोर-थगळ प- ।

रेश- पूर्तिय — माडि-कॊडुवनु — कडॆगॆ- परगति-य ॥ ७-१७ ॥

चतुर- मूर्त्या — त्मक ह-रियु त्रिं- ।

शति सु-रूपदि — ब्रह्म-नॊळु मा- ।

रुतनॊ-ळिप्प — त्तेऎंटु- रूपदॊ — ळिप्प- प्रद्यु-म्न ॥ सुतॆरॊ-ळिप्प — त्तैदु- हदिने- ।

ळतुळ- रूपग — ळरितु- वत्सर ।

शतग-ळलि पू — जिसुत-लिरु चतु — रात्म-कन पद-व ॥ ७-१८ ॥

नूरु- वरुषकॆ — दिवस- मूव- ।

त्तारु- साविर — वहवु- नाडि श- ।

रीर-दॊळगिनि — तिहवु- स्त्री पुं — भेद-दलि हरि-य ॥ ईर-धिक ऎ — प्पत्तु- साविर ।

मूरु-तिगळनु — नॆनॆदु- सर्वा- ।

धार-कन स — र्वत्र- पूजिसु — पूर्ण-नॆंदरि-दु ॥ ७-१९ ॥

काल- कर्म गु — ण स्व-भाव ग- ।

ळाल-यनु ता — नागि- लक्ष्मी- ।

लोल- तत्त — द्रूप- नामदि — करॆसु-तॊळगि-द्दु ॥

लीलॆ-यिंदलि — सर्व- जीवर ।

पालि-सुव सं — हरिप- सृष्टिप ।

मूल- कारण — प्रकृति- गुण का — र्यगळ- मनॆमा-डि ॥ ७-२० ॥

तिलज- वर्तिग — ळनुस-रिसि प्र- ।

ज्वलिसि- दीपग — ळाल-यदि क- ।

त्तलॆय- भंगिसि — तत्प-दार्थव — तोरु-वंदद-लि ॥ जलरु-हेक्षण — तन्न-वर मन ।

दॊळगॆ- भक्ति — ज्ञान- कर्मकॆ ।

ऒलिदु- पॊळॆवुत — तोरु-वनु गुण — रूप- क्रियॆगळ-नु ॥ ७-२१ ॥

आव- देहव — कॊडलि- हरि म- ।

त्ताव- लोकदॊ — ळिडलि- ता म- ।

त्ताव- देशदॊ — ळिरलि- आवा — वस्थॆ-गळु बर-लि ॥

ई वि-धदि जड — चेत-नदॊळु प- ।

राव-रेशन — रूप-गुणगळ – ।

भावि-सुत सु — ज्ञान- भकुतिय — बेडु- कॊंडा-डु ॥ ७-२२ ॥

ऒंद-रॊळगॊं — दॊंदु- बॆरॆदिह ।

इंदि-रेशन — रूप-गळ मन- ।

बंद- तॆरदलि — चिंति-सिदकनु — मान-विनिति-ल्ल ॥

सिंधु- राजनॊ — ळंब-रालय ।

बंधि-सलु प्रति — तंतु-गळॊळुद- ।

बिंदु- व्यापिसि — दंतॆ- इरुति — प्पनु च-राचर-दि ॥ ७-२३ ॥

ऒंदु- रूपदॊ — ळॊंद-वयवदॊ- ।

ळॊंदु- रोमदॊ — ळॊंदु- देशदि ।

पॊंदि- इप्पव — जांड-नंता — नंत- कोटिग-ळु ॥ हिंदॆ- मार्कं — डेय- काणनॆ -।

ऒंदॆ- रूपदि — सृष्टि- प्रळयव ।

इंदि-रेशनॊ — ळेनि-दच्चरि — अप्र-मेय स-दा ॥ ७-२४ ॥

ऒंद-नंता — नंत- रूपग- ।

ळॊंदु- रूपदॊ — ळिहवु- लोकग- ।

ळॊंदॆ- कालदि — सृष्टि- स्थिति मॊद — लाद- व्यापा-र ॥ ऒंदॆ- कालदि — माडि- तिळिसदॆ ।

संद-णिसि कॊं — डिप्प- जगदॊळु ।

नंद- नंदन — रणदॊ-ळिंद्रा — त्मजगॆ- तोरिस-नॆ ॥ ७-२५ ॥

श्रीर-मेशन — मूर्ति-गळु नव- ।

नारि-कुंजर — दंतॆ- एका- ।

कार- तोर्पवु — अवय-वाह्वय — अवय-वगळ-ल्लि ॥

बेरॆ- बेरे — कंगॊ-ळिसुव श- ।

रीर-दॊळु ना — ना प्र-कार वि- ।

कार- शून्य वि — राट-नॆनिसुव — पदुम-जांडदॊ-ळु ॥ ७-२६ ॥

वारि-ज भवां — डदॊळु- लक्ष्मी- ।

नार-सिंहन — रूप- गुणगळु ।

वारि-धियॊळिह — तॆरॆग-ळंददि — संद-णिसि इह-वु ॥ कार-णांशा — वेश- व्याप्तव- ।

तार- कार्या — व्यक्त- व्यक्तवु ।

ईर-यिदु वी — भूति- अंत — र्यामि- रूपग-ळु ॥ ७-२७ ॥

मणिग-ळॊळगिह — सूत्र-दंददि ।

प्रणव- पाद्यनु — चेत-ना चे- ।

तन ज-गत्तिनॊ — ळनुदि-नदि आ — डुवनु- सुखपू-र्ण ॥ दणुवि-कॆयु इव — गिल्ल- बहु का- ।

रुणिक-नंता — नंत- जीवर ।

गणदॊ-ळगॆ ए — कांश- रूपदि — निंतु- नेमिसु-व ॥ ७-२८ ॥

जीव- जीवर — भेद- जडजड ।

जीव- जड जड — जीव-रिंदलि ।

श्रीव-रनु अ — त्यंत- भिन्न वि — लक्ष-णनु ल-क्ष्मी ॥ मूव-रिंदलि — पदुम-जांडदि ।

ता वि-लक्षण — ळॆनिसु-तिप्पळु ।

साव-धिक सम — शून्य-ळॆंदरि — तीर्व-रनु भजि-सु ॥ ७-२९ ॥

आदि-तेयरु — तिळिय-दिह गुण ।

वेद-मानिग — ळॆंदॆ-निप वा- ।

ण्यादि-गळु ब — ल्लरव-ररियद — गुणग-णंगळ-नु ॥

वेध- बल्लनु — बॊम्म-नरियद- ।

गाध- गुणगळ — लकुमि- बल्लळु ।

श्रीध-रॊब्बनु — पास्य- सद्गुण — पूर्ण- हरियॆं-दु ॥ ७-३० ॥

ईत-नंता — नंत- गुणगळ ।

प्रांत-गाणदॆ — महल-कुमि भग- ।

वंत-गाभर — णायु-धांबर — आल-यगळा-गि ॥ स्वांत-दलि नॆलॆ — गॊळिसि- परम दु- ।

रंत- महिमन — दौत्य-कर्म नि- ।

रंत-रदि मा — डुतलि- तदधी — नत्व-वैदिह-ळु ॥ ७-३१ ॥

प्रळय- जलधियॊ — ळुळ्ळ- नावॆयु ।

हॊलबु-गाणदॆ — सुत्तु-वंददि ।

जलरु-हेक्षण — नमल- गुण रू — पगळ- चिंतिसु-त ॥ नॆलॆय-गाणदॆ — महल-कुमि चं- ।

चलव-नैदिह — ळल्प- जीवरि- ।

गळव-डुवुदे — निवन- मायवु — ई ज-गत्रय-दि ॥ ७-३२ ॥

श्रीनि-केतन — सात्व-तांपति ।

ज्ञान-गम्य ग — यासु-रार्दन ।

मौनि-कुल स — न्मान्य- मानद — मातु-ळ ध्वं-सि ॥ दीन-जन मं — दार- मधुरिपु ।

प्राण-द जग — न्नाथ-विठ्ठल ।

तानॆ- गतियॆं — दनुदि-नदि नं — बिदव-रनु पॊरॆ-व ॥ ७-३३ ॥

॥ इति श्री पंचतन्मात्रा सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्री ॥

Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥