हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
११. ध्यानप्रक्रिया (स्थावरजंगम) सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
पादु-कॆय कं — टक सि-कत मॊद- ।
लाद-वनुदिन — बाधि-सवु ए ।
काद-शेंद्रिय — गळलि- बिडदॆ हृ — षीक-पन मू-र्ति ॥ साद-रदि नॆनॆ — ववनु- एनप ।
राध-गळ मा — डिदरु- सरियॆ नि ।
रोध-गैसवु — मोक्ष- मार्गकॆ — दुरित- राशिग-ळु ॥ ११-१ ॥
हगलु- नंदा — दीप-दंददि ।
निगम- वेद्यन — पूजि-सुत कै ।
मुगिदु- नाल्करॊ — ळॊंदु- पुरुषा — र्थवनु- बेडद-लॆ ॥ जगदु-दर कॊ — ट्टुदनु- भुंजिसु ।
मग म-डदि प्रा — णेंद्रि-यात्मा ।
दिगळु- भगवद — धीन-वॆंदडि — गडिगॆ- नॆनॆवुति-रु ॥ ११-२ ॥
अस्व-तंत्रनु — जीव- हरि स ।
र्व स्व-तंत्रनु — नित्य- सुखमय ।
निःस्व-बद्धा — ल्पज्ञ- शक्त स — दुःख- निर्वि-ण्ण ॥ ह्रस्व-देहि स — नाथ- जीवनु ।
विश्व-व्यापक — कर्तृ- ब्रह्म स ।
रस्व-तीशा — द्यमर-नुत हरि — यॆंदु- कॊंडा-डु ॥ ११-३ ॥
मत्तॆ- विश्वा — द्यॆंटु- रूपॊं ।
भत्त-रिंदलि — पॆच्चि-सलु ऎ- ।
प्पत्तॆ-रडु रू — पगळ-हवु ऒं — दॊंदॆ- साह-स्र ॥ पृथ् पृ-थकु ना — डिगळॊ-ळगॆ स- ।
र्वोत्त-मन तिळि — यॆंदु- भीष्मनु ।
बित्त-रिसिदनु — धर्म- तनयगॆ — शांति- पर्वद-लि ॥ ११-४ ॥
ऎंटु- प्रकृतिग — ळॊळगॆ- विश्वा- ।
द्यॆंटु- रूपद — लिद्दु- भक्तर ।
कंट-कव परि — हरिसु-तलि पा — लिसुव- प्रतिदिन-दि ॥ नॆंट-नंददि — ऎडॆबि-डदॆ वै- ।
कुंठ- रमणनु — तन्न-वर नि- ।
ष्कंट-क सुमा — र्गदलि- नडॆसुव — दुर्ज-नर बडि-व ॥ ११-५ ॥
स्वरम-णनु श — क्त्यादि- रूपदि ।
करण-मानिग — ळॊळगॆ- नॆलॆसि- ।
द्दर वि-दूरनु — स्थूल- विषयग — ळुंडु-णिप नि-त्य ॥ अरिय-दलॆ ना — नुंबॆ-नॆंबुव ।
निरय-गळनुं — बुवनु- निश्चय ।
मरळि- मरळि भ — वाट-विय सं — चरिसि- बळलुव-नु ॥ ११-६ ॥
सुरुचि- रुचिर सु — गंध- शुचि यॆं- ।
दिरुति-हनु ष — ड्रसग-ळॊळु ह- ।
न्नॆरडु- रूपद — लिप्प- श्री भू — दुर्गॆ-यर सहि-त ॥ स्वरम-णनु ऎ — प्पत्तॆ-रडु सा- ।
विर स-मीरन — रूप-दॊळगि- ।
द्दुरु प-राक्रम — कर्तृ- ऎनिसुव — नाडि-गळॊळि-द्दु ॥ ११-७ ॥
निन्न- सर्व — त्रदलि- नॆनॆवव ।
रन्य- कर्मव — माडि-दरु सरि ।
पुण्य- कर्मग — ळॆनिसु-ववु सं — देह-विनिति-ल्ल ॥
निन्न- स्मरिसदॆ — स्नान- जप हो- ।
मान्न- वस्त्र ग — जाश्व- भू धन ।
धान्य- मॊदला — दखिल- धर्मव — माडि- फलवे-नु ॥ ११-८ ॥
इष्ट- भोग्य प — दार्थ-दॊळु शिपि- ।
विष्ट- नामदि — सर्व- जीवर ।
तुष्टि- बडिसुव –दिनदि-नदि सं — तुष्ट- ताना-गि ॥ कोष्ठ-दॊळु नॆलॆ — सिद्दु- रसमय ।
पुष्टि-यैदिसु — तिंद्रि-यगळॊळु ।
प्रेष्ट-नागि — द्दॆल्ल- विषयग — ळुंब- तिळिसद-लॆ ॥ ११-९ ॥
कार-काह्वय — ज्ञान- कर्म- ।
प्रेर-कनु ता — नागि- क्रियॆगळ ।
तोरु-वनु क — र्मेंद्रि-याधिप — रॊळगॆ- नॆलॆसि-द्दु ॥ मूरु- गुणमय — द्रव्य-ग तदा- ।
कार- तन्ना — मदलि- करॆसुव ।
तोरि-कॊळ्ळदॆ — जनर- मोहिप — मोह- कल्पक-नु ॥ ११-१० ॥
द्रव्य-नॆनिसुव — भूत- मात्रदॊ- ।
ळव्य-यनु क — र्मेंद्रि-यगळॊळु ।
भव्य- सत्क्रिय — नॆनिप- ज्ञानें — द्रियग-ळॊळगि-द्दु ॥ स्तव्य-कारक — नॆनिसि- सुखमय ।
सेव्य- सेवक — नॆनिसि- जगदॊळु ।
हव्य-वाहन — नरणि-यॊळगि — प्पंतॆ- इरुति-प्प ॥ ११-११ ॥
मनवॆ- मॊदला — दिंद्रि-यगळॊळ- ।
गनिल- देवनु — शुचियॆ-निसि कॊं- ।
डनव-रत नॆलॆ — सिप्प- शुचिष — द्धोत-नॆंदॆनि-सि ॥ तनुवि-नॊळगि — प्पनु स-दा वा- ।
मन हृ-षिके — शाख्य- रूपद- ।
लनुभ-वकॆ तं — दीव- विषयज — सुखव- जीवरि-गॆ ॥ ११-१२ ॥
प्रेर-क प्रे — र्यरॊळु- प्रेर्य- ।
प्रेर-कनु ता — नागि- हरि नि- ।
र्वैर-दिंद प्र — वर्ति-सुव त — न्नाम- रूपद-लि ॥ तोरि-कॊळ्ळदॆ — सर्व-रॊळु भा- ।
गीर-थी जन — कनु स-कल व्या- ।
पार-गळ ता — माडि- माडिसि — नोडि- नगुति-प्प ॥ ११-१३ ॥
हरियॆ- मुख्य नि — याम-कनु ऎं- ।
दरिदु- पुण्या — पुण्य- हर्षा- ।
मरुष- लाभा — लाभ- सुख दुः — खादि- द्वंद्वग-ळ ॥ निरुत- अवनं — घ्रिगॆ स-मर्पिसि ।
नरक- भू स्व — र्गाप- वर्गदि ।
करण- नीया — मकन- सर्व — त्रदलि- नॆनॆवुति-रु ॥ ११-१४ ॥
माण-वक त — त्फलग-ळनु सं- ।
धान-विल्लदॆ — कर्म-गळ स्वे- ।
च्छानु-सारदि — माडि- मोदिसु — वंतॆ- प्रतिदिन-दि ॥
ज्ञान- पूर्वक — विधि नि-षेधग- ।
ळेनु- नोडदॆ — माडु- कर्म प्र- ।
धान- पुरुषे — शनलि- भकुतिय — बेडु- कॊंडा-डु ॥ ११-१५ ॥
हानि- वृद्धि ज — याप-जयगळ- ।
नेनु- कॊट्टुद — भुंजि-सुत ल- ।
क्ष्मीनि-वासन — करुण-वनॆ सं — पादि-सनुदिन-दि ॥ ज्ञान- सुखमय — तन्न-वर पर- ।
मानु- रागदि — संत-यिप दे- ।
हानु-बंधिग — ळंतॆ- ऒळहॊर — गिद्दु- करुणा-ळु ॥ ११-१६ ॥
आ प-रम सक — लेंद्रि-यगळॊळु ।
व्याप-कनु ता — नागि- विषयव- ।
ता प-रिग्रहि — सुवनु- तिळिसदॆ — सर्व- जीवरॊ-ळु ॥
पाप- रहित पु — राण- पुरुष स- ।
मीप-दलि नॆलॆ — सिद्दु- नाना- ।
रूप- धारक — तोरि-कॊळ्ळदॆ — कर्म-गळ मा-ळ्प ॥ ११-१७ ॥
खेच-ररु भू — चररु- वारि नि- ।
शाच-ररॊळि — द्दवर- कर्मग- ।
ळाच-रिसुवनु — घन म-हिम पर — माल्प-नोपा-दि ॥ गोच-रिसनु ब — हु प्र-कारा- ।
लोच-नॆय मा — डिदरु- मनसिगॆ ।
कीच-कारि — प्रीय- कविजन — गेय- महरा-य ॥ ११-१८ ॥
ऒंदॆ- गोत्र — प्रवर- संध्या- ।
वंद-नॆगळनु — माडि- प्रांतकॆ ।
तंदॆ- तनयरु — बेरॆ- तम्मय — पॆसरु- गॊंबं-तॆ ॥ ऒंदॆ- देहदॊ — ळिद्दु- निंद्या- ।
निंद्य- कर्मव — माडि- माडिसि ।
इंदि-रेशनु — सर्व- जीवरॊ — ळीश- नॆनिसुव-नु ॥ ११-१९ ॥
किट्टि-गट्टिद — लोह- पावक ।
सुट्टु- विंगड — माडु-वंतॆ घ- ।
रट्ट- व्रीहियॊ — ळिप्प- तंडुल — कडॆगॆ- तॆगॆवं-तॆ ॥ विठ्ठ-लानॆं — दॊम्मॆ- मैमरॆ- ।
दट्ट-हासदि — करॆयॆ- दुरितग- ।
ळट्टु-ळिय बिडि — सवन- तन्नॊळ — गिट्टु- सलहुव-नु ॥ ११-२० ॥
जलधि-यॊळु स्वे — च्छानु-सारदि ।
जलच-र प्रा — णिगळु- तत्तत् ।
स्थळग-ळलि सं — तोष-बडुतलि — संच-रिसुवं-तॆ ॥ नळिन-नाभ नॊ — ळब्ज- भव मु- ।
प्पॊळलु-रिग मै — गण्ण- मॊदला- ।
द्हलवु- जीवर — गणवु- वर्तिसु — तिहुदु- नित्यद-लि ॥ ११-२१ ॥
वासु-देवनु — ऒळहॊ-रगॆ आ- ।
भास-कनु ता — नागि- बिंब प्र- ।
काशि-सुव त — द्रूप- तन्ना — मदलि- सर्व-त्र ॥
ई स-मन्वय — वॆंदॆ-निप सदु- ।
पास-नॆय गै — ववनु- मोक्षा- ।
न्वेषि-गळॊळु — त्तमनु- जीव — न्मुक्त-नवनियॊ-ळु ॥ ११-२२ ॥
भोग्य- वस्तुग — ळॊळगॆ- योग्या- ।
योग्य- रसगळ — नरितु- योग्या- ।
योग्य-रलि नॆलॆ — सिप्प- हरिगॆ स — मर्पि-सनुदिन-दि ॥
भाग्य- बडतन — बरलु- हिग्गदॆ ।
कुग्गि- सॊरगदॆ — सद्भ-कुति वै- ।
राग्य-गळ ने– माडु नी नि — र्भाग्य-नॆनिसद-लॆ ॥ ११-२३ ॥
स्थळ ज-लाद्रिग — ळल्लि- जनिसुव ।
फल सु- पुष्पज — गंध-रस श्री- ।
तुळसि- मॊदला — दखिल- पूजा — साध-न पदा-र्थ ॥ हलवु- बगॆयिं — दर्पि-सुत बां- ।
बॊळॆय- जनकगॆ — नित्य- नित्यदि- ।
तिळिवु-दिदु व्यति — रेक- पूजॆग — ळॆंदु- कोविद-रु ॥ ११-२४ ॥
श्रीक-रन स — र्वत्र-दलि अव- ।
लोकि-सुत गुण — रूप- क्रिय व्यति- ।
रेक- तिळियदॆ — अन्व-यिसु बिं — बनलि- मरॆयद-लॆ ॥ स्वीक-रिसुवनु — करुण-दिंद नि- ।
राक-रिसदॆ कृ — पाळु- भक्तर ।
शोक-गळ परि — हरिसि- सुखवि — त्तनव-रत पॊरॆ-व ॥ ११-२५ ॥
इनितु- व्यतिरे — कान्व-यगळॆं- ।
दॆनिप- पूजा — विधिग-ळनॆ तिळि- ।
दनिमि-षेशन — तृप्ति- बडिसुत — लिरु नि-रंतर-दि ॥
घन म-हिम कै — कॊंडु- स्थिति मृति- ।
जनुम-गळ परि — हरिसि- सेवक- ।
जनरॊ-ळिट्टा — नंद- बडिसुव — भक्त- वत्सल-नु ॥ ११-२६ ॥
जलज-नाभनि — गॆरडु- प्रतिमॆग- ।
ळिळॆयॊ-ळगॆ जड — चेत-नात्मक ।
चलदॊ-ळीर्बगॆ — स्त्री पु-रुष भे — ददलि- जडदॊळ-गॆ ॥ तिळिवु-दाहित — प्रतिमॆ- सहजा- ।
चलग-ळॆंदी — र्बगॆ प्र-तीकदि ।
ललित- पंच — त्रय सु-गोळक — वरितु- भजिसुति-रु ॥ ११-२७ ॥
वारि-जासन — वायु-वींद्र उ- ।
मा र-मण ना — केश- स्मरहं- ।
कारि-क प्रा — णादि-गळु पुरु — षर क-ळेवर-दि ॥ तोरि-कॊळदनि — रुद्ध- दोषवि- ।
दूर- नारा — यणन- रूप श- ।
रीर-मानिग — ळागि- भजिसुत — सुखव- कॊडुतिह-रु ॥ ११-२८ ॥
सिरि स-रस्वति — भार-ती सौ ।
परणि- वारुणि — पार्व-ती मुख ।
रिरुति-हरु स्त्री — यरॊळ-गभिमा — निगळु- तावॆनि-सि ॥
अरुण- वर्ण नि — भांग- श्रीसं ।
करुष-ण प्र — द्युम्न- रूपग- ।
ळिरुळु- हगलु उ — पास-नॆय गै — युतलॆ- मोदिप-रु ॥ ११-२९ ॥
कृतप्र-तीकदि — टंकि- भार्गव ।
हुतव-हानिल — मुख्य- दिविजरु ।
तुतिसि-कॊळुतभि — मानि-गळु ता — वागि- नॆलॆसि-द्दु ॥
प्रति दि-वस श्री — तुळसि- गंधा- ।
क्षतॆ कु-सुम फल — दीप- पंचा- ।
मृतदि- पूजिप — भक्त-रिगॆ कॊडु — तिहरु- पुरुषा-र्थ ॥ ११-३० ॥
नगग-ळभिमा — निगळॆ-निप सुर- ।
रुगळु- सहजा — चलग-ळिगॆ मा- ।
निगळॆ-निसि श्री — वासु-देवन — पूजि-सुतलिह-रु ॥
स्वगत- भेद वि — वर्जि-तन ना- ।
ल्बगॆ प्र-तीकदि — तिळिदु- पूजिसॆ ।
विगड- संसा — राब्धि- दाटिसि — मुक्त-रनु मा-ळ्प ॥ ११-३१ ॥
आव- क्षेत्रकॆ — पोद-रेनि- ।
न्नाव- तीर्थदि — मुळग-लेनि- ।
न्नाव- जप तप — होम- दानव — माडि- फलवे-नु ॥ श्रीव-र जग — न्नाथ-विठलन ।
ई वि-धदि जं — गाअम- स्थावर- ।
जीव-रॊळु परि — पूर्ण-नॆंदरि — यदिह- मानव-नु ॥ ११-३२ ॥
॥ इति श्री ध्यानप्रक्रिया (स्थावरजंगम) सन्धि संपूर्णं ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥