HKS 12. Naadiprakarana Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार

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१२. नाडीप्रकरण सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

वासु-देवनु — प्राण-मुख त- ।

त्वेश-रिंदलि — सेवॆ- कैकॊळु- ।

ती श-रीरदॊ — ळिप्प- मूव — त्तारु- साह-स्र ॥

ई सु-नाडिग — ळॊळगॆ- श्रीभू- ।

मी स-मेत वि — हार-गैव प- ।

रेश-नमल सु — मूर्ति-गळ चिं — तिसुत- हिग्गुति-रु ॥ १२-१ ॥

चरण-गळॊळिह — नाडि-गळु ह- ।

न्नॆरडु- साविर — मध्य-देह दॊ-।

ळिरुति-हवु हदि — नाल्कु- बाहुग — ळॊळगॆ- ईरॆर-डु ॥ शिरदॊ-ळारु स — हस्र- चिंतिसि ।

इरुळु- हगलभि — मानि- दिविजर- ।

नरितु-पासनॆ — गैव-रिळॆयॊळु — स्वर्ग-वासिग-ळु ॥ १२-२ ॥

बृहति- नामक — वासु-देवनु ।

वहिसि- पुं स्त्री — रूप- दोष वि- ।

रहित- ऎप्प — त्तॆरडु- साविर — नाडि-गळॊळि-द्दु ॥

द्रुहिण- मॊदला — दमर- गण स- ।

न्महित- सर्व — प्राणि-गळ मह- ।

महिम- संतै — सुवनु- संतत — परम- करुणा-ळु ॥ १२-३ ॥

नूरु- वरुषकॆ — दिवस- मूव- ।

त्तारु- साविर — वहवु- नाडि श- ।

रीर-दॊळगिनि — तिहवु- ऎंदरि — तॊंदु- दिवसद-लि ॥ सूरि-गळ स — त्करिसि-दव प्रति- ।

वार-दलि दं — पतिग-ळर्चनॆ ।

ता र-चिसिदव — सत्य- संशय — विल्ल-वॆंदॆं-दु ॥ १२-४ ॥

चतुर-विंशति — तत्त्व-गळु त-

त्पतिग-ळॆनिसुव — ब्रह्म-मुख दे- ।

वतॆग-ळनुदिन — प्रतिप्र-ती ना — डिगळॊ-ळिरुति-द्दु ॥ चतुर-दश लो — कदॊळु- जीव- ।

प्रतति-गळ सं — रक्षि-सुव शा- ।

श्वतन- तत्तत् — स्थान-दलि नो — डुतलि- मोदिप-रु ॥ १२-५ ॥

सत्य- संक — ल्पनु स-दा ऎ- ।

प्पत्तॆ-रडु सा — हस्र-दॊळु मू- ।

वत्तु-नालकु — लक्ष-दैव — त्तारु- साह-स्र ॥ चित्प्र-कृतियॊड — गूडि- परम सु- ।

नित्य- मंगळ — मूर्ति- भक्तर ।

तॆत्ति-गनु ता — नागि- सर्व — त्रदलि- संतै-प ॥ १२-६ ॥

मणिग-ळॊळगिह — सूत्र-दंददि ।

प्रणव- पाद्यनु — सर्व- चेतन- ।

गणदॊ-ळिद्दन — वरत- संतै — सुवनु- तन्नव-र ॥ प्रणत- कामद — भक्त- चिंता- ।

मणि चि-दानं — दैक- देहनु ।

अणु म-हद्गत — नल्प-रोपा — दियलि- नॆलॆसि-प्पा ॥ १२-७ ॥

ई सु-षुम्ना — द्यखिल- नाडी- ।

कोश- नाभी — मूलदलि वृष- ।

णास-नद म — ध्यदलि- इप्पदु — तुंदि-नामद-लि ॥

आ स-रोजा — सन मु-खरु मू- ।

लेश-नानं — दादि- सुगुणो- ।

पास-नॆय गै — वुतलि- देहग — ळॊळगॆ- इरुतिह-रु ॥ १२-८ ॥

सूरि-गळु चि — त्तैसु-वदु भा- ।

गीर-थियॆ मॊद — लाद- तीर्थग- ।

ळीर-धिक ऎ — प्पत्तु- साविर — नाडि-यॊळगिह-वु ॥

ई र-हस्यवु — अल्प- जनरिगॆ ।

तोरि- पेळदॆ — नाडि- नदियॊळु ।

धीर-रनुदिन — मज्ज-नव मा — डुतलि- सुखिसुव-रु ॥ १२-९ ॥

तिळिवु-दी दे — हदॊळ-गिह ऎड- ।

बलद- नाडिग — ळॊळगॆ- दिविजरु ।

जलज- संभव — वायु- वाण्या — दिगळु- बलद-ल्लि ॥

ऎलरु-णिग विह — गेंद्र- चळिवॆ- ।

ट्टळिय- षण्महि — षियरु- वारुणि- ।

कुलिश-धर का — मादि-गळु ऎड — भाग-दॊळगिह-रु ॥ १२-१० ॥

इक्कॆ-लदॊळिह — नाडि-यॊळु दे- ।

वर्क-ळिंदॊड — नाडु-तलि पॊं- ।

बक्कि-देरनु — जीव-रधिका — रानु- सारद-लि ॥

तक्क- साधन — माडि- माडिसु – ।

तक्क-रदि सं — तैप- भक्तर ।

दक्क-गॊडनसु — ररिगॆ- सत्पु — ण्यगळ-नपहरि-प ॥ १२-११ ॥

तुंदि- विडिदा — शिरद- परियं- ।

तॊंदॆ- व्यापिसि — इहुदु- तावरॆ- ।

कंद-निहनद — रॊळगॆ- अदकी — रैदु- शाखॆग-ळु ॥ ऒंद-धिक दश — करण-दॊळु सं- ।

बंध-गैदिह — वल्लि- रवि शशि ।

सिंधु- नास — त्यादि-गळु नॆलॆ — गॊंडि-हरु सत-त ॥ १२-१२ ॥

पॊक्क-ळडिविडि — दॊंदॆ- नाडियु ।

सुक्क-दलॆ धा — राळ- रूपदि ।

सिक्कि-हुदु नडु — देह-दॊळगॆ सु — षुम्न- नामद-लि ॥ रक्क-सरनॊळ — पॊगगॊ-डदॆ दश- ।

दिक्कि-नॊळगॆ स — मीर- देवनु ।

लॆक्कि-सदॆ म — त्तॊब्ब-रनु सं — चरिप- देहदॊ-ळु ॥ १२-१३ ॥

इनितु- नाडी — शाखॆ-गळु ई- ।

तनुवि-नॊळगिह — वॆंदु- एका- ।

त्मनु द्वि-सप्तति — सावि-रात्मक — नागि- नाडियॊ-ळु ॥ वनितॆ-यिंदॊड — गूडि- नारा- ।

यण दि-वा रा — त्रिगळ-ली परि ।

वनज-जांडदॊ — ळखिल- जीवरॊ — ळिद्दु- मोहिसु-व ॥ १२-१४ ॥

दिन दि-नदि व — र्धिसुव- कुमुदा- ।

प्तन म-यूखद — सॊबगु- गतलो- ।

चन वि-लोकिसि — मोद- बड ब — ल्लनॆ नि-रंतर-दि ॥

कुनर-गी सुक — थामृ-तद भो- ।

जनद- सुख दॊर — कुवदॆ- लक्ष्मी- ।

मनॊह-रन स — द्गुणव- कीर्तिप — भकुत-गल्लद-लॆ ॥ १२-१५ ॥

ई त-नुविनॊळ — गिहवु- ओत- ।

प्रोत- रूपदि — नाडि-गळु पुरु- ।

हूत- मुखर — ल्लिहरु- तम्मिं — दधिक- रॊडगू-डि ॥ भीति-गॊळिसुत — दान-वर सं- ।

घात- नामक — हरिय- गुण सं- ।

प्रीति-यलि सदु — पास-नव गै — वुतलॆ- मोदिप-रु ॥ १२-१६ ॥

जलट- कुक्कुट — खेट- जीवर ।

कळॆव-रगळॊळ — गिद्दु- काणिसि- ।

कॊळदॆ- तत्त — द्रूप- नामग — ळिंद- करॆसुत-लि ॥ जलरु-हेक्षण — विविध- कर्मं- ।

गळ नि-रंतर — माडि माडिसि ।

फलग-ळुण्णदॆ — संच-रिसुवनु — नित्य- सुखपू-र्ण ॥ १२-१७ ॥

तिळिदु-पासनॆ — गैवु-तीपरि ।

मलिन-नंतिरु — दुर्ज-नर कं- ।

गळिगॆ- गोचरि — सदॆ वि-पश्चित — रॊडनॆ- गर्विस-दॆ ॥

मळॆ बि-सिलु हसि — तृषॆ ज-या जय ।

खळर- निंदा — निंदॆ- भयगळि- ।

गळुक-दलॆ म — द्दानॆ-यंददि — चरिसु- धरॆयॊळ-गॆ ॥ १२-१८ ॥

कान-न ग्रा — मस्थ- सर्व- ।

प्राणि-गळु प्रति — दिवस-दलि ए- ।

नेनु- माडुव — कर्म-गळु हरि — पूजॆ- ऎंदरि-दु ॥ धेनि-सुत स — द्भक्ति-यलि पव- ।

मान- मुख दे — वांत-रात्मक- ।

श्रीनि-वासनि — गर्पि-सुत मो — दिसुत- नलियुति-रु ॥ १२-१९ ॥

नोक-नीयनु — लोक-दॊळु शुनि- ।

सूक-रादिग — ळॊळगॆ- नॆलॆसि- ।

द्देक-मेवा — द्वितिय- बहु रू — पाह्व-यगळिं-द ॥

ता क-रॆसुतॊळ — गिद्दु- तिळिसदॆ ।

श्रीक-मलभव — मुख्य- सकल दि- ।

वौक-स गणा — राध्य- कैकॊं — डनव-रत पॊरॆ-व ॥ १२-२० ॥

इनितु-पासनॆ — गैवु-तिह स- ।

ज्जनरु- संसा — रदलि- प्रति प्रति- ।

दिनग-ळलि ए — नेनु- माडुव — दॆल्ल- हरिपू-जॆ ॥

ऎनिसि-कॊंबुदु — सत्य-वी मा- ।

तिनलि- संशय — बडुव- नरन- ।

ल्पनु सु-निश्चय — बाह्य- कर्मव — माडि- फलवे-नु ॥ १२-२१ ॥

भोग्य- भोक्तृग — ळॊळगॆ- हरि ता- ।

भोग्य- भोक्तनु — ऎनिसि- योग्या- ।

योग्य- रसगळ — देव- दानव — गणकॆ- उणिसुव-नु ॥ भाग्य-निधि भ — क्तरिगॆ- सद्वै- ।

राग्य- भक्ति — ज्ञान-वीवा- ।

योग्य-रिगॆ द्वे — षादि-गळ त — न्नल्लि- कॊडुति-प्प ॥ १२-२२ ॥

ई च-तु र्दश — भुवन-दॊळगॆ च- ।

राच-रात्मक — जीव-रल्लि वि- ।

रोच-नात्मज — वंच-कनु नॆलॆ — सिद्दु- दिनदिन-दि ॥ याच-कनु ऎं — दॆनिसि-कॊंब म- ।

रीचि- दमन सु — हंस- रूपि नि- ।

षेच-काह्वय — नागि- जनरभि — लाषॆ- पूरै-प ॥ १२-२३ ॥

अन्न-दन्ना — दन्न-मय स्वय- ।

मन्न- ब्रह्मा — द्यखिल- चेतन- ।

कन्न- कल्पक — नाह-ननिरु — द्धादि- रूपद-लि ॥ अन्य-रनपे — क्षिसदॆ- गुण का- ।

रुण्य- सागर — सृष्टि-सुवनु हि- ।

रण्य- गर्भनॊ — ळिद्दु- पालिसु — वनु ज-गत्रय-व ॥ १२-२४ ॥

त्रिपद- त्रिदशा — ध्यक्ष- त्रिस्थ ।

त्रिपथ-गामिनि — पित त्रि-विक्रम ।

कृपण- वत्सल — कुवल-यदळ — श्याम- निस्सी-म ॥

अपरि-मित चि — त्सुख गु-णात्मक- ।

वपुष- वैकुं — ठादि- लोका- ।

धिप त्र-यीमय — तन्न-वर नि — ष्कपट-दिं पॊरॆ-व ॥ १२-२५ ॥

लवण- मिश्रित — जलवु- तोर्पुदु ।

लवण- दोपा — दियलि- जिह्वॆगॆ ।

विवर-गैसलु — शक्य-वागुवु — देनॊ- नोळ्परि-गॆ ॥ स्ववश- व्यापी — ऎनिसि- लक्ष्मी- ।

धव च-रा चर — दॊळगॆ- तुंबिह ।

नविदि-तन सा — कल्य- बल्लव — रारु- सुररॊळ-गॆ ॥ १२-२६ ॥

व्याप्य-नंददि — सर्व- जीवरॊ- ।

ळिप्प- चिन्मय — घोर- भव सं- ।

तप्य- मानरु — भजिसॆ- भकुतिय — लिंद-लिहपर-दि ॥ प्राप्य-नागुव — नवर-वगुणग- ।

ळॊप्पु- गॊंबनु — भक्त-वत्सल ।

तप्पि-सुव ज — न्मादि- दोषग — ळवरि-गनवर-त ॥ १२-२७ ॥

हलवु- बगॆयलि — हरिय- मनदॊळ ।

गॊलिसि- निल्लिसि — एनु- माडुव ।

कॆलस-गळु अव — नंघ्रि- पूजॆग — ळॆंदु- नॆनॆयुति-रु ॥ हलध-रानुज — तानॆ- सर्व- ।

स्थळग-ळलि नॆलॆ — सिद्दु- निश्चं- ।

चल भ-कुति सु — ज्ञान- भाग्यव — कॊट्टु- संतै-प ॥ १२-२८ ॥

दोष- गंध वि — दूर- नाना- ।

वेष-धारक — नी ज-गत्त्रय- ।

पोष-क पुरा — तन पु-रुष पुरु — हूत- मुख विनु-त ॥ शेष-वर परि — यंक- शयन वि- ।

भीष-ण प्रिय — विजय- सख सं- ।

तोष- बडिसुव — सुजन-रिष्टा — र्थगळ- पूरै-सि ॥ १२-२९ ॥

श्रीम-ही से — वित प-दांबुज ।

भूम- सद्भ — क्तैक- लभ्य पि- ।

ताम-हाद्यम — रा सु-रार्चित — पाद- पंके-ज ॥

वाम- वामन — राम- संसा- ।

राम-यौषध — हे म-म कुल- ।

स्वामि- संतै — सॆनलु- बंदॊद — गुवनु- करुणा-ळु ॥ १२-३० ॥

दनुज- दिविजरॊ — ळिद्दु- अवरव- ।

रनुस-रिसि क — र्मगळ- माळ्पनु ।

जनन- मरणा — द्यखिल- दोष वि — दूर- ऎम्मॊड-नॆ ॥ जनिसु-वनु जी — विसुव- संर- ।

क्षणॆय- माडुव — नॆल्ल- कालदि ।

धनव- काय्दिह — सर्प-नंतनि — मित्त- बांधव-नु ॥ १२-३१ ॥

बिसरु-हाप्ता — गसदि- तानुद- ।

यिसलु- वृक्षं — गळ नॆ-ळलु पस- ।

रिसुव-विळॆयॊळ — गस्त-मिसल — ल्लल्लॆ- लीनिप-वु ॥ श्वसन- मुख्य म — रांत-रात्मक- ।

नॊशदॊ-ळिरुति — प्पवु ज-गत्त्रय ।

बसुरॊ-ळिंबि — ट्टॆल्ल- कर्मव — तोर्प- नोळ्परि-गॆ ॥ १२-३२ ॥

त्रिभुव-नैका — राध्य- लक्ष्मी- ।

सुभुज-युगळा — लिंगि-तांग ।

स्वभु सु-खात्म सु — वर्ण- वर्ण सु — पर्ण- वर वह-न ॥ अभय-दानं — तार्क- शशि स- ।

न्निभ नि-रंजन — नित्य-दलि तन- ।

गभिन-मिसुवरि — गीव- सर्वा — र्थगळ- तडॆयद-लॆ ॥ १२-३३ ॥

कविग-ळिंदलि — तिळिदु- प्रातः- ।

सवन- माध्यं — दिनवु- सायं- ।

सवन-गळ वसु — रुद्र-रादि — त्यरॊळु- राजिसु-व ॥ पवन-नॊळु कृति — जय सु-माया- ।

धवन- मूर्ति — त्रयव- चिंतिसि ।

दिवस-वॆंबा — हुतिग-ळिंद — र्चिसुत- सुखिसुति-रु ॥ १२-३४ ॥

चतुर-विंश — त्यब्द- वसुदे- ।

वतॆग-ळॊळु प्र — द्युम्न-निप्पनु ।

चतुर- चत्वा — रिंश-तिगळलि — संक-रुषणा-ख्य ॥ हुतव-हाक्षनॊ — ळिहनु- माया- ।

पतियु- हदिना — रधिक- द्वात्रिं- ।

शति व-रुषगळ — लिप्प-नादि — त्यनॊळु- सितका-य ॥ १२-३५ ॥

षोड-शोत्तर — शत व-रुषदलि ।

षोड-शोत्तर — शत स्व-रूपदि ।

क्रीडि-सुव वसु — रुद्र-रादि — त्यरॊळु- सति सहि-त ॥ व्रीड-विल्लदॆ — भजिप- भक्तर ।

पीडि-सुव दुरि — तौघ-गळ दू- ।

रोडि-सुत बळि — यलि बि-डदॆ नॆलॆ — सिप्प- भयहा-रि ॥ १२-३६ ॥

मूर-धिक ऎं — भत्तु- सहस्रै- ।

नूर- यिप्प — त्तॆनिप- रूपदि ।

तोरु-तिप्प दि — वा नि-शाधिप — रॊळगॆ- नित्यद-लि ॥

भार-ती प्रा — णरॊळ-गिद्दु नि- ।

वारि-सुत भ — क्तर दु-रित हिं- ।

कार- निधन — प्रथम- रूपदि — पितृग-ळनॆ पॊरॆ-व ॥ १२-३७ ॥

बुद्धि- पूर्वक — उत्त-मोत्तम- ।

शुद्ध- ऊर्णां — बरव- पंकदॊ- ।

ळद्दि- तॆगॆयलु — लेप-वागुव — दे प-रीक्षिस-लु ॥ पद्म-नाभनु — सर्व- जीवरॊ- ।

ळिद्द-रेनु गु — णत्र-यगळिं- ।

बद्ध-नागुव — नेनॊ- नित्य सु — खात्म- चिन्मय-नु ॥ १२-३८ ॥

सकल- दोष वि — दूर- शशि पा- ।

वक स-हस्रा — नंत- सूर्य- ।

प्रकर- सन्निभ — गात्र- लकुमि क — ळत्र- सुरमि-त्र ॥ विखन-सांडदॊ — ळिप्प- ब्रह्मा- ।

द्यखिल- चेतन — गणकॆ- ताने ।

सखनॆ-निसिकॊं — ड कुटि-लात्मक — निप्प-नवरं-तॆ ॥ १२-३९ ॥

देश- भेदग — ळल्लि- इप्पा- ।

काश-दोपा — दियलि- चेतन- ।

राशि-यॊळु नॆलॆ — सिप्प-नव्यव — धान-दलि निरु-त ॥

श्रीस-हित स — र्वत्र- निरवा- ।

काश- कॊडुवं — ददलि- कॊडुत नि- ।

राशॆ-यलि स — र्वांत-रात्मक — शोभि-सुव सुख-द ॥ १२-४० ॥

श्रीवि-रिंचा — द्यमर-गण सं- ।

सेवि-तांघ्रि स — रोज- ई जड- ।

जीव-राशिग — ळॊळ हॊ-रगॆ नॆलॆ — सिद्दु- नित्यद-लि ॥ साव-काशनु — ऎनिसि- तन्न क- ।

ळेव-रदॊळिं — बिट्टु- सलहुव ।

देव- देवकि — रमण- दानव — हरण- जितमर-ण ॥ १२-४१ ॥

मास-वॊंदकॆ — प्रति दि-वसदलि ।

श्वास-गळु अह — वष्ट- चत्वा- ।

रिंश-ति सह — स्राधि-कारु सु — लक्ष- संख्यॆय-लि ॥ हंस- नामक — हरिय- षोडश ।

ई श-ताब्ददि — भजिसॆ- ऒलिव द- ।

या स-मुद्र कु — चेल- गॊलिदं — ददलि- दिनदिन-दि ॥ १२-४२ ॥

स्थूल- देहदॊ — ळिद्दु- वरुषकॆ ।

एळ-धिक ऎ — प्पत्तु- लक्षद- ।

मेलॆ- ऎप्प — त्तारु- साविर — श्वास- जपगळ-नु ॥

गाळि- देवनु — करुण-दलि ई – ।

रेळु- लोकदॊ — ळुळ्ळ- चेतन- ।

जाल-दॊळु मा — डुवनु- त्रिजग — द्व्याप्त- परमा-प्त ॥ १२-४३ ॥

ईरॆ-रडु दे — हगळॊ-ळिद्दु स- ।

मीर-देवनु — श्वास-जप ना- ।

नूर-धिकवा — गिप्प- ऎंभ — त्तारु- साह-स्र ॥

ता र-चिसुवनु — दिवस-वॊंदकॆ ।

मूरु- विध जी — वरॊळ-गिद्दु ख- ।

रारि- करुणा — बलव-दॆंतुटॊ — पवन-रायनॊ-ळु ॥ १२-४४ ॥

श्रीध-व जग — न्नाथ-विठ्ठल ।

ता द-यदि वद — नदॊळु- नुडिदो- ।

पादि-यलि ना — नुडिदॆ-नल्लदॆ — केळि- बुध जन-रु ॥ साधु- लिंग — प्रदरु-शकरु नि- ।

षेधि-सिदरे — नहुदु- ऎन्नप- ।

राध-वेनिद — रॊळगॆ- पेळ्वदु — तिळिदु- कोविद-रु ॥ १२-४५ ॥

॥ इति श्री नाडीप्रकरण सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्रीः ॥

Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥