हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
१३. नामस्मरण सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
मक्क-ळाडिसु — वाग- मडदियॊ- ।
ळक्क-रदि नलि — वाग- हय प- ।
ल्लक्कि- गज मॊद — लाद- वाहन — वेरि- मॆरॆवा-ग ॥ बिक्कु-वागा — कळिसु-तलि दे ।
वक्कि- तनयन — स्मरिसु-तिह नर ।
सिक्क- यमदू — तरिगॆ- आवा — वल्लि- नोडिद-रु ॥ १३-१ ॥
सरितु- प्रवहग — ळल्लि- दिव्यां- ।
बरदि- पत्रा — दियलि- हर्षा- ।
मर्ष- विस्मृति — यिंद-लागलि — ऒम्मॆ- बाय्दॆरॆ-दु ॥
हरि ह-री हरि — यॆंब- ऎरड- ।
क्षर नु-डिद मा — त्रदलि- दुरित ग- ।
ळिरदॆ- पोपवु — तूल- राशियॊ — ळनल- पॊक्कं-तॆ ॥ १३-२ ॥
मलगु-वागलि — एळु-वागलि ।
कुळितु- माता — डुतलि- मनॆयॊळु ।
कॆलस-गळ मा — डुतलि- मैदॊळॆ — वाग- मॆलुवा-ग ॥ कलुष- दूरन — सकल- ठाविलि ।
तिळियॆ- तत्त — न्नाम- रूपव ।
बळिय-लिप्पनु — ऒंद-रक्षण — बिट्ट-गलनव-र ॥ १३-३ ॥
आव-कुलदव — नाद-रेनि- ।
न्नाव- देशदॊ — ळिद्दॊ-डेनि- ।
न्नाव- कर्मव — माड-लेनि — न्नाव- कालद-लि ॥ श्रीव-रन स — र्वत्र-दलि सं- ।
भावि-सुत पू — जिसुत- मोदिप ।
कोवि-दरिगुं — टेनॊ- भय दुः — खादि- दोषग-ळु ॥ १३-४ ॥
वासु-देवन — गुण स-मुद्र दॊ- ।
ळीस- बल्लव — भव स-मुद्रा- ।
यास-विल्लदॆ — दाटु-वनु शी — घ्रदलि- जगदॊळ-गॆ ॥
बेस-रदॆ दु — र्विषय-गळ अभि- ।
लाषॆ-यलि बळ — लुवव- नाना- ।
क्लेश-गळननु — भविप- भक्ति सु — मार्ग- काणद-लॆ ॥ १३-५ ॥
स्नान- जप दे — वार्च-नॆयु व्या- ।
ख्यान- भारत — मुख- महोपपु- ।
राण- कथॆगळ — पेळि- केळिद — रेनु- दिनदिन-दि ॥
ज्ञान- कर्में — द्रियग-ळिंदे- ।
नेनु- माडुव — कर्म-गळु ल- ।
क्ष्मीनि-वासन — पूजॆ- ऎंद — र्पिसद- मानव-नु ॥ १३-६ ॥
देव- गंगॆयॊ — ळुळ्ळ-वगॆ दुरि- ।
ताव-ळिगळुं — टे वि-चारिसॆ ।
पावु-गळ भय — उंटॆ- विहगा — धिपन- मंदिर-दि ॥ जीव- कर्तृ — त्ववनु- मरॆदु प-।
राव-रेशनॆ — कर्तृ-यॆंदरि ।
दाव- कर्मव — माडि-दरु ले — पिसवु- कर्मग-ळु ॥ १३-७ ॥
एनु- माडुव — पुण्य- पापग- ।
ळानॆ- माडुवॆ — नॆंबु-वाधम ।
हीन- कर्मकॆ — पात्र- ना पु — ण्यक्कॆ- हरियॆं-ब ॥ मान-वनु म — ध्यमनु- द्वंद्वकॆ ।
श्रीनि-वासनॆ — कर्तृ-वॆंदु स- ।
दानु-रागदि — नॆनॆदु- सुखिसुव — रे न-रोत्तम-रु ॥ १३-८ ॥
ई उ-पासनॆ — गैव-रिळॆयॊळु ।
देव-तॆगळ — ल्लदलॆ- नरर- ।
ल्लाव- बगॆयिं — दाद-रिवर — र्चनॆयु- हरिपू-जॆ ॥ केव-ल प्रति — मॆगळॆ-निपरु र- ।
मा वि-नोदिगॆ — इवर-नुग्रह- ।
वे व-रानु — ग्रहवॆ-निसुवुदु — मुक्ति- योग्यरि-गॆ ॥ १३-९ ॥
तनुवॆ- नानॆं — बुवनु- सति सुत- ।
मनॆ ध-नादिग — ळॆन्न-दॆंबुव ।
द्युनदि- मॊदला — दुदक-गळॆ स — त्तीर्थ-वॆंबुव-नु ॥
अनल- लोहा — दि प्र-तीका- ।
र्चनॆयॆ- देवर — पूजॆ- सुजनर ।
मनुज-रहुदॆं — बुवनॆ- गोखर — नॆनिप- बुधरिं-द ॥ १३-१० ॥
अनल- सोमा — र्केंदु- तारा- ।
वनि सु-रापग — मुख्य- तीर्थग- ।
ळनिल- गगन म — नादि- इंद्रिय — गळिगॆ- अभिमा-नि ॥
ऎनिप- सुररु वि — पश्चि-तरु स- ।
न्मनदि- भजिसद — लिप्प-वर पा- ।
वनव- माडरु — तम्म- पूजॆय — माडि-दरु सरि-यॆ ॥ १३-११ ॥
कॆंड- काणदॆ — मुट्टि-दरु सरि ।
कंडु- मुट्टलु — दहिस- दिप्पुदॆ ।
पुंड-रीकद — ळाय-ताक्षन — विमल- पद प-द्म- । बंडु-णिगळॆं — दॆनिप- भक्तर ।
हिंडु- नोडिद — मात्र-दलि तनु ।
दिंडु- गॆडहिद — नरर- पावन — माळ्प-राक्षण-दि ॥ १३-१२ ॥
ई नि-मित्त पु — नः पु-नः सु- ।
ज्ञानि-गळ सह — वास- माडु कु- ।
मान-वर कू — डाड-दिरु लौ — किककॆ- मरुळा-गि ॥ वैन-तेयां — सगन- सर्व- ।
स्थान-दलि त — न्नाम- रूपव ।
धेनि-सुत सं — चरिसु- इतरा — लोच-नॆय बि-ट्टु ॥ १३-१३ ॥
ई न-ळिनजां — डदॊळु- सर्व- ।
प्राणि-गळॊळि — द्दनव-रत वि- ।
ज्ञान-मय व्या — पार-गळ मा — डुवनु- तिळिसद-लॆ ॥ एनु- काणदॆ — सकल- कर्मग- ।
ळानॆ- माडुवॆ — नॆंब- नरनु कु- ।
योनि-यैदुव — कर्तृ- हरि ऎं — दवनॆ- मुक्तन-ह ॥ १३-१४ ॥
कलिम-लापह — ळॆनिसु-तिह बां- ।
बॊळॆयॊ-ळगॆ सं — चरिसि- बदुकुव ।
जलच-र प्रा — णिगळु- बल्लवॆ — तीर्थ- महिमॆय-नु ॥
हलवु- बगॆयलि — हरिय- करुणा- ।
बलदि- बल्लिद — राद- ब्रह्मा- ।
निल वि-पेशा — द्यमर-ररियर — नंत-नमल गु-ण ॥ १३-१५ ॥
श्रील-कुमिव — ल्लभनु- हृत्की- ।
लाल-जदॊळि — द्दखिल- चेतन- ।
जाल-वनु मो — हिसुव- त्रिगुणदि — बद्ध-रनु मा-डि ॥ स्थूल- कर्मदि — रतर- माडि स्व- ।
लीलॆ-गळ तिळि — सदलॆ- भवदि कु- ।
लाल- चक्रद — तॆरदि- तिरुगिसु — तिहनु- मानव-र ॥ १३-१६ ॥
वेद- शास्त्र वि — चार-गैदु नि- ।
षेध- कर्मव — तॊरॆदु- नित्यदि ।
साधु- कर्मव — माळ्प-रिगॆ स्व — र्गादि- सुखवी-व ॥ ऐदि-सुव पा — पिगळ- निरयव ।
खेद- मोद म — नुष्य-रिगॆ दु- ।
र्वादि-गळिगं — धंत-मदि मह — दुःख-गळनुणि-प ॥ १३-१७ ॥
निर्गु-णोपा — सकगॆ- गुण सं- ।
सर्ग- दोषग — ळीय-दलॆ अप- ।
वर्ग-दलि सुख — वित्तु- पालिसु — वनु कृ-पा सां-द्र ॥ दुर्ग-मनु ऎं — दॆनिप- त्रैवि- ।
द्यर्गॆ- त्रिगुणा — तीत- संतत ।
स्वर्ग- भू नर — कदलि- संचा — रवनॆ- माडिसु-व ॥ १३-१८ ॥
मूव-रॊळगि — द्दरु स-रियॆ सुख- ।
नोवु-गळु सं — बंध-वागवु ।
पाव-नकॆ पा — वन प-रात्पर — पूर्ण- सुखवन-धि ॥ ई व-नरुह भ — वांड-दॊळु स्व क- ।
ळेव-र तदा — कार- माडि प- ।
राव-रेश च — राच-रात्मक — लोक-गळ पॊरॆ-व ॥ १३-१९ ॥
आ नि-मित्त नि — रंत-र स्वा- ।
धीन- कर्तृ — त्ववनु- मरॆदे- ।
नेनु- माडुवु — दॆल्ल- हरि ऒळ — हॊरगॆ- नॆलॆसि-द्दु ॥
तानॆ- माडुव — नॆंद-रिदु म- ।
द्दानॆ-यंददि — संच-रिसु पव- ।
मान- वंदित — ऒंद-रॆक्षण — बिट्ट-गल नि-न्न ॥ १३-२० ॥
हलवु- कर्मव — माडि- देहव ।
बळलि-सदॆ दिन — दिनदि- हृदया- ।
मलस-दनदि वि — राजि-सुव हरि — मूर्ति-यनॆ भजि-सु ॥ तिळिय-दी पू — जा प्र-करणव ।
फल सु-पुष्पा — ग्र्योद-क श्री- ।
तुळसि-गळन — र्पिसलु- ऒप्पनु — वासु-देव स-दा ॥ १३-२१ ॥
धरणि- नारा — यणनु- उदकदि ।
तुरिय- नामक — अग्नि-यॊळु सं- ।
करुष-णाह्वय — वायु-ग प्र — द्युम्न-ननिरु-द्ध ॥ इरुति-हनु आ — काश-दॊळु मू- ।
रॆरडु- रूपव — धरिसि- भूतग ।
करॆसु-वनु त — न्नाम- रूपदि — प्रजर- संतै-प ॥ १३-२२ ॥
घनग-तनु ता — नागि- नारा- ।
यणनु- तन्ना — मदलि- करॆसुव ।
वनद- गर्भो — दकदि- नॆलॆसिह — वासु-देवा-ख्य ॥
ध्वनि सि-डिलु सं — करुष-णनु मिं- ।
चिनॊळु- श्रीप्र — द्युम्न- वृष्टिय ।
हनिग-ळॊळगनि — रुद्ध-निप्पनु — वरुष-वॆंदॆनि-सि ॥ १३-२३ ॥
गृह कु-टुंब ध — नादि-गळ स- ।
न्नहग-ळुळ्ळव — रागि- विहिता- ।
विहित- धर्म सु — कर्म-गळ तिळि — यदलॆ- नित्यद-लि ॥
अहर- मैथुन — निद्रॆ-गॊळगा- ।
गिहरु- सर्व — प्राणि-गळु हृ- ।
द्गुह नि-वासिय — नरिय-दलॆ भव — दॊळगॆ- तॊळलुव-रु ॥ १३-२४ ॥
जडज- संभव — खग फ-णिप कॆं- ।
जॆडॆ य-रिंदॊड — गूडि- राजिसु- ।
तडवि-यॊळगि — प्पनु स-दा गो — जाद्रि-जनु ऎनि-सि ॥ उडुप-निंदभि — वृद्धि-गळ ता ।
कॊडुत- पक्षि मृ — गाहि-गळ का- ।
रॊडल- कावनु — तत्त-दाह्वय — नागि- जीवर-नु ॥ १३-२५ ॥
अपरि-मित स — न्महिम- नरहरि ।
विपिन-दॊळु सं — तैसु-वनु का- ।
श्यपिय-नळॆदव — स्थळग-ळलि स — र्वत्र- केशव-नु ॥ खपति- गगनदि — जलग-ळलि मह- ।
शफर- नामक — भक्त-रनु नि- ।
ष्कपट-दिंदलि — सलहु-वनु करु — णाळु- दिनदिन-दि ॥ १३-२६ ॥
कार-णांत — र्यामि- स्थूलव- ।
तार- व्याप्तां — शादि- रूपकॆ ।
सार- शुभ प्रवि — विक्त- नंद — स्थूल- निस्सा-र ॥
आरु- रसगळ — नर्पि-सल्परि- ।
गी र-हस्यव — पेळ-दॆ सदा- ।
पार- महिमन — रूप- गुणगळ — नॆनॆदु- सुखिसुति-रु ॥ १३-२७ ॥
जलग-तोडुप — नमल- बिंबव ।
मॆलुवॆ-नॆंबति — हरुष-दिंदलि ।
जलच-र प्रा — णिगळु- नित्यदि — यत्न- गैवं-तॆ ॥ हलध-रानुज — भोग्य- रसगळ ।
नॆलॆय-नरियदॆ — पूजि-सुत हं- ।
बलिसु-वरु पुरु — षार्थ-गळ स — त्कुलज-रावॆं-दु ॥ १३-२८ ॥
देव- ऋषि गं — धर्व- पितृ नर- ।
देव- मानव — दनुज- गोऽज ख- ।
रावि- मॊदला — दखिल- चेतन — भोग्य- रसगळ-नु ॥ याव-दवयव — गळॊळ-गिद्दु र ।
माव-रनु स्वी — करिप- याव- ।
ज्जीव- गणकॆ स्व — योग्य- रसगळ — निप्प-नॆंदॆं-दु ॥ १३-२९ ॥
ऒरटु- बुद्धिय — बिट्टु- लौकिक- ।
हरटॆ-गळनी — डाडि- कांचन- ।
परटि- लोष्टा — दिगळु- समवॆं — दरिदु- नित्यद-लि ॥
पुरुट- गर्भां — डोद-रनु स- ।
त्पुरुष-नॆंदॆनि — सॆल्ल-रॊळगि- ।
र्दुरुट- कर्मव — माळ्प-नॆंदडि — गडिगॆ- नॆनॆवुति-रु ॥ १३-३० ॥
भूत-ळदि जन — रुगळु- मर्मक- । मातु-गळना — डिदरॆ- सहिसदॆ । घाति-सुवरति — कोप-दिंदलि — ऎच्च-रिप तॆर-दि ॥ मातु-ळांतक — जार- हे नव- ।
नीत- चोरनॆ — ऎनलु- तन्न नि- ।
केत-नदॊळि — ट्टवर- संतै — सुवनु- करुणा-ळु ॥ १३-३१ ॥
हरिक-थामृत — सार-विदु सं- ।
तरु स-दा चि — त्तैसु-वुदु नि- ।
ष्ठुरिग-ळिगॆ पिशु — नरिग-योग्यरि — गिदनु- पेळद-लॆ ॥ निरुत- सद्भ — क्तियलि- भगव- ।
च्चरितॆ-गळ कॊं — डाडि- हिग्गुव ।
परम- भगव — द्दास-रिगॆ तिळि — सुवुदु- राह-स्य ॥ १३-३२ ॥
सत्य- संक — ल्पनु स-दा ए- ।
नित्तु-दे पुरु — षार्थ-वॆंदरि ।
दत्य-धिक सं — तोष-दलि नॆनॆ — युत्त- भुंजिपु-दु ॥
नित्य- सुख सं — पूर्ण- परम सु- ।
हृत्त-म जग — न्नाथ-विठ्ठल ।
बत्ति-सि भवां — बुधिय- चित्सुख — व्यक्ति- कॊडुति-प्प ॥ १३-३३ ॥
॥ इति श्री नामस्मरण सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥