हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
१५. श्वास सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
भार-तीशनु — घळिगॆ-यॊळु मु- ।
न्नूर- अरव — त्तुसिरु- जपगळ ।
ता र-चिसुवनु — सर्व- जीवरो — ळिद्दु- बेसर-दॆ ॥ कारु-णिक अव — रवर- साधन ।
पूर-यिसि भू — नरक- स्वर्गव ।
सेरि-सुव स — र्वज्ञ- सकले — ष्ट प्र-दायक-नु ॥ १५-१ ॥
तासि-गॊंभै — नूरु- श्वासो- ।
च्छ्वास-गळ नडॆ — सुतलि- चेतन- ।
राशि-यॊळु हग — लिरुळु- जाग्रत — नागि- नित्यद-लि ॥
ई सु-मनसो — त्तंस- लेशा- ।
यास-विल्लदॆ — पोषि-सुत मू- ।
लेश-नंघ्रि स — रोज- मूलद — लिप्प- काणिस-दॆ ॥ १५-२ ॥
अरिवु-दॊंद्या — मदॊळु- श्वासग- ।
ळॆरडु- साविर — देळु- नूरनु ।
शर स-हस्रद — मेलॆ- नानू — रहवु- द्वितिय-क्कॆ ॥ मरळि- याम — त्रयकॆ- वसु सा- ।
विरद- मेल्नू — रॆणिकॆ-यलि ह- ।
न्नॆरडु- तासिगॆ — हत्तु- साविर — दॆंटु- नूरह-वु ॥ १५-३ ॥
ऒंदु- दिनदॊळ — गनिल- निप्प- ।
त्तॊंदु- साविर — दारु-नूरु मु- ।
कुंद-नाज्ञदि — माडि- माडिसि — लोक-गळ पॊरॆ-व ॥ नॆंदु- पवनन — पॊगळु-तिरु ऎं- ।
दॆंदु- मरॆयदॆ — ई म-हिमॆ सं- ।
क्रंद-नाद्यरि — गुंटॆ- नोडलु — सर्व-कालद-लि ॥ १५-४ ॥
मूरु- लक्षद — मेलॆ विंशति ।
ईरॆ-रडु सा — विरवु- पक्षकॆ ।
आरु-लक्षद — मेलॆ- नाल्व — त्तॆंटु- साविर-वु ॥ मारु-तनु मा — सकॆ ज-पिसि सं- ।
सार- सागर — दिंद- सुजनर ।
पारु-गाणिसि — सलहु-वनु बहु — भोग-गळनि-त्तु ॥ १५-५ ॥
ऎरडु- तिंगळि — गहुदु- ऋतु भू- ।
सुररु- तिळिवुदु — श्वास- जप ह- ।
न्नॆरडु- लक्षद — मेलॆ- तॊंब — त्तारु- साह-स्र ॥ करॆसु-वुदु अय — नाह्व-यदि अरॆ- ।
वरुष- मूव — त्तॆंटु- लक्षो- ।
परि ति-ळिवदॆं — भत्तु- ऎंटु स — हस्र- कोविद-रु ॥ १५-६ ॥
वरुष-किदरि — म्मडि ज-पंगळ ।
गुरुव-रिय ता — माडि- माडिसि ।
दुरित-गळ परि — हरिसु-वनु चिं — तिसुव- सज्जन-र ॥
सुर वि-रोधिग — ळॊळगॆ- नॆलॆसि- ।
द्दर वि-दूर त — मोधि-कारिग- ।
ळिरव-रितु सोऽ — हम्मु-पासनॆ — माळ्प-नवरं-तॆ ॥ १५-७ ॥
इनितु-पासनॆ — सर्व-जीवरॊ- ।
ळनिल- देवनु — माडु-तिरॆ चिं- ।
तनॆय- माडदॆ — कंड- नीरॊळु — मुळुगि- नित्यद-लि ॥ मनॆयॊ-ळगॆ कृ — ष्णाजि-नाद्या- ।
सनदि- कुळितु वि — शिष्ट- बहु स- ।
ज्जननॆ-निसि जप — मणिग-ळॆणिसिद — रेनु- बेसर-दॆ ॥ १५-८ ॥
ओद-नोदक — वॆरडु- तेजदॊ- ।
ळैदु-ववु लय — तदभि-मानिग- ।
ळाद- शिव पव — नरु र-माधी — नत्व- वैदुव-रु ॥
ई दि-विजरॊड — गूडि- श्री मधु- ।
सूद-नन ऐ — दुवळु- ऎंदरि- ।
दाद-रदल — न्नोद-कव कॊडु — तुणुत- सुखिसुति-रु ॥ १५-९ ॥
जालि-तॊप्पल — जावि-गळु मॆ- ।
द्दाल-यदि स्वे — च्चानु-सारदि ।
पाल-गरॆवं — ददलि- लक्ष्मी — रमण- तन्नव-र ॥
कीळु- कर्मव — स्वीक-रिसि त- ।
न्नाल-यदॊळि — ट्टवर- पॊरॆव कृ- ।
पाळु- कामद — कैर-वदळ — श्याम- श्रीरा-म ॥ १५-१० ॥
शशि दि-वाकर — पाव-करॊळिह ।
असित- सित लो — हितग-ळलि शिव ।
श्वसन- भार्गवि — मूव-रॊळु श्री — कृष्ण- हयवद-न ॥ वसुधि-पार्दन — त्रिवृतु- ऎनिसी- ।
वसुम-तियॊळ — न्नोद-कानल ।
पॆसरि-निंदलि — सर्व-जीवर — सलहु-वनु करु-णि ॥ १५-११ ॥
दीप- करदलि — पिडिदु- काणदॆ ।
कूप-दॊळु बि — द्दंतॆ- वेद म- ।
होप-निषद — र्थगळ- नित्यदि — पेळु-ववरॆ-ल्ल ॥ श्रीप-वनमुख — विनुत-नमल सु- ।
रूप-गळ व्या — पार- तिळियदॆ ।
पाप- पुण्यकॆ — जीव-कर्तृ अ — कर्तृ- हरियॆं-ब ॥ १५-१२ ॥
अनिल-देवनु — वाङ्म-नोमय- ।
नॆनिसि- पावक — वरुण- संक्रं- ।
दन मु-खाद्यरॊ — ळिद्दु- भगव — द्रूप- गुणगळ-नु ॥ नॆनॆ नॆ-नॆदु उ — च्चरिसु-तलि न- ।
म्मनु स-दा सं — तैसु-वनु स- ।
न्मुनि ग-णारा — धित प-दांबुज — गोज- सुररा-ज ॥ १५-१३ ॥
पाद-वॆनिपवु — वाङ्म-नोमय- ।
पाद-रूप — द्वयग-ळॊळु प्र- ।
ह्लाद- पोषक — संक-रुषणा — ह्वयदि- नॆलॆसि-द्दु ॥ वेद- शास्त्र पु — राण-गळ सं- ।
वाद- रूपदि — मनन-गैवुत ।
मोद-मय सुख — वित्तु- सलहुव — सर्व- सज्जन-र ॥ १५-१४ ॥
गंध-वह दश — दिशॆग-ळॊळगर- ।
विंद- सौरभ — पसरि-सुत घ्रा- ।
णेंद्रि-यगळिगॆ — सुखव-नीवुत — संच-रिसुवं-तॆ ॥ इंदि-रेशन — सुगुण-गळ दै- ।
नंदि-नदि तुति — सुतनु-मोदिसु- ।
तंध- बधिर सु — मूक-नंतिरु — मंद- जनरॊड-नॆ ॥ १५-१५ ॥
श्रीर-मणनर — मनॆय- पूर्व- ।
द्वार-दल्लिह — संज्ञ- सूर्यग- ।
भार-ती पति — प्राण-नॊळगिह — लकुमि-नरयण-न ॥ सेरि- मनुजो — त्तमरु- सर्व श- ।
रीर-गत ना — राय-णन अव- ।
तार- गुणगळ — तुतिसु-तलि मो — दिपरु- मुक्तिय-लि ॥ १५-१६ ॥
प्रणव- प्रतिपा — द्यन पु-रद द- ।
क्षिण क-वाटद — लिप्प- शशि रो- ।
हिणिग-त व्या — नस्थ- कृति प्र — द्युम्न- रूपव-नु ॥ गुणग-ळनु सं — तुतिसु-तलि पितृ- ।
गण ग-दाधर — नति वि-मल प- ।
ट्टणदॊ-ळगॆ स्वे — च्छानु-सारदि — संच-रिसुतिह-रु ॥ १५-१७ ॥
अमित- विक्रम — नाल-यद प- ।
श्चिम क-वाटदि — सति स-हित सं- ।
भ्रमदि- भगव — द्गुणग-ळनॆ पॊग — ळुतलि- मोदिसु-व ॥ सुमन-सास्यनॊ — ळिप्प- पानग ।
दमन- संकरु — षणन- निज हृ- ।
त्कमल- दॊळु धे — निसुव- ऋषिगण — वैदि- सुखिसुव-रु ॥ १५-१८ ॥
स्वरम-णन गुण — रूप- सप्त- ।
स्वरग-ळिंदलि — पाडु-तिह तुं- ।
बुरुनॆ- मॊदला — दखिल- गंध — र्वरु र-मापति-य ॥ पुरद- उत्तर — बागि-लाधि-प ।
सुरप- शचिग स — मान- वायुग ।
हरित-मणि निभ — शांति-पतियनि — रुद्ध- नैदुव-रु ॥ १५-१९ ॥
गरुड- शेषम — रेंद्र- मुख पु- ।
ष्करनॆ- कडॆया — गिप्प-खिल नि- ।
र्जररु- ऊर्ध्व — द्वार-गत भा — रति उ-दानरॊ-ळु ॥ मॆरॆव- माया — वासु-देवन ।
परम- मंगळ — वयव-गळ मं- ।
दिरव-नैदि स — दा मु-कुंदन — नोडि- सुखिसुव-रु ॥ १५-२० ॥
द्वार- पंचक — पाल-करॊळिह ।
भार-ती प्रा — णांत-रात्मक- ।
मार-मणनै — रूप- तत्तद् — द्वार-दलि ब-प्प । मूरॆ-रडु विध — मुक्ति- योग्यर ।
तार-तम्यव — नरित-वर कं- ।
सारि- संसा — राब्धि- दाटिसि — मुक्त-रनु मा-ळ्प ॥ १५-२१ ॥
बॆळगि-द्हूजियु — नोळ्प-रिगॆ थळ- ।
थळिसु-तलि कं — गॊळिसु-वंददि ।
तॊळॆदु- देहव — नाम- मुद्रॆग — ळिंद-लंकरि-सि ॥
ऒलिसि- नित्य कु — तर्क- युक्तिग- ।
ळलव- भोधर — शास्त्र- मर्मव ।
तिळिय-दिह नर — बरिदॆ- इदरॊळु — शंकि-सिदरे-नु ॥ १५-२२ ॥
उदधि-यॊळगू — र्मिगळु- तोर्पं- ।
ददलि- हंसो — द्गीथ- हरि हय- ।
वदन- कृष्णा — द्यमित-नवता — रगळु- नित्यद-लि ॥ पदुम-नाभनॊ — ळिरुति-हवु स- ।
र्वद स-मस्त — प्राणि-गळ चि- ।
द्हृदय-गत रू — पंग-ळव्यव — धान-दलि बिड-दॆ ॥ १५-२३ ॥
शरधि-यॊळु मक — रादि- जीवरु ।
इरुळु- हगले — क प्र-कारदि ।
चरिसु-तनुमो — दिसुत-लिप्पं — ददि ज-गत्रय-वु ॥
इरुति-हवु जग — दीश-नुदरदि ।
करॆसु-वुदु प्रति — बिंब- नामदि ।
धरिसि-हुदु हरि — नाम-रूपं — गळनु- अनवर-त ॥ १५-२४ ॥
जननि- सौष्ठ प — दार्थ-गळ भो- ।
जनव- माडलु — गर्भ-गत शिशु ।
दिनदि-नदि अभि — वृद्धि-यैदुव — तॆरदि- जीवरि-गॆ ॥
वनज- नाभनु — सर्व-रस उं- ।
डुणिसि- संर — क्षिसुव- जाह्नवि- ।
जनक- जन्मा — द्यखिल- दोष वि — दूर- गंभी-र ॥ १५-२५ ॥
आशॆ-गॊळगा — दवनु- जनरिगॆ ।
दास-नॆनिसुव — आशॆ-यनु निज- ।
दासि- गैदिह — पुंस-गॆल्लरु — दास-रॆनिसुव-रु ॥ श्रीश-नंघ्रि स — रोज-युगळ नि- ।
रासॆ-यिंदलि — भजिसॆ- ऒलिदु र- ।
मा स-हित त — न्ननॆ कॊ-डुव करु — णा स-मुद्र ह-रि ॥ १५-२६ ॥
द्युनदि-याद्यं — तवनु- काणदॆ ।
मनुज-नेक — त्रदलि- ता म- ।
ज्जनव- गैयॆ स — मस्त- दोषदि — मुक्त-नह तॆर-दि ॥ अनघ-नमला — नंत-नंतसु- ।
गुणग-ळॊळगॊं — दे गु-णोपा- ।
सनव- गैव म — हात्म- धन्य कृ — तार्थ-नॆनिसुव-नु ॥ १५-२७ ॥
वासु-देवनु — करॆसु-वनु का- ।
र्पास- नामदि — संक-रुषणनु ।
वास-वागिह — तूल-दॊळु तं — तुगनु- प्रद्यु-म्न ॥ वास-रूपनि — रुद्ध- देवनु ।
भूष-णनु ता — नागि- तोर्प प- ।
रेश- नारा — यणनु- सर्वद — मान्य- मानद-नु ॥ १५-२८ ॥
ललनॆ-यिंदॊड — गूडि- चैलग- ।
ळॊळगॆ- ओत — प्रोत- रूपदि ।
नॆलॆसि-हनु चतु — रात्म-क जग — न्नाथ-विठ्ठल-नु ॥
छळि बि-सिलु मळॆ — गाळि-यिंदरॆ- ।
घळिगॆ- बिडदलॆ — काव-नॆंदरि- ।
दिळॆयॊ-ळर्चिसु — तिरु स-दा स — र्वांत-रात्मक-न ॥ १५-२९ ॥
॥ इति श्री श्वास सन्धि संपूर्णं ॥॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥