HKS 18. Sarva Svatantrya (Kreedavilaasa) Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथाम्रुतसर

१८. सर्व स्वतंत्र्य (क्रीडाविलास) सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

श्रीनि-वासन — चरितॆ-गळ पर- ।

मानु- रागदि — बॆसगॊ-ळलु मुनि- ।

शौन-काद्यरि — गरुहि-दनु सू — तार्य- दयदिं-द ॥ सं. सू. ॥

पचन- भक्षण — गमन- भोजन ।

वचन- मैथुन — शयन- वीक्षण- ।

अचल-नाचल — न प्र-यत्नवु — साध्य-वे जन-कॆ ॥

शुचि स-दन दय — दिंद- जीवर ।

निचय-दॊळु ता — निंतु- माडुव ।

नुचित- नोचित — कर्म-गळनॆं — दरिदु- कॊंडा-डु ॥ १८-१ ॥

विष्ट-रश्रव — देह-दॊळगॆ प्र- ।

विष्ट-नागि नि — रंत-रदि बहु- ।

चेष्टॆ-गळ मा — डुतिरॆ- कंडु स — जीवि-यॆनुतिह-रु ॥ हृष्ट-रागुव — रवन- नोडि क- ।

निष्ठ-रॆल्लरु — सेवॆ- माळ्परु ।

बिट्ट- क्षणदलि — कुणप-नॆंदरि — ददनु-पेक्षिप-रु ॥ १८-२ ॥

क्रीडॆ-गोसुग — अवर-वर गति ।

नीड-लोसुग — देह-गळ कॊ- ।

ट्टाडु-वनु स्वे — च्छॆयलि- ब्रह्मे — शाद्य-रॊळु पॊ-क्कु ॥ माडु-वनु व्या — पार- बहु विध ।

मूढ- दैत्यरॊ — ळिद्दु- प्रतिदिन ।

केडु- लाभग — ळिल्ल-विदरिं — दाव- कालद-लि ॥ १८-३ ॥

अक्ष-रेड्यनु — ब्रह्म- वायु- ।

त्र्यक्ष- सुरप सु — रासु-रर अ- ।

ध्यक्ष-नागि — द्दॆल्ल-रॊळु व्या — पार- माडुति-ह ॥

अक्ष-यनु स — त्यात्म-क परा- ।

पेक्षॆ-यिल्लदॆ — सर्व-रॊळगॆ वि- ।

लक्ष-णनु ता — नागि- लोकव — रक्षि-सुतलि-प्प ॥ १८-४ ॥

श्री स-रस्वति — भार-ती गिरि- ।

जा श-ची रति — रोहि-णी सं- ।

ज्ञा श-त सुरू — पाद्य-खिळ स्त्री — यरॊळु- स्त्रीरू-प ॥ वास-वागि — द्दॆल्ल-रिगॆ वि- ।

श्वास- तन्नलि — कॊट्टु- अवरभि- ।

लाषॆ-गळ पू — रैसु-तिप्पनु — योग्य-तॆगळरि-तु ॥ १८-५ ॥

कोलु- कुदुरॆय — माडि- आडुव ।

बाल-कर तॆर — नंतॆ- लकुमी- ।

लोल- स्वातं — त्रिय गु-णव ब्र — ह्माद्य-रॊळगि-ट्टु ॥ लीलॆ- गैवनु — तन्न-वरिगनु- ।

कूल-वागि — द्दॆल्ल- कालदि ।

खूळ-रिगॆ प्रति — कूल-नागिह — प्रकट-नागद-लॆ ॥ १८-६ ॥

सौप-रणि वर — वहन- नाना- ।

रूप- नामदि — करॆसु-तवर स- ।

मीप-दल्लि — द्दखिळ- व्यापा — रगळ- माडुव-नु ॥ पाप- पुण्यग — ळॆरडु- अवर स्व- ।

रूप-गळननु — सरिसि- उणिप प- ।

रोप-कारि प — रेश- पूर्णा — नंद- ज्ञानघ-न ॥ १८-७ ॥

अहर- निद्रा — मैथु-नगळह- ।

रहर- बयसि ब — ळलुव- लक्ष्मी- ।

महित-न महा — महिमॆ-गळनॆं — तरिव- नित्यद-लि ॥ अहिक- सौख्यव — मरॆदु- मनदलि ।

ग्रहिसि- शास्त्रा — र्थगळ- परमो- ।

त्सहदि- कॊंडा — डुतलि- मैमरॆ — दवरि-गल्लद-लॆ ॥ १८-८ ॥

बंध- मोक्ष — प्रदन- ज्ञानवु ।

मंद-मतिगळि — गॆंतु- दॊरॆवुदु ।

बिंदु-मात्र सु — खानु-भव प — र्वतकॆ- सम दुः-ख ॥

ऎंदु- तिळयद — लन्य- दैवग- ।

ळिंद- सुखवा — पेक्षि-सुवरु मु- ।

कुंद-नारा — धनॆय- बिट्टव — गुंटॆ- मुक्तिसु-ख ॥ १८-९ ॥

राज- तन्ना — मात्य- करुणदि ।

नैज- जनरिगॆ — कॊट्टु- कार्य नि- ।

योजि-सुत मा — नाप-मानव — माळ्प- तॆरदं-तॆ ॥ श्रीज-नार्दन — सकल-रॊळगप- ।

राजि-तनु ता — नागि- सर्वप्र- ।

योज-नव मा — डिसुत- माडुव — फलकॆ- गुरिमा-डि ॥ १८-१० ॥

वासु-देव स्व — तंत्र-व सरो- ।

जास-नाद्यम — रा सु-ररिगिय- ।

लोसु-गर्धव — तॆगॆद-दरॊळ — र्धव च-तुर्भा-ग- । गैसि- ऒंदनु — शतवि-ध द्विपं- ।

चाश-ताब्ज ज — गष्ट- चत्वा- ।

रिंश-दनिलनि — गित्तु- वाणी — भार-तीग-र्ध ॥ १८-११ ॥

द्वितिय- भागव — तॆगॆदु- कॊंडद- ।

शत वि-भागव — माडि- ता विं- ।

शति उ-मेशनॊ — ळिट्टु- इंद्रनॊ — ळैद-धिक ह-त्तु ॥ रतिप-नॊळगिनि — तिट्ट-खिळ दे- ।

वतॆग-ळॊळगी — रैदु- जीव- ।

प्रतति-यॊळु दश — वैद-धिक ना — ल्वत्तु- दैत्यरॊ-ळु ॥ १८-१२ ॥

कारु-णिक स्वा — तंत्रि-यत्वव ।

मूरु-विध गै — सॆरडु- तन्नॊळु ।

नारि-गॊंदनु — कॊट्टु- स्वातं — त्रियव- सर्वरि-गॆ ॥ धारु-णिप त — न्नणुग-रिगॆ व्या- ।

पार- कॊट्टु गु — णागु-णगळ वि- ।

चार- माडुव — तॆरदि- त्रिगुण — व्यक्ति-यनॆ मा-ळ्प ॥ १८-१३ ॥

पुण्य- कर्मकॆ — सहय-वागुव ।

धन्य-रिगॆ क — ल्यादि- दैत्यर- ।

पुण्य- फलगळ — नीव- दिविजर — पाप- कर्मफ-ल ॥

अन्य- कर्मव — माळ्प-रिगॆ अनु- ।

गुण्य- जनरिगॆ — कॊडुव- बहु का- ।

रुण्य- सागर — नीतॆ-रदि भ — क्तरनु- संतै-प ॥ १८-१४ ॥

निरुप-मगॆ सम — रुंटु- ऎंदु- ।

च्चरिसु-वव त — द्भक्त-रॊळु म- ।

त्सरिसु-वव गुण — गुणिग-ळिगॆ भे — दगळ- पेळुव-व ॥ दर सु-दर्शन — ऊर्ध्व- पुंड्रव ।

धरिसि-दवरॊळु — द्वेषि-सुव हरि- ।

चरितॆ-गळ के — ळदलॆ- लोगर — वार्तॆ- केळुव-व ॥ १८-१५ ॥

एव-मादि — द्वेष-वुळ्ळ कु- ।

जीव-रॆल्लर — दैत्य-रॆंबरु ।

कोवि-दर वि — ज्ञान- कर्मव — नोडि- निंदिप-रु ॥

देव- देवन — बिट्टु- याव- ।

ज्जीव- परियं — तरदि- तुच्छर ।

सेवॆ-यिंदुप — जीवि-सुवर — ज्ञान-कॊळगा-गि ॥ १८-१६ ॥

काम- लोभ — क्रोध- मद हिं- ।

साम-यानृत — दंभ- कपट त्रि- ।

धाम-नवता — रगळ- भेद अ — पूर्ण- सुख ब-द्ध ॥ आमि-षनिवे — दितव-भोज्यति- ।

ताम-सान्नव — नुंब- तामस- ।

श्रीम-दांधर — संग-दिंदलि — तमवॆ- वर्धिपु-दु ॥ १८-१७ ॥

ज्ञान- भक्ति वि — रक्ति- विनय पु- ।

राण- शास्त्र — श्रवण- चिंतन ।

दान- शम दम — यज्ञ- सत्या — हिंसॆ- भूतद-या ॥ ध्यान- भगव — न्नाम- कीर्तन ।

मौन- जप तप — वृत- सुतीर्थ- ।

स्नान- मंत्र — स्तोत्र- वंदन — सज्ज-नर गुण-वु ॥ १८-१८ ॥

लेश- स्वातं — त्रिय गु-णवनु प्र- ।

वेश-गैसिद — कार-णदि गुण- ।

दोष-गळु तो — रुववु- सत्वा — सत्व- जीवरॊ-ळु ॥

श्वास- भोजन — पान- शयन वि- ।

लास- मैथुन — गमन- हर्ष ।

क्लेष- स्वप्न सु — षुप्ति- जाग्रतॆ — यहवु- चेतन-कॆ ॥ १८-१९ ॥

अर्ध- तन्नॊळ — गिरिसि- उळिदॊं- ।

दर्ध-व विभा — गव ग-यिसि वृजि- ।

नार्द-ननु पू — र्वदलि- स्वातं — त्रियव- कॊट्टं-तॆ ॥ स्वर्धु-नीपित — कॊडुव-वर सुख- ।

वृद्धि-गोसुग — ब्रह्म- वायु क- ।

पर्दि- मॊदला — दवरॊ-ळिद्दव — Yओग्य-तॆयनरि-तु ॥ १८-२० ॥

हलध-रानुज — माळ्प- कृत्यव ।

तिळिय-दाहं — कार-दिंदॆ- ।

न्नुळिदु- विधियु नि — षेध- पात्ररु — इल्ल-वॆंबुव-गॆ ॥ फलग-ळ द्वय — कॊडुव- दैत्यर ।

कलुष- कर्मव — बिट्टु- पुण्यव ।

सॆळॆदु- तन्नॊळ — गिट्टु- क्रमदिं — कॊडुव- भकुतरि-गॆ ॥ १८-२१ ॥

तोय- जाप्तन — किरण- वृक्ष- ।

च्छाय- वर्तिसु — वंतॆ- कमलद- ।

ळाय-ताक्षनु — सर्व-रॊळु व्या — पिसिद- कारण-दि ॥

हेय- सद्गुण — कर्म- तोर्पवु ।

न्याय- कोविद — रिगॆ नि-रंतर ।

श्रीय-रस स — र्वोत्त-मोत्तम — नॆंदु- पेळुव-रु ॥ १८-२२ ॥

मूल-कारण — प्रकृति-यॆनिप म- ।

हाल-कुमि ऎ — ल्लरॊळ-गिद्दु सु- ।

लीलॆ-गैयुत — पुण्य- पापग — ळर्पि-सळु पति-गॆ ॥ पाल-गडलॊळु — बिद्द- जल की- ।

लाल-वॆनिपुदॆ — जीव-कृत क- ।

र्माळि- तद्वतु — शुभवु- ऎनिपवु — ऎल्ल- कालद-लि ॥ १८-२३ ॥

ज्ञान- सुख बल — पूर्ण- विष्णु वि- ।

गेनु- माळ्पुवु — त्रिगुण- कार्य कृ- ।

शानु-विन कृमि — कविदु- भक्षिपु — दुंटॆ- लोकदॊ-ळु ॥

ई न-ळिनजां — डवनु- ब्रह्मे- ।

शान- मुख्य सु — रासु-रर का- ।

लान-लनवोल् — नुंगु-वनिगी — पाप-गळ भय-वॆ ॥ १८-२४ ॥

मोद- शिर द — क्षिण सु-पक्ष प्र- ।

मोद- उत्तर — पक्ष-वॆंदु ऋ- ।

गादि- श्रुतिगळु — पेळु-ववु आ — नंद-मय हरि-गॆ ॥

मोद- वैषिक — सुख वि-षेश प्र- ।

मोद- पार — त्रिक सु-खप्रद- ।

नाद- कारण — दिंद- मोद प्र — मोद-नॆनिसिद-नु ॥ १८-२५ ॥

ऎंदि-गादरु — वृष्टि-यिंद व- ।

सुंध-रॆयॊळि — प्पखिळ- जलदिं- ।

सिंधु- वृद्धिय — नैदु-वुदॆ बा — रदिरॆ- बरिदहु-दॆ ॥ कुंदु- कॊरतॆग — ळिल्ल-दिह स्वा- ।

नंद- संपू — र्ण स्व-भावगॆ ।

बंदु- माडुवु — देनु- कर्मा — कर्म- जन्यफ-ल ॥ १८-२६ ॥

देह- वृक्षदॊ — ळॆरडु- पक्षिग- ।

ळीह-वॆंदिगु — बिडदॆ- परम- ।

स्नेह-दिंदलि — कर्म-ज फलग — ळुंब- जीवख-ग ॥ श्रीह-रियु ता — सार-भोक्तनु ।

द्रॊहि-सुव क — ल्यादि- दैत्य स- ।

मूह-कीव वि — शिष्ट- पापव — क्लेश-वॆल्लरि-गॆ ॥ १८-२७ ॥

द्युमणि- किरणव — कंड- मात्र-दि ।

तिमिर-वोडुव — तॆरदि- लक्ष्मी- ।

रमण- नोडिद — मात्र-दिंदघ — नाश-वैदुवु-दु ॥

कमल- संभव — मुख्य- रॆल्ला ।

सुमन-सरॊळिह — पाप- राशिय ।

अमर- मुखनं — ददलि- भस्मव — माळ्प- हरि ता-नु ॥ १८-२८ ॥

चतुर- शतभा — गदि द-शांशदॊ- ।

ळितर- जीवरि — गीव- लेशव ।

दितिज- देव — र्कळिगॆ- कॊडुव वि — शिष्ट- दुःख सु-ख ॥

मति वि-हीन — प्राणि-गळिगा- ।

हुतिय- सुख मृति — दुःख-वर यो- ।

ग्यतॆय-नरितु पि — पील- मशका — दिगळि-गीव ह-रि ॥ १८-२९ ॥

नित्य- निरयां — धाख्य- कूपदि ।

भृत्य-रिंदॊड — गूडि- पुनरा- ।

वर्ति- वर्जित — लोक-वैदुव — कलियु- द्वेषद-लि ॥

सत्य-लोका — धिप च-तुर्मुख ।

तत्त्व-देव — र्कळ स-हित निज- ।

मुक्ति-यैदुव — हरिप-दाब्जव — भजिसि- भकुतिय-लि ॥ १८-३० ॥

विधि नि-षेधग — ळॆरडु- मरॆय-दॆ ।

मधुवि-रोधिय — पाद-कर्पिसु ।

अदिति- मक्कळि — गीव- पुण्यव — पाप- दैत्यरि-गॆ ॥ सुदरु-शनधर — गीय-दिरॆ बं- ।

दॊदगि- ऒय्वरु — पुण्य- दैत्यरु ।

अधिप-रिल्लद — वृक्ष-गळ फल — दंतॆ- नित्यद-लि ॥ १८-३१ ॥

तिलज- कश्मल — त्यजिसि- दीपवु ।

तिळिय- तैलव — ग्रहिसि- मंदिर- ।

दॊळगॆ- व्यापिसि — इप्प- कत्तलॆ — भंगि-सुव तॆर-दि ॥

कलि मॊ-दलुगॊं — डखिळ- दानव- ।

कुलज-रनुदिन — माळ्प- पुण्यज- ।

फलव- ब्रह्मा — द्यरिगॆ- कॊट्ट — ल्लल्लॆ- रमिसुव-नु ॥ १८-३२ ॥

इद्द-लॆयु नि — त्यदलि- मेध्या- ।

मेध्य- वस्तुग — ळुंडु- लोकदि ।

शुद्ध- शुचियॆं — दॆनिसि-कॊंबनु — वेद-स्मृतिगळॊ-ळु ॥ बुद्धि- पूर्वक — वागि- विबुधरु ।

श्रद्धॆ-यिंद — र्पिसिद- कर्म नि- ।

षिद्ध-वादरु — सरियॆ- कैकॊं — डुद्ध-रिसुति-प्प ॥ १८-३३ ॥

ऒडॆय-रिद्द व — नस्थ-फलगळ ।

बडिदु- तिंबुव — रुंटॆ- कंडरॆ ।

हॊडॆदु- बिसुडुव — रॆंब- भयदिं — नोड-लंजुव-रु ॥

बिडदॆ- माडुव — कर्म-गळु मनॆ- ।

मडदि- मक्कळु — बंधु-गळु का- ।

रॊडल- नाळुग — ळॆंद-मात्रद — लोडु-ववु दुरि-त ॥ १८-३४ ॥

ज्ञान- कर्में — द्रियग-ळिंदे- ।

नेनु- माडुव — कर्म-गळ ल- ।

क्ष्मीनि-वासनि — गर्पि-सुतलिरु — काल- कालद-लि ॥ प्राण-पति कै — कॊंडु- नाना- ।

योनि-यैदिस — नॊम्मॆ- कॊडदिरॆ ।

दान-वरु सॆळॆ — दॊय्व-रॆल्ला — पुण्य- राशिग-ळ ॥ १८-३५ ॥

श्रुतियु- स्मृत्य — र्थव ति-ळिदहं- ।

मति वि-शिष्टनु — कर्म- माडलु ।

प्रति ग्र-हिसनव — पाप-गळ कॊडु — तिप्प- नित्य ह-रि ॥ चतुर-दश भुव — नाधि-पति क्रतु ।

कृतकृ-तघ्न नि — याम-कनु ऎनॆ ।

मतिय- भ्रंश प्र — माद- संकट — दोष-ववगि-ल्ल ॥ १८-३६ ॥

वारि-जासन — मुख्य-राज्ञा- ।

धार-कनु स — र्व स्व-तंत्र र- ।

मार-मणनॆं — दरिदु- इष्टा — निष्ट- कर्मफ-ल ॥ सार- भोक्तनि — गर्पि-सलु स्वी- ।

कार- माडुव — पाप- फलव कु- ।

बेर- नामक — दैत्य-रिगॆ कॊ — ट्टवर- नोयिसु-व ॥ १८-३७ ॥

क्रूर- दैत्यरॊ — ळिद्दु- ताने ।

प्रेरि-सुव का — रणदि- हरिगॆ कु- ।

बेर-नॆंबरु — ऎल्ल-रॊळु नि — र्गतग-तिग निरु-त ॥ सूरि-गम्यगॆ — सूर्य-नॆंबरु ।

दूर- शोकगॆ — शुक्र- लिंगश- ।

रीर-विल्लद — कार-णदलि अ — काय-नॆनिसुव-नु ॥ १८-३८ ॥

पेळ-लॊशव — ल्लद म-हा पा- ।

पाळि-गळनॊं — दे क्ष-णदि नि- ।

र्मूल-गैसलि — बेकु- ऎंबव — गॊंदॆ- हरिना-म ॥

नालि-गॆयॊळु — ळ्ळवगॆ- परम कृ- ।

पाळु- कृष्णनु — कैवि-डिदु त- ।

न्नाल-यदॊळि — ट्टनुदि-नदला — नंद- बडिसुव-नु ॥ १८-३९ ॥

रोगि- औषध — पथ्य-दिंद नि- ।

रोगि-यॆनिसुव — तॆरदि- श्रीम- ।

द्भाग-वत सु — श्रवण- गैदु भ — वाख्य- रोगव-नु ॥ नीगि- शब्दा — द्यखिळ- विषय नि- ।

योगि-सु दशें — द्रियव-निलनॊळु ।

श्रीगु-रुजग — न्नाथ-विठ्ठल — प्रीत-नागुव-नु ॥ १८-४० ॥

॥ इति श्री सर्व स्वतंत्र्य (क्रीडाविलास) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्रीः ॥

Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥