हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
१९. बिंबोपासन सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
मुक्त- बिंबनु — तुरिय- जीव- ।
न्मुक्त- बिंबनु — विश्व- भव सं- ।
सक्त- बिंबनु — तैज-सनु अ — सृज्य-रिगॆ प्रा-ज्ञ ॥ शक्त-नादरु — सरियॆ- सर्वो ।
द्रिक्त- महिमनु — दुःख- सुखगळ ।
व्यक्त- माडद — लिप्प- कल्पां — तदलि- बप्परि-गॆ ॥ १९-१ ॥
अन्न- नामक — प्रकृति-यॊळगा-।
च्छिन्न-नागिह — प्राज्ञ- नामदि ।
सॊन्नॊ-डल मॊद — लाद-वरॊळ — न्नाद- तैजस-नु ॥ अन्न-दांबुज — नाभ- विश्वनु ।
भिन्न- नाम — क्रियॆग-ळिंदलि ।
तन्नॊ-ळगॆ ता — रमिप- पूर्णा — नंद- ज्ञानघ-न ॥ १९-२ ॥
बूदि-यॊळगड — गिप्प-नलनो ।
पादि- चेतन — प्रकृति-यॊळग ।
न्नाद- अन्ना — ह्वयदि- करॆसुव — ब्रह्म- शिव रू-पि ॥ ओद-न प्रद — विष्णु- परमा- ।
ह्लाद-वीवुत — तृप्ति- बडिसुव- ।
गाध- महिमन — चित्र- कर्मव — बण्णि-सुवना-व ॥ १९-३ ॥
नाद- भोजन — शब्द-दॊळु बिं- ।
दोद-नोदक — दॊळगॆ- घोषनु- ।
वाद-दॊळु शां — ताख्य- जठरा — ग्नियॊळ-गिरुति-प्प ॥ वैदि-क सु श — ब्ददॊळु- पुत्र स- ।
होद-रानुग — रॊळति- शांतन ।
पाद- कमलन — वरत- चिंतिसु — ई प-रियलिं-द ॥ १९-४ ॥
वेद-मानि र — मानु-पास्य गु- ।
णोद-धि गुण — त्रय वि-वर्जित ।
स्वोद-रस्थित — निखिळ- ब्रह्मां — डाद्वि-लक्षण-नु ॥ साधु- सम्मत — वॆनिसु-तिह निषु- ।
सीद- गणपतॆ — ऎंब- श्रुतिप्रति- ।
पादि-सुवुदन — वरत-वन गुण — प्रांत-गाणद-लॆ ॥ १९-५ ॥
करॆसु-वनु मा — यार-मण ता- ।
पुरुष- रूपदि — त्रिस्थ-ळगळॊळु ।
परम- सत्पुरु — षार्थ-द मह — त्तत्त्व-दॊळगि-द्दु ॥ सरसि-ज भवां — डस्थि-त स्त्री- ।
पुरुष- तन्मा — त्रगळ- एको- ।
त्तर द-शेंद्रिय — गळ म-हाभू — तगळ- निर्मिसि-द ॥ १९-६ ॥
ई श-रीरग — पुरुष- त्रिगुणदि ।
श्री स-हित ता — निद्दु- जीवरि- ।
गासॆ- लोभ — ज्ञान- मद म — त्सर कु-मोह क्षु-धा ॥ हास- हरुष सु — षुप्ति- स्वप्न पि- ।
पास- जाग्रति — जन्म- स्थिति मृति ।
दोष- पुण्य ज — याप-जय द्वं — द्वगळ- कल्पिसि-द ॥ १९-७ ॥
त्रिविध- गुणमय — देह- जीवकॆ ।
कवच-दंददि — तॊडिसि- कर्म- ।
प्रवह-दॊळु सं — चार- माडिसु — तिप्प- चेतन-र ॥
कविसि- माया — रमण- मोहव ।
भवकॆ- कारण — नागु-वनु सं- ।
श्रवण- मननव — माळ्प-रिगॆ मो — चकनॆ-निसुति-प्प ॥ १९-८ ॥
साश-नाह्वय — स्त्री पु-रुषरॊळु ।
वास-वागिह — नॆंद-रिदु वि- ।
श्वास- पूर्वक — भजिसि- तोषिसु — स्वाव-रोत्तम-र ॥ क्लेश-नाशन — अचल-गळॊळु प्र- ।
काशि-सुतलिह — नशन- रूपो- ।
पास-नव मा — ळ्परिगॆ- तोर्पनु — तन्न- निजरू-प ॥ १९-९ ॥
प्रकर-दंतर — चिंति-सुवदी ।
प्रकृति-यॊळु वि — श्वादि- रूपव ।
प्रकट- माळ्पॆनु — यथम-तीयॊळु — गुरु कृ-पाबल-दि ॥ मुकुर- निर्मित — सदन-दॊळु पॊगॆ ।
स्वकिय- रूपव — कांब- तॆरदलि ।
अकुटि-लात्म च — राच-रदि स — र्वत्र- तोरुव-नु ॥ १९-१० ॥
परि-च्छेद — त्रय प्र-कृतियॊळ- ।
गिरुति-हनु वि — श्वादि- रूपव ।
धरिसि- आत्मा — दि त्रि-रूपव — नीष-णत्रय-दि ॥
सुरुचि- ज्ञाना — त्म स्व-रूपदि ।
तुरिय- नामक — वासु-देवन ।
स्मरिसु- मुक्ति सु — ख प्र-दायक — नीत-नहुदॆं-दु ॥ १९-११ ॥
कमल- संभव — जनक- जड जं- ।
गमरॊ-ळगॆ नॆलॆ — सिद्दु- क्रम व्यु- ।
त्क्रमदि- कर्मव — माडि- माडिसु — तिप्प- बेसर-दॆ ॥
क्षम- क्षाम स — मीह-नाह्वय ।
सुमन-सासुर — रॊळगॆ- अहं ।
मम न-मम ऎं — दी उ-पासनॆ — ईव- प्रांतद-लि ॥ १९-१२ ॥
ई स-मस्त ज — गत्तु- ईशा- ।
वास्य-वॆनिपुदु — कार्य- रूपवु ।
नाश-वादरु — नित्य-वे सरि — कार-ण प्रकृ-ति ॥ श्रीश-गॆ जड — प्रतिमॆ-यॆनिपु-दु ।
मास-दॊम्मॆगु — सन्नि-धान-वु ।
वास-वागिह — नित्य- साल — ग्राम-दोपा-दि ॥ १९-१३ ॥
एक-मेवा — द्वितिय- रूपा- ।
नेक- जीवरॊ — ळिद्दु- ता प्र- ।
त्येक- कर्मव — माडि- मोहिसु — तिप्प- तिळिसद-लॆ ॥
मूक- बधिरां — धादि- नामक ।
ई क-ळेवर — दॊळगॆ- करॆसुव ।
माक-ळत्रन — लौकि-क महा — महिमॆ-गेनॆं-बॆ ॥ १९-१४ ॥
लोक- बंधु — र्लोक-नाथ वि- ।
शोक- भक्तर — शोक-नाशन- ।
श्रीक-रार्चित — सोक-दंदद — लिप्प- सर्वरॊ-ळु ॥ साकु-वनु स — ज्जनर- परम कृ- ।
पाक-रेश पि — नाकि- सन्नुत ।
स्वीक-रिसुवा — नतरु- कॊट्ट स — मस्त- कर्मग-ळ ॥ १९-१५ ॥
आहि-त प्रति — मॆगळॆ-निसुववु ।
देह-गेहा — पत्य- सतिधन ।
लोह- काष्ठ शि — ला मृ-दात्मक — वाद- द्रव्यग-ळु ॥ स्नेह-दलि पर — मात्म-नॆनगि- ।
त्तीह-नॆंदरि — दनुदि-नदि स- ।
म्मोह-कॊळगा — गदलॆ- पूजिसु — सर्व-नामक-न ॥ १९-१६ ॥
श्रीत-रुणि व — ल्लभगॆ- जीवरु ।
चेत-न प्रति — मॆगळु- ओत- ।
प्रोत-नागि — द्दॆल्ल-रॊळु व्या — पार- माडुति-ह ॥
होत- सर्वें — द्रियग-ळॊळु सं- ।
प्रीति-यिंदुं — डुणिसि- विषय नि- ।
वात- देशग — दीप-दंदद — लिप्प- निर्भय-दि ॥ १९-१७ ॥
भूत- सोकिद — मान-वनु बहु- ।
मात-नाडुव — तॆरदि- महद- ।
द्भूत- विष्ण्वा — वेश-दिंदलि — वर्ति-पुदु जग-वु ॥ कैत-वोक्तिग — ळल्ल- शेष फ- ।
णात- पत्रगॆ — जीव- पंचक- ।
व्रात-वॆंदिगु — भिन्न- पादा — ह्वयदि- करॆसुवु-दु ॥ १९-१८ ॥
दिवियॊ-ळिप्पवु — मूरु- पादग- ।
ळवनि-यॊळगिह — दॊंदु- ई विध ।
कविभि-रीडित — करॆसु-व चतु — ष्पातु- तानॆं-दु ॥
इवन- पाद च — तुष्ट-यगळनु – ।
भवकॆ- तंदु नि — रंत-रदि उ- ।
द्धवन- सख स — र्वांत-रात्मक — नॆंदु- स्मरिसुति-रु ॥ १९-१९ ॥
वंश- बागलु — बॆलॆय- कंडु न- ।
रांस-दलि शो — भिपुदु- बागद ।
वंश- पाशदि — कट्टि- एरुव — डॊंब- मस्तक-कॆ ॥
कंस- मर्दन — दास-रिगॆ नि- ।
स्संश-यदि वं — दिसदॆ- ना वि- ।
द्वांस-नॆंदा — हंक-रिसॆ भव — गुणदि- बंधिसु-व ॥ १९-२० ॥
ज्Yओति- रूपगॆ — प्रतिमॆ-गळु सां- ।
केति-का रो — पित सु-पौरुष- ।
धातु- सप्तक — धैर्य- शौर्यौ — दार्य- चातु-र्य ॥
मातु- मान म — हत्व- सहन सु- ।
नीति- निर्मल — देश- ब्राह्मण – ।
भूत- पंचक — बुद्धि- मॊदला — दिंद्रि-यस्था-न ॥ १९-२१ ॥
जीव-राशियॊ — ळमृत- शाश्वत । स्थाव-रगळॊळु — स्थाणु- नामक । आव-कालद — लिप्प- अजिता — नंत-नॆंदॆनि-सि ॥ गोवि-दांपति — गाय-नप्रिय ।
साव-यव सा — हस्र- नाम प- ।
राव-रेश प — वित्र- कर्म वि — पश्चि-त सुसा-म ॥ १९-२२ ॥
माध-वन पू — जार्थ-वागि नि- ।
षेध- कर्मव — माडि- धन सं- ।
पादि-सलु स — त्पुण्य- कर्मग — ळॆनिसि-कॊळुतिह-वु ॥ स्वोद-रंभर — णार्थ- नित्यदि ।
साधु- कर्मव — माडि-दरु सरि- ।
यैदु-वनु दे — हांत-रव सं — देह-विनिति-ल्ल ॥ १९-२३ ॥
अपग-ताश्रय — ऎल्ल-रॊळगि- ।
द्दुपम-नॆनिपा — नुपम- रूपनु ।
शफर-केतन — जनक- मोहिप — मोह-कन तॆर-दि ॥ तपन- कोटि स — म प्र-भासित ।
वपुवॆ-निप कृ — ष्णादि- रूपक ।
विपग-ळंतुं — डुणिप- सर्व — त्रदलि- नॆलॆसि-द्दु ॥ १९-२४ ॥
अडवि-यॊळु बि — त्तदलॆ- बॆळॆदिह ।
गिडद- मूलिकॆ — सकल- जीवर ।
ऒडलॊ-ळिप्पा — मयव- परिहर — गैसु-वंदद-लि ॥
जडज- संभव — जनक- त्रिजग- ।
द्वडॆय- संतै — सॆनलु- अवरि- ।
द्दॆडॆगॆ- बंदॊद — गुवनु- भक्तर — भिडॆय- मीरद-लॆ ॥ १९-२५ ॥
श्रीनि-केतन — तन्न-वर दे- ।
हानु-बंधिग — ळंतॆ- अव्यव- ।
धान-दलि नॆलॆ — सिप्प- सर्वद — सर्व- कामद-नु ॥
एनु- कॊट्टुद — भुंजि-सुत म- ।
द्दानॆ-यंददि — संच-रिसु म- ।
त्तेनु- बेडदॆ — भजिसु-तिरु अव — नंघ्रि- कमलग-ळ ॥ १९-२६ ॥
बेड-दलॆ कॊडु — तिप्प- सुररिगॆ ।
बेडि-दरॆ कॊडु — तिहनु- नररिगॆ ।
बेडि- बळलुव — दैत्य-रिगॆ कॊड — नॊम्मॆ- पुरुषा-र्थ ॥ मूढ-रनुदिन — धर्म- कर्मव ।
माडि-दरु सरि — अहिक- फलगळ ।
नीडि- उन्म — त्तरनु- माडि म — हानि-रयवी-व ॥ १९-२७ ॥
तरणि- सर्व — त्रदलि- किरणव ।
हरहि- तत्त — द्वस्तु-गळननु- ।
सरिसि- अदरद — रंतॆ- छायव — कंगॊ-ळिप तॆर-दि ॥ अरिध-रेजा — नेज- जगदॊळ- ।
गिरुव- छाया — तपनॆ-निसि सं- ।
करुष-णाह्वय — अवर-वर यो — ग्यतॆग-ळंति-प्प ॥ १९-२८ ॥
ई वि-धदि स — र्वत्र- लक्ष्मी- ।
भूव-नितॆयर — कूडि- तन्न क- ।
ळा वि-शेषग — ळॆल्ल- कडॆयलि — तुंबि- सेव्यत-म ॥
सेव-कनु ता — नॆनिसि- माया- ।
देवि-रमण प्र — विष्ट- रूपक ।
सेवॆ- माळ्प श — रण्य- शाश्वत — करुणि- कमला-क्ष ॥ १९-२९ ॥
प्रणव- कारण — कार्य- प्रतिपा- ।
द्यनु प- रात्पर — चेत-नाचे- ।
तन वि-लक्षण — नंत- सत्क — ल्याण- गुणपू-र्ण ॥ अनुप-मनुपा — सित गु-णोदधि ।
अनघ- अजिता — नंत- निष्किं- ।
चन ज-नप्रिय — निर्वि-कार नि — राश्र-या व्य-क्त ॥ १९-३० ॥
गोप-भीय भ — वांध-कारकॆ ।
दीप-वट्टिगॆ — सकल- सुख सद- ।
नोप-रिग्रह — वॆनिसु-तिप्पुदु — हरिक-थामृत-वु ॥
गोप-ति जग — न्नाथ-विठल स- ।
मीप-दलि नॆलॆ — सिद्दु- भक्तर ।
नाप-वर्गर — माडु-वनु मह — दुःख- भवदिं-द ॥ १९-३१ ॥
॥ इति श्री बिंबोपासन सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥