हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथाम्रुतसर
२०. गुणतारतम्य सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
श्रीध-रा दु — र्गा म-नोरम ।
वेध- मुख सुम– नस ग-ण समा- ।
राधि-त पदां — भोज- जगदं — तर्ब-हिर्व्या-प्त ॥
गोध-र फणि व — रात- पत्र नि- ।
षेध- दूर वि — चित्र- कर्म सु- ।
भोध- सुखमय — गात्र- परम प — वित्र- सुचरि-त्र ॥ २०-१ ॥
नित्य- निर्मल — निगम-वेद्यो- ।
त्पत्ति- स्थिति लय — दोष- वर्जित ।
स्तुत्य- पूज्य प्र — सिद्ध- मुक्ता — मुक्त- गणसे-व्य ॥ सत्य-काम श — रण्य- शाश्वत ।
भृत्य- वत्सल — भयनि-वारण ।
अत्य-धिक सं — प्रियत-म जग — न्नाथ- मां पा-हि ॥ २०-२ ॥
परम- पुरुषन — रूप- गुणवनु- ।
सरिसि- कांबळु — प्रवह-दंददि ।
निरुप-मळु नि — र्दुष्ट- सुख सं — पूर्ण-ळॆनिसुव-ळु ॥ हरिगॆ- धाम — त्रयवॆ-निसि आ- ।
भरण- वसना — युधग-ळागि- ।
द्दरिग-ळनु सं — हरिसु-वळु अ — क्षरळॆ-निसिकॊं-डु ॥ २०-३ ॥
ईत-गिंता — नंत- गुणदलि ।
श्री त-रुणि ता — कडिमॆ- ऎनिपळु ।
नित्य- मुक्तळु — निर्वि-कारळु — त्रिगुण- वर्जित-ळु ॥
दौत- पाप वि — रिंचि- पवनर ।
मातॆ-यॆनिप म — हाल-कुमि वि- ।
ख्यात-ळागिह — ळॆल्ल- कालदि — शृति पु-राणदॊ-ळु ॥ २०-४ ॥
कमल- संभव — पवन-रीर्वरु ।
समरु- समव — र्तिगळु- रुद्रा- ।
द्यमर-गण से — वितरु- अपर — ब्रह्म- नामक-रु ॥ यमळ-रिगॆ मह — लक्ष्मि- ता उ- ।
त्तमळु- कोटि स — जाति- गुणदिं- ।
दमित- सुविजा — त्यधम-रॆनिपरु — ब्रह्म- वायुग-ळु ॥ २०-५ ॥
पतिग-ळिंद स — रस्व-ती भा- ।
रतिग-ळधमरु — नूरु- गुण परि- ।
मित वि-जात्यव — ररु ब-लज्ञा — नादि- गुणदिं-द ॥ अतिश-यळु वा — ग्देवि- श्रीभा- ।
रतिगॆ- पदद प्र — युक्त- विधिमा- ।
रुतर- वोल् चिं — तिपुदु- सद्भ — क्तियलि- कोविद-रु ॥ २०-६ ॥
खगप- फणिपति — मृडरु- सम वा- ।
णिगॆ श-तगुणा — वररु- मूवरु ।
मिगिलॆ-निसुवरु — शेष- पददिं — दलि त्रि-यंबक-गॆ ॥ नगध-रन ष — ण्महिषि-यरु प- ।
न्नग वि-भूषण — गैदु- मेनकॆ- ।
मगळु- वारुणि — सौप-रणिगळि — गधिक-रॆरडु गु-ण ॥ २०-७ ॥
गरुड- शेष म — हेश-रिगॆ सौ- ।
परणि- वारुणि — पार्व-ती मू- ।
वरु द-शाधम — वारु-णिगॆ कडि — मॆनिसु-वळु गौ-रि ॥ हरन- मडदिगॆ — हत्तु- गुणदलि ।
सुरप- कामरु — कडिमॆ- इंद्रगॆ ।
कॊरतॆ- ऎनिसुव — मन्म-थनु पद — दिंद-लावा-ग ॥ २०-८ ॥
ईर-यिदु गुण — कडिमॆ- याहं- ।
कारि-क प्रा — णनु म-नोज न- ।
गारि-गळिगनि — रुद्ध- रति मनु — दक्ष- गुरु शचि-यु ॥
आरु- जन सम — प्राण-निंदलि ।
हौर-वॆनिपरु — हत्तु- गुणदलि ।
मार-जाद्यरि — गैदु- गुणदिं — दधम- प्रवहा-ख्य ॥ २०-९ ॥
गुण-द्वयदिं — कडिमॆ- प्रवहगॆ ।
इन श-शांक य — म स्व-यंभुव- ।
मनु म-डदि शत — रूप- नाल्वरु — पाद- पादा-र्ध ॥ वनधि- नीच प — दार्ध- नारद- ।
मुनिगॆ- भृग्व — ग्नि प्र-सूतिग- ।
ळॆनिसु-वरु पा — दार्ध- गुणदिं — दधम-रहुदॆं-दु ॥ २०-१० ॥
हुतव-हगॆ द्विगु — णाध-मरु विधि- ।
सुतम-रीच्या — दिगळु- वैव- ।
स्वतनु- विश्वा — मित्र-रिगॆ किं — चिद्गु-णाधम-नु ॥
व्रतिव-र जग — न्मित्र- वरनि- ।
ऋतियु- प्रावहि — तार-रिगॆ किं- ।
चितु गु-णाधम — धनप- विष्व — क्सेन-रॆनिसुव-रु ॥ २०-११ ॥
धनप- विष्व — क्सेन- गौरी- ।
तनय-रिगॆ उ — क्तेत-ररु सम- ।
रॆनिसु-वरु ऎं — भत्त-यिदु जन — शेष- शतरॆं-दु ॥ दिनप-रारे — ळधिक- नाल्व- ।
त्तनिल-रेळ्वसु — रुद्र-रीरै- ।
दनितु- विश्वे — देव- ऋभु व — श्विनियु- पितृ धर-णी ॥ २०-१२ ॥
इवरि-गिंतलि — कॊरतॆ-यॆनिपरु ।
च्यवन- सनका — दिगळु- पावक ।
कवि यु-चथ्य ज — यंत- कश्यप — मनुग-ळेकद-श ॥
ध्रुव न-हुष शश — बिंदु- हैहय ।
दवु ष-यंति वि — रोच-नन निज- ।
कुवर- बलि मॊद — लाद- सप्तें — द्ररु क-कुत्स्थ ग-य ॥ २०-१३ ॥
पृथु भ-रत मां — धात- प्रीय- ।
व्रत म-रुत प्र — ह्लाद- सुपरी- ।
क्षित ह-रिश्चं — द्रांब-रीषो — त्तान-पाद मु-ख ॥
शत सु-पुण्य — श्लोक-रु गदा- ।
भृतग-धिष्ठा — नरु सु-प्रीय- ।
व्रतगॆ- द्विगुणा — धमरु- कर्मज — रॆंदु- करॆसुव-रु ॥ २०-१४ ॥
नळिनि- संज्ञा — रोहि-णी श्या- ।
मल वि-राट् प — र्जन्य-रधमरु ।
ऎलरु- मित्रन — मडदि- द्विगुणा — धमळु- बांबॊळॆ-गॆ ॥ जलम-य बुधा — धमनु- द्विगुणदि ।
कॆळगॆ-निसुवळु — षा श-नैश्चर ।
इळॆग-ळीरु गु — णाध-मरुषा — देवि- दॆसॆयिं-द ॥ २०-१५ ॥
ऎरडु- गुण क — र्माधि-पति पु- ।
ष्कर क-डिमॆ आ — जान- दिविजरु ।
चिरपि-तृगळिं — दुत्त-मरु किं — कररु- पुष्कर-गॆ ॥ सुरप-नालय — गाय-कोत्तम- ।
रॆरड-यिदु गुण — दिंद-धम तुं- ।
बुरगॆ- सम शत — कोटि- ऋषिगळु — नूरु- जनरुळि-दु ॥ २०-१६ ॥
अवर-वर प — त्नियरु- अप्सर- ।
युवति-यरु सम — उत्त-मरनुळि- ।
दवर-रॆनिपरु — मनुज- गंध — र्वरु द्वि-षड्गुण-दि ॥ कुवल-याधिप — रीर-यिदु गुण ।
ववनि-पर स्त्री — यरु द-शोत्तर- ।
नवति- गुणदिं — दधम-रॆनिपरु — मानु-षोत्तम-रु ॥ २०-१७ ॥
सत्व- सत्वरु — सत्व- राजस ।
सत्व- तामस — मूव-रू रज- ।
सत्व-रधिका — रिगळु- भगव — द्भक्त-रॆनिसुव-रु ॥
नित्य- बद्धरु — रजस-रजरु ।
त्पत्ति- भूस्व — र्गदॊळु- नरकदि ।
पृथ्वि-यॊळु सं — चरिसु-तिप्परु — रजस-तामस-रु ॥ २०-१८ ॥
तमसु-सात्विक — रॆनिसि-कॊंबरु ।
अमित-नाख्या — तासु-ररगण ।
तमसु- राजस — रॆनिसि-कॊंबरु — दैत्य- समुदा-य ॥
तमसु- तामस — कलिपु-रंध्रियु ।
अमित- दुर्गुण — पूर्ण- सर्वा- ।
धमरॊ-ळधमा — धम दु-रात्मनु — कलियॆ-निसिकॊं-ब ॥ २०-१९ ॥
इवन- पोलुव — पापि- जीवरु ।
भुवन- मूररॊ — ळिल्ल- नोडलु ।
नववि-ध द्वे — षगळि-गाकर — नॆनिसि-कॊळुति-प्प ॥ बवर-दॊळु भं — गार-दॊळु नट ।
युवति- द्यूता — पेय- मृषदॊळु ।
कविसि- मोहव — कॆडिसु-वनु ऎं — दरितु- त्यजिसुवु-दु ॥ २०-२० ॥
त्रिविध- जीव — प्रतति-गळ स- ।
ग्गवॊळॆ-याण्मा — लयनु- निर्मिसि ।
युवति-यर ऒड — गूडि- क्रीडिसु — वनु कृ-पासां-द्र ॥
दिविज- दानव — तार-तम्यद ।
विवर- तिळिव म — हात्म-रिगॆ बा- ।
न्नविर- सख ता — नॊलिदु- उद्धरि — सुवनु- भवदिं-द ॥ २०-२१ ॥
देव- दैत्यर — तार-तम्यवु ।
पाव-मानि म — तानु-गरिगिदु ।
केव-लाव — श्यकवु- तिळिवुदु — सर्व- कालद-लि ॥
दाव- शिखि पा — पाट-विगॆ नव- ।
नावॆ-यॆनिपुदु — भव स-मुद्रकॆ ।
पाव-टिगॆ वै — कुंठ- लोककि — दॆंदु- करॆसुवु-दु ॥ २०-२२ ॥
तार-तम्य — ज्ञान- मुक्ति- ।
द्वार-वॆनिपुदु — भक्त- जनरिगॆ ।
तोरि- पेळि सु — खाब्धि-यॊळु लो — लाडु-वुदु बुध-रु ॥ क्रूर- मानव — रिगिदु- कर्णक- ।
ठोर-वॆनिपुदु — नित्य-दलि अधि- ।
कारि-गळिगिद — नरुपु-वुदु दु — स्तर्कि-गळ बि-ट्टु ॥ २०-२३ ॥
हरि सि-रि विरिं — चीर- भारति ।
गरुड- फणिपति — षण्म-हिषियरु ।
गिरिज- नाके — श स्म-र प्रा — णानि-रुद्ध श-ची ॥
गुरु र-ती मनु — दक्ष- प्रवहा- ।
मरुत- मानवि — यम श-शि दिवा- ।
कर व-रुण ना — रद सु-रास्य प्र — सूति- भृगु मुनि-प ॥ २०-२४ ॥
व्रतति-जासन — पुत्र-रॆनिसुव ।
व्रतिव-रत्रि म — रीचि- वैव- ।
स्वतनु- तारा — मित्र- निरऋति — प्रवह- मारुत-न ॥
सति ध-नेशा — श्विनिग-ळिर्गण- ।
पतियु- विष्व — क्सेन- शेषसु- ।
शतरु- मनुगळु — चथ्य- च्यावन — मुनिग-ळिगॆ नमि-पॆ ॥ २०-२५ ॥
शत सु-पुण्य — श्लोक-रॆनिसुव ।
क्षितिप-रिगॆ नमि — सुवॆनु- भागी- ।
रथि वि-राट्प — र्जन्य- रोहिणि — श्याम-ला सं-ज्ञा ॥ हुतव-हन महि — ळा बु-धोषा ।
क्षिति श-नैश्चर — पुष्क-ररिगा- ।
नतिसि- बिन्नै — सुवॆनु- भक्ति — ज्ञान- कॊडलॆं-दु ॥ २०-२६ ॥
नूर-धिकवा — गिप्प- मत्हदि- ।
नारु- साविर — नंद-गोप कु- ।
मार-नर्धां — गियर-गस्त्या — दी मु-नीश्वर-रु ॥ ऊर्व-शी मॊद — लाद- अप्सर- ।
नारि-यरु शत — तुंबु-ररु कं- ।
सारि गुणगळ — कीर्त-नॆय मा — डिसलि- ऎन्निं-द ॥ २०-२७ ॥
पाव-नरु शुचि — शुद्ध- नामक- ।
देव-तॆगळा — जान- चिरपितृ- ।
देव- नर गं — धर्व-रवनिप — मानु-षोत्तम-रु ॥ ई व-सुमतियॊ — ळुळ्ळ- वैष्णव- ।
राव-ळियॊळिह — रॆंदु- नित्यदि ।
सेवि-पुदु सं — तोष-दिं स — र्व प्र-कारद-लि ॥ २०-२८ ॥
मानु-षोत्तम — रन वि-डिदु चतु- ।
रान-नांत श — तोत्त-मत्व क्र- ।
मेण- चिंतिप — भक्त-रिगॆ चतु स्- रविध- पुरुषा-र्थ ॥ श्रीनि-धि जग — न्नाथ-विठ्ठल ।
तानॆ- ऒलिदी — वनु नि-रंतर ।
सानु-रागदि — पठिसु-वुदु प्रा — ज्ञरिद- मरॆयद-लॆ ॥ २०-२९ ॥
॥ इति श्री गुणतारतम्य सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
२१. स्तोत्र (कर्मविमोचन) सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
मूल- नारा — यणनु- माया- ।
लोल-नंतव — तार- नामक ।
व्याळ-रूप ज — यार-मणना — वेश-नॆनिसुव-नु ॥ लीलॆ-गैवा — नंत- चेतन- ।
जाल-दॊळु प्र — द्युम्न- ब्रह्मां- ।
डाल-यद ऒळ — हॊरगॆ- नॆलॆसिह — शांति-यनिरु-द्ध ॥ २१-१ ॥
ऐदु- कारण — रूप- इप्प- ।
त्तैदु- कार्यग — ळॆनिसु-ववु आ ।
रैदु- रूपदि — रमिसु-तिप्पनु — ई च-राचर-दि ॥
भेद- वर्जित — मूज-गज्ज- ।
न्मादि- कारण — मुक्ति-दायक ।
स्वोद-रदॊळि — ट्टॆल्ल-रनु सं — तैप- सर्व-ज्ञ ॥ २१-२ ॥
कार्य- कारण — कर्तृ-गळॊळु स्व- ।
भार्य-रिंदॊड — गूडि- कपिला- ।
चार्य- क्रीडिसु — तिप्प- तन्नॊळु — तानॆ- स्वेच्छॆय-लि ॥ प्रेर्य-नल्ल र — माब्ज-भव भव- ।
रार्य- रक्षिसि — शिक्षि-सुवनु स्व- ।
वीर्य-दिंदलि — दिविज- दानव — ततिय- दिनदिन-दि ॥ २१-३ ॥
ई स-मस्त ज — गत्ति-नॊळगा- ।
काश-दोळिरु — तिप्प- व्याप्ता- ।
वेश-नवता — रांत-रात्मक — नागि- परमा-त्म ॥ नाश- रहित ज — गत्ति-नॊळगव- ।
काश-दनु ता — नागि- योगी- ।
शाश-यस्थित — तन्नॊ-ळॆल्लर — निट्टु- सलहुव-नु ॥ २१-४ ॥
दारु- पाषा — णगत- पावक ।
बेरॆ- बेरि — प्पंतॆ- कारण- ।
कार्य-गळ ऒळ — गिद्दु- कारण — कार्य-नॆंदॆनि-सि ॥ तोरि-कॊळ्ळदॆ — यॆल्ल-रॊळु व्या- ।
पार- माडुव — योग्य-तॆगळनु – ।
सार- फलगळ — नुणिसि- संतै — सुव कृ-पासां-द्र ॥ २१-५ ॥
ऊर्मि-गळ वो — लिप्प- कर्म वि- ।
कर्म-जन्य फ — लाफ-लंगळ ।
निर्म-लात्मनु — माडि- माडिसि — उंडु-णिसुति-प्प ॥ निर्म-म निरा — मय नि-राश्रय ।
धर्म-विद्ध — र्मात्म- धर्मग ।
दुर्म-ती जन — रॊल्ल-नप्रति — मल्ल- श्रीन-ल्ल ॥ २१-६ ॥
जलद-बड बा — नलग-ळंबुधि ।
जलव-नुंबुवु — अब्द- मळॆगरॆ- ।
दिळॆगॆ- शांतिय — नीवु-दनलनु — तानॆ- भुंजिपु-दु ॥ तिळिवु-दीपरि — यल्लि- लक्ष्मी- ।
निलय- गुणकृत — कर्म-ज फला- ।
फलग-ळुंडुणि — सुवनु- सर्वग — सर्व- जीवरि-गॆ ॥ २१-७ ॥
पुस्त-कगळव — लोकि-सुत मं- ।
त्रस्तु-तिगळन — लेनु- रवियुद- ।
यस्त-मय परि — यंत- जपगळ — माडि- फलवे-नु ॥ हृत्स्थ- परमा — त्मनॆ स-मस्ता- ।
वस्थॆ-गळॊळि — द्दॆल्ल-रॊळगॆ नि- ।
रस्त- कामनु — माडि- माडिप — नॆंदु- तिळियद-व ॥ २१-८ ॥
मद्य- भांडव — देव-नदियॊळ- ।
गद्दि- तॊळॆयलु — नित्य-दलि परि- ।
शुद्ध-वाहुदॆ — ऎंदि-गादरु — हरि प-दाब्जग-ळ ॥
बुद्धि- पूर्वक — भजिस-दवगॆ वि- ।
रुद्ध-वॆनिसुवु — वॆल्ल- कर्म स- ।
मृद्धि-गळु दुः — खवनॆ- कॊडुतिह — वधम- जीवरि-गॆ ॥ २१-९ ॥
भक्ति- पूर्वक — वागि- मुक्ता- ।
मुक्त- नीया — मकन- सर्वो- ।
द्रिक्त- महिमॆग — ळनव-रत कॊं — डाडु- मरॆयद-लॆ ॥ सक्त-नागदॆ — लोक-वार्तॆ प्र- ।
सक्ति-गळनी — डाडि- श्रुति स्मृ- ।
त्युक्त- कर्मव — माडु-तिरु हरि — याज्ञॆ-यॆंदरि-दु ॥ २१-१० ॥
लोप-वादरु — सरियॆ- कर्मज- ।
पाप- पुण्यग — ळॆरडु- निन्ननु ।
लेपि-सवु नि — ष्काम-कनु नी — नागि- माडुति-रॆ ॥
सौप-रणि वर — वहन- निन्न म- ।
हाप-राधग — ळॆणिस-दलॆ स्व- ।
र्गाप-वर्गदॊ — ळिट्टु- सलहुव — सतत- सुखसां-द्र ॥ २१-११ ॥
स्वरत- सुखमय — सुलभ- विश्वं- ।
भर वि-शोक सु — रासु-रार्चित- ।
चरण-युग चा — र्वांग- शार्ङ्ग श — रण्य- जितम-न्यु ॥ परम- सुंदर — तर प-रात्पर ।
शरण- जन सुर — धेनु- शाश्वत ।
करुणि- कंजद — ळाक्ष- कायॆनॆ — कंगॊ-ळिप शी-घ्र ॥ २१-१२ ॥
निर्म-मनु नी — नागि- कर्म वि- ।
कर्म-गळनु नि — रंत-रदलि सु- ।
धर्म- नामक — गर्पि-सुत नि — ष्कलुष- नीना-गु ॥ भर्म- गर्भन — जनक- दयदलि ।
दुर्म-तिगळनु — कॊडदॆ- तन्नय ।
हर्म्य-दॊळगि — ट्टॆल्ल- कालदि — काव- कृपॆयिं-द ॥ २१-१३ ॥
कल्प- कल्पदि — शरण-जन वर- ।
कल्प-वृक्षनु — तन्न- निज सं- ।
कल्प-दनुसा — रदलि- कॊडुति — प्पनु फ-लाफल-व ॥ अल्प-सुखदा — पेक्षॆ-यिंदहि- ।
तल्प-नारा — धिसदि-रॆंदिगु ।
शिल्प-कन कै — सिक्क- शिलॆयं — ददलि- संतै-प ॥ २१-१४ ॥ देश- भेदा — काश-दंददि ।
वासु-देवनु — सर्व- भूत नि- ।
वासि-यॆनिसि च — रा च-रात्मक — नॆंदु- करॆसुव-नु ॥ द्वेष- स्नेहो — दासि-नगळि- ।
ल्ली श-रीरग — ळॊळगॆ- अवरो- ।
पास-नॆगळं — ददलि- फलवी — वनु प-रब्र-ह्म ॥ २१-१५ ॥
संचि-तागा — मिगळ- कर्म वि- ।
रिंचि- जनकन — भजिसॆ- कॆडुववु ।
मिंचि-नंददि — पॊळॆव- पुरुषो — त्तम हृ-दंबर-दि ॥ वंचि-सुव जन — रॊल्ल- श्रीव- ।
त्सांचि-त सुस — द्वक्ष- ता नि- ।
ष्किंच-न जन — प्रीय- सुरमुनि — गेय- शुभका-य ॥ २१-१६ ॥
काल- द्रव्य सु — कर्म- शुद्धिय- ।
पेळु-वरु अ — ल्परिगॆ- अवु नि- ।
र्मूल- गैसुव — वल्ल- पापग — ळॆल्ल- कालद-लि । तैल-धारे — यंत-वन पद ।
ओल-यिसि तुति — सदलॆ- नित्यदि ।
बालि-शरु क — र्मगळॆ- तारक — वॆंदु- पेळुव-रु ॥ २१-१७ ॥
कमल- संभव — शर्व- शक्रा- ।
द्यमर-रॆल्लरु — इवन- दुरति- ।
क्रम म-हिमॆगळ — मनव-चनदिं — प्रांत-गाणद-लॆ ॥ श्रमित-रागि प — दाब्ज- कल्प- ।
द्रुमनॆ-ळलना — श्रयिसि- लक्ष्मी- ।
रमण- संतै — सॆंदु- प्रार्थिप — रति भ-कुतियिं-द ॥ २१-१८ ॥
वारि-चरवॆनि — सुववु- दर्दुर ।
तार-कगळॆं — दरिदु- भेकव- ।
नेरि- जलधिय — दाटु-वॆनु ऎं — बवन- तॆरदं-तॆ ॥ तार-तम्य — ज्ञान- शून्यरु ।
सूरि-गम्यन — तिळिय-लरियदॆ ।
सौर- शैव म — तानु-गर अनु — सरिसि- कॆडुतिह-रु ॥ २१-१९ ॥
क्षुधॆय-गोसुग — पोगि- कानन ।
बदरि- फलगळ — पेक्षॆ-यिंदलि ।
पॊदॆयॊ-ळगॆ सिग — बिद्दु- बाय्दॆरॆ — दवन- तॆरदं-तॆ ॥ विधिपि-तन पू — जिसदॆ- निन्नय ।
उदर-कोसुग — साधु-लिंग ।
प्रदर-शकरा — राधि-सुत बळ — लदिरु- भवदॊळ-गॆ ॥ २१-२० ॥
क्षोणि-पतिसुत — नॆनिसि- कै दु- ।
ग्गाणि-गॊड्डुव — तॆरदि- सुमनस ।
धेनु- मनॆयॊळ — गिरलु- गोमय — बयसु-वंदद-लि ॥ वेणु-गान — प्रियन- अहिक सु- ।
खानु-भव बे — डदलॆ- लक्ष्मी- ।
प्राण-नाथन — पाद- भक्तिय — बेडु- कॊंडा-डु ॥ २१-२१ ॥
ज्ञान- ज्ञेय — ज्ञातृ-वॆंबभि- ।
धान-दिं बु — द्ध्यादि-गळधि- ।
ष्ठान-दलि नॆलॆ — सिद्दु- करॆसुव — तत्त-दाह्वय-दि ॥
भानु- मंडल — ग प्र-दर्शक ।
तानॆ-निसि वश — नागु-वनु शुक- ।
शौन-कादि मु — नींद्र- हृदया — काश- गत चं-द्र ॥ २१-२२ ॥
उदय- व्यापिनि — दर्श- पौर्णिम ।
अधिक-यामवु — श्रवण-वभिजितु ।
सदन- वैदिरॆ — माळ्प- तॆरदं — ददलि- हरिसे-वॆ ॥
विधि नि-षेधग — ळेनु- नोडदॆ ।
विधिसु-तिरु नि — त्यदलि- तन्नय ।
सदन-दॊळगिं — बिट्टु- सलहुव — भक्त- वत्सल-नु ॥ २१-२३ ॥
नंदि- वाहन — रात्रि- साधनॆ ।
बंद- द्वादशि — दशमि- पैतृक ।
सन्धि-सिह सम — यदलि- श्रवणव — त्यजिसु-वंतॆ स-दा ॥ निंद्य-रिंदलि — बंद- द्रव्यव ।
कण्दॆ-रॆदु नो — डदलॆ- श्रीमदा- ।
नंद-तीर्थां — तर्ग-तन स — र्वत्र- भजिसुति-रु ॥ २१-२४ ॥ श्री म-नोरम — मेरु-त्रिककु- ।
द्दाम- सत्क — ल्याण- गुण नि- ।
स्सीम- पावन — नाम- दिविजो — द्धाम- रघुरा-म ॥ प्रेम- पूर्वक — नित्य- तन्न म- ।
हा म-हिमॆगळ — तुतिसु-वरिगॆ सु- ।
धाम-गॊलिदं — ददलि- अखिळा — र्थगळ- कॊडुति-प्प ॥ २१-२५ ॥
तंदॆ- ताय्गळ — कुरुह-नरियद ।
कंद- देशां — तरदॊ-ळगॆ त- ।
न्नंद-दलि इ — प्पवर- जननी — जनक-रनु कं-डु ॥
हिंदॆ- ऎन्ननु — पडॆदवरु इव- ।
रंद-दलि इ — प्परल- नानव- ।
रॆंदु- काणुवॆ — नॆनुत- हुडुकुव — तॆरदि- कोविद-रु ॥ २१-२६ ॥
शृति पु-राण स — मूह-दॊळु भा- ।
रत प्र-तिप्रति — पदग-ळॊळु नि- ।
र्जितन- गुण रू — पगळ- पुडुकुत — परम- हरुषद-लि ॥ मतियु-तरु प्रति — दिवस- सार- ।
स्वत स-मुद्रदि — शफरि-यंददि ।
सतत- संचरि — सुवरु- काणुव — लवल-विकॆयिं-द ॥ २१-२७ ॥
मत्स्य- केतन — जनक- हरि श्री- ।
वत्स-लांछन — निज श-रण जन- ।
वत्स-ल वरा — रोह- वैकुं — ठाल-य निवा-सि ॥
चित्सु-ख प्रद — सलहॆ-नलु गो- ।
वत्स- ध्वनिगॊद — गुव तॆ-रदि पर- ।
मोत्स-हदि बं — दॊदगु-वनु नि — र्मत्स-रर बळि-गॆ ॥ २१-२८ ॥
सूरि-गळिगॆ स — मीप-ग दुरा- ।
चारि-गळिगॆं — दॆंदु- दूरा- ।
द्दूर-तर दु — र्लभनॆ-निसुवनु — दैत्य- संतति-गॆ ॥
सारि- सारिगॆ — नॆनॆव-वर सं- ।
सार- वॆंब म — होर-गकॆ स- ।
र्पारि-यॆनिसि स — दा सु-सौख्यव — नीव- सुजनरि-गॆ ॥ २१-२९ ॥
चक्र- शंख ग — दाब्ज- धर दुर- ।
तिक्र-म दुरा — वास- विधि शिव- ।
शक्र- सूर्या — द्यमर- पूज्य प — दाब्ज- निर्ल-ज्ज ॥ शुक्र- शिष्यन — अश्व-मेध- ।
प्रक्रि-यव कॆडि — स्यब्ज-जांडव- ।
तिक्र-मिसि जा — ह्नविय- पडॆद त्रि — विक्र-माह्वय-नु ॥ २१-३०॥
शक्त-रॆनिसुव — रिल्ल- हरि व्यति- ।
रिक्त- सुरगण — दॊळगॆ- सर्वो- ।
द्रिक्त-नॆनिसुव — सर्व-रिंदलि — सर्व-कालद-लि ॥ भक्ति-पूर्वक — वागि- अन्यप्र- ।
सक्ति-गळनी — ड्याडि- परमा- ।
सक्त-नागिरु — हरिक-थामृत — पान- विषयद-लि ॥ २१-३१ ॥
प्रणत- कामद — भक्त- चिंता- ।
मणि म-णिमया — भरण- भूषित ।
घृणि गु-णत्रय — दूर- वर्जित — गहन- सन्महि-म ॥
ऎणिस- भक्तर — दोष-गळ कुं- ।
भिणिजॆ-याण्म श — रण्य- रामा- ।
र्पणवॆ-नलु कै — कॊंड- शबरिय — फलव- परमा-प्त ॥ २१-३२ ॥
बल्लॆ-नॆंबव — रिल्ल-वीतन ।
ऒल्लॆ-नॆंबुव — रिल्ल- लोकदॊ- ।
ळिल्ल-दिप्प प्र — देश-विल्ला — ज्ञात- जनरि-ल्ल ॥ बॆल्ल-दच्चिन — बॊंबॆ-यंददि ।
ऎल्ल-रॊळगिरु — तिप्प- श्री भू- ।
नल्ल- इवगॆणॆ — यिल्ल- अप्रति — मल्ल- जगकॆ-ल्ल ॥ २१-३३ ॥
शब्द- गोचर — शार्व-रीकर- ।
अब्द- वाहन — ननुज- यदुवं- ।
शाब्धि- चंद्रम — निरुप-म सुनि — स्सीम- समित स-म । लब्द-नागुव — तन्न-वगॆ प्रा- ।
रब्ध- कर्मग — ळुणिसि- तीव्रदि ।
क्षुब्ध- पावक — नंतॆ- बिडदि — प्पनु द-या सां-द्र ॥ २१-३४ ॥
श्रीवि-रिंचा — द्यमर- वंदित ।
ई व-सुंधरॆ — यॊळगॆ- देवकि- ।
देवि- जठरदॊ — ळवत-रिसिदनु — अजनु- नरनं-तॆ ॥ रेव-तीरम — णानु-जनु स्वप- ।
दाव-लंबिग — ळनु स-लहि दै- ।
त्याव-ळिय सं — हरिसि-द जग — न्नाथ-विठ्ठल-नु ॥ २१-३५ ॥
॥ इति श्री स्तोत्र (कर्मविमोचन) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥