हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
२१. स्तोत्र (कर्मविमोचन) सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
मूल- नारा — यणनु- माया- ।
लोल-नंतव — तार- नामक ।
व्याळ-रूप ज — यार-मणना — वेश-नॆनिसुव-नु ॥ लीलॆ-गैवा — नंत- चेतन- ।
जाल-दॊळु प्र — द्युम्न- ब्रह्मां- ।
डाल-यद ऒळ — हॊरगॆ- नॆलॆसिह — शांति-यनिरु-द्ध ॥ २१-१ ॥
ऐदु- कारण — रूप- इप्प- ।
त्तैदु- कार्यग — ळॆनिसु-ववु आ ।
रैदु- रूपदि — रमिसु-तिप्पनु — ई च-राचर-दि ॥
भेद- वर्जित — मूज-गज्ज- ।
न्मादि- कारण — मुक्ति-दायक ।
स्वोद-रदॊळि — ट्टॆल्ल-रनु सं — तैप- सर्व-ज्ञ ॥ २१-२ ॥
कार्य- कारण — कर्तृ-गळॊळु स्व- ।
भार्य-रिंदॊड — गूडि- कपिला- ।
चार्य- क्रीडिसु — तिप्प- तन्नॊळु — तानॆ- स्वेच्छॆय-लि ॥ प्रेर्य-नल्ल र — माब्ज-भव भव- ।
रार्य- रक्षिसि — शिक्षि-सुवनु स्व- ।
वीर्य-दिंदलि — दिविज- दानव — ततिय- दिनदिन-दि ॥ २१-३ ॥
ई स-मस्त ज — गत्ति-नॊळगा- ।
काश-दोळिरु — तिप्प- व्याप्ता- ।
वेश-नवता — रांत-रात्मक — नागि- परमा-त्म ॥ नाश- रहित ज — गत्ति-नॊळगव- ।
काश-दनु ता — नागि- योगी- ।
शाश-यस्थित — तन्नॊ-ळॆल्लर — निट्टु- सलहुव-नु ॥ २१-४ ॥
दारु- पाषा — णगत- पावक ।
बेरॆ- बेरि — प्पंतॆ- कारण- ।
कार्य-गळ ऒळ — गिद्दु- कारण — कार्य-नॆंदॆनि-सि ॥ तोरि-कॊळ्ळदॆ — यॆल्ल-रॊळु व्या- ।
पार- माडुव — योग्य-तॆगळनु – ।
सार- फलगळ — नुणिसि- संतै — सुव कृ-पासां-द्र ॥ २१-५ ॥
ऊर्मि-गळ वो — लिप्प- कर्म वि- ।
कर्म-जन्य फ — लाफ-लंगळ ।
निर्म-लात्मनु — माडि- माडिसि — उंडु-णिसुति-प्प ॥ निर्म-म निरा — मय नि-राश्रय ।
धर्म-विद्ध — र्मात्म- धर्मग ।
दुर्म-ती जन — रॊल्ल-नप्रति — मल्ल- श्रीन-ल्ल ॥ २१-६ ॥
जलद-बड बा — नलग-ळंबुधि ।
जलव-नुंबुवु — अब्द- मळॆगरॆ- ।
दिळॆगॆ- शांतिय — नीवु-दनलनु — तानॆ- भुंजिपु-दु ॥ तिळिवु-दीपरि — यल्लि- लक्ष्मी- ।
निलय- गुणकृत — कर्म-ज फला- ।
फलग-ळुंडुणि — सुवनु- सर्वग — सर्व- जीवरि-गॆ ॥ २१-७ ॥
पुस्त-कगळव — लोकि-सुत मं- ।
त्रस्तु-तिगळन — लेनु- रवियुद- ।
यस्त-मय परि — यंत- जपगळ — माडि- फलवे-नु ॥ हृत्स्थ- परमा — त्मनॆ स-मस्ता- ।
वस्थॆ-गळॊळि — द्दॆल्ल-रॊळगॆ नि- ।
रस्त- कामनु — माडि- माडिप — नॆंदु- तिळियद-व ॥ २१-८ ॥
मद्य- भांडव — देव-नदियॊळ- ।
गद्दि- तॊळॆयलु — नित्य-दलि परि- ।
शुद्ध-वाहुदॆ — ऎंदि-गादरु — हरि प-दाब्जग-ळ ॥
बुद्धि- पूर्वक — भजिस-दवगॆ वि- ।
रुद्ध-वॆनिसुवु — वॆल्ल- कर्म स- ।
मृद्धि-गळु दुः — खवनॆ- कॊडुतिह — वधम- जीवरि-गॆ ॥ २१-९ ॥
भक्ति- पूर्वक — वागि- मुक्ता- ।
मुक्त- नीया — मकन- सर्वो- ।
द्रिक्त- महिमॆग — ळनव-रत कॊं — डाडु- मरॆयद-लॆ ॥ सक्त-नागदॆ — लोक-वार्तॆ प्र- ।
सक्ति-गळनी — डाडि- श्रुति स्मृ- ।
त्युक्त- कर्मव — माडु-तिरु हरि — याज्ञॆ-यॆंदरि-दु ॥ २१-१० ॥
लोप-वादरु — सरियॆ- कर्मज- ।
पाप- पुण्यग — ळॆरडु- निन्ननु ।
लेपि-सवु नि — ष्काम-कनु नी — नागि- माडुति-रॆ ॥
सौप-रणि वर — वहन- निन्न म- ।
हाप-राधग — ळॆणिस-दलॆ स्व- ।
र्गाप-वर्गदॊ — ळिट्टु- सलहुव — सतत- सुखसां-द्र ॥ २१-११ ॥
स्वरत- सुखमय — सुलभ- विश्वं- ।
भर वि-शोक सु — रासु-रार्चित- ।
चरण-युग चा — र्वांग- शार्ङ्ग श — रण्य- जितम-न्यु ॥ परम- सुंदर — तर प-रात्पर ।
शरण- जन सुर — धेनु- शाश्वत ।
करुणि- कंजद — ळाक्ष- कायॆनॆ — कंगॊ-ळिप शी-घ्र ॥ २१-१२ ॥
निर्म-मनु नी — नागि- कर्म वि- ।
कर्म-गळनु नि — रंत-रदलि सु- ।
धर्म- नामक — गर्पि-सुत नि — ष्कलुष- नीना-गु ॥ भर्म- गर्भन — जनक- दयदलि ।
दुर्म-तिगळनु — कॊडदॆ- तन्नय ।
हर्म्य-दॊळगि — ट्टॆल्ल- कालदि — काव- कृपॆयिं-द ॥ २१-१३ ॥
कल्प- कल्पदि — शरण-जन वर- ।
कल्प-वृक्षनु — तन्न- निज सं- ।
कल्प-दनुसा — रदलि- कॊडुति — प्पनु फ-लाफल-व ॥ अल्प-सुखदा — पेक्षॆ-यिंदहि- ।
तल्प-नारा — धिसदि-रॆंदिगु ।
शिल्प-कन कै — सिक्क- शिलॆयं — ददलि- संतै-प ॥ २१-१४ ॥ देश- भेदा — काश-दंददि ।
वासु-देवनु — सर्व- भूत नि- ।
वासि-यॆनिसि च — रा च-रात्मक — नॆंदु- करॆसुव-नु ॥ द्वेष- स्नेहो — दासि-नगळि- ।
ल्ली श-रीरग — ळॊळगॆ- अवरो- ।
पास-नॆगळं — ददलि- फलवी — वनु प-रब्र-ह्म ॥ २१-१५ ॥
संचि-तागा — मिगळ- कर्म वि- ।
रिंचि- जनकन — भजिसॆ- कॆडुववु ।
मिंचि-नंददि — पॊळॆव- पुरुषो — त्तम हृ-दंबर-दि ॥ वंचि-सुव जन — रॊल्ल- श्रीव- ।
त्सांचि-त सुस — द्वक्ष- ता नि- ।
ष्किंच-न जन — प्रीय- सुरमुनि — गेय- शुभका-य ॥ २१-१६ ॥
काल- द्रव्य सु — कर्म- शुद्धिय- ।
पेळु-वरु अ — ल्परिगॆ- अवु नि- ।
र्मूल- गैसुव — वल्ल- पापग — ळॆल्ल- कालद-लि । तैल-धारे — यंत-वन पद ।
ओल-यिसि तुति — सदलॆ- नित्यदि ।
बालि-शरु क — र्मगळॆ- तारक — वॆंदु- पेळुव-रु ॥ २१-१७ ॥
कमल- संभव — शर्व- शक्रा- ।
द्यमर-रॆल्लरु — इवन- दुरति- ।
क्रम म-हिमॆगळ — मनव-चनदिं — प्रांत-गाणद-लॆ ॥ श्रमित-रागि प — दाब्ज- कल्प- ।
द्रुमनॆ-ळलना — श्रयिसि- लक्ष्मी- ।
रमण- संतै — सॆंदु- प्रार्थिप — रति भ-कुतियिं-द ॥ २१-१८ ॥
वारि-चरवॆनि — सुववु- दर्दुर ।
तार-कगळॆं — दरिदु- भेकव- ।
नेरि- जलधिय — दाटु-वॆनु ऎं — बवन- तॆरदं-तॆ ॥ तार-तम्य — ज्ञान- शून्यरु ।
सूरि-गम्यन — तिळिय-लरियदॆ ।
सौर- शैव म — तानु-गर अनु — सरिसि- कॆडुतिह-रु ॥ २१-१९ ॥
क्षुधॆय-गोसुग — पोगि- कानन ।
बदरि- फलगळ — पेक्षॆ-यिंदलि ।
पॊदॆयॊ-ळगॆ सिग — बिद्दु- बाय्दॆरॆ — दवन- तॆरदं-तॆ ॥ विधिपि-तन पू — जिसदॆ- निन्नय ।
उदर-कोसुग — साधु-लिंग ।
प्रदर-शकरा — राधि-सुत बळ — लदिरु- भवदॊळ-गॆ ॥ २१-२० ॥
क्षोणि-पतिसुत — नॆनिसि- कै दु- ।
ग्गाणि-गॊड्डुव — तॆरदि- सुमनस ।
धेनु- मनॆयॊळ — गिरलु- गोमय — बयसु-वंदद-लि ॥ वेणु-गान — प्रियन- अहिक सु- ।
खानु-भव बे — डदलॆ- लक्ष्मी- ।
प्राण-नाथन — पाद- भक्तिय — बेडु- कॊंडा-डु ॥ २१-२१ ॥
ज्ञान- ज्ञेय — ज्ञातृ-वॆंबभि- ।
धान-दिं बु — द्ध्यादि-गळधि- ।
ष्ठान-दलि नॆलॆ — सिद्दु- करॆसुव — तत्त-दाह्वय-दि ॥
भानु- मंडल — ग प्र-दर्शक ।
तानॆ-निसि वश — नागु-वनु शुक- ।
शौन-कादि मु — नींद्र- हृदया — काश- गत चं-द्र ॥ २१-२२ ॥
उदय- व्यापिनि — दर्श- पौर्णिम ।
अधिक-यामवु — श्रवण-वभिजितु ।
सदन- वैदिरॆ — माळ्प- तॆरदं — ददलि- हरिसे-वॆ ॥
विधि नि-षेधग — ळेनु- नोडदॆ ।
विधिसु-तिरु नि — त्यदलि- तन्नय ।
सदन-दॊळगिं — बिट्टु- सलहुव — भक्त- वत्सल-नु ॥ २१-२३ ॥
नंदि- वाहन — रात्रि- साधनॆ ।
बंद- द्वादशि — दशमि- पैतृक ।
सन्धि-सिह सम — यदलि- श्रवणव — त्यजिसु-वंतॆ स-दा ॥ निंद्य-रिंदलि — बंद- द्रव्यव ।
कण्दॆ-रॆदु नो — डदलॆ- श्रीमदा- ।
नंद-तीर्थां — तर्ग-तन स — र्वत्र- भजिसुति-रु ॥ २१-२४ ॥ श्री म-नोरम — मेरु-त्रिककु- ।
द्दाम- सत्क — ल्याण- गुण नि- ।
स्सीम- पावन — नाम- दिविजो — द्धाम- रघुरा-म ॥ प्रेम- पूर्वक — नित्य- तन्न म- ।
हा म-हिमॆगळ — तुतिसु-वरिगॆ सु- ।
धाम-गॊलिदं — ददलि- अखिळा — र्थगळ- कॊडुति-प्प ॥ २१-२५ ॥
तंदॆ- ताय्गळ — कुरुह-नरियद ।
कंद- देशां — तरदॊ-ळगॆ त- ।
न्नंद-दलि इ — प्पवर- जननी — जनक-रनु कं-डु ॥
हिंदॆ- ऎन्ननु — पडॆदवरु इव- ।
रंद-दलि इ — प्परल- नानव- ।
रॆंदु- काणुवॆ — नॆनुत- हुडुकुव — तॆरदि- कोविद-रु ॥ २१-२६ ॥
शृति पु-राण स — मूह-दॊळु भा- ।
रत प्र-तिप्रति — पदग-ळॊळु नि- ।
र्जितन- गुण रू — पगळ- पुडुकुत — परम- हरुषद-लि ॥ मतियु-तरु प्रति — दिवस- सार- ।
स्वत स-मुद्रदि — शफरि-यंददि ।
सतत- संचरि — सुवरु- काणुव — लवल-विकॆयिं-द ॥ २१-२७ ॥
मत्स्य- केतन — जनक- हरि श्री- ।
वत्स-लांछन — निज श-रण जन- ।
वत्स-ल वरा — रोह- वैकुं — ठाल-य निवा-सि ॥
चित्सु-ख प्रद — सलहॆ-नलु गो- ।
वत्स- ध्वनिगॊद — गुव तॆ-रदि पर- ।
मोत्स-हदि बं — दॊदगु-वनु नि — र्मत्स-रर बळि-गॆ ॥ २१-२८ ॥
सूरि-गळिगॆ स — मीप-ग दुरा- ।
चारि-गळिगॆं — दॆंदु- दूरा- ।
द्दूर-तर दु — र्लभनॆ-निसुवनु — दैत्य- संतति-गॆ ॥
सारि- सारिगॆ — नॆनॆव-वर सं- ।
सार- वॆंब म — होर-गकॆ स- ।
र्पारि-यॆनिसि स — दा सु-सौख्यव — नीव- सुजनरि-गॆ ॥ २१-२९ ॥
चक्र- शंख ग — दाब्ज- धर दुर- ।
तिक्र-म दुरा — वास- विधि शिव- ।
शक्र- सूर्या — द्यमर- पूज्य प — दाब्ज- निर्ल-ज्ज ॥ शुक्र- शिष्यन — अश्व-मेध- ।
प्रक्रि-यव कॆडि — स्यब्ज-जांडव- ।
तिक्र-मिसि जा — ह्नविय- पडॆद त्रि — विक्र-माह्वय-नु ॥ २१-३०॥
शक्त-रॆनिसुव — रिल्ल- हरि व्यति- ।
रिक्त- सुरगण — दॊळगॆ- सर्वो- ।
द्रिक्त-नॆनिसुव — सर्व-रिंदलि — सर्व-कालद-लि ॥ भक्ति-पूर्वक — वागि- अन्यप्र- ।
सक्ति-गळनी — ड्याडि- परमा- ।
सक्त-नागिरु — हरिक-थामृत — पान- विषयद-लि ॥ २१-३१ ॥
प्रणत- कामद — भक्त- चिंता- ।
मणि म-णिमया — भरण- भूषित ।
घृणि गु-णत्रय — दूर- वर्जित — गहन- सन्महि-म ॥
ऎणिस- भक्तर — दोष-गळ कुं- ।
भिणिजॆ-याण्म श — रण्य- रामा- ।
र्पणवॆ-नलु कै — कॊंड- शबरिय — फलव- परमा-प्त ॥ २१-३२ ॥
बल्लॆ-नॆंबव — रिल्ल-वीतन ।
ऒल्लॆ-नॆंबुव — रिल्ल- लोकदॊ- ।
ळिल्ल-दिप्प प्र — देश-विल्ला — ज्ञात- जनरि-ल्ल ॥ बॆल्ल-दच्चिन — बॊंबॆ-यंददि ।
ऎल्ल-रॊळगिरु — तिप्प- श्री भू- ।
नल्ल- इवगॆणॆ — यिल्ल- अप्रति — मल्ल- जगकॆ-ल्ल ॥ २१-३३ ॥
शब्द- गोचर — शार्व-रीकर- ।
अब्द- वाहन — ननुज- यदुवं- ।
शाब्धि- चंद्रम — निरुप-म सुनि — स्सीम- समित स-म । लब्द-नागुव — तन्न-वगॆ प्रा- ।
रब्ध- कर्मग — ळुणिसि- तीव्रदि ।
क्षुब्ध- पावक — नंतॆ- बिडदि — प्पनु द-या सां-द्र ॥ २१-३४ ॥
श्रीवि-रिंचा — द्यमर- वंदित ।
ई व-सुंधरॆ — यॊळगॆ- देवकि- ।
देवि- जठरदॊ — ळवत-रिसिदनु — अजनु- नरनं-तॆ ॥ रेव-तीरम — णानु-जनु स्वप- ।
दाव-लंबिग — ळनु स-लहि दै- ।
त्याव-ळिय सं — हरिसि-द जग — न्नाथ-विठ्ठल-नु ॥ २१-३५ ॥
॥ इति श्री स्तोत्र (कर्मविमोचन) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥