HKS 22. Bhaktaaparaadhasahishnu (Sakaladuritanivarana) Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार

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२२. भक्तापराधसहिष्णु (सकलदुरितनिवारण) सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

श्री ल-कुमिव — ल्लभगॆ- सम करु- ।

णाळु-गळ ना — काणॆ-नॆल्लि कु- ।

चेल-नवलिगॆ — मॆच्चि- कॊट्टनु — सकल- संपद-व ॥ केळि-दाक्षण — वस्त्र-गळ पां- ।

चालि-गित्तनु — दैत्य-नुदरव ।

सीळि- संतै — सिदनु- प्रह्ला — दन कृ-पासां-द्र ॥ २२-१ ॥

देव- शर्मा — ह्वय कु-टुंबकॆ ।

जीव-नोपा — यवनु- काणदॆ ।

देव- देव श — रण्य- रक्षिसु — रक्षि-सॆनॆ के-ळि ॥

ता वॊ-लिदु पा — लिसिद- सौख्य कृ- ।

पाव-लोकन — दिंद-लीतन ।

सेवि-सदॆ सौ — ख्यगळ- बयसुव — रल्प- मानव-रु ॥ २२-२ ॥

श्रीनि-वासन — पोल्व- करुणिग- ।

ळी न-ळिनजां — डदॊळु- काणॆ प्र- ।

वीण-रादव — ररसि- नोळ्पुदु — शृति पु-राणदॊ-ळु ॥ द्रोण- भीष्म कृ — पादि-गळु कुरु- ।

सेनॆ-यॊळगिरॆ — अवर-वगुणग- ।

ळेनु- नोडदॆ — पालि-सिद पर — मात्म- परगति-य ॥ २२-३ ॥

चंड- विक्रम — चक्र- शंखव ।

तोंड-मान नृ — पाल-गित्तनु ।

भांड-कारक — भीम-न मृदा — भरण-गळिगॊलि-द ॥ मंडॆ-यॊडदा — काश-रायन ।

हॆंड-तिय नुडि — केळि- मगळिगॆ ।

गंड-नॆनिसिद — गहन- महिम ग — दाब्ज-धरपा-णि ॥ २२-४ ॥

गौत-मन निज — पत्नि-यनु पुरु ।

हूत- नैदिरॆ — काय्द- वृत्रन ।

घाति-सिद पा — पवनु- नाल्कु वि — भाग- माडिद-नु ॥ शांत- कुंभा — त्मक किरीटव ।

कैत-वदि क — द्दॊय्द- इंद्रा ।

राति- बागिल — काय्द- भक्त — त्वेन- स्वीकरि-सि ॥ २२-५ ॥

नार- नंद — व्रजद- स्त्रीयर ।

जार- कर्मकॆ — ऒलिद- अज सुकु ।

मार-नॆनिसिद — नंद-गोपगॆ — नळिन- भव जन-क ॥ वैर- वर्जित — दैत्य-रनु सं ।

हार- माडिद — विप ग-मन पॆग ।

लेरि-दनु गो — पाल-कर वृं — दाव-नदॊळं-दु ॥ २२-६ ॥

श्रीक-रार्चित — पाद- पल्लव ।

गोकु-लद गॊ — ल्लतिय-रॊलिसिद ।

पाक-शासन — पूज्य- गो गो — वत्स-गळ काय्-द ॥ नीक-रिसि कुरु — पतिय- भोजन ।

स्वीक-रिसिदनु — विदुर-नौतण ।

बाकु-लिकनं — ददलि- तोरिद — भक्त- वत्सल-नु ॥ २२-७ ॥

पुत्र-नॆनिसिद — गोपि-देविगॆ ।

भर्तृ-वॆनिसिद — वृजद- नारिय ।

रुत्र- लालिसि — पर्व-तव नॆग — हिद कृ-पासां-द्र ॥

शत्रु- तापन — यज्ञ- पुरुषन ।

पुत्रि-यर तं — दाळ्द- त्रिजग ।

द्धात्र- मंगळ — गात्र- परम प — वित्र- सुरमि-त्र ॥ २२-८ ॥

रूप-नामवि — हीन- गर्गा ।

रोपि-त सुना — मदलि- करॆसिद ।

व्याप-क परि — च्छिन्न- रूपदि — तोर्द- लोगरि-गॆ ॥ द्वाप-रांत्यदि — दैत्य-रनु सं ।

ताप-गॊळिसुवॆ — नॆंदु- श्वेत ।

द्वीप- मंदिर — नवत-रिसि सल — हिदनु- तन्नव-र ॥ २२-९ ॥

श्रीवि-रिंचा — द्यमर-नुत ना ।

नाव-तारव — माडि- सलहिद ।

देव-तॆगळनु — ऋषिग-ळनु क्षिति — परनु- मानव-र ॥ सेवॆ-गळ कै — कॊंडु- फलग-ळ – ।

नीव- नित्या — नंद-मय सु- ।

ग्रीव- धृव मॊद — लाद- भक्तरि — गित्त- पुरुषा-र्थ ॥ २२-१० ॥

दुष्ट- दानव — हरण- सर्वो- ।

त्कृष्ट- सद्गुण — भरित- भक्ता- ।

भीष्ट-दायक — भय वि-नाशक — विगत- भय शो-क ॥ नष्ट- तुष्टिग — ळिल्ल- सृष्ट्या- ।

द्यष्ट-कर्तनि — गाव- कालदि ।

हृष्ट-नागुव — स्मरणॆ- मात्रदि — हृद्गु-हावा-सि ॥ २२-११ ॥

हिंदॆ- प्रळयो — दकदि- तावरॆ- ।

कंद- नंजिसि — काय्द- तलॆयलि ।

बांदॊ-रॆय पॊ — त्तवगॊ-लिदु परि — यंक- पदवि-त्त ॥ वंदि-सिद वृं — दार-कर स- ।

द्वृंद- कुणिसिद — सुधॆय- करुणा- ।

सिंधु- कमला — कांत- बहु नि — श्चिंत- जयवं-त ॥ २२-१२ ॥

सत्य-संक — ल्पानु-सार प्र- ।

वर्ति-सुव प्रभु — तनगॆ- ताने ।

भृत्य-नॆनिसुव — भोक्तृ- भोग्य प — दार्थ-दॊळगि-द्दु ॥ तत्त-दाह्वय — नागि- तर्पक ।

तृप्ति- बडिसुव — तत्त्व- पतिगळ ।

मत्त-रादसु — रर्गॆ- असमी — चीन- फलवी-व ॥ २२-१३ ॥

बिट्टि-गळ नॆव — दिंद-डागलि ।

पॊट्टॆ-गोसुग — वाद-डागलि ।

कॆट्ट-रोग प्र — युक्त-वागलि — अणक-दिंदॊ-म्मॆ ॥

निट्टु-सिरिनिं — बाय्दॆ-रॆदु हरि ।

विठ्ठ-ला सल — हॆंदॆ-नलु कै- ।

गॊट्टु- काव कृ — पाळु- संतत — तन्न- भकुतर-नु ॥ २२-१४ ॥

ई व-सुंधरॆ — यॊळगॆ- श्रीभू ।

देवि-यरसन — सुगुण- कर्मग- ।

ळाव- बगॆयिं — दाद-डागलि — कीर्ति-सुव नर-र ॥ काव- कमलद — ळाय-ताक्ष कृ – ।

पाव- लोकन — दिंद- कपि सु- ।

ग्रीव-गॊलिदं — ददलि- ऒलिदभि — लाषॆ- पूरै-प ॥ २२-१५ ॥

चेत-नांत — र्यामि- लक्ष्मी- ।

नाथ- कर्मग — ळनुस-रिसि “जनि- ।

तोथ- विष्णो” — यॆंब- श्रुति प्रति — पाद्य- ऎम्मॊड-नॆ ॥ जात-नागुव — जन्म-रहिता ।

कूति-नंदन — भक्त-रिंदा- ।

हूत-नागि म — नोर-थव बे — डिसिकॊ-ळदली-व ॥ २२-१६ ॥

नृषतु- ऎनिसुव — मनुज-रॊळु सुर ।

ऋषभ-निंद्रिय — गळॊळु- तत्त- ।

द्विषय-गळ भुं — जिसुव- होता — ह्वयनु- ताना-गि ॥ मृष र-हित वे — ददॊळु- ऋतसतु- ।

पॆसरि-निंदलि — करॆसु-त जग- ।

त्प्रसवि-त निरं — तरदि- संतै — सुवनु- भकुतर-नु ॥ २२-१७ ॥

अब्ज-भवपित — जलध-राद्रियॊ- ।

ळब्ज- गोजा — द्रिज नॆ-निसि जल- ।

दुब्ब-ळॆयु पी — यूष-दावरॆ — श्रीश-शांकरॊ-ळु ॥ कब्बु- कदळि ल — ता तृ-ण द्रुम ।

हॆब्ब-गॆय मा — डुतिह- गोजनु ।

इब्ब-गॆ प्रती — क मणि-मृगगळ — सृजिप-नद्रिज-नु ॥ २२-१८ ॥

शृति वि-नुत स — र्वत्र-दलि भा- ।

रति र-मणनॊळ — गिद्दु- ता शुचि- ।

षतु ऎ-निसि जड — चेत-नरनु प — वित्र- माडुति-ह ॥

अतुळ- महिम अ — नंत-रूपा- ।

च्युतनॆ-निसि चि — द्देह-दॊळु प्रा- ।

कृत पु-रुषनं — ददलि- नाना — चेष्टॆ-गळ मा-ळ्प ॥ २२-१९ ॥

अतिथि- ऎनिसुव — नन्न-मय भा- ।

रति र-मणनॊळु — प्राण-मय प्रा- ।

कृत वि-षय चिं — तनॆय- माडिसु — वनु म-नोमय-नु ॥ यतन- विज्ञा — नमय- बरलद ।

जतन- माडिसि — आत्म-जाया ।

सुतर- संगदि — सुखव-नीवा — नंद-मयनॆनि-सि ॥ २२-२० ॥

इनितु- रूपा — त्मनिगॆ- दोषग ।

ळॆनितु- बप्पवु — पेळि-रै ब्रा- ।

ह्मण कु-लोत्तम — राद-वरु नि — ष्कपट- बुद्धिय-लि ॥ गुणनि-यामक — तत्त-दाह्वय- ।

नॆनिसि- कार्यव — माळ्प- देवन ।

नॆनॆद- मात्रदि — दोष-राशिग — ळॆल्ल- कॆडुतिह-वु ॥ २२-२१ ॥

कुस्थ-नॆनिसुव — भूमि-यॊळु आ- ।

शस्थ-नॆनिसुव — दिग्व-लयदॊळु ।

खस्थ-नॆनिपा — काश-दॊळु ऒ — ब्बॊब्ब-रॊळगि-द्दु । व्यस्त-नॆनिसुव — सर्व-रॊळगॆ स- ।

मस्त-नॆनिसुव — बळिय-लिद्दु उ- ।

पस्थ-नॆनिप वि — शोध-न विशु — द्धात्म- लोकदॊ-ळु ॥ २२-२२ ॥

ज्ञान-दनु ऎं — दॆनिप- शास्त्रदि ।

मान-दनु ऎं — दॆनिप- वसनदि ।

दान-शील सु — बुद्धि-यॊळगॆ व — दान्य-नॆनिसुव-नु ॥ वैन-तेयव — रूथ- तत्त- ।

त्स्थान-दलि त — त्तत्स्व-भावग- ।

ळानु-सार च — रित्रॆ- माडुत — नित्य- नॆलॆसि-प्प ॥ २२-२३ ॥

ग्राम-पनॊळ — ग्रणि ऎ-निसुवनु ।

ग्राम-णीयॆनि — सुवनु- जनरॊळु ।

ग्रामु-पग्रा — मगळॊ-ळगॆ श्री — मानॆ-निसुति-प्प ॥ श्रीम-नोरम — तानॆ- योग- ।

क्षेम- नामक — नागि- सलहुव ।

ई म-हिमॆ मि — क्काद- देवरि — गुंटॆ- लोकदॊ-ळु ॥ २२-२४ ॥

विजय-सारथि — यॆंदु- गरुड- ।

ध्वजन- मूर्तिय — भक्ति- पूर्वक ।

भजिसु-तिप्प म — हात्म-रिगॆ स — र्वत्र-दलि ऒलि-दु ॥ विजय-दनु ता — नागि- सलहुव ।

भुजग-भूषण — पूज्य- चरणां -।

भुज वि-भूतिद — भुवन- मोहन — रूप- निर्ले-प ॥ २२-२५ ॥

अनभि-मतक — र्म प्र-वहदॊळ- ।

गनिमि-षादि स — मस्त- चेतन ।

गणवि-हुदु त — त्फलग-ळुण्णदॆ — सृष्टि-सद मु-न्न ॥ वनितॆ-यिंदॊड — गूडि- करुणा- ।

वनधि- निर्मिसॆ — तम्म- तम्मय ।

अनुचि-तोचित — कर्म- फलगळ — उणुत- चरिसुव-रु ॥ २२-२६ ॥

झल्ल-डिय नॆळ — लंतॆ- भवसुख- ।

तल्ल-णव गॊळि — सुवुदु- निश्चय- ।

वल्ल- सालव — माडि- सक्करॆ — मॆद्द- तॆरदं-तॆ ॥ क्षुल्ल-कर कू — डाड-दलॆ श्री- ।

वल्ल-भन स — द्गुणग-णंगळ ।

बल्ल-वर कू — डाडि- संपा — दिसु प-रंपद-व ॥ २२-२७ ॥

झल्ल-डिय नॆळ — लंतॆ- तोर्पुदु ।

ऎल्ल- कालदि — भवद- सौख्यवु ।

ऎल्लि- पॊक्करु — बिडदॆ- बॆंब — त्तिहुदु- जीवरि-गॆ- ॥

ऒल्लॆ-नॆंदरॆ — बिडदु- हरि नि- ।

र्माल्य- नैवे — द्यवनु- भुंजिसि ।

बल्ल-वर कू — डाडु- भवदुः — खगळ – नीडाडु ॥ २२-२८ ॥

कुट्टि- कॊय्दुद — नट्टु- इट्टुद ।

सुट्टु- कॊट्टुद — मुट्ट-लघ हि- ।

ट्टिट्टु- माळ्पुदु — विठ्ठ-लुंडु — च्छिष्ठ- सज्जन-र ॥ बिट्टु- तन्नय — पॊट्टॆ-गोसुग ।

थट्ट-नुणुतिह — कॆट्ट- मनुजर ।

कट्टि- ऒय्दॆम — पट्ट-णदॊळॊ — त्तट्टि-लिडुतिह-रु ॥ २२-२९ ॥

जागु- माडदॆ — भोग-दासॆय ।

नीगि- परमनु — राग-दलि वर- ।

भोगि- शयनन — आग-रद हॆ — ब्बागि-ललि निं-दु ॥ कूगु-तलि शिर — बागि- करुणा- ।

साग-रनॆ भव — रोग- भेषज ।

कैगॊ-डॆंदॆनॆ — बेग- ऒदगुव — भाग-वतरर-स ॥ २२-३० ॥

एनु- करुणवॊ — तन्न-वरलि द- ।

यानि-धिगॆ स — द्भक्ति- जनरति – ।

हीन- कर्मव — माडि-दरु सरि — स्वीक-रिसि पॊरॆ-व ॥ प्राण-हिंसक — लुब्ध-कगॆ सु- ।

ज्ञान- पालिसि — तन्न- महिमॆ पु- ।

राण- रूपदि — पेळि-सिद रघु — सूनु- सुचरि-त्र ॥ २२-३१ ॥

मूढ- मानव — ऎल्ल- कालदि ।

बेडि-कॊंबिनि — तॆंदु- दैन्यदि ।

बेड-दंददि — माडु- पुरुषा — र्थगळ- स्वप्नद-लि ॥ नीडु-वरॆ नि — न्नमल-गुण कॊं- ।

डाडि- हिग्गुव — भाग-वतरॊड- ।

नाडि-सॆन्ननु — जन्म-जन्मग — ळल्लि- मरॆयद-लॆ ॥ २२-३२ ॥

चतुर-विध पुरु — षार्थ- रूपनु ।

चतुर- मूर्त्या — त्मकनि-रलु म- ।

त्तितर- पुरुषा — र्थगळ- बयसुव — रेनु- बल्लव-रु ॥

मति वि-हीनरु — अहिक- सुख शा- ।

श्वतवि-दॆंदरि — दनुदि-नदि गण -।

पतियॆ- मॊदला — दन्य- देवतॆ — गळनॆ- भजिसुव-रु ॥ २२-३३ ॥

द्रुहिण- मॊदला — दमर-गण स- ।

न्महित- सर्व — प्राणि-गळ हृ- ।

द्गुह नि-वासि ग — भीर- सर्वा — र्थ प्र-दायक-नु ॥ अहिक- पार — त्रदलि- विहिता- ।

विहित- कर्मग — ळरितु- फल स- ।

न्निहित-नागि — द्दॆल्ल-रिगॆ कॊडु — तिप्प- सर्व-ज्ञ ॥ २२-३४ ॥

ऒम्मॆ-गादरु — जीव-रॊळु वै- ।

षम्य- द्वेषा — सूय-विल्ल सु- ।

धर्म- नामक — संत-यिसुवनु — सर्व-रनु नि-त्य- ॥ ब्रह्म- कल्पां — तदलि- वेदा ।

गम्य- श्री जग — न्नाथ-विठ्ठल ।

सुम्म-नीवनु — त्रिविध-रिगॆ अव — रवर- निजगति-य ॥ २२-३५ ॥

॥ इति श्री भक्तापराधसहिष्णु (सकलदुरितनिवारण) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्री ।

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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥