हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
२३. बृहत्तारतम्य (आवेशावतारसन्धि)
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
हरि सि-रि विरिं — चीर- मुख नि- ।
र्जरर- आवे — शाव-तार्गळ ।
स्मरिसु- गुणगळ — सर्व-कालदि — भक्ति-पूर्वक-दि ॥ सं. सू. ॥
मीन- कूर्म — क्रोड- नरहरि ।
माण-वक भृगु — राम- दशरथ ।
सूनु- यादव — बुद्ध- कल्की — कपिल- वैकुं-ठ ॥ श्रीनि-वास — व्यास- ऋषभ ह- ।
यान-ना ना — राय-णी हं- ।
सानि-रुद्ध त्रि — विक्र-म श्री — धर हृ-षीके-श ॥ २३-१ ॥
हरियु- नारा — यणनु- कृष्णा- ।
सुरकु-लांतक — सूर्य- सप्रभ ।
करॆसु-वनु नि — र्दुष्ट- सुख परि –पूर्ण- तानॆं-दु ॥ सरुव- देवो — त्तमनु- सर्वग ।
परम- पुरुष पु — रात-न जरा- ।
मरण- वर्जित — वासु-देवा — द्यमित- रूपा-त्मा ॥ २३-२ ॥
ई न-ळिन भव — जननि- लक्ष्मी- ।
ज्ञान- बल भ — क्त्यादि- गुण सं ।
पूर्ण-ळॆनिपळु — सर्व-कालदि — हरि कृ-पाबल-दि ॥ हीन-ळॆनिपळ — नंत- गुणदि पु- ।
राण- पुरुषगॆ — प्रकृति-गिन्नु स- ।
मान-रॆनिसुव — रिल्ल- मुक्ता — मुक्त- सुररॊळ-गॆ ॥ २३-३ ॥
गुणग-ळ त्रय — मानि- श्रीकुं- ।
भिणि म-हा दु — र्गांभ्र-णी रु-।
ग्मिणियु- सत्या — शांति- कृति जय — माय- महलकु-मि ॥
जनक-जा कम — लाल-या द- ।
क्षिणॆयु- पद्मा — त्रीलॊ-केश्वरि ।
अणु म-हत्तिनॊ — ळिद्दु- उपमा — रहित-ळॆनिसुव-ळु ॥ २३-४ ॥
घोट-कास्यन — मडदि-गिंदलि ।
हाट-कोदर — पवन-रीर्वरु ।
कोटि- गुणदिं — दधम-रॆनिपरु — आव-कालद-लि ॥ खेट-पति शे — षाम-रेंद्रर ।
पाटि- माडदॆ — श्रीश-न कृपा- ।
नोट-दिंदलि — सर्व-रॊळु व्या — पार- माडुव-रु ॥ २३-५ ॥
पुरुष- ब्रह्म वि — रिंचि-यु महा ।
न्मरुत- मुख्य — प्राण- धृति स्मृति ।
गुरुव-र महा — ध्यात- बलवि — ज्ञात- विख्या-त ॥ गरळ-भुग्भव — रोग- भेषज ।
स्वरव-रण वे — दस्थ- जीवे- ।
श्वर वि-भीषण — विश्व-चेष्टक — वीत-भय भी-म ॥२३-६ ॥
अनिल- स्थिति वै — राग्य- निधि रो- ।
चन वि-मुक्तिग — नंद- दशमति ।
अनिमि-षेशा — निद्र- शुचि स — त्वात्म-क शरी-र ॥ अणुम-हद्रू — पात्म-कामृत ।
हनुम-दाद्यव — तार- पद्मा- ।
सन प-दवि सं — प्राप्त- परिसर — आख-णाश्म स-म ॥ २३-७ ॥
मात-रिश्व — ब्रह्म-रु जग- ।
न्मातॆ-गधमा — धीन-रॆनिपरु ।
श्रीत-रुणिव — ल्लभनु- ईर्वरॊ — ळाव- कालद-लि ॥
नीत- भक्ति — ज्ञान- बलरू- ।
पाति-शयदिं — दिद्दु- चेतना- ।
चेत-नगळॊळु — व्याप्त-नॆनिसुव — तत्त-दाह्वय-दि ॥ २३-८ ॥
सरस-वति वे — दात्मि-का भुजि । नरह-री गुरु — भक्ति- ब्राह्मी ।
परम-सुख बल — पूर्णॆ- श्रद्धा — प्रीति- गाय-त्री ॥
गरुड- शेषर — जननि- श्रीसं- ।
करुष-ण जया — तनुजॆ- वाणी ।
करण- नीया — मकॆ च-तुर्दश — भुवन- सन्मा-न्यॆ ॥ २३-९ ॥
काळि- द्रौपदि — काशि-जा पां- ।
चालि- शिवक — न्येंद्र- सेना ।
काल-मानी — चंद्र- विद्युन् — नाम- भारति-गॆ ॥
गाळि- ब्रह्मर — युवति-यरु ए- ।
ळेळु- ऐव — त्तॊंदु- गुणदिं ।
कीळ-रॆनिपरु — तम्म- पतिगळि — गिंत-लावा-ग ॥ २३-१० ॥
हरि स-मीरा — वेश- नर सं- ।
करुष-णावे — शयुत- लक्ष्मण ।
परम- पुरुषन — शुक्ल- केशा — वेश- बलरा-म ॥
हर स-दाशिव — तप अ-हंकृतु ।
मरुत-युक्त शु — कोर्ध्व-पट त- ।
त्पुरुष- जैगी — षौर्व- द्रौणी — व्याध- दुर्वा-स ॥ २३-११ ॥
गरुड- शेष श — शांक-दळ शे- ।
खररु- तम्मॊळु — समरु- भारति- ।
सरसि-जासन — पत्नि-गधमरु — नूरु- गुणदिं-द ॥ हरि म-डदि जां — बवति-यॊळु श्री- ।
तरुणि-यावे — श विहु-दॆंदिगु ।
कॊरतॆ-यॆनिपरु — गरुड- शेषरि — गैव-रैदु गु-ण ॥ २३-१२ ॥
नील- भद्रा — मित्र-विंदा ।
मेलॆ-निप का — ळिंदि- लक्षण ।
बालॆ-यरिगिं — तधम- वारुणि — सौप-रणि गिरि-जा ॥ श्रील-कुमियुत — रेव-ती श्री ।
मूल-रूपदि — पेय-ळॆनिपळु ।
शैल-जाद्यरु — दशगु-णाधम — तम्म- पतिगळि-गॆ ॥ २३-१३ ॥
नरह-रीरा — वेश- संयुत- ।
नर पु-रंदर — गाधि- कुश मं- ।
दर-द्युम्न वि — कुक्षि- वाली — इंद्र-नवता-र ॥
भरत- ब्रह्मा — विष्ट- सांब सु- ।
दरुश-न प्र — द्युम्न- सनका- ।
द्यरॊळ-गिप्प स — नत्कु-मारनु — षण्मु-खनु का-म ॥ २३-१४ ॥
ईर-यिदु गुण — कडिमॆ- पार्वति ।
वारु-णीयरि — गिंद्र- काम श- ।
रीर-मानि — प्राण- दश गुण — अवर- शक्रनि-गॆ ॥ मार-जारति — दक्ष- गुरु वृ- ।
त्रारि-जाया — शचि स्व-यंभुव- ।
रारु- जन सम — प्राण-गवररु — हत्तु-गुणदिं-द ॥ २३-१५ ॥
काम- पुत्रनि — रुद्ध- सीता- ।
राम-नानुज — शत्रु-हन बल- ।
राम-नानुज — पौत्र- अनिरु — द्धनॊळ-गनिरु-द्ध ॥ काम-भार्या — रुग्म-वति स- ।
न्नाम- लक्षण — ळॆनिसु-वळु पौ- ।
लोमि- चित्रां — गदॆयु- तारा — ऎरडु- पॆसरुग-ळु ॥ २३-१६ ॥
तार-नामक — त्रेतॆ-यॊळु सी- ।
तार-मणना — राधि-सिदनु स- ।
मीर-युक्तो — द्धवनु- कृष्णगॆ — प्रीय-नॆनिसिद-नु ॥ वारि-जासन — युक्त- द्रोणनु ।
मूरु- इळॆयॊळु — बृह-स्पतिगव- ।
तार-वॆंबरु — महा-भारत — तात्प-रियदॊळ-गॆ ॥ २३-१७ ॥
मनु मु-खाद्यरि — गिंत- प्रवहनु- ।
गुणदि-पंचक — नीच-नॆनिसुव ।
इनश-शांकरु — धर्म- मानवि — ऎरडु- गुणदिं-द ॥ कनिय-रॆनिपरु — प्रवह-गिंतलि ।
दिनप- शशि यम — धर्म- रूपग- ।
ळनुदि-नदि चिं — तिपुदु- संतरु — सर्व- कालद-लि ॥ २३-१८ ॥
मरुत-नावे — शयुत- धर्मज । करडि- विदुररु — सत्य-जितु ई ।
रॆरडु- धर्मन — रूप- ब्रह्मा — विष्ट- सुग्री-व ॥ हरिय- रूपा — विष्ट- कर्णनु ।
तरणि-गॆरडव — तार- चंद्रम ।
सुरप-नावे — शयुत-नंगद — नॆनिसि-कॊळुति-प्प ॥ २३-१९ ॥
तरणि-गिंदलि — पाद- पादरॆ ।
वरुण- नीच म — हाभि-षकु द- ।
र्दुर सु-षेणनु — शंत-नुवु ना — ल्वरु व-रुणरू-प ॥ सुरमु-नी ना — रदनु- किंचित् ।
त्कॊरतॆ- वरुणगॆ — अग्नि- भृगु अज- ।
गॊरळ- पत्नि प्र — सूति- मूवरु — नार-दनिगध-म ॥ २३-२० ॥
नील- दृष्ट — द्युम्न- लव ई ।
लेलि-हानन — रूप-गळु भृगु ।
कालि-लॊद्दद — रिंद- हरियनु — व्याध-नॆनिसिद-नु ॥
एळु- ऋषिगळि — गुत्त-मरु मुनि- ।
मौळि- नारद — गधम- मूवरु ।
गाळि-युत प्र — ह्लाद- बाह्लिक — राय-नॆनिसिद-नु ॥ २३-२१ ॥
जनप- कर्मज — रॊळगॆ- नारद ।
मुनिय-नुग्रह — बलदि- प्रह्ला- ।
दनल- भृगुमुनि — दक्ष-पत्निगॆ — समनॆ-निसिकॊं-ब ॥ मनुवि-वस्वान् — गाधि-जीर्वरु ।
अनल-गिंतलि — किंचि-ताधम- ।
ऎणॆयॆ-निसुवरु — सप्त-ऋषिगळि — गॆल्ल- कालद-लि ॥ २३-२२ ॥
कमल- संभव — भवरॆ-निप सं- ।
यमि म-रीचियु — अत्रि- यंगिर- ।
सुमति- पुलहा — क्रतु व-सिष्ठ पु — लस्त्य-मुनि स्वा-हा- । रमण-गधमरु — मित्र- नामक ।
द्युमणि- राहू — युक्त- भीष्मक ।
यमळ- रूपनु — तार- नामक — नॆनिप- त्रेतॆयॊ-ळु ॥ २३-२३ ॥
निऋति-गॆरडव — तार- दुर्मुख । हरयु-त घटो — त्कचनु- प्रावहि ।
गुरुम-डदि ता — रास-मरु प — र्जन्य-गुत्तम-रु ॥
करिगॊ-रळ सं — युक्त- भगद- ।
त्तरसु- कत्थन — धनप- रूपग- ।
ळॆरडु- विघ्नप — चारु-देष्णनु — अश्वि-निगळु स-म ॥ २३-२४ ॥
द्रोण- धृव दो — षार्क- नग्नियु ।
प्राण-द्युविभा — वसुग-ळॆंटु कृ- ।
शानु- श्रेष्ठ द्यु — नाम- वसु भी — ष्मार्य- ब्रह्मयु-त ॥ द्रोण-नामक — नंद-गोप प्र- ।
धान- अग्निय — नुळिदु- एळु स- ।
मान-रॆनिपरु — तम्मॊ-ळगॆ ज्ञा — नादि- गुणदिं-द ॥ २३-२५ ॥
भीम-रैवत — ओज-जैकप- ।
दाम-हान् बहु — रूप-कनु भव ।
वाम- उग्र वृ — षाक-पियहिर् — बुध्नि- ऎनुति-प्प ॥
ई म-हात्मर — मध्य-दॊळगॆ उ- ।
मा म-नोहर — उत्त-मनु दश- ।
नाम-करु सम — रॆनिसि-कॊंबरु — तम्मॊ-ळॆंदॆं-दु ॥ २३-२६ ॥
भूर्य-जैकप — दाह्व-हिर्बु- ।
ध्नीर-यिदु रु — द्रगण- संयुत ।
भूरि-श्रवनॆं — दॆनिप- शल विरु — पाक्ष- नामक-नु ॥ सूरि- कृप वि — ष्कंभ- सहदे- ।
वा र-णाग्रणि — सोम-दत्तनु ।
ता र-चिसिद द्वि — रूप- धरॆयॊळु — पत्र-तापक-नु ॥ २३-२७ ॥
देव-शक्र नु — रुक्र-मनु मि- ।
त्रा व-रुण प — र्जन्य- भग पू- ।
षा वि-वस्वान् — सवितृ- धाता — अर्य-म त्व-ष्टा ॥
देव-की सुत — नल्लि सवितृ वि- ।
भाव- सूसुत — भानु- ऎनिसुव ।
ज्याव-नपयुत — वीर-सेननु — त्वष्टृ- नामक-नु ॥ २३-२८ ॥
ऎरड-धिक दश — सूर्य-रॊळु मू- । रॆरडु- जनरु — त्तम वि-वस्वान् ।
वरुण- शक्रनु — रुक्र-मनु प — र्जन्य- मित्रा-ख्य ॥ मरुत-नावे — शयुत- पांडू ।
वर प-रावह — नॆंदॆ-निप के- ।
सरि मृ-गप सं — पाति- श्वेत — त्रयरु- मरुदं-श ॥ २३-२९ ॥
प्रतिभ- वातनु — चेकि-तनु वि- ।
पृथुवॆ-निसुवनु — सौम्य- मारुत ।
वितत- सर्वो — त्तुंग- गजना — मकरु- प्राणां-श ॥ द्वितिय-पान ग — वाक्ष- गवयनु ।
तृतिय- व्यान उ — दान- वृषप- ।
र्वतुळ- शर्व — त्रात- गंधसु — माद-नरु सम-न ॥ २३-३० ॥
ऐव-रॊळगी — कुंति-भोजनु ।
आवि- नामक — नाग- कृकलनु ।
देव-दत्त ध — नंज-यरु अव — तार- वर्जित-रु ॥ आव-होद्वह — विवह- संवह ।
प्राव-हीपति — मरुत- प्रवहनि- ।
गाव- कालकु — किंचि-दधमरु — मरुत- गणरॆ-ल्ल ॥ २३-३१ ॥
प्राण-पान — व्यानु-दान स- । मान-रैवर — नुळिदु- मरुतरु ।
ऊन-रॆनिपरु — हत्तु- विश्वे — देव-रिवरिं-द ॥ सूनु-गळु ऎनि — सुवरु- ऐवरु ।
मानि-नी द्रौ — पदिगॆ- कॆलवरु ।
क्षोणि-यॊळु कै — केय-रॆनिपरु — ऎल्ल- कालद-लि ॥ २३-३२ ॥
प्रतिवि-द शृत — सोम- शृतकी- ।
रुति श-तानिक — शृतक- रम द्रौ-
पदि कु-वररिव — रॊळगॆ- अभिता — म्र प्र-मुख चि-त्र- ॥ रथनु- गोप कि — शोर- बलरॆं- ।
बतुळ-रै गं — धर्व-रिंदलि ।
युतरु- धर्म वृ — कोद-रादिज — रॆंदु- करॆसुव-रु ॥ २३-३३ ॥
विविद- मैंदरु — नकुल- सहदे- ।
व विभु- त्रिशिखा — श्विनिग-ळिवरॊळु ।
दिविप-नावे — शविहु-दॆंदिगु — द्याव- पृथ्वि ऋ-भु ॥ पवन-सुत वि — ष्वक्सॆ-ननुमा- ।
कुवर- विघ्नप — धनप- मॊदला- ।
दवरु- मित्रगॆ — किंचि-ताधम — रॆनिसि- कॊळुतिह-रु ॥ २३-३४ ॥
पाव-काग्नि कु — मार-नॆनिसुव ।
च्याव-न नुच — थ्यमुनि- चाक्षुष ।
रैव-त स्वा — रोचि-षोत्तम — ब्रह्म-रुद्रें-द्र ॥
देव- धर्मनु — दक्ष-नामक ।
साव-रणि शश — बिंदु- पृथु प्री- ।
यव्र-तनु मां — धात- गयनु क — कुत्थ्स- दौष्यं-ति ॥ २३-३५ ॥
भरत- ऋषभज — हरिणि-ज द्विज ।
भरत- मॊदला — दखिळ-रायरॊ- ।
ळिरुति-हुदु श्री — विष्णु- प्राणा — वेश- प्रतिदिन-दि ॥
वर दि-वस्पति — शंभु-रद्भुत ।
करॆसु-वनु बलि — विधृत- धृत शुचि ।
नॆरॆ ख-लू कृत — धाम- मॊदला — दष्ट- गंध-र्व ॥ २३-३६ ॥
अरसु-गळु क — र्मजरु- वैश्वा- ।
नर ग-धम शत — गुणदि- विघ्ने- ।
श्वरगॆ- किंचि — द्गुण क-डिमॆ बलि — मुख्य- पावक-रु ॥ शरभ- पर्ज — न्याख्य- मेघप ।
तरणि- भार्या — संज्ञॆ- शार्वरि- ।
करन- पत्नियु — रोहि-णी श्या — मलॆयु- देवकि-यु ॥ २३-३७ ॥
अरसि- ऎनिपळु — धर्म-राजगॆ ।
वरुण- भार्यो — षादि- षट्करु ।
कॊरतॆ-यॆनिपरु — पाव-काद्यरि — गॆरडु- गुणदिं-द ॥
ऎरडु- मूर्जन — गधम- स्वाहा ।
करॆसु-वळुषा — देवि- वैश्वा- ।
नरन- मडदिगॆ — दशगु-णावर — ळश्वि-नी भा-र्या ॥ २३-३८ ॥
सुदरु-शन श — क्रादि-सुरयुत । बुधनु- तानभि — मन्यु-वॆनिसुव ।
बुधनि-गिंद — श्विनिय- भार्यॆयु — शल्य- मागध-र ॥
उदर- जोषा — देवि-गिंतलि ।
अधम-नॆनिप श — नैश्च-रनु शनि ।
गधम- पुष्कर — कर्म-पनु ऎनि — सुवनु- बुधरिं-द ॥ २३-३९ ॥
उद्व-हा मरु — तान्वि-त विरा- ।
ध द्वि-तिय सं — जयनु- तुंबुरु ।
विद्व-दुत्तम — जनमॆ- जय त्व — ष्टृयुत- चित्रर-थ ॥ सद्वि-नुत दम — घोष-क कबं- ।
धद्व-यरु गं — धर्व-दनु मनु ।
पद्म-संभव — युत कि-शोर — क्रूर- नॆनिसुव-नु ॥ २३-४० ॥
वायु-युत धृत — राष्ट्र- दिविजर ।
गाय-कनु धृत — राष्ट्र- नक्रनु ।
राय- द्रुपदा — वह वि-शिष्टनु — हूहु- गंध-र्व ॥ नाय-क विरा — ड्विवह- हाहा ।
ज्ञेय- विद्या — धरनॆ- अजगर ।
ता यॆ-निसुवनु — उग्र-सेननॆ — उग्र-सेना-ख्य ॥ २३-४१ ॥
बिसज- संभव — युक्त- विश्वा- ।
वसु यु-धाम — न्युत्त-मौजस ।
बिसज-मित्रा — र्यमयु-त परा — वसुवॆ-निसुति-प्प ॥
असम- मित्रा — न्वितनु- सतजितु ।
वसुधॆ- चित्रा — सेन- अमृतां- ।
धसर- गायक — रॆंदु- करॆसुव — राव-कालद-लि ॥ २३-४२ ॥
उळिद- गंध — र्वरुग-ळॆल्लरु ।
बलि मॊ-दलु गो — पाल-रॆनिपरु ।
इळॆयॊ-ळगॆ सै — रंध्रि- पिंगळॆ — अप्स-र स्त्री-यु ॥ तिलॊत-मॆयु पू –र्वदलि- नकुलन- ।
ललनॆ- पार्वति — यॆनिसु-वळु गो- ।
कुलद- गोपिय — रॆल्ल- शबरी — मुख्य-रप्सर-रु ॥ २३-४३ ॥
कृष्ण-वर्त्मन — सुतरॊ-ळगॆ शत- । द्व्यष्ट-साविर — स्त्रीय-रल्लि प्र- ।
विष्ट-ळागि र — मांब- तत्त — न्नाम- रूपद-लि ॥ कृष्ण-महिषिय — रॊळगॆ- इप्पळु ।
त्वष्टृ-पुत्रि क — शेरु- इवरॊळु ।
श्रेष्ठ-ळॆनिपळु — उळिद- ऋषिगण — गोपि-का सम-रु ॥ २३-४४ ॥
सूनु-गळु ऎनि — सुवरु- देव कृ- ।
शानु-विगॆ क्रथ — शुंधि- शुचि पव- ।
मान- कैशिक — रैदु- तुंबुरु — ऊर्व-शी शत-रु ॥ मेन-का ऋषि — राय-रुगळा- ।
जान- सुररिगॆ — समरॆ-निपरु सु- ।
राण-करना — ख्यात- दिविजर — जनक-रॆनिसुव-रु ॥ २३-४५ ॥
पाव-करिगिं — तधम-रॆनिसुव ।
देव- कुलजा — नाख्य- सुरगण ।
कोवि-दरु ना — ना सु-विद्यदि — स्वोत्त-मर नि-त्य ॥
सेवि-परु स — द्भक्ति- पूर्वक ।
स्वाव-ररिगुप — देशि-सुवरु नि- ।
राव-लंबन — विमल- गुणगळ — प्रति दि-वसद-ल्लि ॥ २३-४६ ॥
सुररॊ-ळगॆ वर — णाश्र-मगळॆं- ।
बॆरडु- धर्मग — ळिल्ल- तम्मॊळु ।
निरुप-मरु ऎं — दॆनिसि-कॊंबरु — तार-तम्यद-लि ॥
गुरुवु- शिष्य — त्ववु ऋ-षिगळॊळ- ।
गिरुति-हुदु आ — जान-सुररिगॆ ।
चिरपि-तृ शता — धमरॆ-निसुवरु — एळु-जनरुळि-दु ॥ २३-४७ ॥
चिरपि-तृगळिं — दधम- गंध- । र्वरुग-ळॆनिपरु — देव-नामक ।
कॊरतॆ-यॆनिसुव — चक्र-वर्तिग — ळिंद- गंध-र्व ॥ नररॊ-ळुत्तम — रॆनिसु-वरु ह- ।
न्नॆरडु- ऎंभ — त्तॆंटु- गुणदलि ।
हिरिय-रॆनिपरु — क्रमदि- देवा — वेश- बलदिं-द ॥ २३-४८ ॥
देव-तॆगळिं — प्रेष्य-रॆनिपरु । देव-गंध — र्वरुग-ळवरिं- ।
दाव- कालकु — शिक्षि-तरु नर — नाम- गंध-र्व ॥
केव-लति स — द्भक्ति- पूर्वक ।
याव-दिंद्रिय — गळ नि-यामक ।
श्रीव-रनॆ ऎं — दरितु- भजिपरु — मानु-षोत्तम-रु ॥ २३-४९ ॥
बाद-रायण — भाग-वत मॊद- ।
लाद- शास्त्रग — ळल्लि- बहु विध ।
द्वाद-श दश सु — पंच-विंशति — शत स-हस्रयु-त ॥ भेद-गळ पे — ळिदनु- स्वोत्तम ।
आदि-तेया — वेश- बलदि वि- ।
रोध- चिंतिस — बार-दिदु सा — धुजन- सम्मत-वु ॥ २३-५० ॥
इवरु- मुकुतिगॆ — योग्य-रॆंबरु- ।
श्रवण- मनना — दिगळ- परमो- ।
त्सवदि- माडुत — केळि- नलियुत — धर्म- कामा-र्थ ॥
त्रिविध- फलगळ — पेक्षि-सदॆ श्री- ।
पवन-मुख दे — वांत-रात्मक ।
प्रवर- तम शि — ष्टेष्ट-दायक — नॆंदु- स्मरिसुव-रु ॥ २३-५१ ॥
नित्य- संसा — रिगळु- गुण दो- ।
षात्म-करु ब्र — ह्मादि- दिविजर ।
भृत्य-रॆंबरु — राज-नोपा — दियलि- हरियॆं-ब ॥ कृत्ति-वासनु — ब्रह्म- श्री वि- ।
ष्णुत्र-यरु सम — दुःख- सुख उ- ।
त्पत्ति- मृति भय — पेळु-वरु अव — तार-गळिगॆ स-दा ॥ २३-५२ ॥
तार-तम्य — ज्ञान-विल्लदॆ ।
सूरि-गळ निं — दिसुत- नित्यदि ।
तोरु-तिप्परु — सुजन-रोपा — दियलि- नररॊळ-गॆ ॥
क्रूर- कर्मा — सक्त-रागि श- ।
रीर- पोषणॆ — गोसु-गदि सं- ।
चार- माळ्परु — अन्य-देवतॆ — नीच-रालय-दि ॥ २३-५३ ॥
दश-प्रमति म — ताब्धि-यॊळु सुम- । नसरॆ-निप र — त्नगळ-नवलो- ।
किसि तॆ-गॆदु प्रा — कृत सु-भाषा — तंतु-गळ रचि-सि ॥ असुप-ति श्री — रमण-गॆ सम- ।
र्पिसिदॆ- सज्जन — रिदनु- संतो- ।
षिसलि- दोषग — ळॆणिस-दलॆ का — रुण्य-दलि नि-त्य ॥ २३-५४ ॥
निरुप-म श्री — विष्णु- लक्ष्मी- ।
सरसि-जोद्भव — वायु- वाणी- ।
गरुड- षण्महि — षियरु- पार्वति — शक्र- स्मर प्रा-ण ॥
गुरु बृ-हस्पति — प्रवह- सूर्यनु ।
वरुण- नारद — वह्नि- सप्तां- ।
गिररु- मित्र ग — णेश- पृथु गं — गा स्व-हा बुध-नु ॥ २३-५५ ॥
तरणि- तनय श — नैश्च-रनु पु- ।
ष्करन-जानज — चिरपि-तरु गं- ।
धरुव-रीर्वरु — देव- मानुष — चक्र-वर्तिग-ळु ॥ नररॊ-ळुत्तम — मध्य-माधम ।
करॆसु-वरु म — ध्योत्त-मरु ई- ।
रॆरडु- जन कै — वल्य- मार्ग — स्थरॆं-दानमि-पॆ ॥ २३-५६ ॥
सार- भक्ति — ज्ञान-दि बृह- ।
त्तार-तम्यव — नरितु- पठिसुव ।
सूरि-गळिगनु — दिनदि- पुरुषा — र्थगळ- पूरै-सि ॥ कारु-णिक मरु — तांत-रात्मक ।
मार-मण जग — नाथ-विठ्ठल ।
तोरि-कॊंबनु — हृत्क-मलदॊळु — योग्य-तॆगळरि-तु ॥ २३-५७ ॥
॥ इति श्री बृहत्तारतम्य (आवेशावतारसन्धि) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥