हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
२४. कल्पसाधन (अपरोक्ष तारतम्य) सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
एक-विंशति — मत प्र-वर्तक ।
काकु- माय्गळ — कुहक- युक्ति नि- ।
राक-रिसि स — र्वोत्त-मनु हरि — यॆंदु- स्थापिसि-द ॥ श्रीक-ळत्रन — सदन- द्विजप पि- ।
नाकि-सन्नुत — महिम- परम कृ- ।
पाक-टाक्षदि — नोडु- मध्वा — चार्य- गुरुव-र्य ॥ २४-१ ॥
वेध- मॊदला — गिप्प-मल मो- ।
क्षाधि-कारिग — ळाद- जीवर ।
साध-नगळप — रोक्ष- नंतर — लिंग- भंगव-नु ॥ साधु-गळु चि — त्तYइपु-दॆन्नप- ।
राध-गळ नो — डदलॆ- चक्र ग ।
दाध-रनु पे — ळिसिद- तॆरदं — ददलि- पेळुवॆ-नु ॥ २४-२ ॥
तृण कृ-मि द्विज — पशु न-रोत्तम ।
जनप- नर गं — धर्व- गणरिव- ।
रॆनिप-रंश वि — हीन- कर्म सु — योगि-गळु ऎं-दु ॥
तनु प्र-तीकदि — बिंब-ननुपा- ।
सनव- गैयुत — लिंद्रि-यज क- ।
र्मनव-रत हरि — गर्पि-सुत नि — र्ममरु- ऎनिसुव-रु ॥ २४-३ ॥
एळु- विध जी — व गण- बहळ सु- ।
राळि- संख्या — नेम-वुळ्ळदु ।
ताळि- नरदे — हवनु- ब्राह्मण — कुलद-लवतरि-सि ॥ स्थूल- कर्मव — तॊरॆदु- गुरुगळु ।
पेळि-दर्थव — तिळिदु- तत्त- ।
त्काल- धर्म स — मर्पि-सुतिहरु — कर्म-योगिग-ळु ॥ २४-४ ॥
हीन- कर्मग — ळिंद- बहु विध- ।
योनि-यलि सं — चरिसि- प्रांतकॆ ।
मानु-षत्वव — नैदि- सर्वो — त्तमनु- हरियॆं-ब । ज्ञान- भक्तिग — ळिंद- वेदो- ।
क्तानु-सार स — हस्र- जनुमा- ।
न्यून- कर्मव — माडि- हरिग — र्पिसिद- नंतर-दि ॥ २४-५ ॥
हत्तु- जन्मग — ळल्लि- हरि स- ।
र्वोत्त-म सुरा — सुर ग-णार्चित ।
चित्र-कर्म वि — शोक-नंता — नंत- रूपा-त्म ॥ सत्य-सत्सं — कल्प- जगदु- ।
त्पत्ति- स्थिति लय — कार-ण जरा- ।
मृत्यु- वर्जित — नॆंदु-पासनॆ — गैद- तरुवा-य ॥ २४-६ ॥
मूरु- जन्मग — ळल्लि- देहा ।
गार- पशु धन — पत्नि- मित्र कु- ।
मार- माता — पितृग-ळल्लिह — स्नेह-किंतधि-क ॥ मार-मणनलि — बिडदॆ- माडुव ।
सूरि-गळु ई — उक्त- जनुमव ।
मीरि- परमा — त्मन स्व-देहदि — नोडि- सुखिसुव-रु ॥ २४-७ ॥
देव-गायक — जान- चिरपितृ- ।
देव-रॆल्लरु — ज्ञान-योगिग- ।
ळाव- कालकु — पुष्क-र शनै — श्चर उ-षा स्वा-हा- । देवि- बुध सन — कादि-गळु मे- ।
घाव-ळी प — र्जन्य-सांशरु ।
ई वु-भय गण — दॊळगि-वरु वि — ज्ञान- योगिग-ळु ॥ २४-८ ॥
भरत- खंडदि — नूरु- जनुमव ।
धरिसि- निष्का — मक सु-कर्मा- ।
चरिसि-दानं — तरदि- दशसा — हस्र- जन्मद-लि ॥
उरुत-र ज्ञा — नवनु- पडॆदै ।
दॆरडु- दश दे — हदलि- भकुतिय ।
निरव-धिकनलि — माडि- कांबरु — बिंब-रूपव-नु ॥ २४-९ ॥ साध-नात्पू — र्वदलि- इवरि ग- ।
नादि- कालप — रोक्ष-विल्ल नि- ।
षेध- कर्मग — ळिल्ल- नरक — प्राप्ति- मॊदलि-ल्ल ॥
वेद- शास्त्रग — ळल्लि- इप्प वि- ।
रोध- वाक्यव — परिह-रिसि मधु ।
सूद-ननॆ स — र्वोत्त-मोत्तम — नॆंदु- सुखिसुव-रु ॥ २४-१० ॥
सत्य-लोका — धिपन- हिडिदु श- ।
तस्थ- देवग — णांत- ऎल्लरु ।
भक्ति- योगिग — ळॆंदु- करॆसुव — राव-कालद-लि ॥
भक्ति- योग्यर — मध्य-दलि स- ।
द्भक्ति- विज्ञा — नादि- गुणदिं- ।
दुत्त-मोत्तम — ब्रह्म-वायू — वाणि- वाग्दे-वि ॥ २४-११ ॥
ऋजुग-णकॆ भ — क्त्यादि- गुण स- ।
हजवॆ-निसुववु — क्रमदि वृद्ध्या ।
ब्जज प-दवि परि — यंत- बिंबो — पास-नवु अधि-क ॥
वृजिन- वर्जित — रिवरॊ-ळगॆ त्रिगु- ।
णज वि-कारग — ळिल्ल-वॆंदिगु ।
द्विज फ-णिप मृड — शक्र- मॊदला — दवरॊ-ळिरुतिह-वु ॥ २४-१२ ॥
साध-नात्पू — र्वदलि- ई ऋ- ।
ज्वादि- तात्विक — रॆनिप- सुरगण- ।
नादि- सामा — न्याप-रोक्षिग — ळॆंदु- करॆसुव-रु ॥ साध-नोत्तर — स्वस्व-बिंब उ- ।
पाधि-रहिता — दित्य- नंददि ।
साद-रदि नो — डुवरु- अधिका — रानु-सारद-लि ॥ २४-१३ ॥
छिन्न- भक्तरु — ऎनिसु-तिहरु सु- ।
पर्ण- शेषा — द्यमर-रॆल्ला- ।
च्छिन्न- भक्तरु — नाल्व-रॆनिपरु — भार-ती प्रा-ण ॥ सॊन्नॊ-डल वा — ग्देवि-यरु पणॆ ।
गण्ण- मॊदला — दवरॊ-ळगॆ त- ।
त्तन्नि-यामक — रागि- व्यापा — रवनॆ- माडुव-रु ॥ २४-१४ ॥
हीन- सत्क — र्मगळॆ-रडु पव- ।
मान-देवनु — माळ्प-निदकनु- ।
मान-विल्लॆं — दॆनुत- दृढ भ — क्तियलि- भजिप-र्गॆ ॥ प्राण-पति सं — प्रीत-नागि कु- ।
योनि-गळ कॊड — नॆल्ल- कर्मग- ।
ळानॆ- माडुवॆ — नॆंब- मनुजर — नरक-वैदिसु-व ॥ २४-१५ ॥
देव- ऋषि पितृ — नृपन-रॆनिसुव ।
ऐव-रॊळु नॆलॆ — सिद्दु- अवर स्व- ।
भाव- कर्मव — माडि- माडिप — नॊंदु- रूपद-लि ॥ भावि- ब्रह्मनु — कूर्म- रूपद ।
ली वि-रिंचां — डवनु- बॆन्नॊळु ।
ता व-हिसि लो — कगळ- पॊरॆवनु — द्वितिय- रूपद-लि ॥ २४-१६ ॥
गुप्त-नागि — द्दनिल-देव द्वि- ।
सप्त- लोकद — जीव-रॊळगॆ त्रि- ।
सप्त- साविर — दारु-नूरु — श्वास- जपगळ-नु ॥
सुप्ति- स्वप्नदि — जाग्र-तॆगळलि ।
आप्त-नंददि — माडि- माडिसि ।
क्लृप्त-भोगग — ळीव- प्रांतकॆ — तृतिय- रूपद-लि ॥ २४-१७ ॥
शुद्ध- सत्वा — त्मक श-रीरदॊ- ।
ळिद्द- कालकु — लिंग- देहवु ।
बद्ध-वागदु — दग्ध- पटदो — पादि- इरुतिहु-दु ॥ सिद्ध- साधन — सर्व-रॊळगन- ।
वद्य-नॆनिसुव — गरुड- शेष क- ।
पर्दि- मॊदला — दमर-रॆल्लरु — दास-रॆनिसुव-रु ॥ २४-१८ ॥
गणदॊ-ळगॆ ता — निद्दु- ऋजुयॆं- ।
दॆनिसि-कॊंबनु — कल्प-शत सा- ।
धनव-गैदा — नंत-रदि ता — कल्कि- ऎनिसुव-नु ॥ द्विनव-शीति — प्रांत- भागद ।
अनिल- हनुम — द्भीम- रूपदि ।
दनुज-रॆल्लर — सदॆदु- मध्वा — चार्य-रॆनिसिद-नु ॥ २४-१९ ॥
विश्व- व्यापक — हरिगॆ- ता सा- ।
दृश्य- रूपव — धरिसि- ब्रह्म स- ।
रस्व-ती भा — रतिग-ळिंदॊड — गूडि- पवमा-न ॥
शाश्व-त सुभ — क्तियलि- सुज्ञा- ।
न स्व-रूपन — रूप- गुणगळ- ।
नश्व-रवु ऎं — दॆनुत- पॊगळुव — शृतिग-ळॊळगि-द्दु ॥ २४-२० ॥
खेट- कुक्कुट — जलट-वॆंब त्रि- ।
कोटि- रूपव — धरिसि- सतत नि- ।
शाट-रनु सं — हरिसि- सलहुव — सर्व- सज्जन-र ॥ कैट-भारिय — पुरद- प्रथम क- ।
वाट-नॆनिसुव — गरुड- शेष ल- ।
लाट- लोचन — मुख्य- सुररिगॆ — आव-कालद-लि ॥ २४-२१ ॥
ई ऋ-जुगळॊळ — गॊब्ब- साधन ।
नूरु- कल्पदि — माडि- करॆसुव ।
जारु-तर मं — गळ सु-नामदि — कल्प- कल्पद-लि ॥ सूरि-गळु सं — तुतिसि- वंदिसॆ ।
घोर-दुरितग — ळळिदु- पोपुवु ।
मार-मण सं — प्रीत-नागुव — सर्व- कालद-लि ॥ २४-२२ ॥
पाहि- कल्कि सु — तेज- दासनॆ ।
पाहि- धर्मा — धर्म- खंडनॆ ।
पाहि- वर्च — स्वी ख-षण नमॊ — साधु- महिपति-यॆ ॥
पाहि- सद्ध — र्मज्ञ- धर्मज ।
पाहि- संपू — र्ण शुचि- वैकृत ।
पाहि- अंजन — सर्ष-पनॆ ख — र्पटनॆ- श्रद्धा-ह्व ॥ २४-२३ ॥
पाहि- संध्या — त वि-ज्ञाननॆ ।
पाहि- मह वि — ज्ञान- कीर्तनॆ ।
पाहि- संकी — र्णाख्य- कत्थनॆ — महा- बुद्धि ज-य ॥
पाहि- माह — त्तर सु-वीर्यनॆ ।
पाहि- मां मे — धावि- जयजय ।
पाहि- मां रं — तिम्न- मनु मां — पाहि- मां पा-हि ॥ २४-२४ ॥ पाहि- मोद प्र — मोद- संतत ।
पाहि- आनं — द सं-तुष्टनॆ ।
पाहि- मां चा — र्वांग- चारुसु — बाहु- चारुप-द ॥ पाहि- पाहि सु — लोच-ननॆ मां ।
पाहि- सार — स्वत सु-वीरनॆ ।
पाहि- प्राज्ञ क — पीय-लंपट — पाहि- सर्व-ज्ञ ॥ २४-२५ ॥
पाहि- मां स — र्वजितु- मित्रनॆ ।
पाहि- पाप वि — नाश-कनॆ मां ।
पाहि- धर्मवि — नेत- शारद — ओज- सुतप-स्वि । पाहि- मां ते — जस्वि- नमॊ मां ।
पाहि- दान सु — शील- नमॊ मां ।
पाहि- यज्ञ सु — कर्त- यज्वी — याग-वर्तक-नॆ ॥ २४-२६ ॥
पाहि- प्राण — त्राण अमरिषि ।
पाहि- मामुप — देष्ट- मारक ।
पाहि- काल — क्रीड-न सुक — र्ता सु-काल-ज्ञ ॥
पाहि- काल सु — सूच-कनॆ मां ।
पाहि- कलिसं — हर्त- कलि मां ।
पाहि- काल — श्याम- रेत स — दार-त सुबल-नॆ ॥ २४-२७॥
पाहि- पाहि स — हो स-दाकपि ।
पाहि- गम्य — ज्ञान- दशकुल ।
पाहि- मां श्रो — तव्य- नमॊ सं — कीर्ति- तव्य न-मो ॥ पाहि- मां मं — तव्य- कव्यनॆ ।
पाहि- मां द्र — ष्टव्य- सख्यनॆ ।
पाहि- मां गं — तव्य- क्रव्यनॆ — पाहि- स्मर्त-व्य ॥ २४-२८ ॥
पाहि- सेव्य सु — भव्य- नमॊ मां ।
पाहि- स्वर्ग — व्य नमॊ- भव्यने ।
पाहि- मां ज्ञा — तव्य- नमॊ व — क्तव्य- गव्य न-मो ॥ पाहि- मां ला — तव्य- वायुवॆ ।
पाहि- ब्रह्म — ब्राह्म-णप्रिय ।
पाहि- पाहि स — रस्व-तीपतॆ — जग-द्गुरुव-र्य ॥ २४-२९ ॥
वाम-न पुरा — णदलि- हेळिद ।
ई म-हात्मर — परम- मंगळ ।
नाम-गळ सं — प्रीति- पूर्वक — नित्य- स्मरिसुव-र ॥ श्रीम-नोहर — नवरु- बेडिद ।
कामि-तार्थग — ळित्तु -तन्न त्रि- ।
धाम-दॊळगनु — दिनद-लिट्टा — नंद- पडिसुव-नु ॥ २४-३० ॥
ई स-मीरगॆ — नूरु- जन्म म- ।
हा सु-ख प्रा — रब्ध- भोग प्र- ।
यास-विल्लद — लैदि-दनु लो — काधि-पत्यव-नु ॥ भूसु-रन ऒ — प्पिडि अ-वलिगॆ वि- ।
शेष- सौख्यव — नित्त- दातन ।
दास-वर्यनु — लोक-पतियॆनि — सुवुदु- अच्चरि-यॆ ॥ २४-३१ ॥
द्विशत- कल्पग — ळल्लि- बिडदी- ।
पॆसरि-निंदलि — करॆसि-दनु त- ।
न्नॊशग-रमररॊ — ळिट्टु- माडुव — नवर- साधन-व ॥ असदु-पासनॆ — गैव- कल्या- ।
द्यसुर-पर सं — हरिसि- ता पॊं- ।
बसिर- पद वै — दिदनु- गुरु पव — मान- सतियॊड-नॆ ॥ २४-३२ ॥
अनिमि-षर ना — मदलि- करॆसुव ।
ननिल-देवनु — ऒंदु- कल्पदि ।
वनज- संभव — नॆनिसि- ऎंभ — त्तेळु-वरॆ वरु-ष ॥ गुणद- त्रय व — र्जितन -मंगळ ।
गुणद- क्रीय सु — रूप-गळुपा-
सनॆय-नव्य — क्तादि- पृथ्व्यं — तरद-लिरुतिहु-दु ॥ २४-३३ ॥
महित- ऋजुगण — कॊंदॆ- परमो- ।
त्सह वि-वर्जित — वॆंब- दोषवु ।
विहित-वे सरि — इदनु- पेळ्दिरॆ — मुक्त- ब्रह्मरि-गॆ ॥
बहुदु- साम्य — ज्ञान- भकुतियु ।
द्रुहिण- पद परि — यंत- वृद्धियु ।
बहिरु-पासनॆ — युंट-नंतर — बिंब- दर्शन-वु ॥ २४-३४ ॥
ज्ञान-रहित भ — यत्व- पेळ्व पु- ।
राण- दैत्यर — मोह-कवु चतु- ।
रान-नगॆ कू — डुवुदॆ- मोहा — ज्ञान- भय शो-क ॥ भानु- मंडल — चलिसि-दंददि ।
काणु-वुदु दृ — ग्दोष-दिंदलि ।
श्रीनि-वासन — प्रीति-गोसुग — तोर्द-नल्लद-लॆ ॥ २४-३५ ॥
कमल- संभव — सर्व-रॊळगु – ।
त्तमनॆ-निसुवनु — ऎल्ल- कालदि ।
विमल- भकुति — ज्ञान- वैरा — ग्यादि- गुणदिं-द ॥ सम-भ्यधिकवि — वर्जि-तन गुण ।
रमॆय- मुखदिं — दरितु- नित्यदि ।
द्युमणि- कोटिग — ळंतॆ- कांबनु — बिंब- रूपव-नु ॥ २४-३६ ॥
ज्ञान- भक्त्या — द्यखिळ- गुण चतु- । रान-नोळगि — प्पंतॆ- मुख्य- ।
प्राण-नलि चिं — तिपुदु- यत्किं — चित् कॊ-रतॆया-गि ॥ न्यून- ऋजुगण — जीव-रल्लि क्र- ।
मेण- वृद्धि — ज्ञान- भकुति स- ।
मान- भारति — वाणि-गळलि प — द प्र-युक्तधि-क ॥ २४-३७ ॥
सौरि- सूर्यन — तॆरदि- ब्रह्म स- ।
मीर- गाय — त्री गि-रिगळॊळु- ।
तोरु-वुदु अ — स्पष्ट- रूपदि — मुक्ति- परियं-त ॥ वारि-जासन — वायु- वाणी- ।
भार-तिगळिगॆ — माह- प्रळयदि- ।
बार-दज्ञा — नादि- दोषवु — हरिकृ-पा बल-दि ॥ २४-३८ ॥
नूरु- वरुषा — नंत-रदलि स- ।
रोरु-हासन — तन्न- कल्पद- ।
लारु- मुक्तिय — नैदु-वरॊ अव — रवर- करॆदॊ-य्दु ॥
शौरि- पुरदॊळ — गिप्प- नदियलि ।
कारु-णिक सु — स्नान- निजपरि- ।
वार- सहितदि — माडि- हरियुद — र प्र-वेशिसु-व ॥ २४-३९ ॥
वासु-देवन — उदर-दल्लि प्र- ।
वेश-गैदा — नंत-रदि नि- ।
र्दोष- मुक्तरु — उदर-दिं पॊर — मट्टु- हरुषद-लि ॥ ईश-निंदा — ज्ञॆय प-डॆदनं- ।
तास-न सित — द्वीप- मोक्षदि ।
वास-वागि वि — मुक्त- दुःखरु — संच-रिसुतिह-रु ॥ २४-४० ॥
सत्व- सत्व म — हा सु-सूक्ष्मवु- ।
सत्व- सत्वा — त्मक क-ळेवर ।
सत्य-लोका — धिपनॆ-निपग — त्यल्प-वॆरडुगु-ण ॥
मुक्ति- योग्यवि — दल्ल-जांडो- ।
त्पत्ति- कारण — वल्ल- हरिप्री- ।
त्यर्थ-वागी — जगद- व्यापा — रगळ- माडुव-नु ॥ २४-४१ ॥
पाद- न्यून श — ताब्द- परियं- ।
तोदि- उग्रत — पाह्व-यदि लव- ।
णोद-धियॊळगॆ — कल्प-दश तप — विद्द-नंतर-दि ॥ साधि-सिद मह — देव- पदवा- ।
रैदु- नवक — ल्पाव-सानकॆ ।
ऐदु-वनु ता — शेष-पदवनु — पार्व-ती सहि-त ॥ २४-४२ ॥
इंद्र- मनु दश — कल्प-गळलि सु- ।
नंद- नामदि — श्रवण-गैदु मु- ।
कुंद-नपरो — क्षार्थ- नाल्कु सु — कल्प- तपवि-द्दु ॥ नॊंदु- पॊगॆयॊळु — कोटि- वरुष पु- ।
रंद-रनु अद — नुंड-नंतर ।
पॊंदि-दनु निज — लोक- सुरपति — काम-निदरं-तॆ ॥ २४-४३ ॥
करॆसु-वरु पू — र्वदलि- चंद्रा- ।
र्करति- शांत सु — रूप- नामदि ।
ऎरडॆ-रडु मनु — कल्प- श्रवणव — गैदु- मनुक-ल्प ॥
वर त-पोबल — दिंद-लर्वाक् ।
शिरग-ळागी — रैदु- साविर ।
वरुष- दुःखव — नीगि- कांबरु — बिंब-रूपव-नु ॥ २४-४४ ॥
साध-नगळप — रोक्ष- नंतर ।
ऐदु-वरु मो — क्षवनु- शिव श- ।
क्रादि- दिविजरु — उक्त-क्रमदिं — कल्प- संख्यॆय-लि ॥
ऐद-लॆयगै — वत्तु-पेंद्र स- ।
होद-रनिगि — प्पत्तु- द्विनव त्व- ।
गाधि-पति प्रा — णनिगॆ- गुरु मनु — गळिगॆ- षोडश-वु ॥ २४-४५ ॥
प्रवह- मरुतगॆ — हन्नॆ-रडु सैं ।
धव दि-वाकर — धर्म-रिगॆ दश ।
नव सु-कल्पवु — मित्र-रिगॆ शे — षशत- जनकॆं-टु ॥ कवि स-नकनु सु — नंद-न सन- ।
त्कुवर- मुनिगळि — गेळु- वरुणन ।
युवति- पर्ज — न्यादि- पुष्कर — गारु- कल्पद-लि ॥ २४-४६ ॥
ऐदु- कर्मज — सुररि-गाजा- ।
नादि-गळिगॆर — डॆरडु- कल्पा- ।
र्धादि-कत्रय — गोपि-कास्त्री — यरु पि-तृत्रय-वु ॥
ई दि-वौकस — मनुज- गायक- ।
रैदु-वरु ऎर — डॊंदु- कल्पन- ।
राधि-परिगरॆ — कल्प-दॊळगप — रोक्ष-विरुतिहु-दु ॥ २४-४७ ॥
दीप-गळननु — सरिसि- दीप्तियु- ।
व्यापि-सि महा — तिमिर- कळॆदु प- ।
रोप-कारव — माळ्प- तॆरदं — ददलि- परमा-त्म ॥
आ प-योजा — सनरॊ-ळिद्दु स्व- ।
रूप- शक्तिय — व्यक्ति-गैसुत ।
ता पॊ-ळॆवनव — रंतॆ- चेष्टॆय — माडि- माडिसु-व ॥ २४-४८ ॥
स्वोद-रस्थित — प्राण- रुद्रें- ।
द्रादि- सुररिगॆ — देह-गळ कॊ- ।
ट्टाद-रदलव — रवर- सेवॆय — कॊंब-ननवर-त ॥
मोद- बोध द — याब्धि- तन्नव ।
राधि- रोगव — कळॆदु- महदप ।
राध-गळ नो — डदलॆ- सलहुव — सतत- स्मरिसुव-र ॥ २४-४९ ॥
प्रति प्र-ती क — ल्पदलि- सृष्टि- ।
स्थिति ल-यव मा — डुतलि- मोदिप ।
चतुर-मुख पव — मान-रन्नव — माडि- भुंजिसु-व ॥ घृतवॆ- मृत्युं — जयनॆ-निप दे- ।
वतॆग-ळे उप — सेचन-रु श्री- ।
पतिगॆ- मूर्जग — वॆल्ल- वोदन — तिथियॆ-निसिकॊं-ब ॥ २४-५० ॥
गर्भि-णीस्त्री — युंड- भोजन ।
गर्भ-गत शिशु — वुंब- तॆरदलि ।
निर्भ-यनु ता — नुंडु-णिसुवनु — सर्व- जीवरि-गॆ ॥ निर्ब-लति पर — माणु- जीवगॆ ।
अब्बु-वुदॆ स्थू — लान्न- भोजन ।
अर्भ-करु पे — ळुवरु- कोविद — रिदनॊ-डंबड-रु ॥ २४-५१ ॥
अपच-यगळि — ल्लुंड-ददरिं- ।
दुपच-यगळि — ल्लमर-गणदॊळ- ।
गुपम-रॆनिसुव — रिल्ल- जन्मा — दिगळु- मॊदलि-ल्ल ॥
अपरि-मित स — न्महिम- नरहरि ।
अपुन-राव — र्तरनु- माडुव ।
कृपण- वत्सल — स्वपद- सौख्यव — नित्तु- शरणरि-गॆ ॥ २४-५२ ॥
बित्ति- बीजव — भूमि-यॊळु नी- ।
रॆत्ति- बॆळॆसिद — बॆळसु- प्रांतकॆ ।
कित्ति- मॆलुवं — ददलि- लकुमी — रमण- लोकग-ळ ॥ मत्तॆ- जीवर — कर्म- कालो- ।
त्पत्ति- स्थितिलय — माडु-तलि सम- ।
वर्ति-यॆनिसुव — खेद- मोदग — ळिल्ल- अनवर-त ॥ २४-५३ ॥
श्वसन- रुद्रें — द्रादि-वर सुम- ।
नसरॊ-ळिद्दरु — क्षुत्पि-पासग ।
ळॊशदॊ-ळिप्पुवु — सकल- भोगकॆ — साध-नगळा-गि ॥
असुर- प्रेत पि — शाच-गळ बा- ।
धिसुत-लिप्पवु — दिनदि-नदि मा- ।
निसरॊ-ळगॆ मृग — पक्षि- जीवरॊ — ळिद्दु- पोगुव-वु ॥ २४-५४ ॥
वासु-देवगॆ — स्वप्न- सुप्ति पि- ।
पास- क्षुदॆ भय — शोक- मोहा- ।
यास- विस्मृति — मात्स-रिय मद — पुण्य- पापा-दि ॥ दोष- वर्जित — नॆंदु- ब्रह्म स- ।
दाशि-वादि स — मस्त- दिविजरु- ।
पास-नॆय गै — दॆल्ल- कालदि — मुक्त-रागिह-रु ॥ २४-५५ ॥
परम- सूक्ष्म — क्षणव-यिदु तृटि ।
करॆसु-वदु ऐ — वत्तु- तृटि लव- ।
वॆरडु- लव निमि — षगळु- निमिषग — ळॆंटु- मात्र यु-ग ॥ गुरुद-श प्रा — णारु-पळ ह- ।
न्नॆरडु- बाणवु — घळिगॆ- त्रिंशति ।
इरुळु- हगलर — वत्तु- घटिकॆग — ळहो-रात्रिग-ळु ॥ २४-५६ ॥
ई दि-वारा — त्रिगळॆ-रडु हदि- ।
नैदु- पक्षग — ळॆरडु- मासग- ।
ळाद-पवु मा — सद्व-यवॆ ऋतु — ऋतुत्र-यगळय-न ॥
ऐदु-ववु अय — न द्व-याब्ज कृ- ।
तादि- युगगळु — देव-मानदि ।
द्वाद-श सह — स्र वरु-षगळह — वदनु- पेळुवॆ-नु ॥ २४-५७ ॥
चतुर- साविर — दॆंटु- नूरवु ।
कृतयु-गकॆ त्रिस — हस्र- सलॆ षट् ।
शतवु- त्रेतॆगॆ — द्वाप-रकॆ द्विस — हस्र- नानू-रु ॥
दितिज- पति कलि — युगकॆ- साविर ।
शतग-ळद्वय — कूडि- ई दे- ।
वतॆग-ळिगॆ ह — न्नॆरडु- साविर — वहवु- वरुषग-ळु ॥ २४-५८ ॥
प्रथम- युगके — ळधिक-अरॆविं- ।
शति सु-लक्षा — ष्टोत्र- शतविं- ।
शत स-हस्र म — नुष्य- माना — ब्दगळु- षण्णव-ति ॥ मित स-हस्रद — लक्ष- द्वादश ।
द्वितिय- तृतियकॆ — ऎंटु- लक्षद ।
चतुर-षष्ठि स — हस्र- कलिगिद — रर्ध- चिंतिपु-दु ॥ २४-५९ ॥
मूर-धिक ना — ल्वत्तु- लक्षद ।
लारु- मूरॆर — डधिक- साविर ।
वीरॆ-रडु युग — वरुष- संख्यॆय — गैय-लॆनितिहु-दॊ ॥ सूरि- पॆच्चिसॆ — सावि-रद ना- ।
नूरु- मूव — त्तॆरडु- कोटि स- ।
रोरु-हासन — गिदु दि-वसवॆं — बरु वि-पश्चित-रु ॥ २४-६० ॥
शतधृ-तिगॆ ई — दिवस-गळ त्रिं- ।
शतियु- मास — द्वाद-शाब्दवु ।
शतवॆ-रडरॊळु — सर्व- जीवो — त्पत्ति- स्थितिलय-वु ॥
श्रुति- स्मृतिगळु — पेळु-तिहव- ।
च्युतगॆ- निमिषवि — दॆंदु- सुख शा- ।
श्वतगॆ- पासटॆ — यॆंबु-वरॆ ब्र — ह्मादि- दिविजर-नु ॥ २४-६१ ॥
आदि- मध्यां — तगळु- इल्लद ।
माध-वगिदुप — चार-वॆंदु ऋ- ।
गादि- वेद पु — राण-गळु पे — ळुववु- नित्यद-लि ॥ मोद-मयना — नुग्र-हव सं- ।
पादि-सि रमा — ब्रह्म- रुद्रें- ।
द्रादि-गळु तं — तम्म- पदविय — नैदि- सुखिसुव-रु ॥ २४-६२ ॥
ई क-थामृत — पान- सुख सुवि- ।
वेकि-गळिग — ल्लदलॆ- वैषिक- ।
व्याकु-ल कुचि — त्तरिगॆ- दॊरॆवुदॆ — याव-कालद-लि ॥ लोक-वार्तॆय — बिट्टु- इदनव ।
लोकि-सुत मो — दिपरि-गॊलिदु कृ- ।
पाक-र जग — न्नाथ-विठ्ठल — पॊरॆव-ननुदिन-दि ॥ २४-६३ ॥
॥ इति श्री कल्पसाधन (अपरोक्ष तारतम्य) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥