हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
२५. आरोहणतारतम्य सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
भक्त-रॆनिसुव — दिव्य- पुरुषर ।
उक्ति- लालिसि — पेळ्द- मुक्ता- ।
मुक्त- जीवर — तार-तम्यव — मुनिप- शांडि-ल्य ॥ सं. सू. ॥
स्थाव-रर नो — डल्कॆ- तृण कृमि- ।
जीव-रुत्तम — कृमिग-ळिंदल- ।
जावि- गो गज — व्याघ्र- सिंहग — ळिंद- शूद्रा-दि ॥ मूव-रुत्तम — कर्म-कर भू- ।
देव-रुत्तम — कर्मि- नोडलु ।
कोवि-दॊत्तम — कविग-ळिंदलि — क्षितिप-रुत्तम-रु ॥ २५-१ ॥
धरणि-पर नो — डल्कॆ- नर गं- ।
धरुव-रुत्तम — देव- गंध- ।
र्वर ग-णॊत्तम — इवरि-गिंत श — तोन- शत को-टि ॥
परम- ऋषिगळु — अप्स-र स्त्री- ।
यरु स-मानरु — इवरि-गिंतलि ।
चिरपि-तृगळु — त्तमरु- चिरना — मक पि-तृगळिं-द ॥ २५-२ ॥
ऎरड-यिदु ऎं — भत्तु- ऋषि तुं- ।
बुरु श-तोर्वशि — यप्स-र स्त्री- ।
यरु श-ताजा — नजरु- उत्तम — चिरपि-तृगळिं-द ॥ वररु- ऊर्वशि — गिंत- वैश्वा- ।
नरन- सुतरी — रॆंटु- साविर ।
हरदॆ-यरॊळु — त्तम क-शेरॆ — प्पत्तु- नाल्कु ज-न ॥ २५-३ ॥
सरियॆ-निपरु व्र — जौक-स स्त्री- ।
यरु सु-रास्या — त्मजरि-गी पु- ।
ष्करनु- कर्मप — पुष्क-रनिगॆ श — नैश्च-रुत्तम-नु ॥
तरणि-जनिगु — त्तमळु-षाश्विनि- ।
सुरर-रसिगु — त्तम ज-लप बुध ।
शरधि-जात्मज — गुत्त-म स्वह — देवि-यॆनिसुव-ळु ॥ २५-४ ॥
अनल-भार्यळि — गिंत-नाख्या- ।
तनिमि-षरना — ख्यात-रिंदलि ।
घनप- पर्ज — न्यानि-रुद्धन — स्त्री उ-षादे-वि ॥ द्युनदि- संज्ञा — श्याम-ला रो- ।
हिणिग-ळार्वरु — समर-नाख्या- ।
तनिमि-षोत्तम — रिवरि-गिंतलि — नूरु- कर्मज-रु ॥ २५-५ ॥
पृथु न-हुष शश — बिंदु- प्रीय- ।
व्रत प-रीक्षित — नृपरु- भागी- ।
रथिय- नोड — ल्कधिक- बल्या — दिंद्र- सप्तक-रु ॥ पितृग-ळेळॆं — टधिक-वप्सर- ।
सतिय-रीरै — दॊंदु- मनुगळु ।
दितिज-गुरु चा — वन उ-चथ्यरु — कर्म-जरु सम-रु ॥ २५-६ ॥
धनप- विष्व — क्सेन- गणपा- । श्विनिग-ळॆंभ — त्तैदु- शेषरि- । गॆणॆयॆ-निसुवरु — मित्र- तारा — निऋति- प्रावा-हि ॥ गुणग-ळिंदै — दधिक- ऎंभ- ।
त्तॆनिप- शेषरि — गुत्त-मरु स- ।
न्मुनि म-रीचि पु — लस्त्य- पुलह — क्रतु व-सिष्ठ मु-ख ॥ २५-७ ॥
अत्रि-यंगिर — रेळु- ब्रह्मन ।
पुत्र-रिवरिगॆ — समरु- विश्वा-
मित्र- वैव — स्वतरु- ईशा — वेश- बलदिं-द ॥ मित्र-गिंतु — त्तमरु- स्वाहा- ।
भर्तृ- भृगुवु प्र — सूति- विश्वा- ।
मित्र- मॊदला — दवरि-गिंतलि — मूव-रुत्तम-रु ॥ २५-८ ॥
नार-दोत्तम — नग्नि-गिंतलि ।
वारि-निधि पा — दोत्त-मनु यम- ।
तार-केश दि — वाक-ररु शत — रूप-रुत्तम-रु ॥
वारि-जाप्तनि — गिंत- प्रवहा ।
मारु-तोत्तम — प्रवह-गिंतलि ।
मार-पुत्रनि — रुद्ध- गुरु मनु — दक्ष- शचि रति-यु ॥ २५-९ ॥
आरु- जनगळि — गिंत-लाहं- ।
कारि-क प्रा — णॊत्त-मखिळ श- ।
रीर-मानि — प्राण-गिंतलि — काम- इंद्ररि-गॆ ॥
गौरि- वारुणि — खगप- राणिगॆ ।
शौरि- महिषिय — रॊळगॆ- जांबव- ।
ती र-मायुत — ळाद- कारण — अधिक-ळॆनिसुव-ळु ॥ २५-१० ॥
हर फ-णिप विह — गेंद्र- मूवरु ।
हरि म-डदियरि — गुत्त-मरु सौ- ।
परणि- पतिगु — त्तमरु- भारति — वाणि- ईर्वरि-गॆ ॥ मरुत- ब्रह्मरु — उत्त-मरु इं- ।
दिरॆयु- परमो — त्तमळु- लक्ष्मिगॆ ।
सरियॆ-निसुवव — रिल्ल-वॆंदिगु — देश-कालदॊ-ळु ॥ २५-११ ॥
श्री मु-कुंदन — महिळॆ- लकुमि म- ।
हा म-हिमॆगे — नॆंबॆ- ब्रह्मे- ।
शाम-रेंद्रर — सृष्टि- स्थिति लय — गैसि- अवरव-र ॥ धाम-गळ क — ल्पिसि कॊ-डुवळज- ।
राम-रणळा — गिद्दु- सर्व- ।
स्वामि- मम गुरु — वॆंदु-पासनॆ — माळ्प-ळच्युत-न ॥ २५-१२ ॥
ई सु-महिमॆग — ळुळ्ळ- लक्ष्मि प- । रेश-नानं — तांश- गुणदॊळु । लेश-लेशकॆ — सरियॆ-निसळा — वाव- कालद-लि ॥ देश- काला — तीत- लक्ष्मिगॆ ।
केश-वन व — क्षस्थ-ळवॆ अव- ।
काश-वायितु — इवन- महिमॆगॆ — व्याप्ति-गॆणॆयुं-टॆ ॥ २५-१३ ॥
ऒंदु- रूपदॊ — ळॊंद-वयवदॊ- ।
ळॊंदु- रोमदॊ — ळॊंदु- देशदि ।
पॊंदि-कॊंडिह — रज भ-वादि स — मस्त- जीवग-ण ॥
सिंधु- सप्त — द्वीप- मेरु सु- ।
मंद-राद्य — द्रिगळु- ब्रह्म पु- ।
रंद-रादि स — मस्त- लोक प — राल-यगळॆ-ल्ल ॥ २५-१४ ॥
सर्व-देवो — त्तमनु- सर्वग ।
सर्व- गुण सं — पूर्ण- सर्वद ।
सर्व- तंत्र स्व — तंत्र- सर्वा — धार- सर्वा-त्मा ॥ सर्व-तोमुख — सर्व- नामक ।
सर्व-जन सं — पूज्य- शाश्वत ।
सर्व- कामद — सर्व- साक्षिग — सर्व-जित्स-र्व ॥ २५-१५ ॥
तार-तम्या — रोह-णव बरॆ- ।
दारु- पठिसुव — रवर- लक्ष्मी- ।
नार-सिंह स — मस्त- देवग — णांत-रात्मक-नु ॥ पूर-यिसुव म — नोर-थंगळ ।
कारु-णिक कै — वल्य-दायक ।
दूर-गैव स — मस्त- दुरितव — विगत- भयशो-क ॥ २५-१६ ॥
प्रणत- कामद — नंघ्रि- संदरु- ।
शनद-पेक्षॆग — ळुळ्ळ-वगॆ नि- ।
च्चणिकॆ-यॆनिपुदु — जड मॊ-दलु ब्र — ह्मांत- तरतम-वु ॥ मनव-चनदिं — स्मरिसु-वर भव- ।
वनधि- शोषिसि — पोगु-वुदु का- ।
रणवॆ-निसुवुदु — ज्ञान- भक्ति वि — रक्ति- संपद-कॆ ॥ २५-१७ ॥
अनल-नॊळु हो — मिसुव- हरि चं- ।
दनवॆ- मॊदला — दुदर- सूवा- ।
सनॆयु- प्रत् प्र — त्येक- तोर्पुदु — ऎल्ल- कालद-लि ॥
दनुज- मानव — दिविज-रवरव- ।
रनुचि-तोचित — कर्म- वृजिना- ।
र्दननु- व्यक्तिय — माळ्प- त्रिगुणा — तीत- विख्या-त ॥ २५-१८ ॥
भक्त- वत्सल — भाग्य- पुरुष वि- ।
विक्त- विश्वा — धार- सर्वो- ।
द्रिक्त- दोष वि — दूर- दुर्गम — दुर्वि-भाव्य स्व-हि ॥
शक्त- शाश्वत — सकल- वेदै- ।
कोक्त- मानद — मान्य- माधव ।
सूक्त- सूक्ष्म — स्थूल- त्रिजग — न्नाथ- विठ्ठल-नु ॥ २५-१९ ॥
॥ इति श्री आरोहणतारतम्य सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥