HKS 26. Avarohana Taaratamya Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार

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२६. अवरोहण तारतम्य सन्धि संपूर्णं

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

श्रीर-मण निज — भक्त-रॆनिसुव ।

वारि-जासन — मुख्य- निर्जर ।

तार-तम्यव — पेळ्वॆ- संक्षे — पदलि- गुरुबल-दि ॥ सं. सू. ॥

केश-वगॆ ना — राय-णिगॆ कम- ।

लास-न समी — ररिगॆ- वाणिगॆ ।

वीश- फणिप म — हेश-रिगॆ ष — ण्महिषि-यर पद-कॆ ॥ शेष- रुद्रर — पत्नि-यरिगॆ सु- ।

वास-व प्र — द्युम्न-रिगॆ सं- ।

तोष-दलि वं — दिसुवॆ- भक्ति — ज्ञान- कॊडलॆं-दु ॥ २६-१ ॥

प्राण-देवगॆ — नमिपॆ- कामन ।

सूनु- मनुगुरु — दक्ष- शचि रति ।

मानि-नियरिगॆ — प्रवह-देवगॆ — सूर्य- सोम य-म ॥ मान-विगॆ वरु — णनिगॆ- वीणा- ।

पाणि- नारद — मुनिगॆ- नमिसुवॆ ।

ज्ञान- भक्ति वि — रक्ति- मार्गव — तिळिस-लॆनगॆं-दु ॥ २६-२ ॥

अनल- भृगु दा — क्षाय-णियरिगॆ ।

कनक- गर्भज — सप्त-ऋषिगळि- ।

गॆणॆ ऎ-निप वै — वस्व-तनु मनु — गाधि-संभव-गॆ ॥ दनुज- निरऋति — तार- प्रावहि ।

वनज- मित्रगॆ — अश्वि-नि गणप- ।

धनप- विष्व — क्सेन-रिगॆ वं — दिसुवॆ-ननवर-त ॥ २६-३ ॥

उक्त-देव — र्कळनु-ळिदु ऎं- ।

भत्त-यिदु जन — रुगळु- मनुगळु- ।

चथ्य- च्यावन — यमळ-रिगॆ क — र्मजरॆ-निसुति-प्प ॥

कार्त-वीर्या — र्जुन प्र-मुख श- ।

तस्थ-रिगॆ प — र्जन्य- गंगा- ।

दित्य- यम सो — मानि-रुद्धर — पत्नि-यर पद-कॆ ॥ २६-४ ॥

हुतव-हार्धां — गिनिगॆ- चंद्रम- ।

सुत बु-धगॆ ना — मात्मि-कोषा- ।

सतिगॆ- छाया — त्मज श-नैश्चर — गान-मिपॆ सत-त ॥

प्रति दि-वसदलि — बिडदॆ- जीव- ।

प्रतति- माडुव — कर्म-गळिगधि- ।

पति ऎ-निप पु — ष्करन- पादां — बुजग-ळिगॆ नमि-पॆ ॥ २६-५ ॥

आन-मिपॆ आ — जान-जरिगॆ कृ- ।

शानु- सुतरिगॆ — गोव्र-जदॊळिह ।

मानि-नियरिगॆ — चिर पि-तरु शत — न्यून- शत कोटि ॥ मौनि- जनरिगॆ — देव- मानव- ।

गान- प्रौढरि — गवनि-परिगॆ र- ।

मानि-वासन — दास-वर्गकॆ — नमिपॆ-ननवर-त ॥ २६-६ ॥

अनुक्र-मणिका — तार-तम्यव ।

अनुदि-नदि स — द्भक्ति-पूर्वक ।

नॆनॆव-रिगॆ ध — र्मार्थ- कामा — दिगळु- फलिसुव-वु ॥ वनज- संभव — मुख्य-रवयव- ।

रॆनिसु-व जग — न्नाथ-विठलगॆ ।

विनय-दिंदलि — नमिसि- कॊंडा — डुतिरु- मरॆयद-लॆ ॥ २६-७ ॥

॥ इति श्री अवरोहण तारतम्य सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्रीः ॥

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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥