हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
२७. देवतानुक्रमणिका (अनुक्रमणिका तारतम्य) सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
मानु-षोत्तम — विडिदु संकरु- ।
षणन- परियं — तरदि- पेळिद- ।
अनुक्र-मणिका — पद्य-वनु के — ळुवुदु- सज्जन-रु ॥ सं ॥ सू ॥
श्रीम-दाचा — र्यर म-तानुग ।
धीम-तांवर — रंघ्रि- कमलकॆ ।
सोम- पाना — र्हरिगॆ- तात्विक — देव-ता गण-कॆ ॥ हैम-वति ष — ण्महिषि-यर पद ।
व्योम-केशगॆ — वाणि- वायु सु- ।
ताम-रस भव — लक्ष्मि-नारा — यणरि-गानमि-पॆ ॥ २७-१ ॥
श्रीम-तांवर — श्रीप-ते स- ।
त्कामि-त प्रद — सौम्य- त्रिककु- ।
द्धाम- त्रिचतु — ष्पाद- पावन — चरित- चार्वां-ग ॥ गोम-तीप्रिय — गौण- गुरुतम ।
साम-गायन — लोल- सर्व- ।
स्वामि- मम कुल — दैव- संतै — सुवुदु- सज्जन-र ॥ २७-२ ॥
राम- राक्ष — सकुल भ-यंकर । साम-जेंद्र — प्रिय म-नो वा- ।
चाम-गोचर — चित्सु-खप्रद — चारु-तर चरि-त- ॥ भूम- भू स्व — र्गाप- वर्गद- । काम-धेनु सु — कल्प-तरु चिं- ।
ताम-णियु ऎं — दॆनिप- निज भ — क्तरिगॆ- सर्व-त्र ॥ २७-३ ॥
स्वर्ण- वर्ण स्व — तंत्र- सर्वग ।
कर्ण-हीन सु — शय्य- शाश्वत ।
वर्ण- चतुरा — श्रम वि – वर्जित — चारु-तर स्वर-त ॥
अर्ण- संप्रति — पाद्य- वायु सु- ।
पर्ण- वरवह — नप्र-तिम वट- ।
पर्ण- शयना — श्चर्य- तम स — च्चरित- गुणभरि-त ॥ २७-४ ॥
अगणि-त सुगुण — धाम- निश्चल ।
स्वगत- भेद वि — शून्य- शाश्वत ।
जगद- जीवा — त्यंत- भिन्ना — पन्न- परिपा-ल ॥
त्रिगुण- वर्जित — त्रिभुव-नेश्वर ।
हगलि-रुळु स्मरि — सुतलि-हर बि- ।
ट्टगल- त्रिजग — न्नाथ-विठ्ठल — विश्व- व्यापक-नु ॥ २७-५ ॥
॥ इति श्री देवतानुक्रमणिका (अनुक्रमणिका तारतम्य) सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥