हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
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२८. विघ्नेश्वर (गणपति) स्तोत्र सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
श्रीश-नंघ्रि स — रोज- भृंग म- ।
हेश- संभव — मन्म-नदॊळु प्र- ।
काशि-सनुदिन — प्रार्थि-सुवॆ प्रे — माति-शयदिं-द ॥
नी स-लहु स — ज्जनर- वेद ।
व्यास- करुणा — पात्र- महदा- ।
काश-पति करु — णाळु- कैपिडि — दॆम्म-नुद्धरि-सु ॥ २८-१ ॥
एक-दंत इ — भेंद्र-मुख चा- ।
मीक-र कृत सु — भूष-णांग कृ- ।
पाक-टाक्षदि — नोडु- विज्ञा — पिसुवॆ- इनितॆं-दु ॥ नोक-नीयन — तुतिसु-तिप्प वि- ।
वेकि-गळ सह — वास- सुखगळ ।
नी क-रुणिसुवु — दॆमगॆ- संतत — परम- करुणा-ळु ॥ २८-२ ॥
विघ्न-राजनॆ — दुर्वि-षयदॊळु ।
मग्न-वागिह — मनवु- महदो- ।
षघ्न-नंघ्रि स — रोज-युगळदि — भक्ति- पूर्वक-दि ॥ लग्न-वागलि — नित्य- नरक भ- ।
याग्नि-गळिगा — नंजॆ- गुरुवर ।
भग्न-गैसॆ — न्नवगु – णगळनु — प्रतिदि-वसद-ल्लि ॥ २८-३ ॥
धनप- विष्व — क्सेन- वैद्या ।
श्विनिग-ळिगॆ सरि — यॆनिप- षण्मुख ।
ननुज- शेष श — तस्थ- देवो — त्तम वि-यद्गं-गा- ॥ विनुत- विश्वो — पास-कनॆ स- ।
न्मनदि- विज्ञा — पिसुवॆ- लक्ष्मी- ।
वनितॆ-यरसन — भक्ति- ज्ञानव — कॊट्टु- सलहुव-दु ॥ २८-४ ॥ चारु-देष्णा — ह्वयनॆ-निसि अव- ।
तार- माडिदॆ — रुग्मि-णीयलि ।
गौरि- अरसन — वरदि- उद्धट — राद- राक्षस-र ॥ शौरि-याज्ञदि — संह-रिसि भू- ।
भार- विळुहिद — करुणि- त्वत्पा- ।
दार- विंदकॆ — नमिपॆ- करुणिपु — दॆमगॆ- सन्मति-य ॥ २८-५ ॥
शूर्प- कर्ण — द्वय वि-जित कं- ।
दर्प- शर उदि — तार्क- सन्निभ ।
सर्प-वर कटि — सूत्र- वैकृत — गात्र- सुचरि-त्र ॥ स्वर्पि-तांकुश — पाष- कर खळ ।
दर्प- भंजन — कर्म- साक्षिग ।
तर्प-कनु नी — नागि- तृप्तिय — बडिसु- सज्जन-र ॥ २८-६ ॥
खेश- परम सु — भक्ति- पूर्वक ।
व्यास-कृत ग्रं — थगळ-नरितु प्र- ।
यास-विल्लदॆ — बरॆदु- विस्तरि — सिदॆयॊ- लोकदॊ-ळु ॥
पाश- पाणियॆ — प्रार्थि-सुवॆ उप- ।
देशि-सॆनगद — रर्थ-गळ करु- ।
णास-मुद्र कृ — पाक-टाक्षदि — नोडु- प्रतिदिन-दि ॥ २८-७ ॥
श्रीश-नति नि — र्मल सु-नाभी ।
देश-वस्थित — रक्त- श्रीगं- ।
धासु-शोभित — गात्र- लोक प — वित्र- सुरमि-त्र ॥ मूष-कासुर — वहन- प्राणा- ।
वेश-युत प्र — ख्यात- प्रभु पू- ।
रैसु- भक्तरु — बेडि-दिष्टा — र्थगळ- प्रतिदिन-दि ॥ २८-८ ॥
शंक-रात्मज — दैत्य-रिगति भ- ।
यंक-र गतिग — ळीय- लोसुग ।
संक-ट चतु — र्थिगनॆ-निसि अहि — तार्थ-गळ कॊ-ट्टु ॥ मंकु-गळ मो — हिसुवॆ- चक्र द ।
दांकि-तनॆ दिन — दिनदि- त्वत्पद ।
पंक-जंगळि — गॆरगि- बिन्नै — सुवॆनु- पालिपु-दु ॥ २८-९ ॥
सिद्ध- विद्या — धरग-ण समा- ।
राध्य- चरण स — रोज- सर्वसु ।
सिद्धि- दायक — शीघ्र-दिं पा — लिपुदु- बिन्नप-व ॥ बुद्धि- विद्या — ज्ञान- बल परि- ।
शुद्ध- भक्ति वि — रक्ति- निरुतन ।
वद्य-न स्मृति — लीलॆ-गळ सु — स्तवन- वदनद-लि ॥ २८-१० ॥
रक्त-वास — द्वय वि-भूषण ।
उक्ति- लालिसु — परम- भगव ।
द्भक्त-वर भ — व्यात्म- भागव — तादि- शास्त्रद-लि ॥ सक्त-वागलि — मनवु- विषय वि- ।
रक्ति- पालिसु — विद्व-दाद्य वि- ।
मुक्त-नॆंदॆनि — सॆन्न- भव भय — दिंद-लनुदिन-दि ॥ २८-११ ॥
शुक्र- शिष्यर — संह-रिपुदकॆ ।
शक्र- निन्ननु — पूजि-सिदनु उ- ।
रुक्र-म श्री — राम-चंद्रनु — सेतु-मुखद-ल्लि ॥ चक्र-वर्तिप — धर्म-राजनु ।
चक्र- पाणिय — नुडिगॆ- भजिसिद ।
वक्र-तुंडनॆ — निन्नॊ-ळॆंतुटो — ईश-नुग्रह-वु ॥ २८-१२ ॥
कौर-वेंद्रनु — निन्न- भजिसद ।
कार-णदि निज — कुल स-हित सं- ।
हार- वैदिद — गुरुव-र वृको — दरन- गदॆयिं-द ॥ तार-कांतक — ननुज- ऎन्न श- ।
रीर-दॊळु नी — निंतु- धर्म- ।
प्रेर-कनु नी — नागि- संतै — सॆन्न- करुणद-लि ॥ २८-१३ ॥
एक-विंशति — मोद-कप्रिय ।
मूक-रनु वा — ग्मिगळ- माळ्प कृ- ।
पाक-रेश कृ — तज्ञ- कामद — कायो- कैपिडि-दु ॥ लेख-काग्रणि — मन्म-नद दु- ।
र्व्याकु-लव परि — हरिसु- दयदि पि- ।
नाकि- भार्या — तनुज- मृद्भव — प्रार्थि-सुवॆ निन्न ॥ २८-१४ ॥ नित्य- मंगळ — चरित- जगदु ।
त्पत्ति- स्थिति लय — नियम-न ज्ञा- ।
नत्र-य प्रद — बंध- मोचक — सुमन-सासुर-र ॥
चित्त- वृत्तिग — ळंतॆ- नडॆव प्र- ।
मत्त-नल्ल सु — हृज्ज-नाप्तन- ।
नित्य-दलि नॆनॆ — नॆनॆदु- सुखिसुव — भाग्य- करुणिपु-दु ॥ २८-१५ ॥
पंच- भेद — ज्ञान-वरुपु वि- ।
रिंचि- जनकन — तोरु- मनदलि ।
वांछि-त प्रद — ऒलुमॆ-यिंदलि — दास-नॆंदरि-दु ॥
पंच- वक्त्रन — तनय- भवदॊळु ।
वंचि-सदॆ सं — तैसु- विषयदि ।
संच-रिसदं — ददलि- माडु म — नादि- करणग-ळ ॥ २८-१६ ॥
एनु- बेडुव — दिल्ल- निन्न कु- ।
योनि-गळु बर — लंजॆ- लक्ष्मी- ।
प्राण-पति त — त्वेश-रिंदॊड — गूडि- गुणका-र्य ॥
तानॆ- माडुव — नॆंब- ई सु- ।
ज्ञान-वनॆ करु — णिसुवु-दॆमगॆ म- ।
हानु-भाव मु — हुर्मु-हुः प्रा — र्थिसुवॆ- इनितॆं-दु ॥ २८-१७ ॥
नमॊ न-मो गुरु — वर्य- विबुधो ।
त्तम वि-वर्जित — निद्र- कल्प ।
द्रुमनॆ-निप भज — करिगॆ- बहुगुण — भरित- शुभ चरि-त ॥ उमॆय- नंदन — परिह-रिसहं- ।
ममतॆ- बुद्द्या — दिंद्रि-यगळा ।
क्रमिसि- दणिसुत — लिहवु- भवदॊळ — गाव- कालद-लि ॥ २८-१८ ॥
जय ज-यतु वि — घ्नेश- ताप- ।
त्रय वि-नाशन — विश्व-मंगळ ।
जय ज-यतु वि — द्या प्र-दायक — वीत- भयशो-क ॥
जय ज-यतु चा — र्वांग- करुणा ।
नयन-दिंदलि — नोडि- जन्मा- ।
मय मृ-तिगळनु — परिह-रिसु भ — क्तरिगॆ- भवदॊळ-गॆ ॥ २८-१९ ॥
कडु क-रुणि नी — नॆंद-रिदु हे- ।
रॊडल- नमिसुवॆ — निन्न-डिगॆ बॆं- ।
बिडदॆ- पालिसु — परम- करुणा — सिंधु- ऎंदॆं-दु ॥
नडु न-डुवॆ बरु — तिप्प- विघ्नव ।
तडॆदु- भगव — न्नाम- कीर्तनॆ ।
नुडिदु- नुडिसॆ — न्निंद- प्रतिदिव — सदलि- मरॆयद-लॆ ॥ २८-२० ॥
एक-विंशति — पदग-ळॆनिसुव ।
कोक-नद नव — मालि-कॆय मै- ।
नाकि- तनयां — तर्ग-त श्री — प्राण-पतियॆनि-प ॥ श्रीक-र जग — न्नाथ- विठ्ठल ।
स्वीक-रिसि स्व — र्गाप-वर्गदि ।
ताकॊ-डुव सौ — ख्यगळ- भक्तरि — गाव- कालद-लि ॥ २८-२१ ॥
॥ इति श्री विघ्नेश्वर (गणपति) स्तोत्र सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥