HKS 29. ANutaaratamya Sandhi

हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।

*NOTE: Choose desired output script using Aksharamukha (screen top-right).

श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार

Click here for Audio

२९. अणुतारतम्य सन्धि

हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।

करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।

परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥

विष्णु- सर्वो — त्तमनु- प्रकृति क- ।

निष्ठ-ळॆनिपळ — नंत- गुण पर- ।

मेष्ठि- पवनरु — कडिमॆ- वाणी — भार-तिगळध-म ॥ विष्णु-वहन फ — णींद्र- मृडरिगॆ ।

कृष्ण-महिषिय — रधम-रिवरॊळु ।

श्रेष्ठ-ळॆनिपळु — जांब-वतिया — वेश- बलदिं-द ॥ २९-१ ॥

प्लवग- पन्नग — पाहि- भूषण ।

युवति-यरु सम — तम्मॊ-ळगॆ जां- ।

बवति-गिंतलि — कडिमॆ- इवरिं — दिंद्र- कामरि-गॆ ॥

अवर- प्राणनु — कडिमॆ- कामन ।

कुवर- शचिरति — दक्ष- गुरु मनु ।

प्रवह- मारुत — कॊरतॆ-यॆनिसुव — आरु- जनरिं-द ॥ २९-२ ॥

यम दि-वाकर — चंद्र- मानवि ।

समरु- कोणप — प्रवह-गधमरु ।

द्युमणि-गिंदलि — वरुण- नीचनु — नार-दाधम-नु ॥ सुमन-सास्य प्र — सूति- बृगुमुनि ।

समरु- नारद — गधम-रत्रि ।

प्रमुख- विश्वा — मित्र- वैव — स्वतर-नलगध-म ॥ २९-३ ॥

मित्र- तारा — निऋति- प्रवहा ।

पत्नि- प्रावहि — समरु- विश्वा ।

मित्र-गिंदलि — कॊरतॆ- विष्व — क्सेन- गणना-थ ॥

वित्त-पति अ — श्विनिग-ळधमरु ।

मित्र-मॊदला — दवरि-गिंतलि ।

बित्त-रिपॆनु श — तस्थ- दिविजर — व्यूह- नामग-ळ ॥ २९-४ ॥

मरुत-रॊंभ — त्तधिक- नाल्व ।

त्तॆरडु- अश्विनि — विश्वॆ-देवरु ।

ऎरड-यिदु ह — न्नॊंदु- रुद्ररु — द्वाद-शादि-त्य ॥ गुरुपि-तृत्रय — वष्ट- वसुगळु ।

भरत- भारति — पृथ्वि- ऋभुवॆं ।

दरिवु-दिवरनु — सोम-रस पा — नार्ह-रहुदॆं-दु ॥ २९-५ ॥

ई दि-वौकस — रॊळगॆ- उक्तरु ।

ऐद-धिकदश — उळिद- ऎंभ- ।

त्तैदु- शेषरि — गॆणॆयॆ-निसुवरु — धनप-विनयक-रु ॥ साधु- वैव — स्वत स्व-यंभुव- ।

श्रीद- तापस — रुळिदु- मनुवे- ।

काद-शरु वि — घ्नेश-गिंतलि — नीच-रॆनिसुव-रु ॥ २९-६ ॥

च्यवन- नंदन — कवि बृ-हस्पति ।

यवर-जनुच — थ्य मुनि- पावक ।

धृव न-हुश शश — बिंदु- प्रीय — व्रतनु- प्रह्ला-द ॥ कुवल-यपरु — क्तेत-रिंदलि ।

अवर- रोहिणि — श्याम-ला जा- ।

ह्नवि वि-राट्प — र्जन्य- संज्ञा — देवि-यरु अध-म ॥ २९-७ ॥

द्युनदि-गिंतलि — नीच-रॆनिपरु ।

अनभि-मानि दि — वौक-सरु के- ।

चन मु-निगळिगॆ — कडिमॆ- स्वाहा — देवि-गधम बु-ध ॥ ऎनिसु-वळुषा — देवि- नीचळु ।

शनि क-डिमॆ क — र्माधि-पति स- ।

द्विनुत- पुष्कर — नीच-नॆनिसुव — सूर्य-नंदन-गॆ ॥ २९-८ ॥

कॊरतॆ-यॆनिपर — शीति- ऋषि पु- ।

ष्करगॆ- ऊर्वशि — मुख्य- शत अ- ।

प्सररु- तुंबुरु — मुखरु- आजा — नजरॆ-निसुतिह-रु ॥ करॆसु-वुदु अन — लगण- नाल्व- ।

त्तरॆ च-तुर्दश — द्व्यष्ट- साविर ।

हरि म-डदियरु — समरॆ-निसुवरु — पिंतॆ- पेळ्दरि-गॆ ॥ २९-९ ॥

तदव-ररना — ख्यात- अप्सर ।

सुदति-यरु कृ — ष्णांग- संगिग ।

ळदर- तरुवा — यदलि- चिरपित — रुगळु- इवरिं-द ॥

त्रिदश- गंध — र्वगण- इवरिं- ।

दधम- नर गं — धर्व-रिवरिं ।

दुदधि- मेखल — पतिग-ळधमरु — नूरु- गुणदिं-द ॥ २९-१० ॥

पृथ्वि- पतिगळि — गिंद- शत मनु ।

जोत्त-मरु कडि — मॆनिप-रिवरिं- ।

दुत्त-रोत्तर — नूरु- गुणदिं — दधिक-रादव-र ॥

नित्य-दलि चिं — तिसुत- नमिसुत ।

भृत्य-नानहु — दॆंब- भक्तर ।

चित्त-दलि नॆलॆ — गॊंडु- करुणिप — रखिळ- सौख्यग-ळ ॥ २९-११ ॥

द्रुमल-ता तृण — गुल्म- जीवरु ।

क्रमदि- नीचरु — इवरि-गिंता ।

धमरॆ-निसुवरु — नित्य- बद्धरि — गिंत-लज्ञा-नि ॥ तमस-योग्यर — भृत्य-रधमरु ।

अमरु-षाद्यभि — मानि- दैत्यरु ।

नमुचि- मॊदला — दवरि-गिंतलि — विप्र-चिति नी-च ॥ २९-१२ ॥

अलकु-मियु ता — नीच-ळॆनिपळु ।

कलि प-रम नी — चतम- अवनिं- ।

दुळिद- पापिग — ळिल्ल- नोडलु — ई ज-गत्रय-दि ॥

मल वि-सर्जन — काल-दलि क- ।

त्तलॆयॊ-ळगॆ क — श्मल कु-मार्ग ।

स्थळग-ळलि चिं — तनॆय- माळ्पुदु — बल्ल-वरु नि-त्य ॥ २९-१३ ॥

सत्व-जीवर — मानि- ब्रह्मनु ।

नित्य-बद्धरॊ — ळगॆ पु-रंजन ।

दैत्य- समुदा — याधि-पति कलि — यॆनिप- पवमा-न ॥ नित्य-दलि अव — रॊळगॆ- कर्म प्र- ।

वर्त-कनु ता — नागि- श्रीपुरु- ।

षोत्त-मन सं — प्रीति-गोसुग — माडि- माडिसु-व ॥ २९-१४ ॥

प्राण-देवनु — त्रिविध-रॊळगॆ प्र- ।

वीण- तानॆं — दॆनिसि- अधिका ।

रानु-सारदि — कर्म-गळ ता — माडि- माडिसु-व ॥

ज्ञान- भक्ति सु — रर्गॆ- मिश्र ।

ज्ञान- मध्यम — जीव-रिगॆ अ- ।

ज्ञान- मोह — द्वेष-गळ दै — त्यरिगॆ- कॊडुति-प्प ॥ २९-१५ ॥

देव- दैत्यर — तार-तम्यव ।

ई वि-धदि तिळि — दॆल्ल-रॊळु ल- ।

क्ष्मीव-रनॆ स — र्वोत्त-मनु ऎं — दरिदु- नित्यद-लि ॥ सेवि-सुव भ — क्तरिगॊ-लिदु सुख ।

वीव- सर्व — त्रदलि- सुखमय ।

श्रीवि-रिंचा — द्यमर- नुतजग — नाथ-विठल-नु ॥ २९-१६ ॥

॥इति श्री अणुतारतम्य सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

॥ श्री ॥

Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula

॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥