हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
*NOTE: Choose desired output script using Aksharamukha (screen top-right).
श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
३०. दैत्यतारतम्य सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥।
श्रीश- मुक्ता — मुक्त- सुरवर ।
वासु-देवगॆ — भक्ति-यलि कम- ।
लास-ननु पे — ळिदनु- दैत्यस्व — भाव- गुणगळ-नु ॥
ऎनगॆ- निन्नलि — भक्ति- ज्ञानग- ।
ळॆनिति-हवु प्रा — णनलि- तिळियदॆ ।
हनुम-दाद्यव — तार- गळ भे — दगळ- पेळुव-व ॥ दनुज- घोरां — धतम-सिगॆ यो ।
ग्यनु न- संशय — निन्न- बैवर ।
कॊनॆय- नालिगॆ — पिडिदु- छेदिपॆ — नॆंद-नब्ज भ-व ॥ ३०-१ ॥
ज्ञान- बल सुख — पूर्ण- व्याप्तगॆ ।
हीन- गुणनॆं — बुवनु- ईश्वर ।
नानॆ- ऎंबुव — सच्चि-दानं — दात्म-गुत्प-त्ति ॥ श्रीनि-तंबिनि — गीश-गॆ वियो- ।
गानु- चिंतनॆ — छेद- भेद वि- ।
हीन- देहगॆ — शस्त्र-गळ भय — पेळु-वव दै-त्य ॥ ३०-२ ॥
लेश- भय शो — कादि- शून्यगॆ ।
क्लेश-गळ पे — ळुवव- राम ।
व्यास- रूपं — गळिगॆ- ऋषि वि — प्रत्व- पेळुव-व ॥ दाश-रथि कृ — ष्णादि- रूपकॆ ।
केश- खंडन — पेळ्व- मक्कळि- ।
गोसु-ग शिवा — र्चनॆय- माडिद — नॆंबु-वनॆ दै-त्य ॥ ३०-३ ॥
पाप- परिहा — रार्थ- रामनु- ।
मा प-तिय नि — र्मिसिद- भगव- ।
द्रूप- रूपकॆ — भेद- चिंतनॆ — माळ्प- मानव-नु ॥
आप-गळु स — त्तीर्थ- गुरु मा- ।
ता पि-तृ प्रभु — प्रतिमॆ- भूतद- ।
याप-रर कं — डवरॆ- देवरु — ऎंब-वनॆ दै-त्य ॥ ३०-४ ॥
सुंद-र स्वयं — व्यक्त-वु चिदा- ।
नंद- रूपग — ळॆंबु-वनु नर- ।
निंद- निर्मित — ईश्व-रगॆ अभि — नमिसु-तिह नर-नु ॥ कंदु-गॊरळ दि — वाक-रनु हरि ।
यॊंदॆ- सूर्य सु — रोत्त-म जग ।
द्वंद्य-नॆंबुव — विष्णु-दूषणॆ — माडु-वव दै-त्य ॥ ३०-५ ॥
नेम-दिंद — श्वत्थ- तुळसी ।
सोम-धरनलि — विमल- साल ।
ग्राम-गळनि — ट्टभिन-मिप नर — मुक्ति-योग्य स-दा ॥ भूमि-यॊळु ध — र्मार्थ- मुक्ति सु- ।
काम-पेक्षॆग — ळिंद- साल- ।
ग्राम-गळ व्यति — रिक्त- वंदिसॆ — दुःख- वैदुव-नु ॥ ३०-६ ॥
वितत- महिमन — बिट्टु- सुररिगॆ ।
पृथकु- वंदनॆ — माळ्प- मानव ।
दितिज-ने सरि — हरियु- ता सं — स्थितनॆ-निसन-ल्लि ॥
चतुर- मुख मॊद — लाद-खिळ दे- ।
वतॆग-ळॊळगिह — नॆंदु- लक्ष्मी- ।
पतिगॆ- वंदिसॆ — ऒंद-रक्षण — बिट्ट-गलनव-र ॥ ३०-७ ॥
शैव- शूद्र क — रार्चि-त महा ।
देव- वायु ह — रि प्र-तिमॆ वृं- ।
दाव-नदि मा — सद्व-यदॊळिह — तुळसि- अप्रस-व ॥
गो वि-वाह वि — वर्जि-ताश्व ।
त्था वि-टपिगळ — भक्ति- पूर्वक ।
सेवि-सुव नर — नित्य- शाश्वत — दुःख-वैदुव-नु ॥ ३०-८ ॥
कमल-संभव — मुख्य- मनुजो ।
त्तमर- परियं — तरदि- मुक्तरु ।
सम श-तायु — स्सुळ्ळ-वनु कलि — ब्रह्म-नोपा-दि ॥
क्रमदि- नीचरु — दैत्य-रु नरा- ।
धमर- विडिदु कु — लक्ष्मि- कलि अनु- ।
पमरॆ-निसुवरु — असुर-रॊळु द्वे — षादि- गुणदिं-द ॥ ३०-९ ॥
वनज- संभव — नब्द- शत ऒ- ।
ब्बनॆ म-हाकलि — शब्द- वाच्यनु ।
दिन दि-नगळलि — बीळ्व-रंधं — तमदि- कलिमा-र्ग ॥ दनुज-रॆल्ल प्र — तीक्षि-सुत ब्र- ।
ह्मन श-ताब्दां — तदलि- लिंगवु ।
अनिल-न गदा — प्रहर-दिंदलि — भंग-वैदुवु-दु ॥ ३०-१० ॥
मारु-तन गदॆ — यिंद- लिंग श- ।
रीर- पोदा — नंत-र तमो ।
द्वार- वैदि स्व — रूप- दुःखग — ळनुभ-विसुतिह-रु ॥ वैर- हरि भ — क्तरलि- हरियलि ।
तार-तम्यद — लिरुति-हुदु सं- ।
सार-दल्लि त — मस्सि-नलि य — त्यधिक- कलिय-ल्लि ॥ ३०-११ ॥
ज्ञान-वॆंबुदु — मिथ्य- वसमी- ।
चीन- दुःख त — रंगवॆ समी- ।
चीन- बुद्धि नि — रंत-रदि कलि — गिहुदु- दैत्यरॊ-ळु ॥ हीन-ळॆनिपळु — शतगु-णदि कलि- ।
मानि-निगॆ शत — विप्र-चित्तिगॆ ।
ऊन- शतगुण — काल-नेमियॆ — कंस-नॆनिसिद-नु ॥ ३०-१२ ॥
काल-नेमिगॆ — पंच- गुणदिं ।
कीळु- मधुकै — टभरु- जन्मव ।
ताळि- इळॆयॊळु — हंस-डिबिका — ह्वयदि- करॆसिद-रु ॥
ऐळ-नामक — विप्र-चित्ति स- ।
माळु- वॆनिप हि — रण्य-कशिपुवु ।
शूल-पाणिय — भक्त- नरकगॆ — शत गु-णाधम-नु ॥ ३०-१३ ॥
गुणग-ळत्रय — नीच-नॆनिसुव ।
कनक- कशिपुगॆ — हाट-कांबक ।
गॆणॆयॆ-निप मणि — मंत-गिंतलि — किंचि-दून ब-क ॥
दनुज-वर ता — रकनु- विंशति ।
गुणदि- नीचनु — लोक- कंटक ।
नॆनिप- शंबर — तार-कासुर — गधम- षड्गुण-दि ॥ ३०-१४ ॥
सरियॆ-निसुवनु — साल्व-निगॆ सं- ।
करनि-गधमनु — दशगु-णदि शं- ।
बरगॆ- षड्गुण — नीच-नॆनिप हि — डिंबि-कनु बा-णा ॥ सुरनु- द्वापर — कीच-कनु ना- ।
ल्वरु स-मरु द्वा — परनॆ- शकुनियु ।
करॆसि-दनु कौ — रवगॆ- सोदर — माव-नहुदॆं-दु ॥ ३०-१५ ॥
नमुचि- इल्वल — पाक-नामक ।
समरु- बाणा — द्यरिगॆ- दशगुण ।
नमुचि- नीचनु — नूरु-गुणदिं — दधम- वाता-पि ॥ कुमति-धेनुक — नूरु-गुणदिं ।
दमर-रिपु वा — तापि-गधमनु ।
वमन-धेनुक — निंद-लर्ध गु — णाध-मनु के-शि ॥ ३०-१६ ॥
मत्तॆ- केशी — नाम-क तृणा ।
वर्त- सम लव — णासु-रनु ऒं- ।
द्हत्तु- नीचा — रिष्ट- नामक — पंच-गुणदिं-द ॥
दैत्य- सत्तम — हंस- डिबिक प्र- ।
मत्त-वेननु — पौंड्र-कनु ऒं- ।
भत्तु- गुणदिं — दधम- मूवरु — लवण- नामक-गॆ ॥ ३०-१७ ॥
ईश-ने ना — नॆंब- खळ दु- ।
श्शास-न वृष — सेन- दैत्या ।
ग्रेस-र जरा — संध- सम पा — पिगळॊ-ळत्यधि-क ॥
कंस- कूप वि — कर्ण- सरि रु- ।
ग्मी श-ताधम — रुग्मि-गिंत म- ।
हासु-रनु शत — धन्व- किर्मी — ररु श-ताधम-रु ॥ ३०-१८ ॥
मदिर- पानी — दैत्य-गणदॊळ ।
गधम-रॆनिपरु — काल-केयरु ।
अधिक-रिगॆ सम — रहरु- देवा — वेश- बलदिं-द ॥
वदन- पाणी — पाद- श्रोत्रिय ।
गुद उ-पस्थ — घ्राण- त्वग्रस- ।
नधिप- दैत्यरु — नीच-रॆनिपरु — काल-केयरि-गॆ ॥ ३०-१९ ॥
ज्ञान- कर्में — द्रियग-ळिगॆ अभि- ।
मानि- कल्या — द्यखिळ- दैत्यरु ।
हीन- कर्मव — माडि- माडिसु — तिहरु- सर्वरॊ-ळु ॥
वाणि- भारति — कमल-भव पव- ।
मान-रिवर — च्छिन्न- भक्तरु ।
प्राण- असुरा — वेश-रहितनु — आख-णाश्म स-म ॥ ३०-२० ॥
हुतव-हाक्षा — द्यमर-रॆल्ला ।
युतरु- कल्या — वेश- विधि मा ।
रुत स-रस्वति — भार-तियरव — तार-दॊळगि-ल्ल ॥
कृत पु-टांजलि — यिंद- तन्नय ।
पितन- सम्मुख — दल्लि- निंदा- ।
नतिसि- बिन्नै — सिदनु- ऎन्नॊळु — कृपॆय- माडॆं-दु ॥ ३०-२१ ॥
द्वेषि- दैत्यर — तार-तम्यवु ।
दूष-णॆयु भू — षणग-ळॆन्नदॆ ।
दोष-वॆंबुव — द्वेषि- निश्चय — इवर- नोड-ल्कॆ ॥ क्लेश-गळ नै — दुवनु- बहुविध ।
संश-यव बड — सल्ल- वेद- ।
व्यास- गरुड पु — राण-दलि पे — ळिदनु- ऋषिगळि-गॆ ॥ ३०-२२ ॥
जालि- नॆग्गिलु — क्षुद्र- शिलॆ बरि ।
गाल- पुरुषन — बाधि-पुवु च- ।
म्माळि-गॆय मॆ — ट्टिदव-गुंटे — कंट-कगळ भ-य ॥ चेळु- सर्पव — कॊंद- वार्तॆय ।
केळि- मोदिप — गिल्ल-वघ यम- ।
नाळु-गळ भय — विल्ल- दैत्यर — निंदि-सुव नर-गॆ ॥ ३०-२३ ॥
पुण्य- कर्मव — पुष्क-रादि हि- ।
रण्य- गर्भां — तर्ग-त ब्र- ।
ह्मण्य- देवनि — गर्पि-सुतलिरु — पाप- कर्मग-ळ ॥
जन्य- दुःखव — कलिमु-खाद्यरि- ।
गुण्ण-लीवनु — सकल-लोक श- ।
रण्य- शाश्वत — मिश्र- जनरिगॆ — मिश्र- फलवी-व ॥ ३०-२४ ॥
त्रिविध- गुणगळ — मानि- श्रीभा ।
र्गवि र-मण गुणि — गुणग-ळॊळगव ।
रवर- योग्यतॆ — कर्म-गळननु — सरिसि- कर्मफ-ल ॥ स्ववश-रादम — रासु-रर गण ।
कवधि-यिल्लदॆ — कॊडुव- देव ।
प्रवर-वर जग — नाथ-विठ्ठल — विश्व-व्यापक-नु ॥ ३०-२५ ॥
॥ इति श्री दैत्यतारतम्य सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्री ॥
Original content reused with permission from Tadipatri Gurukula
॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥