हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
३१. नैवेद्यप्रकरण सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
लॆक्कि-सदॆ लकु — मियनु- बॊम्मन ।
पॊक्क-ळिंदलि — पडॆद- पॊसपॊं- ।
बक्कि-देरन — पडॆद-वयवग — ळिंद- दिविजर-न ॥ मक्क-ळंददि — पॊरॆव- सर्वद ।
रक्क-सांतक — रणदॊ-ळगॆ नि- ।
र्दुःख- सुखमय — काय्द- पार्थन — सूत-नॆंदॆनि-सि ॥ ३१-१ ॥
दोष- गंध वि — दूर- नाना- ।
वेष-धारि वि — चित्र- कर्म म- ।
नीषि- माया — रमण- मध्वां — तःक-रणरू-ढ ॥ शेष-शायि श — रण्य- कौस्तुभ ।
भूष-ण सुकं — धर स-दा सं- ।
तोष- बल सौं — दर्य-सारन — महिमॆ-गेनॆं-बॆ ॥ ३१-२ ॥
साश-नानश — ने अ-भी यॆं- ।
बी शृ-ती प्रति — पाद्य-नॆनिसुव ।
केश-वन रू — पद्व-यव चि — द्देह-दॊळहॊर-गॆ ॥ बेस-रदॆ स — द्भक्ति-यिंद उ- ।
पास-नॆय गै — युत्त- बुधरु हु- ।
ताश-ननवो — लिप्प-नॆंदन — वरत- तुतिसुव-रु ॥ ३१-३ ॥
सकल- सद्गुण — पूर्ण- जन्मा- ।
द्यखिळ- दोष वि — दूर- प्रकटा ।
प्रकट- सद्व्या — पारि-गत सं — सारि- कंसा-रि ॥
नकुल- नाना — रूप- नीया- ।
मक नि-यम्य नि — राम-य रवि ।
प्रकर- सन्निभ — प्रभु स-दा मां — पाहि- परमा-त्म ॥ ३१-४ ॥
चेत-ना चे — तन ज-गत्तिनॊ ।
ळात-तनु ता — नागि- लकुमी ।
नाथ- सर्वरॊ — ळिप्प- तत्त — द्रूप-गळ धरि-सि ॥ जाति-गारन — तॆरदि- ऎल्लर ।
माति-नॊळगि — द्दखिळ- कर्मव ।
ता ति-ळिसिकॊ — ळ्ळदलॆ- माडिसि — नोडि- नगुति-प्प ॥ ३१-५ ॥
वीत-भय वि — ज्ञान- दायक ।
भूत- भव्य भ — वत्प्र-भु खळा ।
राति- खगवर — वहन- कमला — कांत- निश्चिं-त ॥ मात-रिश्व — प्रिय पु-रातन ।
पूत-ना प्रा — णाप-हारि वि- ।
धातृ-जनक वि — पश्चि-त जन — प्रीय- कविगे-या ॥ ३१-६ ॥
दुष्ट-जन सं — हारि- सर्वो ।
त्कृष्ट- महिम स — मीर-नुत सक- ।
लेष्ट-दायक — स्वरत- सुखमय — मम कु-लस्वा-मि ॥ हृष्ट- पुष्ट क — निष्ठ- सृष्ट्या ।
द्यष्ट-कर्त क — रींद्र-वरद य- ।
थेष्ट-तनु उ — न्नत सु-कर्मा — नमिपॆ-ननवर-त ॥ ३१-७ ॥
पाक-शासन — पूज्य- चरण पि- ।
नाकि- सन्नुत — महिम- सीता ।
शोक- नाशन — सुलभ- सुमुख सु — वर्ण-वर्ण नि-भ ॥ माक-ळत्र म — नीषि- मधुरिपु ।
एक-मेवा — द्वितिय- रूप प्र- ।
तीक- देव ग — णांत-रात्मक — पालि-सुवुदॆ-म्म ॥ ३१-८ ॥
अप्र-मेया — नंत- रूप स- ।
दा प्र-सन्न मु — खाब्ज- मुक्ति सु- ।
खप्र-दायक — सुमन-सारा — धित प-दांभो-ज ॥ स्वप्र-काश स्व — तंत्र- सर्वग ।
क्षिप्र- फलदा — यक क्षि-तीश य- ।
दु प्र-वीर वि — तर्क्य- विश्वसु — तैज-स प्रा-ज्ञ ॥ ३१-९ ॥
गाळि- नडॆवं — ददलि- नीलघ- ।
नाळि- वर्तिसु — वंतॆ- ब्रह्म त्रि- ।
शूल-धर श — क्रार्क- मॊदला — दखिळ- देवग-ण ॥ काल-कर्म गु — णाभि-मानि म- ।
हाल-कुमियनु — सरिसि- नडॆवरु ।
मूल-कारण — मुक्ति-दायक — हरियॆ-निसिकॊं-ब ॥ ३१-१० ॥
मोड- कैबी — सणिकॆ-यिंदलि ।
ओडि-सुवॆनॆं — ब प्र-यत्नवु ।
कूडु-वुदॆ क — ल्पांत-कादरु — लक्ष्मि-वल्लभ-नु ॥
जोडु- कर्मव — जीव-रॊळु ता- ।
माडि- माडिसि — फलग-ळुणिसुव ।
प्रौढ-रादव — रिवन- भजिसि भ — वाब्धि- दाटुव-रु ॥ ३१-११ ॥
क्लेश-मोहा — ज्ञान दोष वि- ।
नाश-क विरिं — चांड-दॊळगा ।
काश-दोपा — दियलि- तुंबिह — नॆल्ल- कालद-लि ॥ घासि-गॊळिसदॆ — तन्न-वरना ।
यास- संर — क्षिसुव- मह करु- ।
णा स-मुद्र प्र — सन्न-वदनां — भोज- वैरा-ज ॥ ३१-१२ ॥
कन्न-डिय कै — पिडिदु- नोळ्पन ।
कण्णु-गळु कं — डल्लि-गॆरगदॆ ।
तन्न- प्रतिबिं — बवनॆ- कांबुव — दर्प-णव बिट्टु ॥ धन्य-रिळॆयॊळ — गॆल्ल- कडॆयलि ।
निन्न- रूपव — नोडि- सुखिसुत ।
सन्नु-तिसुता — नंद- वारिधि — यॊळगॆ- मुळुगिह-रु ॥ ३१-१३ ॥
अन्न-मानि श — शांक-नॊळु का- ।
रुण्य- सागर — केश-वनु पर- ।
मान्न-दॊळु भा — रतियु- नारा — यणनु- भक्ष्यदॊ-ळु ॥ सॊन्न-गदिरनु — माध-वनु श्रुति ।
सन्नु-त श्री — लक्ष्मि- घृतदॊळु ।
मान्य- गोविं — दाभि-धनु इरु — तिप्प-नॆंदॆं-दु ॥ ३१-१४ ॥
क्षीर-मानि स — रस्व-तियु जग- ।
त्सार- विष्णुव — चिंति-सुवुदु स- ।
रोरु-हासन — मंडि-गॆयॊळिरु — तिप्प- मधुवै-रि ॥ मारु-तनु नव — नीत-दॊळु सं- ।
प्रेर-क त्रिवि — क्रमनु- दधियॊळु ।
वारि-निधि चं — द्रमरॊ-ळगॆ इरु — तिप्प- वामन-नु ॥ ३१-१५ ॥
गरुड- सूपकॆ — मानि- श्री श्री ।
धरनु- देवतॆ — पत्र-शाककॆ ।
वरनॆ-निप मि — त्राख्य- सूर्य हृ — षीक-पन मू-र्ति ॥ उरग-राजनु — फल सु-शाककॆ ।
वरनॆ-निसुवनु — पद्म-नाभन ।
स्मरिसि- भुंजिसु — तिहरु- बल्लव — रॆल्ल- कालद-लि ॥ ३१-१६ ॥
गौरि- सर्वा — म्लस्थ-ळॆनिपळु ।
शौरि- दामो — दरन- तिळिवुदु ।
गौरि-प नना — म्लस्थ- संकरु — षणन- चिंतिपु-दु ॥ सार- शर्कर — गुडदॊ-ळगॆ वृ- ।
त्रारि- इरुतिह — वासु-देवन ।
सूरि-गळु धे — निपरु- परमा — दरदि- सर्व-त्र ॥ ३१-१७ ॥
स्मरिसु- वाच — स्पतिय- सोप- ।
स्करदॊ-ळगॆ प्र — द्युम्न-निप्पनु ।
निरय-पति यम — धर्म- कटुद्र — व्यदॊळ-गनिरु-द्ध ॥ सरष-प श्री — राम-ठेळदि ।
स्मरन- श्री पुरु — षोत्त-मन क- ।
र्पुरदि- चिंतिसि — पूजि-सुतलिरु — परम-भकुतिय-लि ॥ ३१-१८ ॥
नालि-गिंदलि — स्वीक-रिप रस ।
पालु- मॊदला — दुदरॊ-ळगॆ घृत ।
तैल- पक्व प — दार्थ-दॊळगिह — चंद्र-नंदन-न ॥ पालि-सुवधो — क्षजन- चिंतिसु ।
स्थूल- कूष्मां — डतिल-माषज ।
ई ल-लित भ — क्ष्यदॊळु- दक्षनु — लक्ष्मि-नरसिं-ह ॥ ३१-१९ ॥
मनुवु- माष सु — भक्ष्य-दॊळु चिं- ।
तनॆय- माड — च्युतन- निऋति- ।
मनॆयॆ-निप लव — णदॊळु- मरॆयदॆ — श्रीज-नार्दन-न ॥ नॆनॆयु-तिरु फल — रसग-ळॊळु प्रा- ।
णन उ-पॆंद्रन — वीळ्य-दॆलॆयॊळु ।
द्युनदि- हरिरू — पवनॆ- कॊंडा — डुतलॆ- सुखिसुति-रु ॥ ३१-२० ॥
वेद-विनुतगॆ — बुधनु- सुस्वा- ।
दोद-काधिप — नॆनिसि-कॊंबनु ।
श्रीद-कृष्णन — तिळिदु- पूजिसु — तिरु नि-रंतर-दि ॥ साधु- कर्मप — पुष्क-रनु सुनि- ।
वेदि-त पदा — र्थगळ- शुद्धिय ।
गैदु- गैसुत — हंस-नामक — गर्पि-सुतलि-प्प ॥ ३१-२१ ॥
रति स-कल सु — स्वादु रसगळ ।
पतियॆ-निसुवळु — अल्लि- विश्वनु ।
हुतव-हन चु — ल्लिगळॊ-ळगॆ भा — र्गवन- चिंतिपु-दु ॥ क्षितिज- गोमय — जाधि-यॊळु सं- ।
स्थित व-संतन — ऋषभ- देवन ।
तुतिसु-तिरु सं — तत स-दा स — द्भक्ति- पूर्वक-दि ॥ ३१-२२ ॥
पाक-कर्तृग — ळॊळु च-तुर्दश ।
लोक-मातॆ म — हाल-कुमि गत- ।
शोक- विश्वं — भरन- तिळिवुदु — ऎल्ल- कालद-लि ॥
चौक- शुद्ध सु — मंड-लदि भू ।
सूक-राह्वय — उपरि-चैलप ।
एक-दंत स — नत्कु-मारन — ध्यानि-पुदु बुध-रु ॥ ३१-२३ ॥
श्रीनि-वासन — भोग्य-वस्तुव ।
काण-गॊडदं — ददलि- विष्व- ।
क्सेन- परिखा — रूप-नागिह — नल्लि- पुरुषा-ख्य ॥ तानॆ- पूजक — पूज्य-नॆनिसि नि- ।
जानु-गर सं — तैप- गुरु पव- ।
मान- वंदित — सर्व-कालग — ळल्लि- सर्वे-श ॥ ३१-२४ ॥
नूत-न समी — चीन- सुरसो- ।
पेत- हृद्य प — दार्थ-दॊळु विधि ।
मातॆ- तत्त — द्रसग-ळॊळु रस — रूप- ताना-गि ॥
प्रीति- बडिसुत — नित्य-दि जग ।
न्नाथ-विठलन — कूडि- ता नि- ।
र्भीत-ळागिह — ळॆंद-रिदु नी — भजिसि- सुखिसुति-रु ॥ ३१-२५ ॥
॥ श्री नैवेद्यप्रकरण सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्री ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥