हरि सर्वोत्तम । वायु जीवोत्तम । श्री गुरुभ्यो नमः ।
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श्री जगन्नाथदासार्य विरचित श्री हरिकथामृतसार
३२. कक्ष (देवता) तारतम्य सन्धि
हरिक-थामृत — सार-गुरुगळ ।
करुण-दिंदा — पनितु-पेळुवॆ ।
परम-भगवद् — भक्त-रिदना — दरदि-केळुवु-दु ॥ प ॥
श्रीर-मण स — र्वेश- सर्वग ।
सार-भोक्त स्व — तंत्र- दोष वि- ।
दूर- ज्ञाना — नंद- बल ऐ — श्वर्य- गुणपू-र्ण ॥ मूरु- गुणव — र्जित स-गुण सा- ।
कार- विश्व — स्थिति ल-योदय- ।
कार-ण कृपा — सांद्र- नरहरॆ — सलहॊ- सज्जन-र ॥ ३२-१ ॥
नित्य- मुक्तळॆ — निर्वि-कारळॆ ।
नित्य- सुख सं — पूर्णॆ- नित्या- ।
नित्य- जगदा — धारॆ- मुक्ता — मुक्त- गणविनु-तॆ ॥ चित्त-यिसु बि — न्नपव- श्रीपुरु- ।
षोत्त-मन व — क्षोनि-वासिनि ।
भृत्य-वत्सलॆ — कायॆ- त्रिजग — न्मातॆ- विख्या-तॆ ॥ ३२-२ ॥
रोम-कूपग — ळॊलु पृ-थक् पृथ ।
गा म-हा पुरु — षन स्व-मूर्तिय ।
ताम-रस जां — डगळ- तद्गत — विश्व-रूपग-ळ ॥
श्री म-हिळॆ रू — पगळ- गुणगळ ।
सीमॆ-गाणदॆ — योचि-सुत मम ।
स्वामि- महिमॆय — दॆंतु-टॆंदडि — गडिगॆ- बॆरगाद ॥ ३२-३ ॥
ऒंद-जांडदॊ — ळॊंदु- रूपदॊ- ।
ळॊंद-वयवदॊ — ळॊंदु- नखदॊळ- ।
गॊंदु- गुणगळ — पार-गाणदॆ — कृतपु-टांजलि-यिं ॥ मंद-जासन — पुळक-पुळका- ।
नंद- भाष्प तॊ — दल्नु-डिगळिं- ।
दिंदि-रा व — ल्लभन- महिमॆ ग — भीर-तरवॆं-द ॥ ३२-४ ॥
एनु- धन्यरॊ — ब्रह्म- गुरुपव- ।
मान-रायरु — ई प-रियलि र- ।
मानि-वासन — विमल- लाव — ण्याति-शयगळ-नु ॥ सानु-रागदि — नोडि- सुखिप म- ।
हानु-भावर — भाग्य-वॆंतॊ भ- ।
वानि-धवनिग — साध्य-वॆणिसलु — नरर- पाडे-नु ॥ ३२-५ ॥
आ पि-तामह — नूरु-कल्प र- ।
माप-तिय गुण — जपिसि- ऒलिसि म- ।
हा प-राक्रम — हनुम- भीमा — नंद-मुनियॆनि-सि ॥ आ प-रब्र — ह्मन सु-नाभी- ।
कूप-संभव — नाम-दलि मॆरॆ- ।
वाप-योजा — सन स-मीररि — गभिन-मिपॆ नि-त्य ॥ ३२-६ ॥
वासु-देवन — मूर्ति- हृदया- ।
काश- मंडल — मध्य-दलि ता- ।
रेश-नंददि — काणु-तलि सं — तोष-दलि तुति-प ।
आ स-रस्वति — भार-तियरिगॆ ।
ना स-तत वं — दिसुवॆ- परमो- ।
ल्लास-दलि सु — ज्ञान- भकुतिय — सलिस-लॆमगॆं-दु ॥ ३२-७ ॥
जगदु-दरन सु — रोत्त-मन निज- ।
पॆगलॊ-ळांतु क — राब्ज-दॊळु पद- ।
युग ध-रिसि नख — पंक्ति-यॊळु रम — णीय- तरवा-द ॥ नगध-रन प्रति — बिंब- काणुत ।
मिगॆ ह-रुषदिं — पॊगळि- हिग्गुव ।
खगकु-लाधिप — कॊडलि- मंगळ — सकल- सुजनरि-गॆ ॥ ३२-८ ॥
योगि-गळ हृद — यकॆ नि-लुक निग- ।
माग-मैक वि — नुतन- परमनु- ।
राग-दलि द्विस — हस्र- जिह्वॆग — ळिंद- वर्णिसु-व ॥ भूग-गन पा — ताळ- व्याप्तन ।
योग-निद्रा — स्पदनॆ-निप गुरु ।
नाग-राजन — पदकॆ- नमिसुवॆ — मनदॊ-ळनवर-त ॥ ३२-९ ॥
नंदि-वाहन — नळिनि-धर मौ- ।
ळींदु- शेखर — शिव त्रि-यंबक ।
अंध-कासुर — मथन- गज शा — र्दूल- चर्मध-र ॥ मंद-जासन — तनय- त्रिजग- ।
द्वंद्य- शुद्ध — स्फटिक सन्निभ ।
वंदि-सुवॆनन — वरत- पालिसॊ — पार्व-तीरम-ण ॥ ३२-१० ॥
फणि फ-णांचित — मकुट-रंजित ।
क्वणित- डमरु त्रि — शूल- शिखि दिन- ।
मणिनि-शाकर — नेत्र- परमप — वित्र- सुचरि-त्र ॥
प्रणत- कामद — प्रमथ- सुरमुनि- ।
गण सु-पूजित — चरण-युग रा- ।
वण म-द विभं — जन स-तत मां — पाहि- महदे-व ॥ ३२-११ ॥
दक्ष- यज्ञ वि — भंज-ननॆ विरु- ।
पाक्ष- वैरा — ग्याधि-पति सं- ।
रक्षि-सॆम्मनु — सर्व-कालदि — सन्मु-दवनि-त्तु ॥
यक्ष-पति सख — यजिप-रिगॆ सुर- ।
वृक्ष- वृकदनु — जारि- लोका- ।
ध्यक्ष- शुक दू — र्वास- जैगी — षव्य- संतै-सु ॥ ३२-१२ ॥
हत्तु- कल्पदि — लवण- जलधियॊ- ।
ळुत्त-म श्लो — कननॊ-लिसि कृत- ।
कृत्य-नागि ज — गत्प-तिय ने — मदि कु-शास्त्रग-ळ ॥
बित्त-रिसि मो — हिसि दु-रात्मर ।
नित्य- निरयनि — वास-रॆनिसिद ।
कृत्ति-वासगॆ — नमिपॆ- शेष प — दार्ह-नहुदॆं-दु ॥ ३२-१३ ॥
कंबु-पाणिय — परम- प्रेम नि- ।
तंबि-नियरॆं — दॆनिप- लक्षणॆ ।
जांब-वति का — ळिंदि- नीला — भद्र- सखविं-द ॥
ऎंब- षण्महि — षियर- दिव्य प- ।
दांबु-जगळिगॆ — नमिपॆ- मम हृद- ।
यांब-रदि नॆल — सलि बि-डदॆ त — म्मरस-नॊडगू-डि ॥ ३२-१४ ॥
आ प-रंतप — नॊलुमॆ-यिंद स- ।
दाप-रोक्षिग — ळॆनिसि- भगव- ।
द्रूप- गुणगळ — महिमॆ- स्वपतिग — ळान-नदि तिळि-व ॥ सौप-रणि वा — रुणि न-गात्मज- ।
राप-नितु ब — ण्णिसुवॆ- ऎन्न म- ।
हाप-राधग — ळॆणिस-दीयलि — परम- मंगळ-व ॥ ३२-१५ ॥
त्रिदिव-तरु मणि — धेनु- गळिगा ।
स्पदनॆ-निप त्रिद — शाल-याब्धिगॆ ।
बदर-नंदद — लॊप्पु-तिप्प उ — पेंद्र- चंद्रम-न ॥
मृदु म-धुर सु — स्तवन-दिंदलि ।
मधु स-मय पिक — नंतॆ- पाडुव ।
मुदिर- वाहन — नंघ्रि- युग्मं — गळिगॆ- नमिसुवॆ-नु ॥ ३२-१६ ॥
कृति र-मण प्र — द्युम्न- देवन ।
अतुल- बल ला — वण्य- गुण सं- ।
तत उ-पासन — केतु-माला — खंड-दॊळु रचि-प ॥
रति म-नोहर — नंघ्रि- कमलकॆ ।
नतिसु-वॆनु भकु — तियलि- मम दु- ।
र्मति क-ळॆदु स — न्मतिय-नीयल — जस्र- नमगॊलिदु ॥ ३२-१७ ॥
चारु-तर नव — विध भ-कुति गं- ।
भीर- वारा — शियॊळु- परमो ।
दार- महिमन — हृदय- फणिपति — पीठ-दलि भजि-प ॥ भूरि-कर्मा — करनॆ-निसुव श- ।
रीर-मानि — प्राण-पति पद ।
वारि-रुहका — नमिपॆ- मद्गुरु — राय-रहुदॆं-दु ॥ ३२-१८ ॥
वितत- महिमन — विश्व-तोमुख- ।
नतुळ- भुजबल — कल्प- तरुवा- ।
श्रितरॆ-निसि सक — लेष्ट- पडॆदनु — दिनदि- मोदिसु-व ॥
रति स्व-यंभुव — दक्ष- वाच- ।
स्पति बि-डौजन — मडदि- शचि म- ।
न्मथ कु-मारनि — रुद्ध-रॆमगी — यलि सु-मंगळ-व ॥ ३२-१९ ॥
भवव-नधि नव — पोत- पुण्य- ।
श्रवण- कीर्तन — पाद-वनरुह ।
भवन- नाविक — नागि- भजकर — तारि-सुव बिड-दॆ ॥ प्रवह- मारुत — देव- परमो- ।
त्सव वि-शेष नि — रंत-र महा- ।
प्रवह-दंददि — कॊडलि- भगव — द्भक्त- संतति-गॆ ॥ ३२-२० ॥
जनर-नुद्धरि — सुवॆनॆ-नुत निज- ।
जनक-ननुमत — दलि स्व-यंभुव ।
मनुवि-निंदलि — पडॆद- सुकुमा — रकर- नॊलुमॆय-लि ॥
जननि- शतरू — पानि-तंबिनि ।
मन व-चन का — यदलि- बिडदनु- ।
दिनदि- नमिसुवॆ — कॊडु ऎ-मगॆ स — न्मंग-ळव नॊलि-दु ॥ ३२-२१ ॥
नरन- नारा — यणन- हरिकृ- ।
ष्णर प-डॆदॆ पुरु — षार्थ- तॆरदलि ।
तरणि- शशि शत — रूप-रिगॆ सम — नॆनिसि- पापिग-ळ ॥ निरय-दॊळु नॆलॆ — गॊळिसि- सज्जन ।
नॆरवि-यनु पा — लिसुव- औदुं- ।
बर स-लहु सल — हॆम्म- बिडदलॆ — परम- करुणद-लि ॥ ३२-२२ ॥
मधु वि-रोधि म — नोज- क्षीरो- ।
दधि म-थन सम — यदलु-दिसि नॆरॆ ।
कुधर-जाव — ल्लभन- मस्तक — मंदि-रदि मॆरॆ-व ॥ विधु त-वांघ्रि प — योज- युगळकॆ ।
मधुप-नंदद — लॆरग-लॆन्मन- ।
दधिप- वंदिपॆ — ननुदि-नंत — स्ताप- परिहरि-सॊ ॥ ३२-२३ ॥
श्रीव-नरुहां — बकन- नेत्रग- ।
ळे म-नॆयॆनिसि — सज्ज-नरिगॆ क- ।
राव-लंबन — वीव- तॆरदि म — यूख- विस्तरि-प ॥
आ वि-वस्वा — नॆंदॆ-निसुव वि- ।
भाव-सु अह — र्निशिग-ळलि कॊड- ।
ली व-सुंधरॆ — यॊळु वि-पश्चित — रॊडनॆ- सुज्ञा-न ॥ ३२-२४ ॥
लोक-मातॆय — पडॆदु- नी जग- ।
देक-पात्रनि — गित्त- कारण ।
श्रीकु-मारि स — मेत- नॆलॆसिद — निन्न- मंदिर-दि ॥
आ क-मलभव — मुखरु- बिडदॆ प- ।
राकॆ-नुत निं — दिहरॊ- गुणर- ।
त्नाक-रनॆ ब — ण्णिसल-ळवॆ कॊडु — ऎमगॆ- सन्मन-व ॥ ३२-२५ ॥
पणॆयॊ-ळॊप्पुव — तिलक- तुळसी- ।
मणिग-णांचित — कंठ- करदलि ।
क्वणित- वीणा — सुस्व-रदि बहु — ताळ-गतिगळ-लि ॥
प्रणव- प्रतिपा — द्यन गु-णंगळ ।
कुणिदु- पाडुत — परम-सुख सं- ।
दणियॊ-ळाडुव — देव-ऋषि ना — रदरि-गभिनमि-पॆ ॥ ३२-२६ ॥
आ स-रस्वति — तीर-दलि बि- ।
न्नैस-ला मुनि — गळ नु-डिगॆ जड- ।
जास-नमहे — शाच्यु-तर लो — कंग-ळिगॆ पो-गि ॥
ता स-कलगुण — गळ वि-चारिसि ।
केश-वनॆ पर — दैव-वॆंदुप- ।
देशि-सिद भृगु — मुनिप- कॊडलॆम — गखिळ- पुरुषा-र्थ ॥ ३२-२७ ॥
बिसरु-हांबक — नाज्ञॆ-यलि सुम- ।
नस मु-खनु ता — नॆनिसि- नाना- ।
रसग-ळुळ्ळ ह — विस्सु-गळनव — रवरि-गॊय्दी-व ॥ वसुकु-लाधिप — यज्ञ-पुरुषन ।
असम-बलरू — पंग-ळिगॆ वं- ।
दिसुवॆ- ज्ञान य — शस्सु- विद्या — बुद्धि- कॊडलॆम-गॆ ॥ ३२-२८ ॥
तात-नप्पणॆ — यिंद- नी प्र- ।
ख्याति-युळ्ळर — वत्तु- मक्कळ ।
प्रीति-यिंदलि — पडॆद-वरवरि — गित्तु- मन्निसि-दॆ ॥ वीति-होत्रन — समळॆ-निसुव प्र- ।
सूति- जननि त्व — दंघ्रि- कमलकॆ ।
ना तु-तिसुतलॆ — बागु-वॆम्म कु — टुंब- सलहुवु-दु ॥ ३२-२९ ॥
शतधृ-तिय सुत — रीर्व-रुळिद- ।
प्रतिम- सुतपो — निधिग-ळपरा- ।
जितन- सुसमा — धियॊळॊ-लिसि मू — र्लोक-दॊळु मॆरॆ-व ॥ व्रतिव-र मरी — च्यत्रि- पुलहा ।
क्रतु व-सिष्ठ पु — लस्त्य- वैव- ।
स्वतनु- विश्वा — मित्र-रंगिर — रंघ्रि-गॆरगुवॆ-नु ॥ ३२-३० ॥
द्वाद-शादि — त्यरॊळु- मॊदलिग- ।
नाद- मित्र — प्रवह- मानिनि- ।
याद- प्रावहि — निऋति- निर्जर — गुरुम-हिळॆ ता-रा ॥
ई दि-वौकस — रनुदि-नाधि- ।
व्याधि- उपटळ — वळिदु- विबुधरि- ।
गाद-रदि कॊड — लखिळ- मंगळ — वाव- कालद-लि ॥ ३२-३१ ॥
मान-निधिगळॆ — निसुव- विष्व- ।
क्सेन- धनप ग — जान-नरिगॆ स- ।
मान-रॆंभ — त्तैदु- शेष स — तस्थ- देवग-ण ॥ आन-मिसुवॆनु — बिडदॆ- मिथ्या- ।
ज्ञान- कळॆदु सु — बोध-वित्तु स- ।
दानु-रागद — लॆम्म- परिपा — लिसलि- संपद-व ॥ ३२-३२ ॥
भूत-मरुतन — वांत-रभिमा- ।
नी त-पस्वि म — रीचि-मुनि पुरु- ।
हूत-नंदन — पाद-मानि ज — यंत-रॆमगॊलि-दु ॥ कात-रव पु — ट्टिसदॆ- विषयदि ।
वीत- भयन प — दाब्ज-दलि विप- ।
रीत- बुद्धिय — नीय-दॆ सदा — पालि-सलि ऎ-म्म ॥ ३२-३३ ॥
ओदि-सुव गुरु — गळनु- जरिदु स- ।
होद-ररिगुप — देशि-सिद मह- ।
दादि- कारण — सर्व-गुण सं — पूर्ण- हरियॆं-दु ॥ वादि-सुव त्व — त्पतिय- तोरॆं- ।
दा द-नुज बॆस — गॊळलु- स्तंबदि ।
श्रीद-नाक्षण — तोरि-सिद प्र — ह्लाद- सलहॆ-म्म ॥ ३२-३४ ॥
बलि मॊ-दलु स — प्तेंद्र-रिवरिगॆ ।
कलित- कर्मज — दिविज-रॆंबरु ।
उळिद- एका — दश म-नुगळु उ — चथ्य- च्यवनमु-ख ॥ कुलऋ-षिगळॆं — भत्तु- हैहय- ।
निळॆय- कंपन — गैद- पृथु मं- ।
गळ प-रीक्षित — नहुष- नाभि य — याति- शशबिं-दु ॥ ३२-३५ ॥
शतक-संके — तुळ्ळ- प्रीय- ।
व्रत भ-रत मां — धात- पुण्या- ।
श्रितरु- जयविज — यादि-गळु गं — धर्व-रॆंटुज-न ॥ हुतव-हज पा — वक स-नातन ।
पितृग-ळेळ्वरु — चित्र-गुप्तरु ।
प्रतिदि-नदि पा — लिसलि- तम्मव — नॆंदु- ऎमगॊलि-दु ॥ ३२-३६ ॥
वास-वालय — शिल्पि- विमलज- ।
लाश-यगळॊळु — रमिप- ऊर्वशि ।
भेश-रविगळ — रिपुग-ळॆनिसुव — राहु-केतुग-ळु ॥ श्रीश-पदपं — थान- धूमा- ।
र्चीश- दिविजरु — कर्म-जरिगॆ स- ।
दा स-मान दि — वौक-सरु कॊड — लॆमगॆ- मंगळ-व ॥ ३२-३७ ॥
द्युनदि- श्यामल — संज्ञ- रोहिणि ।
घनप- पर्ज — न्यानि-रुद्धन ।
वनितॆ- ब्रह्मां — डाभि-मानि वि — राट-देविय-र ॥
नॆनॆवॆ- ना नल — विंद- देवा- ।
नन म-हिळॆ स्वा — हाख्य-रालो- ।
चनॆ कॊ-डलि नि — र्विघ्न-दिं भग — वद्गु-णंगळ-लि ॥ ३२-३८ ॥
विधिपि-तन पा — दांबु-जगळिगॆ ।
मधुप-नंतॆ वि — राजि-पामल ।
उदक-गळिगॆ स — दाभि-मानियु — ऎंदॆ-निसिकॊं-ब ॥
बुधगॆ- ना वं — दिसुवॆ- सन्मो- ।
ददि नि-रंतर — ऒलिदु- ऎमग- ।
भ्युदय- पालिस — लॆंदु- परमो — त्सवदॊ-ळनुदिन-दि ॥ ३२-३९ ॥
श्रीवि-रिंचा — द्यर म-नकॆ निलु- ।
काव- कालकॆ — जनन- रहितन ।
तावॊ-लिसि मग — नॆंदु- मुद्दिसि — लीलॆ-गळ नो-ळ्प ॥ देव-किगॆ वं — दिपॆ य-शोदा- ।
देवि-गानमि — सुवॆनु- बिडदॆ कृ- ।
पाव-लोकन — दिंद- सलहुवु — दॆम्म- संतति-य ॥ ३२-४० ॥
पाम-रर सुप — वित्र-गैसुव ।
श्रीमु-कुंदन — विमल- मंगळ- ।
नाम-गळिगभि — मानि-याद उ — षाख्य-देविय-रु ॥ भूमि-यॊळगु — ळ्ळखिळ- सज्जन- ।
राम-यादिग — ळळिदु- सलहलि ।
आ म-रुत्तन — मनॆय- वैद्यर — रमणि- प्रतिदिन-दि ॥ ३२-४१ ॥
वनधि- वसनॆ व — राद्रि- निचय- ।
स्तन वि-राजितॆ — चेत-नाचे- ।
तन वि-धारकॆ — गंध-रस रू — पादि-गुणवपु-षॆ ॥ मुनिकु-लोत्तम — कश्य-पन निज ।
तनुजॆ- निनगा — नमिपॆ- ऎन्नव- ।
गुणग-ळॆणिसदॆ — पालि-पुदु पर — मात्म-नर्धां-गि ॥ ३२-४२ ॥
पुरट-लोचन — निन्न- कद्दॊ- ।
य्दिरलु- प्रार्थिसॆ — देव-तॆगळु- ।
त्तरव- लालिसि — तंद- वरहा — रूप- ताना-गि ॥
धरणि- जननियॆ — त्वत्प-दाब्जकॆ ।
ऎरगि- बिन्नै — सुवॆनु- पाद- ।
स्परुष- मॊदला — दखिळ- दोषग — ळॆणिस-दिरु यॆं-दु ॥ ३२-४३ ॥
हरिगु-रुगळ — र्चिसद- पापा- ।
त्मरनु- शिक्षिस — लोसु-ग शनै- ।
श्चरनॆ-निसि दु — ष्फलग-ळीवॆ नि — रंत-रवु बिड-दॆ ॥ तरणि- नंदन — निन्न- पादां- ।
बुरुह-गळिगा — नमिपॆ- बहुदु- ।
स्तर भ-वार्णदि — मग्न-नादॆ — न्नुद्द-रिसबे-कु ॥ ३२-४४ ॥
निरति-शय सु — ज्ञान- पूर्वक ।
विरचि-सुव नि — ष्काम- कर्मग- ।
ळरितु- तत्त — त्काल-दलि त — ज्जन्य- फलरस-व ॥
हरिय- नेमद — लुणिसि- बहुजी- ।
वरिगॆ- कर्मप — नॆनिप- गुरुपु- ।
ष्करनु- सत्क — र्मंग-ळलि नि — र्विघ्न-तॆय कॊड-लि ॥ ३२-४५ ॥
श्रीनि-वासन — परम-कारु- ।
ण्यानि-वास — स्थान-रॆनिप कृ- ।
शानु-जरु सा — हस्र- षोडश — शतरु- श्रीकृ-ष्ण- ॥ मानि-नियरॆ — प्पत्तु- यक्षरु- ।
दान-वरु मू — वत्तु- चारण- ।
जान-जामर — रप्स-ररु गं — धर्व-रिगॆ नमि-पॆ ॥ ३२-४६ ॥
किन्न-ररु गु — ह्यकरु- राक्षस- ।
पन्न-गरु पितृ — गळु सु-सिद्धरु ।
सन्नु-ताजा — नजरु- समरिव — रमर-योनिज-रु ॥
इन्न-वर गुण — वॆंतु- बण्णिस- ।
लॆन्न-ळवॆ करु — णदलि- परमा- ।
पन्न-जनरिगॆ — कॊडलि- सन्मुद — सुप्र-तापग-ळ ॥ ३२-४७ ॥
आ य-मुनॆयॊळु — साद-रदि का ।
त्याय-नीव्रत — धरिसि- कॆलरु द- ।
रायु-धनॆ पति — यॆनिसि- कॆलवरु — जार-तनद-ल्लि ॥ वायु-पितनॊलि — सिदरु- ईर्बगॆ ।
तोय-सरसर — पाद- कमलकॆ ।
ना यॆ-रगुवॆ म — नोर-थंगळ — सलिस-लनुदिन-दि ॥ ३२-४८ ॥
नूरु- मुनिगळ — नुळिदु मेलण ।
नूरु-कोटि त — पोध-नर पा- ।
दार-विंदकॆ — मुगिवॆ- करगळ — नुद्ध-रिसलॆं-दु ॥
मूरु- सप्तश — ताह्व-यर तॊरॆ- ।
दी ऋ-षिगळा — नंत-रदलिह ।
भूरि- पितृगळु — कॊडलि- यॆमगॆ स — दा सु-मंगळ-व ॥ ३२-४९ ॥
पाव-नकॆ पा — वननॆ-निसुव र- ।
मावि-नोदन — गुणग-णंगळ ।
साव-धानद — लेक-मानस — रागि- सुस्वर-दि ।
आ वि-बुध पति — सभॆयॊ-ळगॆ ना- ।
ना वि-लासदि — पाडि- सुखिसुव ।
देव- गंध — र्वरु कॊ-डलि यॆम — गखिळ- पुरुषा-र्थ ॥ ३२-५० ॥
भुवन- पावन — वॆनिप- लक्ष्मी- ।
धवन- मंगळ — दिव्य- नाम- ।
स्तवन-गैव म — नुष्य- गंध — र्वरिगॆ- वंदिसु-वॆ ॥ प्रवर- भूभुज — रुळिदु- मध्यम- ।
कुवल-यपरॆं — दॆनिसि-कॊंबर ।
दिवस-दिवसं — गळलि- नॆनॆवॆनु — करण- शुद्धिय-लि ॥ ३२-५१ ॥
श्री मु-कुंदन — मूर्ति-गळ सौ- ।
दामि-नियवोल् — हृदय- वारिज- ।
व्योम- मंडल — मध्य-दलि का — णुतलि- मोदिसु-व ॥
आ म-नुष्यो — त्तमर- पदयुग- ।
ताम-रसगळि — गॆरगु-वॆ सदा ।
कामि-तार्थग — ळित्तु- सलहलि — प्रणत- जनतति-य ॥ ३२-५२ ॥
ई म-हीमं — डलदॊ-ळिह गुरु ।
श्रीम-दाचा — र्यर म-तानुग- ।
रा म-हा वै — ष्णवर- विष्णुप — दाब्ज- मधुकर-र ॥ स्तोम-कानमि — सुवॆन-वरवर ।
नाम- पेळलु — अळवॆ- बहु विध ।
याम-यामं — गळलि- बोधिस — लॆनगॆ- सन्मति-य ॥ ३२-५३ ॥
मार-नय्यन — करुण-पारा- ।
वार-मुख्यसु — पात्र-रॆनिप स- ।
रोरु-हासन — वाणि- रुद्रें — द्रादि- सुरनिक-र ॥ तार-तम्या — त्मक सु-पद्यग- ।
ळारु-पठिसुव — रा ज-नरिगॆ र- ।
मार-मण पू — रैस-लीप्सित — सर्व-कालद-लि ॥ ३२-५४ ॥
मूरु- कालं — गळलि- तुतिसॆ श- ।
रीर-वाङ्मन — शुद्धि- माळ्पुदु ।
दूर- गैसुवु — दखिळ-पाप स — मूह- प्रतिदिन-वु ॥ चोर-भय रा — जभय- नक्रच- ।
मूरु- शस्त्र ज — लाग्नि- भूतम- ।
होर-गज्वर — नरक-भय सं — भविस-दॆंदॆं-दु ॥ ३२-५५ ॥
जय ज-यतु त्रिज — गद्वि-लक्षण ।
जय ज-यतु जग — देक- कारण ।
जय ज-यतु जा — नकिर-मण नि — र्गत ज-रामर-ण ॥
जय ज-यतु जा — ह्नवि ज-नक जय- ।
जयतु- दैत्य कु — लांतक- भवा- ।
मयह-र जग — न्नाथ-विठ्ठल — पाहि- मां सत-त ॥ ३२-५६ ॥
॥ इति श्री कक्ष (देवता) तारतम्य सन्धि संपूर्णं ॥ ॥ श्री कृष्णार्पणमस्तु ॥
॥ श्रीः ॥
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॥ भारतीरमणमुख्यप्राणान्तर्गत श्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥